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एक महिला की गर्भावस्था इसके संकेतों के अलावा कई तरीकों से दिखाई देती है। इस दौरान महिलाओं को बहुत सारी समस्याएं हो सकती हैं, ब्लड प्रेशर में बदलाव आता है, शरीर में दर्द होता है आदि। हालांकि महिलाओं को कुछ समस्याएं डिलीवरी के बाद भी होती हैं, जैसे पोस्टपार्टम प्री-एक्लेमप्सिया। इस समस्या का कारण और इसके उपचार समझना बहुत जरूरी है ताकि आपको इससे आराम में मदद ले सकें।
पोस्टपार्टम प्री-एक्लेमप्सिया यानी डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया सामान्य रूप से प्री-एक्लेमप्सिया होने के समान ही है पर डिलीवरी के तुरंत बाद यह बदल जाता है। इसमें महिला का ब्लड प्रेशर हाई रहता है और उसके पेशाब में प्रोटीन की मात्रा (लगभग 300 मिलीग्राम से भी ज्यादा) बहुत ज्यादा होती है। ज्यादातर मामलों में महिलाओं को यह समस्या डिलीवरी के 48 से 72 घंटों के बाद भी होती है। हालांकि कुछ मामलों में यह समस्या डिलीवरी के 6 सप्ताह बाद भी दिखाई दे सकती है।
डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया होने का मतलब है कि जब तक आपका ब्लड प्रेशर नियंत्रित नहीं हो जाता है तब तक थोड़ा अधिक समय हॉस्पिटल में रहना पड़ सकता है। इस समस्या के लिए तुरंत इलाज होना चाहिए क्योंकि इसके इलाज में कमी होने के परिणामस्वरूप महिला को दौरे पड़ सकते हैं या अन्य कॉम्प्लीकेशंस भी हो सकती हैं।
डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया होने के कारण अब तक पता नहीं चले हैं। ऐसा माना जाता है कि गर्भावस्था के दौरान बच्चे के विकास के समय में भी आपको यह समस्या रहती है और डिलीवरी के बाद दिखाई देती है। यह भी माना जाता है कि गर्भावस्था के दौरान प्री-एक्लेमप्सिया होने से आपके ब्लड वेसल की परत में समस्याएं हो सकती हैं और कुछ वातावरण के कारणों व जेनेटिक कारणों की वजह से इसमें प्रभाव पड़ सकता है।
डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया होने से महिला को कुछ खतरे भी हो सकते हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
गर्भावस्था के बाद प्री-एक्लेमप्सिया होने के लक्षण सामान्य रूप में प्री-एक्लेमप्सिया होने के जैसे ही हैं, आइए जानें;
डिलीवरी के बाद डॉक्टर आपकी नियमित रूप से जांच करेंगे और यदि आपको प्री-एक्लेमप्सिया होता है तो वे कुछ टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया को डायग्नोज करने के लिए अक्सर यूरिन टेस्ट और खून की जांच करवाने की सलाह दी जाती है।
यदि आपका डायग्नोसिस पॉजिटिव है तो डॉक्टर आपको कुछ अधिक समय के लिए हॉस्पिटल में रहने को कह सकते हैं ताकि वे आपके ब्लड प्रेशर की जांच और इसका इलाज कर सकें।
पोस्टपार्टम प्री-एक्लेमप्सिया का ट्रीटमेंट अक्सर दवाओं से किया जाता है। यदि आपको थोड़ा बहुत प्री-एक्लेमप्सिया हुआ है तब आपको 24 घंटों में मैग्नीशियम सल्फेट दिया जाएगा और आपकी अच्छी तरह से जांच की जाएगी। यह एंटीकॉनवल्सिव है और इससे महिलाओं को दौरे भी नहीं पड़ते हैं। यदि आपका ब्लड प्रेशर 150/100 से ज्यादा है तो डॉक्टर आपको एंटी-हाइपरसेंसिटिव दवाएं दे सकते हैं, जैसे लैबेटलोल, नाइफेडिपाइन, हाइड्रालजाइन इत्यादि। आपका ब्लड प्रेशर नॉर्मल होने पर डॉक्टर आपको इन दवाओं की डोज देना कम कर देंगे। इन दवाओं से आपको कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे मतली, उल्टी, सिर में दर्द आदि।
वैसे तो डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया से बचने के कोई भी तरीके नहीं हैं पर यदि आप अपनी हेल्थ और हेल्दी लाइफस्टाइल पर ध्यान देती हैं तो इससे बचा जा सकता है। इस समस्या से बचने के कुछ तरीके निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
यदि डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया का इलाज नहीं किया गया तो इससे अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे आपको दौरे पड़ सकते हैं। इसमें कुछ कॉम्प्लीकेशंस शामिल हैं, आइए जानें;
