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बच्चे को जन्म देने के बाद, ब्रेस्ट मिल्क का बनना तय है और पूरे विश्व में विभिन्न डॉक्टर और हेल्थ केयर प्रैक्टिश्नर स्तनपान का पुरजोर समर्थन करते हैं या फिर यूं कहें, कि इसे अनिवार्य माना गया है। बच्चे को शुरुआती समय में, सभी पोषक तत्व और एंटीबॉडीज मिलना बहुत जरूरी है। अगर माँ किसी खास बीमारी के लिए या किसी संभावित हेल्थ कंडीशन के लिए सुरक्षा के तौर पर ड्रग्स या दवाएं ले रही है, तो ब्रेस्टफीडिंग एक खतरा बन सकता है, क्योंकि माँ के द्वारा खाया या पिया गया हर पदार्थ बच्चे तक भी पहुँच जाता है। इसलिए, खतरनाक प्रभावों से बच्चे को बचाने के लिए, दवाओं को सही तरह से लेने की जरूरत होती है।
आजकल, आमतौर पर जो भी दवाएं ली जाती हैं, उनमें से ज्यादातर दवाओं को ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली माँ के साथ-साथ उसके बच्चे के लिए भी सुरक्षित माना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है, कि ये दवाएं माँ के दूध में भी प्रवेश कर जाती हैं, पर इनसे बच्चे पर अनचाहे तरीके से प्रभाव पड़ने का खतरा बहुत ही कम होता है। ज्यादातर फार्मासिस्ट और ड्रग स्टोर को इन दवाओं के बारे में पहले से ही जानकारी होती है, लेकिन फिर भी अपने डॉक्टर से बात कर के डबल चेक करने की सलाह दी जाती है। खासकर, अगर आप बिना प्रिस्क्रिप्शन के कोई ओवर द काउंटर दवा ले रही हैं, तो यह और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है।
कुछ खास मामलों में, बच्चे के शरीर में दवा इकट्ठी होती जाती है और बाद में प्रतिकूल प्रतिक्रिया दे सकती है। इसके पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं, जैसे दवा का ब्रांड, दवा की ली गई मात्रा, के साथ-साथ दवा लेने का तरीका यानी कि दवा मुँह से ली गई है या नसों के द्वारा आदि। जहाँ कुछ दवाएं, बच्चे पर सीधा प्रभाव डाल सकती हैं और चिड़चिड़ापन, डायरिया, मतली और अन्य साइड इफेक्ट पैदा कर सकती हैं, वहीं, कभी-कभी दवा के सेवन से स्तनपान कराने वाली माँ के शरीर में दूध का प्रोडक्शन प्रभावित हो सकता है, जिसके कारण ब्रेस्ट मिल्क का प्रोडक्शन घट सकता है और बच्चे के बढ़ते हुए वजन में रुकावट आ सकती है।
बच्चे पर दवा के होने वाले प्रभाव का पता लगाते समय ऐसे कुछ तत्व हैं, जिन्हें समझना जरूरी है।
दवाएं कई तरह से बनाई जाती हैं। दवा में जितने भी पदार्थ होते हैं, उनके विभिन्न केमिकल गुण होते हैं, जैसे उनका मॉलिक्यूलर वजन, बॉडी फैट में उनकी घुलनशीलता, शरीर की बायोकेमिस्ट्री से बाहर निकलने की अवधि आदि। ऐसे पहलुओं से ही यह निर्धारित होता है, कि दवा शरीर में कितने समय तक रहती है और दवा की कितनी मात्रा माँ के दूध तक पहुँच पाती है।
हर दवा किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव दिखाना शुरु करने के लिए कुछ खास समय लेती है। जहाँ कोई माँ किसी खास दर्द को ठीक करने के लिए एक दवा को दो दिनों तक लेती है, जिसका बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता है। वहीं, दूसरी मेडिकल प्रक्रियाएं, जो कि एक हफ्ते या एक महीने तक चलती हैं, वे बच्चे पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डाल सकती हैं।
