In this Article
माँ बनने वाली महिलाओं का अधिक से अधिक सवाल पूछना स्वाभाविक है। चूंकि जुड़वां या एकाधिक गर्भावस्था – एक बच्चे वाली गर्भावस्था से अलग होती है इसलिए हो सकता है आपके पास सामान्य से ज्यादा सवाल हों। जुड़वां गर्भावस्था एक बच्चे वाली गर्भावस्था से कैसे अलग है और इसमें एचसीजी की क्या भूमिका है? इन सभी के बारे में यहाँ चर्चा की गई है।
एचसीजी यानी ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन एक प्रकार का हॉर्मोन है जिससे गर्भावस्था का पता लगाया जा सकता है। एक बच्चे के साथ गर्भवस्था के लिए एचसीजी का स्तर 70 से 750 एमआईयू/मिली (एमआईयू हॉर्मोन को मापने की यूनिट है) होता है। शुरूआती सप्ताहों में एचसीजी का स्तर अक्सर जुड़वां गर्भावस्था में उच्च होता है। जुड़वां गर्भावस्था में एचसीजी का सामान्य स्तर एक बच्चे वाली गर्भावस्था में एचसीजी के स्तर से 30% से 50% ज्यादा होता है जो लगभग 200 से 1750 एमआईयू/मिली तक हो सकता है।
गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में एचसीजी का स्तर हर 2-3 दिनों में दोगुना हो जाता है। ओवुलेशन होने के 7-8 दिन बाद खून की जांच करने से परिणाम मिलते हैं। घर पर की जाने वाली ज्यादातर जांच पीरियड्स की अगली नियत तारीख से पहले लगभग 4 से 5 दिनों में की जा सकती है।
गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर में एचसीजी हॉर्मोन उत्पन्न नहीं होते हैं, यह हॉर्मोन पूरी तरह से गर्भ में पल रहे बच्चे से आते हैं। गर्भ में बढ़ रहा हर बच्चा एचसीजी की कुछ मात्रा स्रावित करता है जो जुड़वां बच्चों के मामले में दोगुनी हो जाती है। यह हॉर्मोन इकट्ठा होकर गर्भाशय की परत को मोटा करता है जिससे गर्भावस्था के दौरान गर्भ में पल रहे बच्चे को सहारा मिलता है।
प्रोजेस्ट्रोन एक ऐसा हॉर्मोन है जो गर्भाशय को उत्तेजित करके गर्भवस्था के लिए तैयार करता है। यह कॉर्पस लियूटियम द्वारा उत्पन्न किया जाता है (ओवरी में मौजूद एक एंडोक्राइन ग्रंथि) । एचसीजी का काम प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन के स्तर को तब तक संतुलित रखना है जब तक प्लेसेंटा अपने प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त विकसित न हो जाए।
यदि जुड़वां गर्भावस्था है तो एचसीजी का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है जिससे खून और मूत्र परीक्षण के माध्यम से एचसीजी का पता जल्दी ही लगाया जा सकता है। एचसीजी हर 48 से 72 घंटों में दोगुना हो जाता है।
जुड़वां बच्चों के गर्भधारण के मामले में एचसीजी का स्तर बढ़ जाता है जिसका नकारात्मक परिणाम यह होता है कि इससे गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में अत्यधिक मॉर्निंग सिकनेस होती है जिसका अर्थ है गर्भवती महिला को बहुत ज्यादा मतली व उल्टी होना।
प्रत्यारोपण (इम्प्लांटेशन) के तुरंत बाद प्लेसेंटा में एचसीजी हॉर्मोन उत्पन्न होता है। गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में एचसीजी जांच के माध्यम से एक महिला के पेशाब और खून में यह पाया जा सकता है। चूंकि पीरियड्स आने से पहले हार्मोनल स्तर में उतार–चढ़ाव होता है इसलिए इसकी जांच करवाना तब बेहतर है जब आपका मासिक धर्म चूक गया हो।
