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हर पेरेंट्स अपने बच्चे को स्वस्थ रखने का प्रयास करते हैं। बच्चों या शिशु को समय से टीका दिलवा के होने वाले रोगों व इन्फेक्शन को खत्म किया जा सकता है। दुनिया की अलग-अलग जगहों में वैक्सीन का शेड्यूल भी अलग हो सकता है। आज के पेरेंट्स के लिए अपने बच्चे के टीकाकरण का शेड्यूल पूरी तरह से जानना बहुत जरूरी है ताकि वे बच्चे को किसी भी रोग से बचा सकें। हालांकि कभी-कभी पेरेंट्स कई कारणों से बच्चे को वैक्सीन नहीं लगवाते हैं या इसमें देरी कर देते हैं। खैर यदि आप जानना चाहते हैं कि बच्चे को समय पर वैक्सीन लगवाना क्यों जरूरी है, क्या वैक्सीनेशन शेड्यूल में देरी करने से कॉम्प्लीकेशंस हो सकती हैं, पेरेंट्स बच्चों को देरी से वैक्सीन क्यों लगवाते हैं और इससे संबंधित अन्य विषयों के बारे में यहाँ चर्चा की गई है, जानने के लिए पूरा आर्टिकल पढ़ें।
वैक्सीन से बच्चे व शिशु को गंभीर इन्फेक्शन और रोगों से सुरक्षा मिलती है और यदि ऐसा है तो फिर पेरेंट्स वैक्सीनेशन में देरी क्यों करते हैं। इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
कभी-कभी शिशु या बच्चों में वैक्सीन से एलर्जिक रिएक्शन भी हो जाता है। जिससे पेरेंट्स काफी चिंतित हो सकते हैं और वे अपने बच्चे को उस प्रकार की वैक्सीन लगवाने से बचते हैं ताकि पहले हुई कॉम्प्लिकेशन दोबारा से न हो।
ज्यादातर पेरेंट्स शिशु के लिए वैक्सीन की सुरक्षा के बारे में चिंतित होते हैं। यदि बच्चा या शिशु किसी भी बीमारी से ग्रसित है, जैसे एलर्जी, जुकाम या कोई भी गंभीर समस्या तो आपकी यह चिंता बढ़ सकती है।
शिशु को फ्लू या अस्थमा का इंजेक्शन लगवाना भी उतना ही जरूरी है क्योंकि फ्लू के लक्षण इस समस्या को बढ़ाते हैं। हालांकि पेरेंट्स फ्लू की वैक्सीन को नाक से लगवाने से बचते हैं क्योंकि यह प्रोसेस जीवित वायरस को कमजोर करता है और इंजेक्शन वायरस को नष्ट कर देता है।
कुछ समस्याएं जैसे अस्थमा को रोकने के लिए अक्सर थोड़े समय तक स्टेरॉइड्स की ज्यादा डोज लेनी पड़ती है। लगभग कुछ सप्ताह या जब तक बच्चे में स्टेरॉयड का प्रभाव खत्म न हो जाए तब तक इंतजार करें क्योंकि वायरल इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए स्टेरॉयड लेने से से इम्यून सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है। हालांकि स्टेरॉयड की कम डोज लेने से वैक्सीन पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा।
जो बच्चा या शिशु एचआईवी पॉजिटिव है तो उसे तभी वैक्सीन लगानी चाहिए जब तक इम्यून सिस्टम पर गंभीर रूप से प्रभाव न पड़े। हालांकि पेरेंट्स को एचआईवी पॉजिटिव बच्चे के टी-सेल लिमिट का ध्यान रखना चाहिए जिसका अर्थ है कि जब तक संभव हो सिर्फ तब तक उसे वायरस की वैक्सीन लगवाएं पर यदि संभव नहीं है तो ऐसा बिलकुल भी न करें।
यदि बच्चे या शिशु की कीमोथेरेपी हो रही है तो उसका इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होगा और इसे ऐसे बच्चों या शिशु को वैक्सीन लगवाना ठीक नहीं है।
यदि शिशु को 101 डिग्री से अधिक बुखार है तो पेरेंट्स ज्यादातर बच्चे को वैक्सीन लगवाने से बचते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह समझ पाना कठिन है कि बुखार इन्फेक्शन की वजह से है या किसी वैक्सीन के साइड-इफेक्ट्स की वजह से है।
मीजल और फ्लू की वैक्सीन को एगशेल में विकसित किया जाता है। यह वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित होती है क्योंकि डॉक्टर एलर्जी फैक्टर को ध्यान में रखते हुए शिशु को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में वैक्सीन लगाते हैं ताकि अन्य कोई कॉम्प्लिकेशन न हो। पर कभी-कभी पेरेंट्स छोटे बच्चे को एलर्जी से बचाने के लिए वैक्सीन लगवाने से बचते हैं।
