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गिलहरी की कहानी में बताया गया है कि कैसे एक मुनी ने अपनी विद्या की शक्ति से एक गिलहरी को इंसानी लड़की बना दिया और उसे अपनी बेटी की तरह पालने लगे। सालों उसे अपनी बेटी की तरह पालने के बाद जब बात उसके विवाह की आई, तो उन्हें पता चला कि भले ही उन्होंने गिलहरी को लड़की बना दिया है, लेकिन दिल से वह अभी भी गिलहरी की तरह ही है। कहानी काफी मजेदार है और बच्चों को ऐसी कहानियां बहुत दिलचस्प लगती हैं। आइए कहानी को पूरा पढ़ते हैं।
एक समय की बात है, एक जंगल में एक साधु मुनि रहते थे। वह बहुत तप किया करते थे, इसलिए उन्हें अच्छी विद्या प्राप्त हो गई थी। एक दिन जब वह ध्यान लगा रहे थे, तो उनके हाथ में ऊपर से अचानक से एक गिलहरी गिरी। वो गिलहरी बिलकुल खून में लथपथ थी, क्योंकि वो ऊपर चील के पंजों से बचकर उनके हाथ में गिरी थी।
गिलहरी बहुत डरी हुई थी, इसलिए मुनी को उस पर दया आ गई। मुनी के मन में विचार आया कि वो गिलहरी को अपनी शक्ति से लड़की बनाकर उसे अपनी बेटी बना लेते हैं। मेरी बीवी के मन में भी कब से एक बच्चे की चाह है और हमारे भाग्य में संतान ही नहीं है। क्यों न मैं इस गिलहरी को बेटी बनाकर अपनी पत्नी को सौंप दूं।
ये सब सोचते हुए मुनि ने अपने मंत्र पढ़ें और उस गिलहरी को एक छोटी बच्ची बना दिया। फिर बच्ची को उठाकर वह अपनी पत्नी के पास लेकर चले गए। उन्होंने पत्नी से कहा, “ये लो तुम्हारी बच्ची अब इसे अपनी बेटी समझकर ही इसका पालन-पोषण करना। ये सोचना की तुम्हारी मांग भगवान ने सुन ली है।”
मुनि की पत्नी उस बच्ची को देखकर बहुत खुश हुई। अब उस गिलहरी से बनी बच्ची को मुनि और उसकी पत्नी बहुत प्यार से पालने लगते हैं। मुनि की पत्नी ने उस बच्ची का बहुत प्यारा नाम वेदांता रखा।
दोनों पति-पत्नी उसे प्यार से वेदांता नाम से बुलाते थे। मुनि बहुत खुश था कि उसकी पत्नी को अपना प्यार और माँ की ममता दिखाने के लिए एक बेटी मिल गई। समय बीतता गया और मुनि भूल गए की वह एक गिलहरी है।
बच्ची वेदांता को मुनि ने बहुत अच्छी शिक्षा दिलाई। इसके साथ वेदांता पूरी 16 साल की हो गई थी। लेकिन अब मुनि की पत्नी को वेदांता के विवाह की चिंता होने लगी। उन्होंने मुनी से भी ये बात कही और उसके बाद मुनि को भी लगने लगा कि सच में वेदांता शादी के लायक हो गई है। इसके बाद मुनि ने अपनी पत्नी से कहा कि तुम परेशान न हो, मैं इसके लिए एक अच्छा और योग्य लड़का ढूंढ दूंगा।
मुनि को लगता था कि उसकी बेटी बहुत सर्वगुणसंपन्न है और अच्छी विद्या प्राप्त की है, इसलिए उन्होंने सूर्य देवता को बुलाया। सूर्य देवता ने मुनि को नमस्कार किया और उससे बुलाने का कारण पूछा। तब उन्होंने कहा – “मेरी पुत्री शादी के लायक हो चुकी है। मैं चाहता हूं कि आप उसके वर बनें।”
सूय देवता बोलें, “एक बार आप अपनी बेटी से पूछ लीजिए। अगर उसकी हां है, तो मुझे भी मंजूर है।” तब वेदांता ने कहा, “पिताजी, ये बेहद गर्म हैं। मैं इनके करीब नहीं जा पाउंगी और न मैं इनको सही से देख भी पाउंगी। मुनी ने वेदांता से बोला कोई बात नहीं हम तुम्हारे लिए दूसरा बेहतर वर ढूंढेंगे।”
उसके बाद सूर्य देव ने बोला, “हे मुनीवर, मुझसे बेहतर बादल है, आप उनसे बात कर सकते है। वह मेरी रौशनी को ढक सकता है।” मुनी ने बादल को पुकारा। बादल गरजते हुए मुनि के पास पहुंचे और प्रणाम किया। इस बार मुनि से सीधे वेदांता से पूछा क्या तुम्हें ये वर पसंद है?”
