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एक बच्चे के जन्म के बाद अक्सर पेरेंट्स उसके बड़े होने का इंतजार बेसब्री से करते हैं। इस बीच उसकी देखभाल और हर आवश्यकता का खयाल पूरी तरह से रखा जाता है। हम सभी जानते हैं कि बच्चे का तोतली आवाज में बोलना कितना लुभावना लगता है पर जरा सोच कर देखिए शुरूआती कुछ दिनों में जब बच्चा तोतली आवाज में भी बात नहीं कर पाता होगा तो वह अपनी मुश्किलों को कैसे व्यक्त करता होगा। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे अगर इस दुनिया में कोई भाषा ही नहीं होती जिससे कम्युनिकेट किया जा सके तो क्या होता। उसी प्रकार से एक छोटे बच्चे को भी अपनी बात व्यक्त करने में कितनी कठिनाई होती होगी। बच्चों के रोने से उनकी तकलीफों का अंदाजा लगा पाना पेरेंट्स के लिए चैलेंजिंग होता है इसलिए उनकी बातों को कैसे समझा जाए यह सीखना बहुत जरूरी है।
बच्चे अपनी जरूरतों को बताने के लिए रोते हैं, जैसे भूख लगना, दर्द, डर और नींद। उनके रोने के कारण को समझ पाना थोड़ा कठिन हो सकता है। भूख लगने या नींद आने पर बच्चे का रोना अलग सुनाई देता है। यदि बच्चे का रोना सही सुनाई नहीं देता है तो आपको डॉक्टर से सलाह लेने की जरूरत है। बच्चे को शांत करने, उसे कम्फर्ट देने में आपकी बहुत सारी मेहनत लग सकती है। बच्चा बढ़ने के साथ ही कम्यूनिकेट करने के अन्य तरीकों को भी सीखता है। बच्चे के रोने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, आइए जानें;
बच्चों का पेट बहुत छोटा होता है और बहुत जल्दी खाली भी हो जाता है इसलिए उन्हें बार-बार दूध पिलाने की जरूरत पड़ती है। यदि आपका बच्चा रो रहा है तो इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि वह लगातार दूध न पी रहा हो या उसे थोड़ी मात्रा में बार-बार दूध पीने की जरूरत हो। यदि बच्चा इससे शांत रहता है तो आपको उसे 2-3 घंटे पहले ही दूध पिला देना चाहिए। बच्चे अक्सर थकान के कारण सो जाते हैं। हालांकि कभी-कभी बहुत ज्यादा थकने से वे चिड़चिड़े या इरिटेट हो जाते हैं।
आपको बार-बार चेक करना चाहिए कि बच्चे का डायपर बदलने की जरूरत कब है।
यदि बच्चा विशेषकर दूध पीने के बाद बहुत ज्यादा रोता है तो हो सकता है कि गैस या कोलिक एसिड की वजह से उसके पेट में दर्द हो रहा हो।
बच्चों को डकार दिलाना जरूरी है। यदि बच्चा दूध पीने के बाद रोने लगता है तो आप उसकी तकलीफ कम करने के लिए उसे डकार दिलाएं।
बच्चे माँ का स्पर्श और नजदीकी चाहते हैं। वे अपने पेरेंट्स का चेहरा देखना चाहते हैं और उनकी आवाज सुनना चाहते हैं। इसलिए वे कभी-कभी रोकर यह बताने का प्रयास करते हैं कि उन्हें आपके पास आना है।
यदि बच्चे को बहुत ज्यादा गर्मी या ठंड लगती है तो भी वह चिड़चिड़ा सकता है। पेरेंट्स होने के नाते आपको अपने बच्चे को सही व सुविधाजनक तापमान में रखना चाहिए।
कभी-कभी बच्चों को किसी चीज से असुविधा होती है, जैसे हाथ या पैर की उंगलियों में बाल फंस जाने से या कपड़ों के टैग से स्क्रैच होने से।
