शिशु

बच्चों के दूध के दाँत खराब होना – कारण, लक्षण और उपचार

अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे के दूध के दाँत सड़ना कोई चिंता वाली बात नहीं है, क्योंकि वह कुछ समय बाद खुद ही टूट जाते हैं, तो आप गलत हैं। यदि बच्चे के दाँत सड़ने की वजह से गायब हो जाते हैं, तो आगे चलकर उनमें खाने की खराब आदतें, सही से न बोल पाने की समस्या, टेढ़े-मेढें दाँत निकलने जैसी प्रॉब्लम देखी जा सकती है और यहाँ तक ​​कि इससे जानलेवा इन्फेक्शन होने का खतरा भी पैदा हो सकता है। बच्चे के दाँतों में सड़न इसे रोकने के तरीकों के बारे में जानने के लिए लेख पढ़ना जारी रखें।

छोटे बच्चों के दाँत खराब होने के क्या कारण हैं

बच्चों के दूध के दाँत खराब होने को बेबी बॉटल डिके के नाम से भी जाना जाता है, इसमें जब बच्चे बहुत छोटे होते हैं तो उनके मुँह में बैक्टीरिया डेवलप हो जाते हैं जो एसिड प्रोडूस करते हैं और दाँतों को डैमेज कर देते हैं। ये बैक्टीरिया पैरेंट और केयर टेकर के जरिए फैल सकता है या जब आप उनके साथ एक ही चम्मच, कप या खाना शेयर करते हैं, तो लार के जरिए ये बैक्टीरिया बच्चे के मुँह तक पहुँच जाता है। शुगर युक्त लिक्विड और खाने की चीजें जो पूरे दिन दाँतों में चिपकी रह जाती हैं और बैक्टीरिया एक्शन के जरिए ये एसिड में कंवर्ट हो जाती है, इनके कारण दाँतों की सड़न और तेजी से बढ़ने लगती है। ये एसिड फिर दाँतों के बाहरी हिस्सों को डिसॉल्व कर देते हैं जिससे दाँतों में सड़न पैदा होने लगती है।

पेरेंट्स अक्सर बच्चे को सोते समय बिस्तर पर दूध की बोतल, फॉर्मूला, शुगर जूस या सॉफ्ट ड्रिंक देते हैं, जो उनके दाँतों में होने वाली सड़ने का सबसे आम कारण है। यह तब भी होता है जब बच्चों को सुलाने से पहले उसकी सिपी कप से पानी देने के बजाय कुछ और भोजन के रूप में दिया जाता है।

बच्चों में दाँत खराब होने के लक्षण क्या हैं

बच्चों के दाँत खराब होने के शुरुआती लक्षणों में से एक है गम लाइन पर सफेद धब्बे नजर आना, जो पहली बार सामने के ऊपरी दाँतों पर दिखाई देते हैं। इसे पहले देख पाना मुश्किल होता है, यहाँ तक बच्चे के डेंटिस्ट भी बिना इक्विपमेंट के इसे पहली बार में स्पॉट नहीं कर पाते है। एक बार इसका पता लगने पर तुरंत उपचार किया जाना चाहिए ताकि इसे और ज्यादा डैमेज होने से बचाया जा सके। इसके अलावा दाँतों के खराब होने के अन्य लक्षणों में से दाँतों पर भूरे या काले धब्बे दिखाई देना शामिल है, साथ सांस में बदबू और मसूड़ों में सूजन भी शामिल हैं।

क्या आपको बच्चे के दाँतों में होने वाली सड़न को लेकर चिंता करने की आवश्यकता है?

