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जन्म के बाद एक बच्चे को पता होता है कि उसे अपनी माँ का दूध कैसे पीना है, या जन्म के तुरंत बाद ही अपनी माँ को पहचानना बहुत अद्भुत है। एक मनुष्य के लिए उसका दिमाग पूरी तरह से विकसित होना बहुत जरूरी है। माता-पिता अक्सर सोचते हैं कि गर्भावस्था शुरू होने के बाद उनके बच्चे का दिमाग किस महीने में विकसित होता है। हालांकि इसका जवाब आपको चकित कर देगा पर बच्चे के दिमाग के बेहतरीन विकास के कई कारण हैं जो आपको भी पता होने चाहिए।
अन्य एडल्ट मनुष्यों के दिमाग की तरह ही एक बच्चे के दिमाग में कुछ मुख्य भाग होते हैं जो शरीर का फंक्शन ठीक रखने के लिए सभी एक्टिविटीज को नियंत्रित करते हैं। वे कौन से भाग हैं, आइए जानें;
हमारे मस्तिष्क में भूख, नींद और हर भावना हाइपोथैलमस की वजह से नियंत्रित होती हैं। इसके अलावा यह शरीर के उचित तापमान को बनाए रखने में भी मदद करता है।
जन्म के बाद बच्चे को ज्यादा से ज्यादा विकास की जरूरत होती है। अक्सर यह विकास हॉर्मोन्स की वजह से होता है जिससे उसमें वृद्धि, मेटाबॉलिज्म और शरीर की विभिन्न एक्टिविटीज को बढ़ाकर आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। यह हॉरमोन्स इसी छोटे से ग्लैंड से उत्पन्न होते हैं जिसका साइज एक मटर के समान होता है।
इसे पूरी तरह से मस्तिष्क का भाग नहीं माना जा सकता है पर यह बहुत महत्पूर्ण जरूर है। ब्रेन स्टेम ब्रीदिंग के एक्शन को नियंत्रित करके, हार्ट रेट को बनाए रखकर और ब्लड प्रेशर को रेगुलेट करके शरीर को जीवित रखने में मदद करती है।
यदि मस्तिष्क में सेरिबैलम का फंक्शन सही होता है तो बच्चा किक मारता है, अजीब-अजीब से मूवमेंट करता है और चलने के लिए पहला कदम उठाता है। मस्तिष्क का यह भाग बच्चे में मोटर एक्टिविटीज को नियंत्रित करता है।
यह ब्रेन का सबसे बड़ा भाग है। मस्तिष्क में मुख्य कोर्टेक्स, फ्रंटल और टेम्पोरल लोब्स सेरीब्रम में रहता है और यह भावनाएं, यादें और सोचने की प्रक्रिया का ध्यान रखता है।
यद्यपि जन्म के बाद बच्चे का विकास होता है पर गर्भावस्था के दौरान भी उसमें कुछ मुख्य विकास होते हैं। गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क का विकास कुछ इस प्रकार से होता है, आइए जानें;
गर्भधारण करने के कुछ सप्ताह के बाद से ही गर्भ में पल रहे बच्चे में न्यूरल प्लेट बनना शुरू हो जाती हैं। यह बाद में न्यूरल ट्यूब में विकसित होती हैं जिससे आगे चलकर मस्तिष्क का निर्माण होता है। साथ ही भ्रूण में छोटे-छोटे न्यूरल सेल्स भी होते हैं और जिससे नर्व्स का पाथ बनना शुरू हो जाता है। इससे गर्भ में बच्चे के शुरूआती मूवमेंट्स होने लगते हैं।
गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में बच्चे के ब्रीदिंग पैटर्न का विकास शुरू होता है और साथ ही उसमें कुछ चूसने की क्षमता बढ़ती है। गर्भ में बच्चा धीरे-धीरे किक मारना या हाथ मारना शुरू करता है क्योंकि इस दौरान बच्चे में मोटर स्किल विकसित होना शुरू हो जाती हैं। बच्चे के मस्तिष्क की नर्व्स माइलिन द्वारा सुरक्षित रहती हैं जिससे उसमें कम्युनिकेशन की क्षमता विकसित होती है और वह आँखें झपकाना शुरू करता है व साथ ही उसकी हार्ट रेट बढ़ती है। इस समय बच्चे के सेंसेस काम करना शुरू कर देते हैं और उसमें सुनने की क्षमता भी विकसित होने लगती है। दूसरी तिमाही में बच्चा सोना व सपने देखना भी शुरू कर देता है।