बच्चे के जन्म के बाद आपको वैसे ही मानसिक व शारीरिक रूप से स्ट्रेस हो सकता है। यदि आपको प्री-एक्लेमप्सिया होता है तो यह आपके लिए बेहद चैलेंजिंग हो सकता है क्योंकि इसकी वजह से आपको हॉस्पिटल में ज्यादा समय तक रहना पड़ता है। आपके लिए जरूरी है कि इलाज के दौरान डॉक्टर की बात मानें और समस्याओं को ठीक होने दें। आप इस समस्या को समझने का प्रयास करें और इसके बारे में जानें। इस समय आपको अपने प्रियजनों से मिलते रहना चाहिए और एक माँ होने के नाते बच्चे पर ध्यान देना चाहिए।
यदि आपके पास इस समस्या से संबंधित कोई भी सवाल है तो इसकी चर्चा डॉक्टर से करें। गर्भावस्था के बाद प्री-एक्लेमप्सिया की रिकवरी धीरे-धीरे सही तरीके से खयाल रखने और उचित ट्रीटमेंट से हो सकती है।
पोस्टपार्टम प्री-एक्लेम्पसिया या डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेम्पसिया होने की वजह से हाल ही में जन्मे बच्चे की देखभाल में बहुत असर पड़ता है। चूंकि डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेम्पसिया होने से महिलाओं की दृष्टि कमजोर हो जाती है, इस दौरान उन्हें मतली की समस्या, सांस लेने में कठिनाई और दूसरी कॉम्प्लीकेशंस होती हैं इसलिए पीपीपी से होने वाली परेशानियों के कारण शुरूआती दिनों में माँ और बच्चे का बॉन्ड बनने में भी कठिनाई होती है।
यदि आपको डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया हुआ है तो भी आप बच्चे को दूध पिला सकती हैं। हालांकि इस समस्या की वजह से ब्रेस्टमिल्क की आपूर्ति कम हो जाती है। आप इस बारे में डॉक्टर से चर्चा जरूर करें। जब डॉक्टर आपको इस समस्या के लिए दवाएं प्रिस्क्राइब कर रहे हों तो उन्हें यह बताना न भूलें कि आप बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराती हैं।
प्री-एक्लेमप्सिया तब होता है जब गर्भावस्था के 20वें सप्ताह में एक महिला का ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा हो जाता है। इससे महिला के पेशाब में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।
एक्लेम्पसिया प्री-एक्लेमप्सिया का गंभीर रूप है और इसमें दौरे भी पड़ते हैं। यह बहुत गंभीर समस्या है जिससे दिल और दिमाग डैमेज हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप महिला कोमा में भी जा सकती है।
जबकि डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया होने का मुख्य संकेत पेशाब में प्रोटीन की मात्रा है। लेकिन हाल ही में हुई स्टडीज के मुताबिक यह पता चला है कि डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया पेशाब में प्रोटीन का स्तर बढ़े बिना भी हो सकता है।
यदि आपको पिछली गर्भावस्था के दौरान प्री-एक्लेमप्सिया हुआ था तो आपको दोबारा से यह समस्या होने का खतरा हो सकता है। यदि पहले आपकी गर्भावस्था नॉर्मल थी और आप ओबेसिटी से ग्रसित नहीं है या आपके परिवार में पहले कभी किसी को भी प्री-एक्लेमप्सिया नहीं हुआ है तो इसी के अनुसार आपका जोखिम भी कम हो जाता है।
भले ही गर्भावस्था के दौरान आपको कोई भी कॉम्प्लिकेशन न हुई हो पर इसके बाद का समय बहुत ज्यादा स्ट्रेस का होता है। हालांकि यदि आपको डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेमप्सिया हुआ है तो आपको शांत रहने की जरूरत है और आपको यह समझना चाहिए कि बच्चे के लिए सबसे पहले आप क्या कर सकती हैं। अपने बच्चे को दूध पिलाएं और उसके शुरूआती महीनों में एन्जॉय करें। डिस्चार्ज होने के बाद अपने बोझ को कम करने के लिए दोस्तों व रिश्तेदारों से मदद लें। आपके लिए जरूरी है कि स्ट्रेसवाले कामों में उलझने से पहले अपनी हेल्थ पर ध्यान दें। यदि आपको कोई भी शंका होती है या ट्रीटमेंट की वजह से आपमें बदलाव होते हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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