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माँ बनने से पहले आपने सोचा भी नहीं होगा कि किसी को इतना प्यार किया जा सकता है। जन्म के तुरंत बाद से ही वह प्यारा सा बच्चा आपकी जिंदगी बन जाता है और उसके लिए आपका प्यार वो सब करने के लिए प्रेरित करता है जिससे वह हेल्दी और सेफ रहे। हालांकि, अक्सर पेरेंट्स को बहुत ज्यादा चिंताएं हो रही हैं और इसका कारण पैंडेमिक का डर भी है जिसमें यदि शिशु को अस्पताल भी ले जाया गया तो उसे कोरोनावायरस हो सकता है। इसकी वजह से बच्चे के कई चेक-अप और टीकाकरण में देरी हो सकती है। यदि आपके शिशु को टीका लगवाने की जरूरत है पर आप पैंडेमिक होने के कारण चिंतित हैं और कोविड 19 के चलते बच्चे का टीकाकरण कैसे कराएं, इसके बारे में जानना चाहती हैं तो आप अपने जवाब के लिए बिलकुल सही जगह पर हैं। बच्चे व शिशु को टीका लगवाने में देरी से संबंधित सभी जानकारी, कारण और जोखिम के बारे में यहाँ बताया गया है, जानने के लिए पूरा पढ़ें।
बच्चे या शिशु को गंभीर रोग, जैसे पोलियो, चेचक, रूबेला, मीजल्स आदि से सुरक्षित रखने के लिए उसका टीकाकरण करवाना बहुत जरूरी है। बेबीज का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं होता है और उन्हें माँ के दूध के साथ वैक्सीन और बैलेंस्ड डायट देना बहुत जरूरी है ताकि उनका मानसिक व शारीरिक विकास हो सके। हर रोग के लिए एक टीकाकरण होता है और इन्हें जैसे शेड्यूल किया जाता है उसी प्रकार से शिशु या बच्चों का टीकाकरण करना जरूरी है ताकि उसकी इम्युनिटी मजबूत हो सके और यह रोगों से लड़ सके। इसलिए पेरेंट्स को या तो टीकाकरण के बारे में पता करना चाहिए या फिर डॉक्टर की सलाहनुसार ही बच्चे के लिए वैक्सीनेशन का कैलेंडर बनाना चाहिए।
हालांकि आज की स्थिति के अनुसार आप बच्चे को अस्पताल ले जाने और उसका टीकाकरण कराने के बारे में दो बार सोचती होंगी। बच्चों का टीकाकरण कराने में देरी होना नया नहीं है पर इसकी सलाह नहीं दी जाती है। नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल के अनुसार बच्चों और शिशु के टीकाकरण में देरी के बारे में पूरी जानकारी के लिए आगे पढ़ें।
बच्चों के लिए टीकाकरण में देरी होने का मतलब है कि इसके शेड्यूल में नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल के अनुसार बदलाव होना। यहाँ तक कि वैक्सीन लगवाने वालों कि संख्या ज्यादा होने के बाद भी बच्चे को इससे हानिकारक रोगों से सुरक्षा मिलने में देरी होती है क्योंकि सुरक्षा का वास्तविक समय बहुत कम है। इसके विकल्प में होने वाले टीकाकरण का प्रभाव भी इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी पर पड़ता है।
ट्रॉपिकल पीडियाट्रिक्स के जर्नल में छपी एक रिसर्च के अनुसार टीकाकरण शेड्यूल में देरी हो सकती है क्योंकि नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल के अनुसार बच्चे की एक उम्र तक टीकाकरण स्किप किया या दो सप्ताह तक की देरी की जा सकती है।
यहाँ पर नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल की एक टेबल दी हुई है। आगे इस आर्टिकल में वैक्सीन के बारे में पूरी जानकारी भी बताई गई है, आइए जानें;
वैक्सीन का नाम | उम्र | देरी की स्ट्रिक्ट परिभाषा | देरी की अस्पष्ट परिभाषा |
बीसीजी/ओपीवी0 | जन्म के समय | >6 सप्ताह | >8 सप्ताह |
ओपीवी1/डीटीपी1 | 6 सप्ताह | >6 सप्ताह | >8 सप्ताह |
ओपीवी2/डीटीपी2 | 10 सप्ताह | >10 सप्ताह | >12 सप्ताह |
