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यह कहानी है एक पुजारी और उसके पालतू हाथी की है, जो रोजाना पुजारी के साथ मंदिर जाया करता था और उसी रास्ते में एक दर्जी की दुकान पड़ती थी जहां रोजाना दर्जी हाथी को केला खिलाता था। एक दिन दर्जी को मस्ती करने का मन हुआ और उसने हाथी की सूंड में सुई चुभा दी जिससे हाथी दर्द से करहाने लगा और अगले दिन उसने दर्जी की शरारत का बदला लिया तो दर्जी को अपने किए पर बहुत पछताना पड़ा।
बहुत सालों पहले की बात है, रत्नापुर गांव में एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर हुआ करता था। उस मंदिर में एक पुजारी हर दिन पूजा-पाठ करने आया करता था। उस पुजारी के पास एक हाथी था, जिसको वो हर दिन अपने साथ मंदिर लेकर आया करता था। गांव के लोग भी उस हाथी को बहुत पसंद करते थे। हाथी भी मंदिर में आने-जाने वाले भक्तों का स्वागत सत्कार करता था।
मंदिर में पूजा करने के बाद पुजारी हाथी को नहलाने के लिए तालाब ले जाया करता था। हाथी के नहाने के बाद दोनों लोग वापस घर लौटते समय दर्जी की दुकान पर रुकते थे। दर्जी बहुत प्यार से हाथी को अपने हाथ से केला खिलाता था और बदले में हाथी भी बड़े आदर के साथ अपनी सूंड से नमस्ते करता था। फिर दर्जी और हाथी घर लौट जाते थे।
ये हाथी और दर्जी दोनों के रोज की दिनचर्या का हिस्सा हो गया था और उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया था। एक दिन जब हाथी दर्जी की दुकान पर रोज की तरह पहुंचा और केला खाने के लिए आगे बढ़ा, तभी दर्जी को एक शरारत करने का मन हुआ। दर्जी ने हाथी को केला खिलाने के बाद अपने हाथों में एक सुई छुपा दी। फिर जैसे ही हाथी ने अपनी सूंड से उसे नमस्ते किया, तो दर्जी ने उसकी सूंड पर सुई चुभा दी।
सुई के चुभने से हाथी जोर से चिंघाड़ा और दर्द से करहाने लगा। उसे दर्द में देखकर दर्जी ने उसका बहुत मजाक बनाया और जोर-जोर से हंसने भी लगा।
लेकिन पुजारी को सुई की कोई जानकारी नहीं थी, वह हाथी को सहलाने लगा और फिर दोनों घर चले गए। फिर अगले दिन पुजारी और हाथी तालाब से लौट रहे थे, तभी पुजारी एक जगह रूककर लोगों से बात करने लगा और हाथी दर्जी की दुकान की तरफ बढ़ गया। इस बार हाथी अपनी सूंड में कीचड़ लेकर आया था।
हमेशा की तरह दर्जी अपनी दुकान में कपड़ों की सिलाई कर रहा था। हाथी दर्जी की दुकान के सामने आया और उसने अपनी सूंड में भरे कीचड़ को उसकी तरफ फेंक दिया। दर्जी कीचड़ से सन गया और साथ में वहां रखे सिले हुए सभी कपड़े भी खराब हो गए।
इतना सब होने के बाद दर्जी को समझ में आ गया था कि ये उसके बुरे व्यवहार का फल है। दर्जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह हाथी के पास माफी मांगने आया। उसने कहा –
“हे गजराज, आपने मेरे साथ बिलकुल सही व्यवहार किया है। मैंने जो कल गलती की थी, उसकी सजा यही होनी चाहिए थी।”
हाथी ने दर्जी की ओर देखा और अपनी सूंड को हवा में घुमाते हुए चला गया। दर्जी को अपनी हरकतों का बहुत बुरा लग रहा था। उसने मजाक-मजाक में अपना एक अच्छा दोस्त खो दिया। उसी दिन से दर्जी ने सोच लिया था कि आज के बाद वह किसी के साथ ऐसा बुरा मजाक नहीं करेगा।
हाथी और दर्जी की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी को मजाक में भी नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए क्योंकि इससे हमारे साथ भी बुरा हो सकता है।
यह कहानी नैतिक कहानियों के अंतर्गत आती है जो हमें बताती है कि मजाक में भी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए वरना उस मजाक की कीमत हमें भी चुकानी पड़ सकती है।
हाथी और दर्जी की इस कहानी में यह बताया गया है कि कैसे आप अपनी एक गलती की वजह से एक अच्छे दोस्त को खो सकते हैं। जैसे दर्जी ने अपने मजाक की वजह से हाथी की दोस्ती हमेशा के लिए खो दी।
हमें किसी के साथ कभी भी बुरा नहीं करना चाहिए, फिर चाहे वो मजाक में ही क्यों न किया गया हो। ऐसा करने से आपके साथ भी बुरा होता है और आप बाद में उससे आप अपनों को खो सकते हैं, जिसका पछतावा आपको जिंदगी भर रहेगा।
हाथी और दर्जी की कहानी उन सभी लोगों के लिए एक सबक है, जिन्हें दूसरों के साथ हंसी-मजाक करने का बहुत शौक है और उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उनका मजाक किस हद तक दूसरों को दुखी कर सकता है। आपको हंसी-मजाक जरूर करना चाहिए लेकिन कभी भी उससे किसी को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। ऐसा करने से आपको भी नुकसान पहुंच सकता है।
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