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बच्चे बहुत नाजुक होते हैं और उनका डाइजेस्टिव सिस्टम भी ऐसा ही होता है। बच्चे जो कुछ भी खाते हैं वो उनके गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में प्रवेश करता है, जो कि उसके शरीर में प्रवेश करने वाले विभिन्न प्रकार के पैथोजन या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं होता है। बच्चे के जीवन के शुरुआती कुछ महीनों में, उसके डाइजेस्टिव सिस्टम में कई तरह के चेंजेस होंगे। पहले कुछ महीनों के लिए, यह न केवल अलग-अलग एंजाइम को प्रोडूस करता है जो डाइजेशन में सपोर्ट करते हैं, बल्कि यह इन्फेक्शन और बीमारियों से लड़ने के लिए एंटीबॉडी भी डेवलप करता है। यह जानने के लिए कि बच्चे का डाइजेस्टिव सिस्टम कब और कैसे विकसित होता है, दिए गए लेख को पूरा पढ़ें।
जब बच्चा अपनी माँ के गर्भ में होता है, तो उसे अपने सभी न्यूट्रिएंट्स प्लेसेंटा के जरिए मिलते हैं। लेकिन आपके बच्चे के जन्म के तुरंत बाद, उसके लिए सब कुछ बदल जाता है क्योंकि वह अब न्यूट्रिएंट्स के लिए प्लेसेंटा पर निर्भर नहीं रहता है। अब उसे अपने डाइजेस्टिव सिस्टम को खुद ही मैनेज करना होगा, यानी उसे खुद ही अपने खाने को पचाना होगा। हालांकि, जन्म के समय बच्चे का डाइजेस्टिव सिस्टम पूरी तरह से मैच्योर नहीं होता है और इसे मजबूत होने में कुछ समय लगता है। यही कारण है कि जन्म के कुछ दिनों के अंदर बच्चे का वजन लगभग 10 प्रतिशत तक कम हो जाता है। माँ के दूध में वह सभी न्यूट्रिएंट्स और एनर्जी होती है जो बच्चे को जन्म के समय चाहिए होती है। इसलिए माँ का दूध बच्चे के लिए बहुत फायदेमंद होता है जिससे उसकी ग्रोथ और डेवलपमेंट में हेल्प होती है और कैलोरी भी प्राप्त होती है। ब्रेस्ट मिल्क को कोलोस्ट्रम से गाढ़े दूध में बदलने में थोड़ा समय लगता है और एक बार यह ट्रांजीशन होने के बाद, बच्चे फिर से बढ़ना शुरू हो जाता है।
जैसा कि आप जानते हैं कि बच्चों का पेट छोटा होता है, इसलिए आपको अपने बच्चे को बार-बार दूध पिलाना होगा। जन्म के बाद के शुरुआती कुछ दिनों में, आपका बच्चा केवल एक औंस दूध ही ले पाएगा, लेकिन तीन महीने का होने से पहले आप धीरे-धीरे तीन से चार औंस तक इसे बढ़ा सकती हैं। बच्चे का पेट छोटा होने के अलावा, उसका इसोफेगल वाल्व भी छोटा और अंडर डेवलप होता है। यह वाल्व बच्चे के पेट में खाना को ट्रांसफर करने के लिए जिम्मेदार होता है। हालांकि, अगर अंडर डेवलप होने के कारण, यह बार-बार बच्चा खाना उलट देता है। अभी बच्चा इतना छोटा होता है कि किडनी भी मैच्योर नहीं हुई होती है, इसलिए आपको फीडिंग शेड्यूल पर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि बच्चे को सभी न्यूट्रिएंट्स मिलें और बच्चा हाइड्रेटेड रहे, साथ ही इलेक्ट्रोलाइट इम्बैलेंस नहीं होना चाहिए।
जवान और बड़े बच्चों में उनके गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के चारों ओर म्यूकस लीनिंग की एक लेयर होती है। यह म्यूकस लीनिंग किसी भी माइक्रोब्स या दूषित पदार्थों के खिलाफ डाइजेस्टिव सिस्टम की रक्षा करने में एक ढाल का काम करती है, जो उनके खाने के जरिए उनके पेट में जाता है। हालांकि, बच्चों के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के चारों ओर मौजूद म्यूकस लीनिंग बहुत स्ट्रांग नहीं होता है। जिससे यह बच्चों में विभिन्न प्रकार के इन्फेक्शन होने के खरते को बढ़ा सकता है। हालांकि, आपको इसे लेकर बहुत चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जैसे-जैसे आपका बच्चा बड़ा होगा, यह मजबूत होता जाएगा और पूरी तरह से मैच्योर हो जाएगा और एक समय बाद बच्चे की बॉडी इतनी स्ट्रांग हो जाएगी कि वह खुद अपनी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देगा। जो उसके ब्रेस्ट मिल्क के जरिए प्राप्त होता है। इसके अलावा, माँ का दूध बच्चे में गुड बैक्टीरिया को बढ़ावा देकर और विभिन्न प्रकार के खतरनाक पैथोजन से उसे दूर रखने में मदद करते हैं।