वेदांता ने जवाब में कहा, “पिताजी, मैं बहुत गोरी हूं और ये काले हैं। हम एक दूसरे के साथ अच्छे नहीं लगेंगे।” उसके बाद बादल ने मुनि से कहा, “आप वायु देव से पूछ सकते हैं। उनमें मुझे भी इधर से उधर उड़ाने की शक्ति है।’
पवन देव जब आए तब मुनी ने फिर बेटी से पूछा, क्या तुम्हें वायु देव पसंद हैं। वेदांता बोली, “पिताजी, यह तो इधर-उधर उड़ते रहते हैं। मैं इनके साथ घर कैसे बसाउंगी।”
एक बार फिर मुनी ने पवन देव से पूछा, “मुझे अपनी बेटी के लिए अच्छे वर की जरूरत है। आप बता सकते हैं कि आपसे बेहतर कौन है?” पवन देव ने कहा, “हे मुनीवर, आप पर्वत से बात कर सकते हैं। वह मेरा रास्ता रोक सकता है और मुझसे बेहतर है।” मुनि ने पर्वत को पुकारा, लेकिन पर्वत को देखने के बाद वेदांता ने कहा, “ये तो पत्थर हैं, इनका दिल भी पत्थर का होगा। मैं इनसे शादी नहीं कर सकती हूं।”
मुनि ने अपने हाथों को जोड़कर पर्वत देवता से पूछा, “आपसे बेहतर कौन है?” पर्वत देव ने जवाब दिया, “मुनीवर, चूहा मुझमें छेद कर सकता है। इसी वजह से वो मुझसे बेहतर है।” इसके बाद पर्वत देव के कान से चूहा नीचे कूद पड़ा। वेदांता ने जैसे ही चूहे को देखा, वह बहुत खुश हो गई। उसने बोला, “पिताजी, मैं इनसे विवाह करूंगी। मुझे ये बहुत पसंद हैं, इनकी पूछ, कान बहुत सुंदर है।”
तभी मुनि को याद आ गया कि सालों पहले उन्होंने एक गिलहरी को अपनी शक्ति से लड़की बनाया था, लेकिन उनकी बेटी अंदर से आज भी गिलहरी थी” उसके बाद मुनि ने वेदांता को गिलहरी बना दिया और उसकी और चूहे की शादी करवा दी। शादी के बाद चूहा और गिलहरी खुशी से रहने लगे।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि व्यक्ति बाहर से कितना ही बदल जाए, लेकिन अंदर से उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता।
गिलहरी की कहानी पंचतंत्र की कहानियों के अंतर्गत आती है, और यह बहुत ही अच्छी बात सिखाती है।
गिलहरी की नैतिक कहानी ये है कि चाहे व्यक्ति को शक्ति और जादू से आप जितना बदल दें लेकिन जो वो अंदर से है उसे आप कभी नहीं बदल सकते। समय के साथ उसकी सच्चाई सामने आ ही जाती है।
हम दिखावा सिर्फ कुछ दिनों के लिए ही कर सकते हैं, हमें चाहे कोई भी बदल दे कुछ वक्त बाद हम अपने असल रूप में आ ही जाते हैं।
गिलहरी की इस कहानी का निष्कर्ष ये है कि जैसे मुनि ने अपनी शक्तियों से एक गिलहरी को लड़की बना दिया और उसे अपनी बेटी के रूप में पालने लगे। लेकिन सालों बीतने के बाद जब उसकी शादी की बात आई तो उसने अपने लिए वर के रूप में चूहा को चुना, जिससे ये जाहिर होता है कि आप चाहे किसी को कोई भी रूप दे दें लेकिन अंदर से जो जैसा है उसे नहीं बदला जा सकता है।
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