एक बड़े से जंगल में पेड़ की ऊंची डाली पर बेसुरा कौआ रहता था। सभी जानवर उससे दूर दूर रहते थे, इसका कारण था उसकी बेसुरी आवाज, जिसे कोई भी सुनना पसंद नहीं करता था। कौवे को गाना गाने का बेहद शौक था, उसे यह वहम था कि सब उसकी मधुर आवाज के कारण उससे जलते हैं। किसी बात की परवाह किए बगैर वो अपनी ही धुन में मस्त रहता था।
एक बार कौआ बहुत मेहनत करके अपने लिए रोटी ढूंढकर लाया और उसे अपने पेड़ पर ले जा कर खाने लगा, इतने में वहाँ से एक लोमड़ी गुजरी, उसे बहुत तेज भूख लगी थी और उसे कुछ भी खाने को नहीं मिल रहा था। कौवे को रोटी खाते देखकर लोमड़ी कौवे से रोटी छीनने की योजना बनाने लगी, अब वो कौवे की रोटी देखकर भोजन के लिए और मेहनत नहीं करना चाहती थी, अचानक से उसे याद आया की सभी जानवर कौवे की बेसुरी आवाज से परेशान हैं लेकिन वो खुद को बहुत सुरीला समझता है। लोमड़ी मन ही मन खुश हो गई कि कौवे को बेवकूफ बनाकर वो उसकी रोटी छीन लेगी।
फिर क्या था लोमड़ी ने कहा अरे कौआ भाई आप यहाँ! मैं आपसे मिलने के लिए कितनी इच्छुक थी, मैंने सुना है कि आप बहुत ही मधुर आवाज में गीत गाती हैं, लेकिन आपकी इस खूबी के कारण सभी पक्षी आप से मन ही मन जलते हैं, उन्हें डर है कि आप कहीं सभी पक्षियों के राजा न घोषित कर दिए जाए। मुर्ख पक्षियां आपकी कीमत भला क्या समझेंगे, मैं आपसे निवेदन करती हूँ की आप मुझे अपनी मधुर आवाज में कोई गीत सुनाएं। क्या आप मेरे लिए ऐसा करेंगे?
अपनी प्रशंसा और लोमड़ी की झूठी बातें सुनकर कौआ घमंड में चूर हो गया। जैसे ही कौवे ने गाना गाने के लिए अपनी चोंच खोली, वैसे ही उसके मुँह में दबी रोटी छूटकर नीचे गिर पड़ी। रोटी के गिरते ही लोमड़ी ने झटपट रोटी उठाई और भाग खड़ी हुई। कौआ अपना मुँह खोले सारा नजारा अपनी आँखों के सामने से ताकता रह गया और लोमड़ी की बातों में आकर बहुत पछताया!
कौवे और लोमड़ी की कहानी से बच्चों को क्या सीख मिलती है?
इस कहानी से बच्चों को यही सीख मिलती हैं कि आपको झूठी तारीफ करने वाले लोगों से बचना चाहिए और खुद पर कभी इतना घमंड नहीं करना चाहिए कि लोग आपको मुर्ख समझें।
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