भोजन करते समय हो सकता है कि आपका दिल चाहे कि आप अपने खाने में से बच्चे को भी एक निवाला खिलाएं। हालांकि, यदि आपका बच्चा छह महीने से कम उम्र का है, तो ऐसा करना उसके लिए अच्छा नहीं होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि भले ही आपका बच्चा इन खानों को खाने के लिए एक्साइटेड क्यों न लेकिन अभी उसका डाइजेस्टिव सिस्टम उतना मैच्योर नहीं हुआ होता है। बच्चे का शरीर छह महीने तक भोजन में मौजूद स्टार्च को पचाने के लिए एंजाइम की उपयुक्त मात्रा को प्रोडूयस करने में सक्षम नहीं होगा। इसके अलावा, बाइल साल्ट और लाइपेज, जो फैट के डाइजेशन में सहायता करते हैं, छह से नौ महीने की उम्र तक पूरी तरह से मैच्योर नहीं हुए होते हैं। चार से छह महीने की उम्र तक इंटेस्टाइनल लीनिंग खाने के जरिए पहुँचने वाले बैक्टीरिया का सामना करने के लिए तैयार होने लगते हैं। यह गट होल प्रोटीन को स्माल इंटेस्टाइन से ब्लड फ्लो में जाने में मदद करता है। यह माँ के दूध से एंटीबॉडी को ब्लड फ्लो में प्रवेश करने में भी मदद करता है। हालांकि, अगर खाने के बड़े मॉलिक्यूल या अन्य पैथोजन इससे गुजरते हैं, तो इससे एलर्जी या इन्फेक्शन हो सकता है।
क्या आप सोच रही हैं कि आपके बच्चे के पाचन तंत्र को मैच्योर होने में कितना समय लगेगा? तो आपको बता दें कि आपके बच्चे के डाइजेस्टिव सिस्टम को पर्याप्त रूप डाइजेशन एंजाइम बनाने की जरूरत होती है, जो ठोस भोजन में मौजूद कार्बोहाइड्रेट, फैट और प्रोटीन को डाइजेस्ट करने में मदद करते हैं, जो छह से नौ महीने की उम्र से पहले नहीं होता है। इसलिए, आपके बच्चे का डाइजेस्टिव सिस्टम लगभग छह से नौ महीने की उम्र में धीरे-धीरे मैच्योर होने लगता है। इस समय तक आप अपने डॉक्टर से जाँच कराने के बाद बच्चे की डाइट में विभिन्न प्रकार के सॉलिड फूड को शामिल करना शुरू कर सकती हैं।
बच्चे के जन्म के बाद शुरूआती कुछ महीनों के दौरान पेट का दर्द, दस्त, दूध उलट देना, पेट में दर्द और डाइजेशन संबंधी अन्य समस्याएं होना बहुत आम है। लेकिन चिंता करने की कोई बात नहीं है क्योंकि जैसा आपको बताया गया है की ये प्रॉब्लम बहुत ही कॉमन हैं जिनका सामना ज्यादातर बच्चे इमैच्योर डाइजेस्टिव सिस्टम के कारण कर सकते हैं। हालांकि, यहाँ आपको कुछ टिप्स दी गई हैं, जो आपके बच्चे के डाइजेशन हेल्थ की देखभाल करने में आपकी मदद कर सकते हैं।
माँ का दूध बच्चों के लिए वरदान होता है क्योंकि यह न केवल उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषण प्रदान करता है, बल्कि शरीर में एंटीबॉडी प्रोडूस करने में भी मदद करता है। इसलिए, आपको कम से कम छह महीने या उससे समय के लिए ब्रेस्टफीडिंग कराना चाहिए। यह भी नोटिस किया गया है कि जिन बच्चों को खासतौर पर ब्रेस्टफीडिंग कराई जाती है, उनमें डाइजेस्टिव, रेस्पिरेटरी या दूसरे हेल्थ कॉम्प्लिकेशन नहीं होते हैं।
छह महीने का हो जाने पर आप बच्चे को सॉलिड फूड देना शुरू कर सकती हैं। हालांकि, एक ही समय में बहुत सारे खाद्य पदार्थों को शामिल करने से बचना चाहिए। आप धीरे-धीरे एक बार में एक भोजन देने से शुरू करें और चार से पाँच दिनों के गैप के बाद नया भोजन दें। मॉनिटर करें कि आपके बच्चे का डाइजेस्टिव सिस्टम किसी खाने के दिए जाने के बाद कैसे रिएक्शन देता है। केला, ब्रोकली, सेब और अनाज जैसे चावल, रागी और सूजी कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिन्हें आप सॉलिड फूड के तौर पर बच्चे को दिया जा सकता है। गेंहू को कुछ देर से डाइट में शामिल किया जाना चाहिए, बेहतर होगा कि आप लगभग आठ महीने या उसके बाद इसे बच्चे को देना शुरू करें।
ध्यान दें कि आपके बच्चे को किसी खाने से एलर्जी तो नहीं है, क्योंकि यह उसके डाइजेशन हेल्थ को प्रभावित कर सकता है। इसलिए आपको एक समय पर एक ही भोजन देने के लिए कहा जाता है। यदि आपके शिशु को किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी होती है, तो सुनिश्चित करें कि आप बच्चे का खाना तैयार करने के लिए कोई भी फूड इंग्रीडिएंट न डालें, जिससे बच्चे को फूड एलर्जी होना का खतरा हो। कुछ बच्चे लैक्टोज इन्टॉलरेंट होते हैं, उन्हें नट से एलर्जी हो सकती है या अंडे से भी एलर्जी हो सकती है। इसलिए, अपने छोटे बच्चे पर नजर रखें।
अब आप जान गए होंगे कि आपके बच्चे का डाइजेस्टिव सिस्टम कब डेवलप होता है, इसलिए एक बार जब बच्चे का डाइजेस्टिव सिस्टम पूरी तरह से डेवलप हो जाए, तो उसे तब सॉलिड फूड देना शुरू करें। किसी भी प्रकार के सॉलिड फूड को पहली बार देने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करें, क्योंकि आपका डॉक्टर आपको बेहतर तरीके से गाइड करेंगे कि आप बच्चे को सॉलिड फूड देना कब से शुरू कर सकती हैं।
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