तीसरी तिमाही में बच्चे की नर्व्स का नेटवर्क पूरा होने लगता है और उसके मस्तिष्क का वजन तेजी से बढ़ता है। इसके टिश्यू के फोल्ड बनने शुरू हो जाते हैं और साथ ही मोटर कंट्रोल भी बढ़ता है। यद्यपि इस समय सेरीब्रम का आकार तेजी से बढ़ता है, पर इसका वास्तविक फंक्शन बच्चे के बाहरी दुनिया में आने के बाद ही शुरू होता है।
यदि आप चाहती हैं कि जन्म के बाद आपका बच्चा हेल्दी व स्मार्ट हो तो हमने उसके मानसिक विकास के लिए यहाँ पर खाद्य पदार्थ की लिस्ट दी हुई है। इन खाद्य पदार्थों से बच्चे की मुख्य समस्याएं ठीक हो जाती हैं और यह डायट को भी हेल्दी व संतुलित बनाते हैं।
बच्चे के मानसिक विकास के लिए विटामिन्स जरूरी होने के अलावा डायट में कुछ मुख्य एलिमेंट शामिल करना भी जरूरी है जो बच्चे के मानसिक विकास को बढ़ाते हैं और इसे सपोर्ट करते हैं।
यह कुछ खाद्य पदार्थों में ही पाया जाता है पर यह शुरूआत से ही बच्चे के मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इससे क्या होता है
बच्चे के विकास के साथ ही उसके मस्तिष्क के नेटवर्क को बढ़ाने और सेल्स को मजबूत बनाने के लिए न्यूरॉन्स और ट्रांसमीटर्स बनना शुरू हो जाते हैं। गर्भावस्था के दौरान जिंक-युक्त आहार लेने से बच्चे में बेहविवियरल या सीखने की क्षमता में कोई भी समस्या नहीं होती है।
फूड सोर्सेज
रेड मीट, राजमा, अखरोट, कद्दू के बीज और पालक में जिंक की मात्रा अधिक होती है जिसे आप अपने आहार में शामिल कर सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के आहार में प्रोटीन एक मुख्य न्यूट्रिशन है और यह बच्चे के मानसिक विकास के लिए भी बहुत जरूरी है।
इससे क्या होगा
प्रोटीन-युक्त खाद्य पदार्थों में बहुत सारा एमिनो एसिड होता है जो शरीर के विभिन्न भागों के लिए जरूरी है। यह बच्चे के दिमाग के सेल्स को बनाता और बढ़ाता है जो हर तरीके से हेल्दी है।
फूड सोर्सेज
अंडे, बीन्स, मछली और लीन मीट में भी प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।
भारत सरकार भी बार-बार रोजाना उपयोग होने वाले नमक में मौजूद आयोडीन के बारे में क्यों बताती है, इसका कारण भी मानसिक विकास से संबंधित है।
इससे क्या होता है
गर्भावस्था की शुरूआत से ही भ्रूण की रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क को जोड़ने वाले भागों के विकास में आयोडीन मदद करता है। इसकी कमी होने से बच्चे में कॉग्निटिव समस्याएं और यहाँ तक कि प्रीमैच्योर डिलीवरी भी हो सकती है।
फूड सोर्सेज
नमक के अलावा, स्ट्रॉबेरी और दही में भी आयोडीन होता है।
गर्भवती महिलाओं में प्रीमैच्योर डिलीवरी की संभावनाओं को कम करने के लिए उन्हें आयरन-युक्त आहार का सेवन करने की सलाह दी जाती है। आयरन से बच्चे के न्यूरल विकास में भी काफी मदद मिलती है।
इससे क्या होता है
जब न्यूरौंस आपस में प्रभावी रूप से कम्यूनिकेट करना शुरू करते हैं तब बच्चे का मस्तिष्क का फंक्शन ठीक से होने लगता है। इस फंक्शन में वृद्धि व विकास आयरन की वजह से होती है।
फूड सोर्सेज
पालक, किशमिश और विभिन्न प्रकार की दाल में आयरन पर्याप्त होता है।
कई पेरेंट्स को कुछ न्यूट्रिएंट्स के बारे में नहीं भी पता होता है, जैसे कॉलिन पर बच्चे के मस्तिष्क के सही विकास के लिए यह भी बहुत जरूरी है।
इससे क्या होता है
कॉलिन की पर्याप्त मात्रा होने से बच्चे की न्यूरल ट्यूब का निर्माण में क्षति होने की संभावनाएं कम होती हैं और इससे बच्चे में याददाश्त व याद करने की क्षमता भी बनती है। इसलिए भी कॉलिन को एक सुपर न्यूट्रिएंट कहा जाता है।