कभी–कभी एचसीजी का उच्च स्तर और कुछ लक्षण मोलर गर्भावस्था का संकेत भी दे सकते हैं। मोलर प्रेगनेंसी में जब डिंब और शुक्राणु मिलते हैं तब प्लेसेंटा असामान्य तौर पर बढ़ता है। इस प्रक्रिया में एक खाली डिंब प्रत्यारोपित होता है जिससे प्लेसेंटा के अन्य भाग बढ़ते हैं किंतु गर्भ में बच्चे की वृद्धि नहीं होती है। इसे पूरी तरह से मोलर गर्भावस्था कहा जाता है। इसका एक और प्रकार है ‘पार्शियल मोलर गर्भावस्था’ जिसमें भ्रूण के ज्यादातर हिस्से में एम्ब्र्यो व असामान्य कोशिकाएं होती हैं और यह गंभीर जन्म–दोष का कारण बनता है। इस मामले में एक स्वस्थ एम्ब्र्यो भी असामान्य कोशिकाओं के कारण समाप्त हो सकता है।
जेस्टेशनल ट्राफोब्लास्टिक ट्यूमर, कैंसर का एक दुर्लभ रूप है जिसके कारण भी एचसीजी का स्तर बढ़ सकता है। यदि शुरूआत से ही इसका इलाज किया गया तो यह ठीक भी हो सकता है। एचसीजी का उच्च स्तर एक्टोपिक गर्भावस्था के कारण भी हो सकता है जिसमें एम्ब्र्यो या भ्रूण गर्भाशय के बाहर फैलोपियन ट्यूब में ही विकसित होने लगता है। चूंकि फैलोपियन ट्यूब बढ़ते भ्रूण को पूरी तरह से संभाल नहीं सकती है इसलिए इसे तुरंत ठीक किया जाना चाहिए। महिलाओं में एचसीजी का इंजेक्शन अक्सर तब दिया जाता है जब एक महिला में इंफर्टिलिटी के कारण प्रोजेस्ट्रोन के स्तर को बढ़ाया जा रहा हो और उनकी माँ बनने की संभावना को भी बढ़ाया जाता है।
एचसीजी के स्तर की जांच निम्नलिखित कई कारणों से की जाती है, आइए जानते हैं;
सिस्टम में एचसीजी को जांचने के दो तरीके हैं – एक है पेशाब की जांच और दूसरी है खून की जांच। खून की जांच के दौरान हल्के से सुई के दर्द के अलावा इसमें कोई भी दर्द नहीं होता है। कुछ मामलों में यदि ओवुलेशन की तारीख का पता नहीं लगता है तो यह जांच पीरियड्स चूक जाने के लगभग 10 दिनों के बाद करवाएं।
पेशाब की जांच या घर पर ही की हुई जांच लगभग 97% सही होती है, यदि इसे सही ढंग से किया जाए तो। एचसीजी का स्तर जांचने के लिए महिला द्वारा सीधे पेशाब की जांच की जाती है या पेशाब को कप में लिया जाता है। पेशाब के संपर्क में आने से यदि स्ट्रिप का रंग बदलने लगता है तो इसका मतलब है कि परिणाम सकारात्मक है।
यहाँ बताया गया है कि आप एचसीजी के स्तर को जांचने के लिए घर पर ही पेशाब की जांच कैसे कर सकती हैं:
खून में एचसीजी का पता लगाने के लिए क्वालिटेटिव ब्लड टेस्ट ही सबसे विश्वसनीय है। इसके अलावा क्वांटिटेटिव ब्लड टेस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि खून में एचसीजी की कितनी मात्रा है। यह परीक्षण शरीर में मौजूद प्रोजेस्टेरोन का पता लगा सकता है, गर्भावस्था की जांच कर सकता है या एक्टोपिक गर्भावस्था, कैंसर और मिसकैरेज की संभावना का भी पता लगा सकता है।
जिन महिलाओं को ब्लीडिंग डिसऑर्डर है उन्हें खून की जांच के बाद समस्याएं भी हो सकती हैं। खून का सैंपल लेने के बाद नसों में सूजन आ सकती है। हालांकि यह बहुत कम मामलों में होता है और खून की जांच करवाते समय समस्या होने की बहुत कम संभावना भी होती हैं।