अगर दवाएं माँ के दूध तक पहुँच भी जाती हैं, तो भी बच्चे पर उसका क्या असर होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है, कि बच्चा कितनी बार और कितना दूध पीता है। जो बच्चे थोड़ा सा ही दूध पीते हैं और बाकी की जरूरतें फार्मूला से पूरी करते हैं, उनमें पूरी तरह से ब्रेस्टफीडिंग करने वाले बच्चों की तुलना में दवा का कम खतरा होता है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है, कि बच्चा एक दिन में कितनी बार दूध पीता है।
बच्चों की अपनी बायोलॉजिकल बनावट और स्वास्थ्य संबंधी तत्वों के आधार पर, दवा के प्रभाव भिन्न हो सकते हैं। अगर कोई बच्चा प्रीमैच्योर यानी समय से पहले पैदा हुआ है और उसमें कुछ जरूरी प्रक्रियाएं एवं अंग अभी भी परिपक्व नहीं हुए हैं, तो ऐसे बच्चे पर इन दवाओं का प्रभाव अधिक होता है। वहीं, कभी-कभी समय पर जन्म लेने वाले और पूरे विकसित शरीर के साथ जन्म लेने वाले बच्चों में भी दवा की प्रोसेसिंग में समस्याएं आ सकती हैं। इस संबंध में बच्चे के इम्यून सिस्टम की मजबूती एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जिस बीमारी के लिए दवा ली जा रही है, उसके अनुसार दवा की खुराक आम मामले से ज्यादा हो सकती है। इसके कारण भी दूध में दवा की अधिक मात्रा जाने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, यह दवा के सेवन के समय से भी जुड़ा हुआ है। जो दवा बच्चे को दूध पिलाने के समय से एक घंटे पहले ली गई हो, उसके माँ के दूध में पहुँचने और फिर बच्चे के शरीर में जाने की संभावना बढ़ जाती है।
माँ के दूध में, दवा की मौजूदगी के निर्धारण में, दवा से ज्यादा ये मायने रखता है, कि दवा शरीर में किस तरह से गई है। स्किन क्रीम या दवाएं इस संदर्भ में अन्य दवाओं की तुलना में सुरक्षित होती हैं। मुँह से ली जाने वाली दवाएं भी दूध तक पहुँचने में लंबा समय लेती हैं, क्योंकि यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के द्वारा डाइजेस्ट होती हैं। वहीं, इंट्रावेनस ड्रॉप्स या इंजेक्शन दूध में बहुत जल्दी पहुँच जाते हैं, क्योंकि ये ज्यादातर प्रक्रियाओं से बच जाते हैं और तुरंत शरीर में पहुँच जाते हैं।
माँ का दूध पीने वाले बच्चे के दवाओं से प्रभावित होने के विभिन्न कारणों के साथ-साथ, कुछ खास गाइडलाइंस को ध्यान में रखने से भी, इस संदर्भ में बच्चे के स्वास्थ्य पर नजर रखने में मदद मिलेगी।
कभी-कभी अगर कोई खास दवा बच्चे के लिए नुकसानदायक हो, तो बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग से दूर रखना जरूरी हो सकता है। लेकिन, फिर भी इस बात का ध्यान रखना जरूरी है, कि ब्रेस्ट मिल्क के सप्लाई पर कोई असर न पड़े, क्योंकि दवा का असर खत्म होने के बाद, बच्चे को फिर से ब्रेस्टफीडिंग कराना होता है। इसके लिए अपने ब्रेस्ट को नियमित रूप से पंप करती रहें, ताकि दूध के बनने में कोई रुकावट न आए।
अपने बच्चे के व्यवहार और एलर्जी या दवा के प्रति किसी रिएक्शन का संकेत देने वाले लक्षणों पर नजर रखें। आमतौर पर, इसके लक्षणों में जरूरत से ज्यादा सोना, शरीर पर रैश, मतली, डायरिया और अन्य कारण शामिल हैं।
