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यह कहानी दो हंसो की है, जो मानस झील में रहते थे। हर कोई उनके आकर्षक स्वरूप का कायल था और उन्हें देखने दूर-दूर से पर्यटक आते थे। दोनों हंसो में एक राजा हंस था जिसका नाम धृतराष्ट्र और दूसरा सेनापति हंस सुमुखा था। इस कहानी में यह बताने का प्रयास किया गया है कि चाहे मुसीबत जितनी बड़ी क्यों न हो हमें अपनों का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए, ऐसा करने से बड़ी से बड़ी समस्या भी हमारे आगे घुटने टेक देती है। यह बच्चों के लिए बेहद मनोरंजक कहानी है और ऐसी ही बेहतरीन कहानियों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट को फॉलो करना न भूलें।
कहानी के पात्र (Characters Of The Story)
- राजा हंस (धृतराष्ट्र)
- सेनापति हंस (सुमुखा)
- वाराणसी के राजा
- राजा का सैनिक
दो हंसों की कहानी (The Story Of Two Swans In Hindi)
सालों पहले की बात है हिमालय के पास एक सुप्रसिद्ध मानस नाम की झील हुआ करती थी। उस झील के आस-पास कई पशु-पक्षियों का बसेरा था और हंसों का झुंड भी झील में रहता था। उन हंसों के झुंड में दो ऐसे हंस भी थे, जो दिखने में बेहद खूबसूरत और एक समान लगते थे। लेकिन दोनों हंसों में एक राजा और दूसरा सेनापति था। राजा हंस का नाम धृतराष्ट्र और सेनापति हंस का नाम सुमुखा था। मानस झील का बादलों के बीच से दिखने वाला नजारा किसी स्वर्ग से कम नहीं था।
उस दौरान उन दो खूबसूरत हंसों के चर्चे हर जगह थे, पर्यटक देश-विदेश से उन्हें देखने के लिए आते थे। कई कवियों ने अपनी कविताओं में भी उन दोनों हंसों का वर्णन किया था। इन्हीं कविताओं को सुनकर वाराणसी के राजा काफी प्रसन्न हुए और उनके मन में भी वो खूबसूरत नजारा देखने की इच्छा जागी। इसी के चलते राजा ने अपने राज्य में ही मानस झील जैसे झील बनाने का आदेश दिया और वहां कई तरह के सुंदर पेड़-पौधे लगवाएं। राजा ने अपने सैनिकों को वहां पर पशु-पक्षियों की देखभाल और सुरक्षा के प्रबंध करने के आदेश दिए।
वाराणसी में बनाया गया ये सरोवर, मानस सरोवर जैसा ही था और उसका नजारा भी किसी स्वर्ग से कम नहीं था। लेकिन इसके बावजूद भी राजा के मन में उन दो आकर्षक हंसो को देखने की ललक बनी हुई थी।
कुछ समय बाद मानस सरोवर के बाकी हंसों ने वाराणसी के राजा के सरोवर जाने की इच्छा जताई, लेकिन राजा हंस को इतनी समझ थी कि यदि वो लोग वहां गए तो राजा उन्हें पकड़ लेगा और जाने नहीं देगा। इसी वजह से राजा हंस ने सभी अन्य हंसों को राजा के सरोवर में जाने के लिए मना कर दिया, लेकिन वो लोग नहीं माने। फिर सभी लोग एक साथ राजा के सरोवर के लिए एक साथ उड़ चले।
जब हंसों का झुंड राजा के झील पहुंचा, तो दोनों प्रसिद्ध हंसों का आकर्षक रूप देखते ही बनता था। उनकी सुनहरी चमकती चोंच, सोने के समान चमकते हुए पैर और बादलों से भी अधिक सफेद उनके पंखों को देखकर लोग उनकी तरफ मोहित हो गए।
जब राजा को हंसों के आने की खबर मिली तो उन्होंने उन दोनों हंसों को पकड़ने के लिए योजना बनाई। रात में जब सभी सो गए, तो उन हंसों को पकड़ने के लिए एक जाल बिछाया गया। सुबह जब हंसों का राजा उठकर बाहर घूमने निकला तो वह राजा के बिछाए जाल में फंस गया। उसी वक्त उसने अपने सभी साथी हंसों को तेज आवाज में पुकारा और वहां से जान बचाकर भागने का आदेश दिया।