एक बच्चे के साथ गर्भावस्था और एकाधिक गर्भावस्था में एचसीजी के स्तर में काफी अंतर होता है। नीचे दिए हुए चार्ट में विभिन्न गर्भावस्था के दौरान एचसीजी का स्तर निम्नलिखित है, आइए जानते हैं;
एकल और जुड़वां गर्भावस्था में एचसीजी के स्तर का चार्ट | ||
अंतिम मासिक धर्म के बाद से दिन | एकल गर्भावस्था में एचसीजी का स्तर | जुड़वां गर्भावस्था में एचसीजी का स्तर |
28 | 9.4-120 | 9.5-120 |
33 | 300-600 | 200-1,800 |
36 | 1,200-1,800 | 2,400-36,000 |
40 | 2,400-4,800 | 8,700-108,000 |
45 | 12,000-60,000 | 72,000-180,000 |
70 | 96,000-144,000 | 348,000-480,000 |
गर्भाशय में एम्ब्र्यो जैसे–जैसे एक भ्रूण में बढ़ता और विकसित होता है वैसे–वैसे एचसीजी का स्तर भी तेजी से बढ़ना शुरू कर देता है। यह लगभग 2-3 दिन के बाद दोगुना हो जाता है।
पहली जांच में एचसीजी स्तर बहुत कम आता है। यह स्तर डॉक्टर के लिए बहुत आवश्यक होता है क्योंकि इससे ही वे यह पता लगाने में सक्षम होते हैं कि दोगुने स्तर के साथ आपकी गर्भावस्था कैसी होने वाली है – गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में एचसीजी हॉर्मोन के बढ़ने की प्रक्रिया।
जैसे–जैसे गर्भावस्था के दिन आगे बढ़ते हैं वैसे–वैसे एचसीजी का स्तर भी कम होने लगता है। यदि एचसीजी का स्तर 1200 से 6000 एमआईयू/मिली है तो इसे विकसित होने में लगभग 72 घंटों से लेकर 96 घंटे लगते हैं। यदि इसका स्तर 6000 से ज्यादा है तो एचसीजी को दोगुना होने में 4 या इससे ज्यादा दिन भी लग सकते हैं। जब एचसीजी का स्तर 1000-2000 एमआईयू/मिली हो जाता है तो गर्भाशय को देखने के लिए ट्रांसवजायनल अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है। यदि एचसीजी का स्तर 6000 एमआईयू/मिली से ज्यादा होता है तो यह धीरे–धीरे विकसित होता है।
2-3 महीने के बाद एचसीजी हॉर्मोन का स्तर कम होने लगता है और अंत में पूरी गर्भावस्था के दौरान समान रूप से लगातार रहता है। डॉक्टर खून के कई परीक्षण करके बहुत सावधानी से गर्भवस्था के विकास की जांच करते हैं।
यदि एचसीजी स्तर 6000 एमआईयू/मिली से ज्यादा है तो सोनोग्राफी की जा सकती है क्योंकि इससे गर्भावस्था की स्पष्ट जांच होती है ।
यदि आपको एचसीजी के स्तर पर संदेह है तो आप अल्ट्रासाउंड भी करवा सकती हैं। यह भ्रूण की आयु और वृद्धि का स्पष्ट पता लगाने में मदद कर सकता है क्योंकि खून में एचसीजी का स्तर भिन्न कारणों से भी बढ़ता है। वैसे ट्रांसवजाइनल स्कैन भी बहुत आम और प्रभावी भी है क्योंकि यह अल्ट्रासाउंड स्कैन से ज्यादा सटीक होता है।
नोट: यदि एचसीजी का स्तर कम है, तो सावधानी बरती जानी चाहिए क्योंकि यह मिसकैरेज, ब्लाइटेड ओवम (खराब डिंब) या एक्टोपिक गर्भावस्था का संकेत भी हो सकता है। इसलिए, इसका निदान करने के लिए नियमित जांच की जानी चाहिए।
एचसीजी का स्तर कम होने के बावजूद एक स्वस्थ बच्चा होना संभव है। ऐसे मामलों में गर्भावस्था के 5 से 6 सप्ताह के बाद किए गए अल्ट्रासाउंड के परिणाम एचसीजी के कई टेस्ट की तुलना में अधिक विश्वसनीय होते हैं।