अगर बच्चे को दूध पिलाने से पहले दवा ली जाए, तो बच्चे के शरीर में इसके जाने का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए, अपने बच्चे के नर्सिंग शेड्यूल के आधार पर, दवाएं लेने के अपने शेड्यूल को कुछ इस तरह से अरेंज करें, कि इन्हें फीडिंग के पूरा होने के बाद लिया जाए या फिर रात की आखिरी फीडिंग के बाद लिया जाए, ताकि दवा आपके शरीर पर काम करे और बच्चे पर इसका प्रभाव न पड़े।
कुछ दवाएं इस तरह से काम करती हैं, कि वे लंबे समय तक शरीर में मौजूद रहती हैं और रेगुलर मात्रा में दवा रिलीज करती रहती हैं, वहीं, दूसरी दवाओं को अधिक मात्रा लेने की जरूरत पड़ सकती है। अपने डॉक्टर से बात करें और किसी ऐसी विकल्प का चुनाव करें, जिसमें दवा की कम खुराक की जरूरत हो और जिसके लिए कम से कम समय की जरूरत हो।
हालांकि, बीमारी में दवाएं जरूरी होती हैं, लेकिन कुछ ऐसी बीमारियां भी होती हैं, जिन्हें थोड़े दिनों में शरीर का इम्यून सिस्टम खत्म कर देता है या वे अपने आप ही ठीक हो जाती हैं। अगर डॉक्टर ने सख्त सलाह न दी हो, तो जितना संभव हो सके, दवाओं के सेवन से बचें और अपनी तकलीफ को दूर करने के लिए दूसरे तरीकों को अपनाएं, जो कि बच्चे के लिए भी सुरक्षित हों।
दवाओं को ब्रेस्टफीडिंग से जोड़ने वाले विभिन्न तत्वों को ध्यान में रखकर, ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कुछ खास दवाओं की अनुमति दी गई है, जो कि इस प्रकार हैं:
दवा | उपयोग |
एसिटामिनोफेन | दर्द में आराम के लिए |
एसाइक्लोवीर | वायरल इंफेक्शन के इलाज के लिए |
एंटासिड | पेट की समस्याओं के इलाज के लिए |
कैफीन | शरीर को स्टिमुलेट करने के लिए |
सेफालोसपोरिन | एक एंटीबायोटिक के तौर पर कई तरह के इन्फेक्शन के इलाज के लिए |
क्लोट्रिमाजोल | फंगी और यीस्ट के कारण होने वाले इंफेक्शन से लड़ने के लिए |
कॉर्टिकोस्टेरॉइड | जोड़ों और मांसपेशियों के इन्फ्लेमेशन से राहत पाने के लिए |
डीकन्जेस्टेंट | बंद नाक से राहत के लिए |
इरिथ्रोमाइसिन | इंफेक्शन के कारण रेस्पिरेटरी समस्याओं के इलाज के लिए |
हेपारिन | खून की क्लॉटिंग से बचाव के लिए |
दर्द से आराम के लिए | |
इंसुलिन | डायबिटीज पर नियंत्रण के लिए |
लीडोकेन | लोकल एनेस्थीसिया के लिए |
पेनिसिलिन | बैक्टीरियल इंफेक्शन के इलाज के लिए |
वेरापामिल | ब्लड प्रेशर को संभालने के लिए |
इसी प्रकार ऐसी कुछ खास दवाएं हैं, जिन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान सेवन करने से बचना चाहिए। इन्हें लेने पर बच्चों पर होने वाले साइड इफेक्ट्स देखे गए हैं।
दवा | उपयोग |
एमांटाडाइन | पार्किंसन बीमारी के इलाज के लिए |
एंटीहिस्टामाइन | एलर्जिक रिएक्शन से आराम के लिए |
एंटीलिपेमिक्स | खून में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए |
एस्पिरिन | आर्थराइटिस के इलाज के लिए |
बेंजोडियाज़ेपाइन | एंग्जाइटी और नींद से संबंधित समस्याओं के इलाज के लिए |
क्लोरेंफेनीकोल | तेज इंफेक्शन के इलाज के लिए |
क्लोजापाइन | सिजोफ्रेनिया के लिए |
डिपाइरोन | दर्द और सूजन में आराम के लिए |
आयोडाइड-बेस्ड सब्सटेंसेस | वजाइना के सूखेपन या विभिन्न एक्सपेक्टोरैंट के रूप में |
आयोडीन | हाइपरथायराइडिज्म के इलाज के लिए |
लिपिड-लोअरिंग मेडिसिंस | खून में फैट के स्तर को कम करने के लिए |