बच्चे के दाँतों की सड़न एक ऐसा मुद्दा है, जिसे आपको गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि इससे आगे चलकर बड़ी समस्या पैदा हो सकती है। सीधे बताएं तो अगर इसे बिना ट्रीटमेंट के छोड़ दिया जाता है, तो ये सड़े हुए दाँत इन्फेक्शन और दर्द का कारण बन सकते हैं। यदि दाँत गंभीर रूप से सड़ जाते हैं, तो उन्हें निकालना पड़ेगा, जो बच्चे को कई तरह से प्रभावित कर सकता है। चूंकि दाँतों की सही से खाना चबाने, मुस्कुराने और ठीक से बोलने के लिए जरूरत होती है, इसलिए दाँतों के जल्दी खराब होने से ईटिंग हैबिट खराब हो जाती है और स्पीच प्रॉब्लम भी हो सकती है, जो कि बड़े होने पर इसके लिए परेशानी पैदा कर सकता है। बच्चे के दाँत भी बड़ों के दाँतों की तरह ही एक प्लेस होल्डर के रूप में कार्य करते हैं और यदि वे सड़न के कारण निकाल दिए जाते हैं, तो इससे बाद में आने वाले पर्मानेंट दाँत टेढ़े-मेढ़े या टूटे हुए आ सकते हैं।

छोटे बच्चों के दाँतों की सड़न का इलाज कैसे होता है

जैसे ही डेंटिस्ट बच्चे के दाँतों में सड़न को नोटिस करते हैं, वे इसका इलाज जल्द से जल्द करना शुरू कर देते हैं। ट्रीटमेंट प्रोसीजर आपको कुछ इस प्रकार बताए गए हैं:

  • जब सफेद धब्बे दिखाई देते हैं, तो डेंटिस्ट सभी दाँतों को फिर से भरने के लिए फ्लोराइड वार्निश का उपयोग करते हैं। यह ट्रीटमेंट दाँतों के सरफेस इनेमल को फिर से बनाने में मदद करता है और बच्चों के दाँत को शुरूआती स्टेज में खराब होने से रोकता है।
  • शुरूआती स्टेज ट्रीटमेंट में दाँतों की सड़न को रोकने के लिए डाइट में भी बदलाव करना पड़ता है। जिसमें जूस, एसिडिक फूड आइटम और खट्टे फलों के जूस शामिल हैं, और इस प्रकार बच्चे को दूध के बजाय बोतल में पानी मिला जूस दिया जाता है।
  • डाइट में ये बदलाव केवल बच्चे के डॉक्टर की देखरेख में ही किए जाने चाहिए। अगर ये सड़न और भी बाद में नोटिस होती है, तो फ्लोराइड ट्रीटमेंट पर्याप्त नहीं होता। ऐसी कंडीशन में जो लक्षणों में शामिल है वो हैं, दाँतों पर भूरे या काले धब्बे, सांस में बदबू, मसूड़ों से खून बहना और सूजन आना, बुखार और चिड़चिड़ापन होना, जो इन्फेक्शन का संकेत हो सकते हैं।
  • बच्चों में दाँतों की गंभीर सड़न की समस्या होने पर इसका ट्रीटमेंट बड़ों की तरह ही किया जाता है । स्टेनलेस स्टील क्राउन का उपयोग अक्सर दाँतों के लिए किया जाता है, क्योंकि ये लंबे समय तक रहते हैं और शायद ही आपको आगे ट्रीटमेंट कराने की आवश्यकता होती है।
  • इस प्रोसीजर के लिए बच्चे की उम्र के आधार पर जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। गंभीर सड़न के मामले में दाँत निकाला भी जा सकता है।

आप बच्चे के दाँतों को खराब होने से कैसे रोक सकते हैं

यहाँ छोटे बच्चों के दाँतों को सड़न से बचाने के लिए आपको 10 बेहतरीन उपाय दिए गए हैं:

  • ओरल हाइजीन बनाए रखें: आपको अपने बच्चे की ओरल हाइजीन पर ध्यान देने की बहुत जरूरत है, और इसकी शुरुआत आप से होती है इसलिए बच्चे के जन्म के पहले से ही अपनी ओरल हाइजीन का भी खयाल रखें। डेंटिस्ट के पास समय समय पर जाएं और इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुँह साफ रहे।
  • शुरुआत से ध्यान दें: चाहे आप ब्रेस्टफीडिंग करा रही हों या बोतल से दूध पिला रही हों, शुरू से ही अपने बच्चे के दाँतों की देखभाल करें। जन्म से 12 महीने तक, बच्चे के मसूड़ों को एक साफ वॉशक्लॉथ से पोंछें। जब बच्चे का पहला दाँत आना शुरू होता है, तो उसे सॉफ्ट बेबी ब्रश का उपयोग करके फ्लोराइड टूथपेस्ट के साथ धीरे-धीरे ब्रश करें। 12-36 महीने तक आप अपने बच्चे के दाँतों को दिन में दो बार 2 मिनट तक के लिए ब्रश करें, खासकर ब्रेस्टफास्ट के बाद और बिस्तर पर जाने से पहले।

