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यह दो हंस और उनके एक जरूरत से ज्यादा बातूनी दोस्त कछुआ की कहानी है। कहानी में दोनों हंस अपने दोस्त का जीवन बचाने के लिए उसकी मदद करने की कोशिश करते हैं लेकिन अपने बड़बोलेपन की वजह से कछुआ सब कुछ गंवा देता है। इस कहानी से बच्चों को यह संदेश मिलता है कि हमेशा बोलने से पहले विचार करना क्यों जरूरी होता है।
यह कहानी पंचतंत्र से ली गई है और इसमें 3 मुख्य पात्र हैं।
एक समय की बात है, एक खूबसूरत घाटी में एक तालाब के पास एक कछुआ और दो हंस रहते थे। लंबे समय तक वहां एक साथ रहने के कारण वे आपस में बहुत घनिष्ठ मित्र बन गए थे। हालांकि कछुआ बेहद बातूनी स्वभाव का था। वह जरूरत से ज्यादा बोलता था और बिना विचार किए बोलने लगता था। हंस अपने मित्र की आदत जानते थे लेकिन वे उसे कुछ नहीं कहते थे।
एक साल बारिश न होने के कारण उस तालाब का पानी सूखने लगा। इस वजह से तालाब के पास रहने वाले छोटे जानवर, मछलियां और पौधे मरने लगे और इसलिए दूसरे बड़े जानवर तालाब को छोड़कर दूसरी जगह रहने जाने के बारे में सोचने लगे। दोनों हंस भी वहां से उड़ जाने का विचार करने लगे और नए घर की तलाश में रोजाना इधर-उधर भटकने लगे। जल्द ही, उन्हें सुदूर जंगल में एक तालाब मिला जो पानी से भरा हुआ था। तालाब का परिवेश उनके रहने के लिए बिल्कुल उपयुक्त था।
वे लौटकर पुराने तालाब पर आए और अपने दोस्त को नए सुंदर तालाब के बारे में बताया। कछुआ दोनों हंस को नया घर मिलने से बहुत खुश हुआ। लेकिन उसे एहसास हुआ कि दूर होने के कारण वह नए तालाब तक नहीं जा सकता। उसने उनसे कहा – “मैं तुम्हारी तरह उड़ नहीं सकता। यह मेरे लिए बहुत दूर है। मुझे नहीं पता कि मैं यहाँ क्या करूंगा और मैं सूखे से भी नहीं बच पाऊंगा।”
हंस उसकी चिंता को पहले से समझ गए थे। उनमें से एक ने कहा – “चिंता मत करो दोस्त। हमने तुम्हें नई जगह ले जाने का एक उपाय पहले ही सोच लिया है। लेकिन, इसके लिए तुम्हें वचन देना होगा कि पूरी यात्रा के दौरान गलती से भी अपना मुंह नहीं खोलोगे। यदि तुमने ऐसा किया तो तुम्हारे जीवन को खतरा होगा।”
यह सुनकर कछुआ बहुत उत्साहित हुआ और उसने कहा – “मैं बिल्कुल चुप रहूँगा और तब तक एक शब्द भी नहीं बोलूंगा जब तक तुम दोनों मुझे बोलने के लिए नहीं कहोगे।”
इसके बाद हंस एक मजबूत छड़ी लेकर आए और कछुआ से उसे अपने मुँह का उपयोग करके मजबूती से पकड़ने के लिए कहा। फिर उन्होंने छड़ी के दोनों सिरे अपनी चोंच में पकड़ लिए और उसे लेकर उड़ने लगे। उन्होंने कई मील सुरक्षित यात्रा की। कछुआ इस दौरान जंगल, पहाड़ियों और घास के मैदानों से गुजरते हुए एक पक्षी की तरह अनुभव कर रहा था।
नए तालाब तक पहुँचने का रास्ता आखिर में एक गाँव के ऊपर से जाता था। हंस और कछुआ जब वहां से गुजर रहे थे तो नीचे के ग्रामीणों ने देखा कि आसमान में दो हंस के साथ कछुआ उड़ रहा है। यह अविश्वसनीय दृश्य देखकर वे जोर जोर से हँसने लगे। गाँव के बच्चे उन्हें देखकर चिल्लाने लगे – “अरे वह देखो कितना हास्यास्पद दृश्य है! एक कछुआ छड़ी से चिपक गया है और दो हंस उसे ले जा रहे हैं!”
कछुआ गांव वालों का इस तरह उसे चिढ़ाना बर्दाश्त नहीं कर पाया। वह बहुत अपमानित महसूस करने लगा। अपने बातूनी स्वभाव के कारण उसने उन्हें अपनी परिस्थिति समझाने के लिए बोलकर बताने का निर्णय लिया और मुँह खोल दिया। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कह पाता, वह धरती पर गिर गया और उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए। दोनों हंस चाहकर भी अपने दोस्त की मदद के लिए कुछ नहीं कर पाए। वे कछुए की मृत्यु पर बहुत दुखी हुए और भरे हृदय से अपने नए घर की ओर उड़ गए।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बिना सोचे समझे कभी नहीं बोलना चाहिए अन्यथा यह मूर्खता कहलाती है। अगर कछुआ बोलने के लिए मुंह खोलने से पहले यह सोच लेता कि इसका दुष्परिणाम क्या होगा तो वह चुप रहता। हंस ने चुप रहने की चेतावनी देने के बावजूद वह भूल गया और अपने बारे में गलत सोचने वाले गाँव के लोगों को सही बात समझाने के लिए उसने मुंह खोल दिया और मूर्ख सिद्ध हुआ।
कछुआ और हंस की कहानी बच्चों को जीवन की नैतिकता और महत्वपूर्ण मूल्यों को सिखाने के लिए पीढ़ियों से सुनाई जाती रही है। यह कहानी पंचतंत्र की नैतिक कहानियों में गिनी जाती है।
इस कहानी का नैतिक इस बात में है कि चाहे हमें कितना भी ज्ञान हो, लेकिन अगर परिस्थिति योग्य नहीं है तो चुप रहना ही सही है। कहानी में कछुआ अपनी जान से हाथ धो बैठा क्योंकि उसने बच्चों को यह बताने के लिए कि क्या हो रहा है, अपना मुँह खोल दिया। यदि वह बुद्धिमान होता, तो अपना मुंह बंद रखता और गिरकर मरने से बच जाता। उसी तरह हमें जहां आवश्यक हो वहीं बोलना चाहिए अन्यथा चुप रहकर स्थिति को संभालना चाहिए।
हंस और बातूनी या मूर्ख कछुआ की कहानी विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतंत्र की कथाओं में से एक है। पंचतंत्र संस्कृत में रचित जानवरों की कहानियों का एक प्राचीन संग्रह है।
पंचतंत्र प्राचीन काल के राजा अमरस्की के समय लिखा गया था। राजा वह अपने तीन बेटों को शासन कौशल, नैतिकता और सिद्धांत सिखाना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने लेखक और विद्वान विष्णु शर्मा को यह काम सौंपा था। भले ही ये कथाएं प्राचीन हों लेकिन उनकी शिक्षाएं आज के जमाने में भी उतनी ही काम की हैं। बच्चों को शुरू से ही नैतिक सीख देने वाली कहानियां सुनाने से उनके चरित्र निर्माण में मदद मिलती है।
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