बच्चों के आसपास हो रही चीजों से कभी-कभी उन्हें परेशानी होती है (शोर या लाइट्स)। इसलिए उन्हें शांत करने की जरूरत है। वहीं दूसरी बच्चे तरफ कभी-कभी बाहर जाने के लिए भी बहुत ज्यादा उत्तेजित होते हैं जिसकी वजह से वे चिड़चिड़ाते व रोते हैं।
बच्चा बीमार होने की वजह से भी रो सकता है। बीमारी जानने के लिए बच्चे के लक्षणों को चेक करें।
दांत निकलने पर भी बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं क्योंकि उनका हर दाँत निकलने पर मसूड़ों में जोर पड़ता है जिसकी वजह से दर्द होता है।
कभी-कभी बच्चे अपने आसपास की चीजों से डर जाते हैं, जैसे बुरा सपना या किसी भी डरावनी चीज से जिसकी वजह से वे रोने लगते हैं।
बच्चों को अपने पेरेंट्स से दूर होने की एंग्जायटी होने का भी अनुभव होता है। बच्चों में यह चिंता होना सामान्य है पर धैर्य व आश्वासन से वे जरूर समझ जाएंगे कि अलग होने का अर्थ यह हमेशा के लिए नहीं है।
यदि आपका बच्चा बहुत रोता है तो आप उसे गोद में उठाकर गले से लगा लें। आप उसे इस प्रकार से पकड़ें कि वह सुरक्षित महसूस कर सके और अपने हाथों से उसकी ठोड़ी को सहारा दें। बच्चे को अपनी बाजू से सहारा दें और उसे 45 डिग्री पर रखकर हल्के-हल्के झुलाएं। आपका मूवमेंट बहुत आराम से और सीक्वेंस में होना चाहिए। बच्चे का सही एंगल होना चाहिए ताकि आप उसे आसानी से नियंत्रित कर सकें। 2 से तीन महीने के बच्चे को आप इस तरह से ले सकते हैं।
बच्चे कई कारणों से रोते हैं। कभी-कभी उन्हें सिर्फ दूध पिला कर, पकड़ कर या डायपर बदल कर चुप करना आसान है। हालांकि कभी-कभी बच्चा कोलिक की वजह से भी बहुत रोता है जिसमें उसे चुप करना आसान नहीं होता है।
रोते हुए बच्चे को शांत करने के कुछ विशेष तरीके, आइए जानें;
बच्चे को ब्लैंकेट उढ़ाने से उसे कोजी और सुरक्षित महसूस होगा। स्वैडलिंग से बच्चे को गर्भ में रहने जैसा महसूस होगा जिसकी मदद से बच्चे को जल्दी आराम मिलेगा। बच्चे के हाथों को ब्लैंकेट के बाहर ही रखें ताकि वह स्वतंत्र रूप से एन्जॉय कर सके।
चूंकि बच्चे ने गर्भ में ज्यादा से ज्यादा समय बिताया है इसलिए आप उसे वैसे ही होल्ड करें। इसे फुटबॉल होल्ड कहते हैं जिसमें बच्चे को गोदी में लेकर सिर व पैरों को बाजुओं से सपोर्ट दिया जाता है।
कुछ बच्चे सूदिंग आवाज से भी शांत हो जाते हैं जैसे शss की आवाज, क्योंकि ऐसी ही आवाज गर्भ में भी आती है। यह आवाज बच्चे के रोने से ज्यादा तेज होनी चाहिए ताकि वह इसे सुन सके। आप खुद की आवाज से या वाइट नॉइज मशीन से या मोबाइल फोन से यह आवाज कर सकती हैं।
तेज और रिदमिक मूवमेंट जैसे कि झूला झुलाने से बच्चे को शांत करने में मदद मिल सकती है। आप मोटराइज्ड बेबी स्विंग या ग्लाइडर्स का उपयोग भी कर सकती हैं। पर आप बच्चे को इसमें सोने न दें। क्योंकि इससे बच्चे को ऐसे सोने की आदत पड़ सकती है। बच्चे को बहुत ज्यादा न झुलाएं क्योंकि इससे बेबी शेकन सिंड्रोम हो सकता है जिससे बच्चे का दिमाग या शरीर का अन्य भाग ट्रॉमेटिक हो सकता है। आप अपने बच्चे को सौम्यता से रखें।