एचसीजी का स्तर निम्नलिखित कारणों से प्रभावित हो सकता है:
एक महिला के गर्भ में हर बच्चा एचसीजी हॉर्मोन को उत्पन्न करता है जिससे शरीर में मौजूद एचसीजी का स्तर और अधिक बढ़ जाता है। एक बच्चे के साथ गर्भावस्था की तुलना में एकाधिक गर्भावस्था (आमतौर पर बड़ी उम्र की महिलाओं में) के दौरान एचसीजी का स्तर दोगुना या तिगुना हो सकता है।
निषेचन के दौरान आनुवंशिक जटिलताओं के कारण एचसीजी का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ सकता है।इससे पता लगता है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को डाउन सिंड्रोम हो सकता है। यह एक मोलर गर्भावस्था भी हो सकती है जिसमें प्लेसेंटा कई सारी असामान्य कोशिकाओं में बढ़ता है। इससे गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु हो सकती है और इसका पता लगाया भी जा सकता है व नहीं भी।
यदि एचसीजी का स्तर बहुत कम है तो आप में अनुवांशिक जटिलताएं हो सकती हैं और यह एक्टोपिक गर्भावस्था या गर्भपात (मिसकैरेज) का कारण भी बन सकता है। इसके परिणामस्वरूप गर्भावस्था में ज्यादातर जटिलताएं आती हैं या इसे समाप्त करना पड़ता है।
एचसीजी के बढे हुए स्तर से गर्भाशय, पेट, लिवर, फेफड़े (लंग्स), अग्न्याशय (पैंक्रियास) और बड़ी आंत में कैंसर होने की संभावना होती है।
गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में यदि आप परीक्षण या तो बहुत जल्दी या फिर काफी बाद में करती हैं। इन कारणों से गर्भावस्था की जांच के गलत या नेगेटिव परिणाम भी आ सकते हैं। यदि आप इस जांच का बिलकुल सही परिणाम देखना चाहती हैं तो दिन की पहली पेशाब की जांच करें।
यदि कोई महिला गर्भवती नहीं हो सकती तो अक्सर उसे एचसीजी का इंजेक्शन दिया जाता है जिससे उसके शरीर में हॉर्मोन का स्तर बढ़ता है।
पेशाब में एचसीजी का स्तर बढ़ा हुआ होने पर संभावना होती है कि आपके जुड़वां या एकाधिक बच्चे होंगे किंतु यह हमेशा नहीं होता है। इस हॉर्मोन का स्तर प्रत्येक महिला में या प्रत्येक गर्भावस्था में भिन्न हो सकता है।
एचसीजी के स्तर के कारण गर्भावस्था के दौरान शरीर में बहुत ज्यादा बदलाव होते हैं और यह जुड़वां गर्भावस्था का पता लगाने के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। यद्यपि सिर्फ एचसीजी के स्तर में वृद्धि से ही जुड़वां गर्भावस्था का पता नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि इसका स्तर कई कारणों से बढ़ता है।
यह भी पढ़ें:
प्रेगनेंसी के दौरान अल्फा फेटोप्रोटीन (ए.एफ.पी.) रक्त जांच
प्रेगनेंसी के दौरान गर्भनाल (प्लेसेंटा या अपरा) की स्थिति
हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…
बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…
गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…
गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…
गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…
10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…