राजा हंस की आवाज सुनकर सभी हंस वहां से उड़ गए, लेकिन सेनापति सुमुखा अपने राजा को वहां अकेले फंसा हुआ देखकर वहीं रुक गया और उसे बचाने का प्रयास करने लगा। तभी सुमुखा को पकड़ने के लिए राजा का सैनिक वहां आ गया। उसने देखा की एक राजा हंस जाल में फंसा है और दूसरा उसे बचाने की पूरी कोशिश कर रहा है। सेनापति हंस का अपने राजा के प्रति समर्पण और लगाव देखकर सैनिक बहुत प्रसन्न हुआ और उसने हंसों के राजा को जाल से निकाल दिया।
हंसों का राजा जब जाल से छूटा तो वह समझ गया था कि यदि राजा को सैनिक की दयालुता के बारे में ज्ञात हुआ तो वह उसे जरूर दंड देगा। इसलिए उसने सैनिक से कहा – “हमें अपने राजा के पास ले चलें।” राजा हंस की बात सुनकर सैनिक उसे और सेनापति हंस को कंधे पर बैठकर राजदरबार ले गया।
जब सैनिक राजदरबार पहुंचा तो दोनों हंसों को कंधे पर बैठा देखकर सभी आश्चर्य में पड़ गए। राजा ने इसके पीछे की वजह को पूछा, तो सैनिक ने सारी घटना सच-सच बता दी। सैनिक की बात सुनकर राजा और दरबार में मौजूद सभी प्रभावित हुए। सेनापति हंस की भक्ति और अपने राजा के लिए प्यार देखकर सभी लोगों के मन में उनके लिए प्यार उमड़ पड़ा।
इन सब के बाद राजा ने अपने सैनिक को क्षमा कर दिया और दोनों हंसों से बेहद विनम्रता से अपने राज्य में कुछ दिन रुकने का निवेदन किया। हंसों के राजा ने उसकी बात को स्वीकार कर लिया और कुछ दिनों तक यहां रुकने के बाद अपने मानस झील वापस लौट गए।
दो हंसों की कहानी से सीख (Moral Of The Two Swans Hindi Story)
दो हंसों की इस कहानी से हमें ये सीखने को मिलती है कि परिस्थिति चाहे कितनी मुश्किल क्यों न हो हमें अपनों का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
दो हंसों की कहानी का कहानी प्रकार (Story Type Of The Two Swans Hindi Story)
दो हंसों की कहानी नैतिक कहानियों के अंतर्गत आती है जो यह दर्शाती है कि मुश्किल समय में हमेशा अपनों के साथ खड़े रहता चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. दो हंसों की नैतिक कहानी क्या है?
दो हंसों की नैतिक कहानी ये है कि यदि आप अपनों के साथ सुख में खड़े हैं तो दुख और मुसीबत में भी उनका हाथ थाम के रखना चाहिए। कभी-कभी आपके इसी समर्पण और लगाव के चलते कई समस्याएं आसानी से हल की जा सकती हैं।
2. हमें मुसीबत में अपनों का साथ क्यों नहीं छोड़ना चाहिए?
हमें कभी भी परिस्थिति के अनुसार अपनों का साथ नहीं देना चाहिए। सुख के साथ-साथ दुख और मुसीबत में अपनों का साथ देने से व्यक्ति को हिम्मत मिलती है और वह जल्दी हार नहीं मानता है। इसलिए मुसीबत के समय हमेशा अपनों के साथ खड़े रहें।
निष्कर्ष (Conclusion)
दो हंसों की इस कहानी से यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि आप बुरे वक्त में अपने के साथ खड़े रहते हैं तो ये आपको एक अच्छा व्यक्ति बनाता है और साथ ही लोग आपकी सराहना भी करते हैं। ऐसी कहानियों से बच्चों को भी रिश्ते बेहतर तरीके से निभाने की सीख मिलती है। हम उम्मीद करते हैं कि बच्चों को ये कहानी एंटरटेनिंग जरूर लगी होगी और यदि आप माता-पिता हैं तो एक बार ये कहानी अपने बच्चों को सुनाए या पढ़ाएं।
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