बच्चों को कुछ चूसने के लिए देने पर वे जल्दी ही शांत हो जाते हैं। यह उन्हें दूध पिलाने या उनका पेट भरने से संबंधित नहीं है। हालांकि इससे उनकी नर्व्ज रिलैक्स होती हैं। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को पूरे दिन के लिए पैसिफायर न दें क्योंकि इससे बच्चा निर्भर हो जाएगा।
यदि बच्चा बहुत रोता है तो आप उसे निम्नलिखित अन्य तरीकों से भी शांत कर सकती हैं, आइए जानें;
मालिश करने से भी बहुत शांति मिलती है और आप अपने रोते हुए बच्चे को शांत करने के लिए इसका उपयोग कर सकती हैं। बच्चे की मालिश के लिए आप बेबी मसाज ऑयल या लोशन का उपयोग करें। आप बहुत प्यार से बच्चे के सीने पर बीच से बाहर की ओर, पेट पर गोलाई में और नाभि में मालिश करें। उसके हाथ व पैरों को अपने हाथों से धीमे-धीमे रोल करें। उसके हाथ-पैरों को हल्का-हल्का घुमाएं और साथ ही हथेली, पैर के पंजों व उंगलियों में भी मालिश करें। यदि बच्चा ठीक है तो आप उसे पेट के बल लिटाकर पीठ व साइड में ऊपर नीचे भी मालिश करें।
बच्चे अक्सर बोर होने पर भी रोने लगते हैं। आप बच्चे को कहानियां सुनाकर, एनिमेटेड एक्सप्रेशन के साथ आवाजें निकाल कर उसका मनोरंजन कर सकती हैं। बच्चे के खिलौनों से खेलें और उसे अलग-अलग टॉयज से रैटल व स्पिन करना सिखाएं।
कभी-कभी बच्चा गैस या कोलिक की वजह से भी बहुत रोता है। आप बच्चे को हाथों में लेकर उसे शांत करने का प्रयास कर सकती हैं। बच्चे के पेट पर थोड़ा सा दबाव डालें और उसे अपने हाथ पर पेट के बल लिटाएं और उसके सिर को सहारा दें। दूसरे हाथ से बच्चे की पीठ को हल्के-हल्के रगड़ें। बच्चे को अपनी गोद में लिटाकर उसका एक घुटना पेट की तरफ मोड़ें और दूसरे हाथ से बच्चे के सिर को सपोर्ट दें। आप बच्चे को पीठ के बल लिटाएं और हर बार 10 सेकण्ड्स तक उसके घुटनों को पेट के बल मोड़ें। इससे बच्चे को गैस रिलीज करने में मदद मिलेगी।
यदि बच्चा बहुत रो रहा है तो कभी-कभी उसे बाहर फ्रेश हवा में घूमने की इच्छा होती है। आसपास की जगह पर बदलाव होने से उसका मूड ठीक हो सकता है। यदि आप बच्चे को बाहर वॉक पर ले जाने में सक्षम नहीं हैं तो उसे ड्राइव पर ले जाएं।
कभी-कभी बच्चे के लिए लोरी गाने से भी वह शांत हो जाता है। आपकी आवाज से ही बच्चे को आराम महसूस हो सकता है।
आप बच्चे को पैक कैरियर में लेकर उसे टहलें। आपसे उसकी नजदीकी और आपके पैरों की आवाज बच्चे को रिलैक्स करने में मदद मिलेगी। बच्चे को गोद में लेकर टहलाने से वह बहुत एन्जॉय करता है।
चूंकि बच्चे के लिए सब कुछ नया है इसलिए कभी-कभी बहुत ज्यादा उत्तेजना की वजह से बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। इसलिए उसके आसपास के वातावरण को शांत व सूदिंग रखें। एक अलग कमरे में लाइट डिम करके हल्का म्यूजिक चलाएं और अपने बच्चे को सुला दें।