  • शिशु को सोते समय बोतल लगाने से बचें: अपने बच्चे को बोतल या भोजन के साथ बिस्तर पर न ले जाएं इससे खाने में मौजूद शुगर उसके दाँतों में चिपकी रह जाती है। इससे कान में इन्फेक्शन होने का भी खतरा बढ़ता है।
  • बॉटल और पैसिफायर का उपयोग लंबे समय तक करने से बचें: बच्चे के सिपी कप या बोतल को पैसिफायर के रूप में इस्तेमाल न करें या उसे इसे लंबे समय तक इसे इस्तेमाल न करने दें। यदि उसे भोजन के बीच अपनी बोतल या सिपी कप चाहिए, तो इसमें सिर्फ पानी ही डालकर दें ।
  • फ्लोरीन कंटेंट की जाँच करें: दाँत को खराब होने से रोकने के लिए फ्लोरीन बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए अपने वाटर सप्लाई में फ्लोरीन कंटेंट की जांच करें। यदि आप बोरवेल का पानी इस्तेमाल करते हैं या नॉन-फ्लोराइड युक्त पानी का उपयोग करते हैं, तो आपके बच्चे के डेंटिस्ट फ्लोरीन सप्लीमेंट प्रेस्क्राइब कर सकते हैं या आपके बच्चे के दाँतों में फ्लोराइड वार्निश लगा सकते हैं।
  • सही तरह फीडिंग प्रैक्टिस पर जोर दें: जितनी जल्दी हो सके बच्चे को कप से पीना सिखाएं। कप से पीने से कोई भी तरल पदार्थ दाँतों के आसपास इकट्ठा कम होता है। इसके अलावा, कप को सोते समय बिस्तर पर भी नहीं लिया जा सकता है।
  • सिपी कप में पानी दें: अगर बेबी लंबे समय तक सिपी कप या बोतल का उपयोग करता है, तो इसमें सिर्फ पानी भरें, खासकर जब वह भोजन के दौरान इसे मांगता हो।
  • मीठी चीजें कम दें: मिठाई और अन्य स्टिकी फूड को एक लिमिट में ही उसे खाने के लिए दें। गम्मीज, कैंडी, फ्रूट रोल-अप, कुकीज और अन्य शुगर फूड आइटम दाँतों में चिपके रह जाते हैं। उन्हें खाने के तुरंत बाद उसे अपनी जीभ से दाँतों को साफ करना सिखाएं।

  • जूस को सही तरीके से दें: जूस को केवल भोजन के दौरान सर्व करना चाहिए न कि हर समय देना चाहिए। एएपी 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह का जूस देने के खिलाफ है। 6 से 12 महीने के बच्चों को रोजाना 120 मिलीलीटर तक ही जूस दिया जाना चाहिए और इसे आधा पानी मिलाकर पतला कर दें। 1 से 6 साल के बच्चे रोजाना 100-170 मिलीलीटर तक जूस पी सकते हैं।
  • डेंटिस्ट को दिखाएं: इससे पहले कि आपका बच्चा एक साल का हो आप उसे एक बार डेंटिस्ट के पास के जाएं। अगर आपको शिशु के टीथ डेवलपमेंट से संबधित कोई चिंता है, तो डेंटिस्ट इसका निदान करेंगे और जरूरत हुई तो उपचार भी शुरू कर देंगे।

स्वस्थ खाने की आदतें अपनाकर आप बच्चे की ओरल हाइजीन को बेहतर बनाए रख सकती हैं और इस प्रकार बच्चे के दाँतों को सड़ने से भी बचा सकती हैं।

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समर नक़वी

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