ओपीवी3/बीसीजी3 | 14 सप्ताह | >14 सप्ताह | >16 सप्ताह |
मीजल्स | 9–12 महीने | >9 महीने | >9 महीने और 2 सप्ताह |
ओपीवी/डीटीपी बूस्टर | 16–24 महीने | >24 महीने | >24 महीने और 2 सप्ताह |
स्रोत: https://academic.oup.com/tropej/article/58/2/133/1636826
कभी-कभी पेरेंट्स टीकाकरण का अपना ही एक शेड्यूल फॉलो करते हैं (जिसकी सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि यह बच्चे की सही आयु में सुरक्षा प्रदान नहीं करता है) या स्वास्थ्य की वजह से डॉक्टर की सलाह के अनुसार वैक्सीनेशन में देरी करते हैं। बच्चों के टीकाकरण में देरी क्यों होती है इसके कुछ कारण यहाँ बताए गए हैं, जानने के लिए आगे पढ़ें।
आजकल बच्चों व शिशु के टीकाकरण में देरी के कारण लॉकडाउन को समझना बहुत आम है। यह एक मान्य कारण भी है क्योंकि पैंडेमिक ने बहुत सारी चीजों को बदल दिया है। यद्यपि सिर्फ यही एक कारण है बल्कि टीकाकरण में देरी होने के कई कारण हो सके हैं, आइए जानें;
टीकाकरण की शुरुआत में कुछ प्रकार की एलर्जी से भी वैक्सीन के अगले शेड्यूल में देरी हो सकती है। इन रिएक्शन में शामिल है, बच्चे को बुखार, ब्लड प्रेशर कम होना, सिर में दर्द होना और सांस लेने में दिक्कत होना। उदाहरण के लिए, यदि बच्चे को अंडे से एलर्जी है तो उसे फ्लू के इंजेक्शन से एलर्जी होने की संभावना ज्यादा होती है। इसलिए फ्लू का टीका देरी से या नियंत्रित रूप से या कम मात्रा में लगाया जाता है।
यदि बच्चे व शिशु को 101 डिग्री से ज्यादा तेज बुखार है तो टीकाकरण में देरी हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि टीके का साइड इफेक्ट तेज बुखार है और शिशु को पहले से ही तेज बुखार है तो उसके लिए यह झेल पाना कठिन हो सकता है।
बच्चे को फ्लू का इंजेक्शन लगवाने से पहले अस्थमा की जांच कराना जरूरी है। यद्यपि फ्लू के टीके में मृत वायरस होते हैं जिससे यह समस्या बढ़ती नहीं है पर नेजल फ्लू टीकाकरण लगाने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि यह लाइव जरूर है पर वायरस को कमजोर करता है।
कुछ प्रकार की दवा से इम्यून सेल की एक्टिविटी कम हो जाती है। जिस दवा में स्टेरॉयड का डोज ज्यादा होता है उसमें टीकाकरण में देरी हो सकती है। इसलिए चेचक, रोटावायरस, मीजल्स, शिंगल्स, मम्प्स और रूबेला के टीकाकरण लाइव वायरस वैक्सीन हैं और इन्हें दवा का डोज खत्म होने के बाद ही देना चाहिए।
यदि बच्चे या शिशु एचआईवी पॉजिटिव है और उसका इम्यून सिम्टम कमजोर है तो लाइव वायरस इन्फ्लुएंजा वैक्सीन लगवाने की जरूरत होती है। अन्य टीकाकरण के लिए टी-सेल की मात्रा आवश्यकतानुसार पूरी होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो टीकाकरण में देरी हो सकती है।
जिन बच्चों का इम्युनिटी बढ़ाने का ट्रीटमेंट या कीमोथेरेपी हो रही है या जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है उनमें कुछ विशेष टीकाकरण करवाने में देरी करने की जरूरत होती है।
पैंडेमिक होने की वजह से बहुत सारे हॉस्पिटल में गंभीर रूप से इम्युनिटी बढ़ाने के ड्रॉप्स दए जा रहे हैं। यद्यपि 10 साल से कम उम्र के बच्चों को घर के भीतर रहने की सलाह दी जा रही है पर चिकनपॉक्स, निमोनिया, टाइफाइड, मेनिन्जाइटिस और हेपेटाइटिस के लिए टीकाकरण में लगभग 30% तक कम हुए हैं।