शुरूआती महीनों में बच्चे चिड़चिड़े होते हैं और बहुत ज्यादा रोते हैं। यहाँ तक कि वे विशेष समय पर भी चिड़चिड़ा सकते हैं। बच्चों के चिड़चिड़ाने और रोने का समय 2 से 6 सप्ताह तक चल सकता है जिसमें 6वें सप्ताह में यह बहुत ज्यादा होता है और बच्चा चौथे महीने में भी बहुत ज्यादा रोता है। बच्चा अक्सर रोजाना दिन में 2 से 4 घंटों तक बहुत ज्यादा चिड़चिड़ाता है। बच्चे आमतौर पर रोजाना एक ही समय पर समान समय के लिए समान तेजी से रोते हैं। वे हमेशा हर बार एक ही चीज पर प्रतिक्रिया देते हैं। यदि बच्चा रोना बंद नहीं करता है तो आपको उसे 5 विशेष तरीकों से चुप करने का प्रयास करना चाहिए। हालांकि यदि आपको लगता है कि बच्चा आमतौर पर रोता और चिड़चिड़ाता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
सेल्फ सूदिंग का मतलब है कि बच्चा अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में सक्षम है। आजकल पेडिअट्रिशन्स पेरेंट्स को बच्चों में सेल्फ सूदिंग की स्किल्स सिखाने की सलाह देते हैं। यद्यपि ज्यादातर बच्चों को सेल्फ सूदिंग सिखाई गई है पर कुछ बच्चों में यह नेचुरल होती है। समझदार बच्चे बेहद जिद्दी बच्चों की तुलना में जल्दी ही सेल्फ सूदिंग सीख जाते हैं।
पैरेंटल गाइडेंस के साथ ही 6 से 9 महीने के बच्चे को शांत रहने के लिए सेल्फ सूदिंग सिखाई जाती है। यदि आप बच्चे को यह बहुत जल्दी सिखाना शुरू करते हैं तो इससे वह चिड़चिड़ा भी सकता है। शुरूआती दिनों में आपको बच्चों के साथ धैर्य रखना चाहिए क्योंकि इस समय वे अपने आस-पास के वातावरण को अडैप्ट करने का प्रयास करते हैं। जब तक बच्चा अपनी आवश्यकताओं को बोलना सीखता है तब तक आपको उनका खयाल रखने के लिए पूरा ध्यान देने की जरूरत है। चौथे महीने से आप बच्चे को सेल्फ सूदिंग सिखाना शुरू कर सकते हैं।
बच्चे को सेल्फ सूदिंग सिखाने के लिए उसे आपके पूरे सपोर्ट की जरूरत है। आप बच्चे को एक बार में एक चीज सिखाएं ताकि उसका शरीर व मन इन चीजों को पूरी तरह से एडाप्ट कर सके। वे तरीके कौन से हैं, आइए जानें;
जब आप अपने बच्चे को सेल्फ सूदिंग सिखाती हैं तब कुछ चीजों को नजरअंदाज करें। यह बहुत जरूरी है कि आप बच्चे को सेल्फ सूदिंग करने का मौका दें और इस बात पर विश्वास करें कि आपका बच्चा यह कर सकेगा। शुरुआत में करना कठिन होगा पर जब तक बच्चा सेल्फ-सूदिंग न सीख जाए तब तक आप उसे सभी असुविधाओं से दूर रखें। इसलिए आपको यह सीखने की भी जरूरत है कि बच्चे को असुविधाओं का सामना करने के लिए तैयार कैसे करें।
बच्चे का एक रूटीन बनाना बहुत जरूरी है। इससे बच्चे को एंग्जायटी कम होती है और वह कम चिड़चिड़ाता है। आप एक जैसी चीजों को एक समय पर और एक ऑर्डर में करने का प्रयास करें।
रोते हुए बच्चे को चुप करने का यह सबसे सही तरीका है। हालांकि इसमें भी कुछ समस्याएं हो सकती हैं, जैसे;
स्वैडल के तरीकों से आप अपने विशेषकर न्यूबॉर्न बच्चे को शांत करने में मदद कर सकती हैं। स्वैडल करने पर बच्चा अपने हाथ को नहीं चूस पाता है जो सेल्फ सूदिंग का एक तरीका है।