फूड सोर्सेज
चिकन, पोर्क और आलू में कॉलिन पर्याप्त होता है इसलिए आप इसे अपने आहार में शामिल कर सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान आप जितनी बार भी फोलेट-युक्त आहार का सेवन करती हैं यह आपके लिए अच्छा हो सकता है।
इससे क्या होता है
जन्म के बाद कई बच्चों की स्पाइनल कॉर्ड में क्षति होती है या उनका मस्तिष्क पूरा विकसित नहीं होता है और इसके परिणामस्वरूप बच्चे की न्यूरल ट्यूब में गंभीर रूप से समस्याएं होती हैं। फोलेट लेने से यहाँ तक कि पहली बार गर्भधारण करने पर भी ऐसी समस्याएं होने की संभावनाएं कम होती हैं।
फूड सोर्सेज
शलजम, अवोकाडो, ऑरेंज जूस और हरी सब्जियों में फोलेट बहुत ज्यादा होता है।
निम्नलिखित कारणों की वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे के मानसिक विकास में समस्याएं आ सकती हैं, आइए जानें;
यहाँ तक कि साधारण सी गंध और नए पेंट्स की गंध भी बच्चे को कई तरह से प्रभावित कर सकती हैं। पेंट में कुछ पदार्थ, जैसे लेड, अर्सेनिक और मर्क्युरी पाए जाते हैं जिनका उपयोग घरों के फर्नीचर को पॉलिश करने के लिए किया जाता है। यदि गर्भवती महिला इस नई पॉलिश या पेंट की गंध के संपर्क में आती है तो इससे बच्चे के दिमाग पर विकास संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
रूबेला से शायद माँ को कोई भी हानि न हो पर इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरा हो सकता है। यदि माँ को गर्भावस्था के शुरूआती समय में रूबेला हो जाता है तो इससे बच्चे को देखने व सुनने में समस्याएं हो सकती हैं या वह मंदबुद्धि भी हो सकता है।
जाहिर है आप खाना पकाने या कच्चा खाने से पहले सब्जियों को बहुत अच्छी तरह से धो लेती होंगी पर फिर भी इसमें पेस्टिसाइड्स होने की संभावना अधिक होती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान ऑर्गेनिक फूड लेने की सलाह दी जाती है।
किसी भी प्रकार के ड्रग का उपयोग करना हानिकारक होता है। पर हेरोइन का उपयोग करना खतरनाक होता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान इसका उपयोग करने से आगे चलकर बच्चे को भी इसकी आदत पड़ सकती है और यहाँ तक कि इससे बच्चे को कई समस्याएं हो सकती हैं।
कोकेन भी बच्चे के दिमाग के निर्माण में प्रभाव डालता है। जन्म के दौरान ऐसे बच्चों का सिर छोटा हो सकता है और इसकी वजह से या तो बच्चे का दिमाग पूरी तरह से कमजोर होता है या फिर उसे मस्तिष्क में रक्तस्राव हो सकता है।
यद्यपि कई लोग मेरुआना यानि गांजा को रीक्रिएश्नल ड्रग की तरह मानते हैं पर गर्भावस्था के दौरान इसका उपयोग करने से बच्चे में विकास संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, उसे बोलने में और याददाश्त से संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं।
कई महिलाओं को एपिलेप्टिक अटैक (मिर्गी के दौरे) भी पड़ते हैं जिसकी वजह से उन्हें दवाई लेने की सलाह दी जाती है। गर्भावस्था के दौरान इन दवाओं को नहीं लेना चाहिए या डॉक्टर की सलाह के अनुसार इन्हें कुछ अन्य दवाओं से बदल देना चाहिए क्योंकि इनसे जन्म के बाद बच्चे की आईक्यू में प्रभाव पड़ सकता है।
यदि महिला ट्रैफिक के प्रदूषण या हवा में मौजूद प्रदूषकों के संपर्क में आती है तो इससे भी जन्म के बाद बच्चा ऑटिस्टिक प्रवृत्ति का हो सकता है।
गर्भवती महिलाओं के लिए अल्कोहल लेना ठीक नहीं है। गर्भावस्था के दौरान इसकी थोड़ी सी भी मात्रा महिला की प्लेसेंटा को प्रभावित कर सकती है जिससे बच्चे के नर्वस सिस्टम में अत्यधिक क्षति हो सकती है।