शिशु व बच्चों के टीकाकरण शेड्यूल के बारे में पूरी जानकारी लेने की सलाह दी जाती है क्योंकि देरी से कई रोग व इन्फेक्शन होने का खतरा होता है और इससे काफी हानि को सकती है। हालांकि कुछ वैक्सीन ऐसी भी हैं जिन्हें आप बच्चे व शिशु को देरी से भी लगवा सकती हैं। यहाँ पर देरी से लगने वाले और समय पर लगने वाले टीकाकरण या वैक्सीन की लिस्ट दी हुई है। इसे जानने के बाद आप अपने बच्चे का टीकाकरण करवाने के बारे में आसानी से सोच सकती हैं, आइए जानें;
स्रोत: https://www.indianpediatrics.net/dec2018/1066.pdf
बच्चे को वैक्सीन दिलाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है पर आपको एक भी इंजेक्शन स्किप नहीं करने चाहिए। समय और अंतराल के कारण कुछ टीकाकरण में आपको आसानी हो सकती है क्योंकि आप बच्चे की आयु के अनुसार इसमें कुछ महीनों व सप्ताह तक की देरी कर सकती हैं। बहुत सारी स्टडीज में इसके बारे में बताया गया है और कुछ आवश्यक टीकाकरण में देरी को भी परिभाषित किया गया है। ऐसी ही एक रिसर्च के बारे में यहाँ बताया गया है। डॉक्टर से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है क्योंकि वे बच्चे के स्वास्थ्य को नजदीकी से चेक करेंगे और गाइडलाइन्स के अनुसार ही सलाह देंगे जिसके बारे में यहाँ बताया गया है।
कोई भी मेडिकल एक्सपर्ट टीकाकरण में बदलाव करने की सलाह देते हैं पर यदि वैक्सीनेशन में देरी हो जाती है तो वे डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी की गई कुछ गाइडलाइन्स को फॉलो कर सकते हैं।
टीकाकरण के शेड्यूल को कम करने का एक और तरीका यह यह कि आप इस बारे में जानें कि शिशु या बच्चे को एक बारे में कितने इंजेक्शन लग सकते हैं। इस बारे में अगले सेक्शन पर चर्चा की गई है।
ज्यादातर वैक्सीन कॉम्बिनेशन में उपलब्ध हैं, जैसे डीटीपी और एमएमआर। टीकाकरण में मौजूद ऐंटीबौडीज से प्रभाव पड़ता है और यह लाइव वायरस वैक्सीन के इम्यूनाइजेशन को भी प्रभावित करता है। इसलिए सभी इंजेक्शन कंबाइन नहीं हो सकते हैं या एक बार में एक साथ नहीं लगाए जा सकते हैं। ऐसे मामलों में 15 से 30 दिनों तक इंतजार करने की सलाह दी जाती है। इस बारे में पूरी जानकारी के लिए पेडिअट्रिशन से संपर्क करें क्योंकि यह हर किसी में अलग होता है।
जब बच्चे को एक से ज्यादा इंजेक्शन लगाने की बात आती है तो यह चिंताजनक भी हो सकता है। इससे पेरेंट्स को लॉकडाउन हटाए जाने तक का इंतजार करना पड़ सकता है। पर क्या टीकाकरण में देरी करना आम है और इसमें कितने समय तक देरी की जा सकती है? आइए जानें।
पहले भी कहा गया है कि टीकाकरण शिशु व बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है ताकि उसे इन्फेक्शन या रोग न हो। इसलिए इसमें देरी नहीं करनी चाहिए। हालांकि यदि आपके पास कुछ सप्ताह या कुछ महीने हैं और यदि पीडियाट्रिशन ने भी सलाह दी है तो आप बच्चे का टीकाकरण कराने में देरी कर सकती हैं।
इस बात का पूरा ध्यान रखें कि बहुत जरूरी व मुख्य वैक्सीन शिशु को जन्म के बाद पहले साल में लगाई जाती हैं। शिशु व बच्चे के स्वास्थ्य के आधार पर बूस्टर शॉट्स देने में देरी की जा सकती है और डॉक्टर बच्चे की आयु के अनुसार इसे लगाने की सलाह देते हैं। यह कहा जाता है कि आप पीडियाट्रिशन के संपर्क में रहें और उन्हें शिशु के स्वास्थ्य व टीकाकरण की पूरी जानकारी दें।
यदि आप बच्चे के टीकाकरण शेड्यूल में देरी करती हैं तो आपको इससे संबंधित जोखिम भी पता होने चाहिए ताकि आप सही से निर्णय ले सकें।
टीकाकरण में देरी होने से कई जोखिम हो सकते हैं। इससे सही उम्र में बच्चे की इम्यूनिटी मजबूत होती है और साथ ही आसपास के लोग भी सुरक्षित रहते हैं। वैक्सीन लगवाने में देरी होने से संबंधित कुछ जोखिम निम्नलिखित हैं, आइए जानें:
यदि बच्चे या शिशु का टीकाकरण नहीं कराया गया है तो उसे निम्नलिखित रोग होने का खतरा ज्यादा होता है, जैसे;
टीकाकरण में देरी होने से बच्चों व शिशु के साथ-साथ कुछ घर वालों में भी समस्याएं हो सकती हैं, जैसे;
यदि आप टीकाकरण के शेड्यूल में देरी नहीं करना चाहती हैं और बच्चे या शिशु को अस्पताल ले जाने की जरूरत है तो उसे सुरक्षित रखने के लिए सावधानियां बरतें।
शिशु को वैक्सीन देते समय निम्नलिखित सावधानियां बरतने से सेफ्टी में काफी मदद मिल सकती है, आइए जानें;
शिशु व बच्चों की इम्युनिटी कमजोर होती है और उसे गंभीर इन्फेक्शन होने की संभावना बहुत ज्यादा है जो काफी हानिकारक होती है। नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल को डिजाइन इसलिए ही किया गया है कि आपको बच्चे व शिशु के टीकाकरण की आवश्यताएं याद रहें। विशेषकर मुख्य वैक्सीन देते समय टीकाकरण शेड्यूल में देरी होने से बच्चा व शिशु उस समय असुरक्षित हो जाता है जिस समय उसे सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इसलिए टीकाकरण के शेड्यूल को याद रखना बहुत जरूरी है।
विशेषकर मुख्य वैक्सीन की बात करें तो शिशु या बच्चों के टीकाकरण में देरी करने का कोई भी लाभ नहीं है क्योंकि इसके बिना बच्चे या शिशु को कोई भी रोग हो सकता है। टीकाकरण के शेड्यूल में कोई भी गलती होने से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। बूस्टर शॉट्स या इंजेक्शन बाद के चरण में दिया जाता है पर बच्चे की हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर इसमें देरी करने की सलाह दे सकते हैं।
आर्टिकल में पहले भी बताया गया है कि ज्यादातर मुख्य टीकाकरण एक साल के भीतर ही छोटे बच्चों के होते हैं। यह सच है कि ब्रेस्ट मिल्क में मौजूद एंटीबॉडीज होने की वजह से शिशु को सुरक्षा मिलती है पर यह उसे गंभीर इन्फेक्शन से नहीं बचा पाता है, जैसे पोलियो, ट्यूबरक्लोसिस, चेचक आदि। इसलिए ब्रेस्टफीडिंग के दौरान शिशु का टीकाकरण न कराना सही नहीं होगा।
नहीं, बच्चे को मिस हुई वैक्सीन दोबारा से लगवाने की जरूरत नहीं है। कई डॉक्टर डब्ल्यूएचओ द्वारा डिजाइन किए हुए देरी से होने वाले टीकाकरण शेड्यूल को ही फॉलो करते हैं। टीकाकरण में देरी होने से संबंधित सभी जानकारियों के बारे में डॉक्टर से चर्चा करें।
ज्यादातर एक्सपर्ट्स पेरेंट्स को टीकाकरण के शेड्यूल को अच्छी तरह से जानने की सलाह देते हैं क्योंकि वैक्सीनेशन में देरी होने से एक साल से कम के शिशु को कई हानियां होती है। एक साल से ज्यादा के बच्चों में लिए कुछ बूस्टर शॉट्स में देरी की जा सकती है। बच्चे या शिशु के टीकाकरण शेड्यूल में कुछ भी बदलाव करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
शुरुआत से ही शिशु का टीकाकरण कराने से भविष्य में वह हेल्दी रहता है। लॉकडाउन और वायरस होने के डर से टीकाकरण में देरी हो सकती है पर कई हॉस्पिटल में इससे संबंधित पूरी सावधानी बरती जा रही है ताकि शिशु और बच्चों का टीकाकरण समय पर किया जा सके। यदि आप बच्चे को अस्पताल ले जाने के बारे में बहुत ज्यादा चिंतित हैं तो डॉक्टर से इसका कोई वैकल्पिक शेड्यूल जरूर पूछें। पर यदि वह छोटा शिशु है तो उसका कोई टीकाकरण स्किप या किसी भी वैक्सीन में देरी न करना ही बेहतर है।
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