लिथियम | बाइपोलर डिसऑर्डर के लिए |
मेटामाइजोल | विभिन्न प्रकार की सूजन के इलाज के लिए |
प्रीमीडॉन | सीजर्स (दौरे) के इलाज के लिए |
रिजर्पाइन | हाइपरटेंशन के लिए |
सैलीसाइलेट्स | आर्थराइटिस के इलाज के लिए |
आप हमेशा अपने बच्चे को सुरक्षित रखना चाहती हैं। जिसके कारण, किसी जरूरी दवा के सेवन के दौरान आप ब्रेस्टफीडिंग को कुछ समय के लिए बंद करने के बारे में सोचती होंगी। चाहे आपको यह कितना भी वाजिब लगे, पर बच्चे को दवा के सेवन से थोड़े बहुत खतरे हों, तो भी यह बात पूरी तरह से स्थापित हो चुकी है, कि माँ के दूध का पोषण बहुत जरूरी है। इससे न केवल ब्रेस्ट पर सकल करने की बच्चे की इच्छा प्रभावित होती है, बल्कि इससे मैस्टाइटिस के रूप में माँ को भी तकलीफ हो सकती है और बच्चे को भी फार्मूला की आदत न होने से परेशानी हो सकती है।
अगर बेहद जरूरी न हो, तो दवाओं के सेवन से बचना सबसे बेस्ट है। इसलिए, कुछ खास बीमारियों या परेशान करने वाली स्थितियों के लिए यहाँ पर ऐसे कुछ विकल्प दिए गए हैं, जिन्हें आप आजमा सकती हैं, जो कि आपके बच्चे को प्रभावित नहीं करते हैं।
यह एक ऐसी स्थिति है, जो बार-बार होती रहती है, खासकर अगर मौसम वैसा हो तो। पुदीना या यूकेलिप्टस की कुछ बूंदों के साथ भाप लेकर, बंद नाक को खोला जा सकता है। खांसी और गले के दर्द से आराम के लिए, शहद और ग्लिसरीन से बनी सिरप का इस्तेमाल करें। एक नेजल स्प्रे के इस्तेमाल से भी बंद नाक खुल जाती है। कई लोग जितनी जल्दी हो सके, एकिनेशिया लेने की सलाह देते हैं, ताकि जल्द आराम मिल सके।
माँ के लिए थ्रश काफी परेशानी भरा हो सकता है, लेकिन प्राकृतिक दवाओं के इस्तेमाल से यह बहुत जल्द ठीक हो जाता है। नहाने के दौरान पानी में टी ट्री ऑयल की केवल कुछ बूंदें डाल दें, इससे इरिटेशन से जल्द आराम मिलता है। अपनी डाइट में थोड़ी दही या कोई भी प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ शामिल करें, जिससे अनहेल्दी माइक्रोब्स खत्म होते हैं और साथ ही आपकी आंतें भी हेल्दी हो जाती हैं।
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कई महिलाएं ब्रेस्ट इंगोर्जमेंट का सामना करती हैं। हालांकि नियमित रूप से ब्रेस्ट को पंप करने से इससे आराम मिल जाता है। लेकिन बच्चे को दूध पिलाने के बाद बंद गोभी के पत्तों को अपने ब्रेस्ट पर रखने से इंगोर्जमेंट से राहत मिलती है।
हो सकता है, कि आप प्रेगनेंसी के पहले से ही क्रॉनिक माइग्रेन से जूझ रही हों या फिर आपको अभी स्तनपान के दौरान, इसका अनुभव हो रहा हो। इसके लिए तुरंत पेनकिलर का सहारा लेने के बजाय, एक होम रेमेडी का चुनाव करें, जो कि समस्या की जड़ पर काम करता है। काली मिर्च के 2 दानों को अपनी नाक में इस्तेमाल करने से सिर के नजदीक स्थित ब्लड वेसल्स खोलने में मदद मिलती है। इससे दिमाग की ओर जाने वाले ब्लड फ्लो में तेजी आती है, जिससे माइग्रेन के दर्द से राहत मिलने में मदद मिलती है।