यदि गर्भावस्था के दौरान आप स्मोकिंग करती हैं या टोबैको यानि तंबाकू भी लेती हैं तो इसमें मौजूद निकोटिन से जितना बड़ों का मस्तिष्क प्रभावित होता है, यह उतना ही बच्चे को भी प्रभावित कर सकता है। ऐसे बच्चों में कई शारीरिक अब्नोर्मलिटीज हो सकती हैं, जैसे जन्म के समय बच्चे की क्रॉस्ड-आई हो सकती हैं या आगे चलकर उसे मानसिक समस्याएं भी हो सकती हैं।
यदि महिला अपनी पूरी गर्भावस्था में घर के अंदर ही रहती है तो इससे गर्भ में पल रहे बच्चे में विकास से संबंधित कई समस्याएं हो सकती हैं और उसके नर्वस सिस्टम को भी हानि हो सकती है।
यदि एक गर्भवती महिला डिप्रेशन से ग्रसित है या उसे किसी भी प्रकार की मानसिक रोग है तो यह समस्या बच्चे को भी हो सकती है और यह बच्चे में मस्तिष्क से संबंधित कई समस्याएं हो सकती हैं जो उसके मानसिक विकास को भी प्रभावित कर सकती है।
चूंकि स्ट्रेस भी माँ के मानसिक स्थिति से संबंधित होता है और इसकी वजह से एक गर्भवती महिला भूखी रह सकती है जिसकी वजह से बच्चे को पर्याप्त न्यूट्रिशन नहीं मिल पाता है।
गर्भावस्था के दौरान अक्सर महिलाओं को दवाई से दूर रहने के लिए कहा जाता है। यहाँ तक एस्पिरिन और पेन किलर जैसी एक छोटी सी दवाई भी गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास के लिए खतरा बन सकती है।
हालांकि धूप के अलावा भी यदि बच्चे को अन्य चीजों से विटामिन डी नहीं मिलता है तो इससे जन्म के दौरान उसे रेस्पिरेटरी में समस्याएं हो सकती हैं और आगे चलकर उसको भाषा समझने में कठिनाई भी हो सकती है।
एक गर्भवती महिला की डायट में फोलिक एसिड होना बहुत जरूरी है। यदि आपकी डायट में फोलिक एसिड शामिल नहीं है तो इससे न्यूरल ट्यूब मस्तिष्क व रीढ़ को खुला रखती है और साथ ही निर्माण में भी क्षति हो सकती है।
बच्चे का विकास सामान्य होने के लिए कुछ प्रकार के एलिमेंट्स बहुत जरूरी हैं तो कुछ प्रकार के एलिमेंट्स सही मात्रा में भी होने चाहिए। यह सभी एलिमेंट्स उन सभी कारणों बनाए रखते हैं जिनकी वजह से बच्चे का मानसिक विकास होता है और इनकी कमी से आगे चलकर बच्चे की कई स्किल्स के विकास में प्रभाव पड़ सकता है।
गर्भ में कुछ सप्ताह पूरे करने के बाद कई प्रीमैच्योर जन्मे बच्चे ठीक रहते हैं। चूंकि बच्चे का ज्यादातर विकास माँ के शरीर में ही हो जाता है इसलिए प्रीमैच्योर होने के कारण उनके मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे में आगे चलकर प्रीमैच्योर बच्चों का दिमाग धीरे विकसित होता है।
यद्यपि महिला खुद को हानिकारक पदार्थों से सुरक्षित रखती है पर फिर भी यदि पिता कुछ पदार्थों के संपर्क में आते हैं तो इससे भी बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे एलिमेंट्स बच्चे के शरीर में जा सकते हैं या स्पर्म को प्रभावित करके मानसिक समस्याओं को भी पैदा कर सकते हैं।
यदि गर्भधारण के दौरान महिला की आयु 35 या 40 साल है तो बच्चे को मानसिक समस्या होने की संभावनाएं अधिक होती हैं। हालांकि कुछ समस्याएं विकास से संबंधित होती हैं तो कई मामलों में अन्य समस्याएं व्यवहार से संबंधित भी हो सकती हैं।
आपके गर्भधारण करने से लेकर जन्म तक बच्चे के अद्भुत मानसिक विकास की प्रक्रिया को समझने से आप अचंभित भी हो सकती हैं। हालांकि इस मैजिकल जर्नी में कोई नहीं समस्या न आए इसके लिए आपका खुद का सपोर्ट और जागरूकता बहुत जरूरी है।
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