बच्चे या शिशु को किसी भी रोग से बचाए रखने के उसे टीका दिलाना जरूरी है। जन्म से बड़े होने तक शुरू से ही पेरेंट्स को बच्चे के टीकाकरण शेड्यूल का ध्यान रखना चाहिए पर कभी-कभी इसमें भी देरी हो जाती है जिससे उन्हें संभावित जोखिम भी हो सकते हैं। वैक्सीनेशन में देरी होने पर कुछ निम्नलिखित कॉम्प्लिकेशन हो सकती हैं, आइए जानें;
बच्चों या शिशु के लिए वैक्सीनेशन शेड्यूल को इस प्रकार से डिजाइन किया जाता है कि इससे इम्युनिटी को ज्यादा से ज्यादा फायदे मिल सकें। किसी भी प्रकार की देरी से बच्चों को गंभीर रोग होने का खतरा ज्यादा होता है। बच्चों या शिशु में कुछ निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं, आइए जानें;
बच्चे को इम्युनाइज्ड न करने से उसमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ने का खतरा होता है पर इससे अन्य लोगों को भी हानि हो सकती है, जैसे;
बच्चे या शिशु को अन्य जोखिम भी हो सकते हैं, जैसे;
पेरेंट्स के पास छोटे बच्चों या शिशु के लिए इम्यूनाइजेशन, वैक्सीनेशन बढ़ाने और इससे संबंधित अन्य कई सवाल होना बहुत आम है। यहाँ पर बच्चों को वैक्सीन लगाने से संबंधित कई अक्सर पूछे जाने वाले सवालों के जवाब दिए हुए हैं, आइए जानें;
यदि आप सोचती हैं कि छोटे बच्चों को इम्युनाइज करने में देरी के क्या फायदे हो सकते हैं तो खैर उन्हें इंजेक्शन से बचाने के अलावा वैक्सीन में देरी करने के कोई भी फायदे नहीं हैं। वैक्सीन में किसी भी प्रकार की देरी का मतलब है बच्चे को बीमारी और इन्फेक्शन के खतरे में डालना।
शिशु और छोटे बच्चों को गंभीर बीमारियां आसानी से हो सकती हैं जिसकी वजह से उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ सकता है और यहाँ तक कि कुछ मामलों में मृत्यु भी हो सकती है। यदि बच्चे की वैक्सीन के डोज में देरी या बढ़ाने के बारे में सोच रही हैं तो इससे बच्चा असुरक्षित रहेगा और उससे इंफेक्शन और बीमारी होने का खतरा बढ़ता है।
इसमें कोई शक नहीं है कि ब्रेस्टफीडिंग से बच्चे की इम्युनिटी बढ़ती है। हालांकि ब्रेस्ट मिल्क हर तरीके के इन्फेक्शन और बीमारियों के लिए इम्युनिटी प्रदान नहीं करता है। इसका यही अर्थ है कि वैक्सीन से बच्चे को खतरनाक बीमारियों से सुरक्षा मिलती है और वह लंबे समय तक सुरक्षित भी रहता है।
बिलकुल भी नहीं, चूंकि शिशु या बच्चा घर में है या डे केयर में जाता है पर उसे किसी से भी और कहीं भी इन्फेक्शन हो सकता है। बच्चे को गंभीर रोगों से बचाने के लिए उसे शेड्यूल के अनुसार इम्युनाइज्ड करें।
स्पेसिंग और वैक्सीन में देरी करना पर्सनल चॉइस है जो अक्सर पेरेंट्स बच्चों और शिशु को एक बार में या थोड़े समय के बाद कई इंजेक्शन लगवाने से बचते हैं। हालांकि सीडीसी द्वारा मंजूर वैक्सीन का कोई भी फॉर्मल अल्टेरनेटिव मौजूद नहीं है।
अच्छी बात यह है कि यदि छोटे बच्चे या शिशु को वैक्सीन लगवाने से संबंधित आपका कोई भी निर्णय बदला है तो ज्यादातर वैक्सीन के लिए कभी भी देरी नहीं होती है। बच्चे को जल्दी से जल्दी ज्यादा सुरक्षा देने के लिए डॉक्टर वैक्सीन का शेड्यूल बनाने में आपकी मदद करेंगे।
हाँ, यदि बच्चे को बुखार है या वह एंटीबायोटिक ले रहा है तो बच्चे को वैक्सीन लगवाने में कोई परेशानी नहीं है। यदि आपको इससे संबंधित कोई भी चिंता या सवाल है तो आप डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
नहीं, आप शिशु को दोबारा से सभी वैक्सीन न लगवाएं। यदि आप से एक अपॉइंटमेंट या वैक्सीन छूट गई है तो आप वहीं से शुरू करें जहाँ से छोड़ा था। हालांकि यह जरूरी है कि बेहतर सुरक्षा के लिए प्रिस्क्राइब किए हुए शेड्यूल को ही फॉलो करें।
छोटे बच्चों को खतरनाक इन्फेक्शन या बीमारी से बचाने के लिए उन्हें वैक्सीन लगवाना बहुत जरूरी है। इम्यूनाइजेशन के शेड्यूल में देरी करने से संबंधित कोई भी निर्णय लेने से पहले आप डॉक्टर से सलाह लें।
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