पारंपरिक दवाओं के बजाय अन्य विकल्पों के चुनाव के दौरान हर्बल दवाएं सबसे बेहतरीन प्रतीत होती हैं और इनमें से कुछ वाकई बेस्ट होती हैं। महिलाओं के लिए जुकाम या इनफ्लुएंजा के लक्षणों के इलाज के लिए, जितनी जल्दी हो सके, एकिनेशिया की सलाह दी जाती है। जो दवाएं सौंफ या मेथी से बनी होती हैं, उन्हें दूध की सप्लाई को बनाए रखने के लिए या बेहतर बनाने के लिए बेहतरीन माना जाता है। कैमोमाइल टी, लहसुन और अदरक से बनी दवाएं और ऐसी ही अन्य चीजें, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित मानी जाती हैं और इनके बहुत फायदे भी होते हैं।
सभी हर्बल दवाएं, बेहतरीन हों, ऐसा जरूरी नहीं है, क्योंकि इनमें से कई दवाएं लैबोरेट्री टेस्टेड नहीं हैं और इनके समर्थन में सुरक्षा की कोई गारंटी या कोई रिसर्च उपलब्ध नहीं है। इसलिए, व्यक्ति को किसी दुर्लभ या असाधारण प्राकृतिक दवा का चुनाव करने से पहले, सावधानी बरतने की जरूरत होती है। इनमें कुछ ऐसी हर्बल दवाएं भी शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल डिप्रेशन के इलाज के लिए किया जाता है। क्योंकि बच्चे पर इनके प्रभाव को कहीं रजिस्टर नहीं किया गया है।
आमतौर पर, एक मॉर्निंग आफ्टर गोली लेने से बच्चे को कोई सीधा नुकसान नहीं होता है। हालांकि यह केवल तभी संभव है, जब माँ पैक पर लिखे गए निर्देशों को देखती है और सख्ती से उसका पालन करती है। जिस मुख्य बात का ध्यान रखा जाना चाहिए, वो यह है, कि गोली लेने के बाद लगभग 8 घंटों के लिए, अपने बच्चे को दूध पिलाने से बचें। इसके लिए तैयारी के रूप में आप पहले से ही दूध को पंप कर सकती हैं और बच्चे के लिए स्टोर कर सकती हैं। दूसरा तरीका यह है, कि उस विशेष फीड के लिए फार्मूला तैयार किया जाए और दवा का समय बीतने के बाद बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने से पहले यह फार्मूला दूध दिया जाए।
हालांकि, माँएं यह जानती हैं, कि ब्रेस्टफीडिंग अपने आप में गर्भनिरोध का एक प्राकृतिक माध्यम है, क्योंकि यह मेंस्ट्रूअल साइकिल की शुरुआत को टाल देता है, लेकिन ऐसे में आप गर्भवती नहीं होंगी, इसकी कोई गारंटी नहीं होती है।
चूंकि, गर्भनिरोधक गोलियां कई तरह के हॉर्मोन्स का इस्तेमाल करती हैं, इसलिए इन्हें दूध के प्रोडक्शन से भी जोड़ा गया है। इसलिए इनके सेवन से आपके बच्चे के खानपान की जरूरतों पर प्रभाव पड़ सकता है। वहीं एस्ट्रोजन के बजाय प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का इस्तेमाल करने वाली गोलियों का चुनाव करना या इंप्लांट किए जाने वाले गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करना इन गोलियों का एक प्रभावी विकल्प है।
आम गोलियों के इस्तेमाल की सलाह आमतौर पर तब दी जाती है, जब बच्चा लगभग 8 महीने का हो जाता है और उसे अलग-अलग फूड सोर्सेज से जरूरी पोषक तत्व मिलने लगते हैं।
बच्चे की देखभाल के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना, कभी-कभी बहुत मुश्किल हो सकता है। खासकर जब आप किसी बीमारी या किसी दूसरी मेडिकल कंडीशन से जूझ रही हों, तो अतिरिक्त देखभाल जरूरी है, क्योंकि इस पड़ाव पर, माँ और बच्चा दोनों ब्रेस्ट मिल्क के माध्यम से जुड़े हुए होते हैं। ब्रेस्टफीडिंग के दौरान दवाओं से बचकर, आपके और आपके बच्चे के स्वास्थ्य और सुरक्षा के बीच अच्छा संतुलन बनाया जा सकता है और आप बिना किसी परेशानी के अपने मातृत्व को जारी रख सकती हैं
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