यदि बच्चा जागा हुआ है पर आलस महसूस कर रहा है तो आप उसे बिठा दें। बच्चा इतना सुस्त हो सकता है कि उसे नींद आ जाएगी पर वह इतना सुस्त नहीं होता है कि नए वातावरण में एडजस्ट करने में सक्षम न हो। यदि बच्चा थोड़ा बहुत भी जागा हुआ है तो वह अपने आप ही सुविधाजनक स्थिति में होगा और बिना प्रयास किए सो भी जाएगा। बच्चे को अगली बार कब सुलाना है, इसका एक शेड्यूल बना लें।
आप बच्चे के कमरे की लाइट डिम रखें या वाइट नॉइज उपलब्ध कराएं ताकि बच्चा एक अच्छी नींद में देर तक सो सके। यदि बच्चा लेटा हुआ है और जाग रहा है तो भी कोई बात नहीं। वह अपने आप ही सो जाएगा। यदि बच्चा लेटने पर रो रहा है तो आप उसे झुला कर या थपकाकर सोने में मदद करें।
यदि बच्चा जाग जाता है तो उसे दूध पिलाने का प्रयास करें। इससे बच्चा अन्य तरीकों से भी सोना शुरू कर देगा, जैसे सकिंग, एक से दूसरी तरफ सिर हिलाना या कूइंग। जागने से बच्चे में खेलने के लिए एनर्जी रहेगी और वह भोजन को पचा सकेगा जिससे पेट में गैस होने की संभावनाएं कम होती हैं।
आप बच्चे को टॉयज की मदद से सेल्फ सूदिंग सिखाने का प्रयास करें। उसे इसमें अच्छा लगने लगेगा।
बच्चे में सेल्फ सूदिंग की स्किल्स होना उसकी पर्सनालिटी पर निर्भर करता है और यह आपकी पेरेंटिंग सक्षमता से संबंधित नहीं है।
कभी-कभी बच्चे खुद ही सेल्फ सूद या शांत नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में आपको यह चिंता करने की जरूरत नहीं है कि बच्चे में कोई कमी है या वह स्वतंत्र नहीं हो पाएगा। वहीं दूसरी तरफ बच्चे को सुविधा देने के लिए उसके साथ व्यस्त होना बहुत ज्यादा हेल्दी है।
सेल्फ-सूदिंग पूरी तरह से बच्चे के व्यक्तित्व पर निर्भर होती है। जहाँ कुछ बच्चे जन्म के साथ ही सेल्फ सूदिंग कर पाते हैं वहीं अन्य बच्चों को यह स्किल्स सीखने की जरूरत होती है।
बच्चे को पता होना चाहिए कि आप उस पर विश्वास करते हैं। पेरेंट्स होने के नाते आपको अपने बच्चे के आस-पास रहना चाहिए और उसके बोल व बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान देना चाहिए।
यदि बच्चे को आलस आ रहा है पर वो लिटाने पर जागता रहता है तो बच्चे को खुद से यह समझने दें कि अब सोने का समय है और देखें कि क्या वह कुछ देर में सो जाता है।
यदि बच्चा बार-बार रोता है तो उसे हर बार चुप कराते रहना संभव नहीं है। हालांकि बच्चे के रोने पर हर बार उसे चुप करना जरूरी नहीं है। पेरेंट्स अक्सर अपने बच्चे के रोने पर बार-बार उसे शांत करने का प्रयास करते हैं जिसकी वजह से बढ़ते बच्चे में सुरक्षा की समझ उत्पन्न होती है।
बच्चों को 10 से 15 मिनट के लिए ऐसे ही छोड़ देना सही है और आप बीच-बीच में उसे देखती रहें।
बच्चे को रोता हुआ देखकर अक्सर पेरेंट्स को चिंता हो ही जाती है विशेषकर तब जब उसे किसी भी चीज से सहायता न मिल रही हो। बच्चा क्यों रो रहा है और यदि बच्चा रात या दिन में सोते समय रोता है तो क्या करना चाहिए इस बारे में जानने से बच्चा खुश व आराम से रह सकता है।
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