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कौवा और कोयल की इस कहानी में हमें ये बताया गया है कि कैसे कोयल ने चालाकी से कौवे का विश्वास जीता और उसके बाद उसे ही धोखा दे दिया। कौवा ने भी कोयल के जाल में फंसकर और उस पर आंख बंद कर के विश्वास करने की कीमत अपनी जान गंवा कर चुकानी पड़ी। ये कहानी दूसरों पर खुद से ज्यादा भरोसा न करने की एक बेहतरीन सबक देती है।
चांदनगर गांव के करीब कुछ साल पहले एक जंगल था। उस वन में एक बरगद का पेड़ था, जिस पर एक कोयल और एक कौवा अपने-अपने घोंसले में रहते थे। उस जंगल में एक दिन रात को बहुत तेज आंधी-तूफान आया और बारिश होने लगी। इसके बाद जंगल तहस-नहस हो गया।
जब अगली सुबह कौवा और कोयल उठे और उन्हें अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ नहीं मिला। जिसके बाद कोयल ने कौवे से बोला, “हम अच्छे से इस जंगल में रहते हैं, लेकिन हमें यहां कुछ भी खाने को नहीं मिल रहा है। इसलिए क्यों न जब मैं अंडा दूं, तो तुम खा लेना और जब तुम अंडा दोगे, तो में उसे खाकर अपनी भूख मिटा लूंगी?”
कौवे ने भी कोयल की बात मान ली। सबसे पहले कौवे ने अंडा दिया और उसे कोयल ने खाकर अपनी भूख मिटा ली। उसके बाद कोयल ने अंडा दिया। कौवा जैसे ही कोयल का अंडा खाने के लिए आगे बढ़ा, तभी कोयल ने उससे कहा, “रुको, तुम्हारी चोंच गंदी है। इसे पहले धोकर आओ, उसके बाद अंडा खाना।” उसके बाद कौवा सीधे नदी के पास गया और नदी से कहा, “तुम मुझे पानी दे दो। मैं अपनी चोंच धोकर कोयल का अंडा खाऊंगा।”
नदी ने कहा, “ठीक है! तुम जाकर पानी के लिए बर्तन लेकर आओ।” इसके बाद कौवा सीधे कुम्हार के पास पहुंचा और कुम्हारे से कहने लगा, “मुझे घड़ा चाहिए, उसमें पानी भरकर मुझे अपनी चोंच धोनी है और उसके बाद कोयल का अंडा खाना है। “कुम्हार बोला, “तुम मुझे मिट्टी दो, मैं तुम्हें बर्तन बनाकर दूंगा।”
कुम्हार की बात सुनते ही कौवा धरती मां से मिट्टी मांगने लगता है। कौवे ने कहा, “हे धरती मां मुझे मिट्टी चाहिए, जिससे मैं बर्तन बनवाऊंगा और उस बर्तन में पानी भरकर अपनी चोंच साफ़ कर के कोयल का अंडा खाऊंगा।” धरती मां ने कहा, “मैं तुम्हें मिट्टी देती हूं, लेकिन उसके पहले तुम मुझे खुरपी लाकर दो। उससे ही मिट्टी खोदी जाएगी।”
कौवा तुरंत भागकर लोहार के पास पहुंचा। उसने लोहार से बोला, “मुझे खुरपी चाहिए, जिससे मैं मिट्टी खोदकर कुम्हार को दूंगा और वह मेरे लिए बर्तन बनाएगा और उस बर्तन में पानी भरकर मैं अपनी चोंच साफ करूंगा फिर कोयल का अंडा खाऊंगा।
उसके बाद लोहार ने कौवे को गर्म खुरपी दे दी। जैसे ही कौवे ने अपनी चोंच में खुरपी पकड़ी, उसकी चोंच तुरंत जल गई और कौवा तड़पने लगा और तड़पते हुए मर गया। इस तरह कोयल ने अपनी चालाकी से अपने अंडे को खाने से बचा लिया।
कौवा और कोयल की इस कहानी से हमें ये सीख मिलती कि हमें किसी की बातों में आसानी से नहीं आना चाहिए।
यह कहानी नैतिक कहानियों के अंतर्गत आती हैं जिसमें यह बताया गया है कि दूसरों पर आंख बंद कर के भरोसा करने से खुद का ही नुकसान होता है।
कौवा और कोयल की कहानी से ये बात सामने आती है कि हमें कभी भी किसी पर इतना निर्भर भी नहीं हो जाना चाहिए कि दूसरा उसका फायदा उठाए और आपको नुकसान पहुंचा सकें।
ये सलाह हमेशा से सबको दी जाती है कि चाहे आपका कोई कितना भी करीबी क्यों न हो, हमें किसी पर भी आंख बंद कर के विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि आप नहीं जानते कब, कौन आपके पीठ पीछे आपको ही तकलीफ देने की योजना बना रहा हो।
कौवा और कोयल की इस कहानी ने एक खास संदेश दिया है, जिसका जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं। इस कहानी में ये बताया गया है कि कभी भी किसी और पर खुद से अधिक भरोसा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से आपको ही तकलीफ झेलनी पड़ सकती है और कभी-कभी खुद की जान भी गवां सकते हैं।
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