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महाभारत की कहानी: द्रौपदी का चीर हरण | The Story Of Draupadi Cheer Haran In Hindi

द्रौपदी चीरहरण, जिसे पांचाली वस्त्रहरण भी कहा जाता है, महाभारत का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है। यह कहानी महाभारत के सभा पर्व में मिलती है। यह वह कथा है जिसकी वजह से ही महाभारत का युद्ध हुआ था। कथा में दुर्योधन और पांडवों के बीच एक द्युत क्रीड़ा का प्रसंग है जिसमें पांडव अपने राजपाट सहित सब कुछ हार जाते हैं। अपनी विजय से मदमस्त दुर्योधन तब पांडवों की पत्नी द्रौपदी का चीर हरण करने का आदेश अपने छोटे भाई दुःशासन को देता है। परीक्षा की इस घड़ी में द्रौपदी के मान-सम्मान की रक्षा कैसे होती है और वस्त्र हरण का यह प्रसंग महाभारत के युद्ध की नींव कैसे रखता है, जानने के लिए आगे पढ़ें।

कहानी के पात्र (Characters Of The Story)

महाभारत की इस कथा में अनेक पात्र हैं –

  • द्रौपदी
  • 5 पांडव – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव
  • दुर्योधन
  • दु:शासन
  • कर्ण
  • शकुनि
  • धृतराष्ट्र
  • भीष्म
  • द्रोणाचार्य
  • कृपाचार्य
  • विदुर
  • श्रीकृष्ण

महाभारत की कहानी: द्रौपदी का चीर हरण (Mahabharat – Draupadi Cheer Haran Story In Hindi )

इस कथा के मूल में है कौरवों में सबसे बड़े दुर्योधन का अपने चचेरे भाइयों पांडवों के प्रति द्वेष भाव। पांडवों के पिता पांडु हस्तिनापुर के सम्राट थे लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु के बाद उनके नेत्रहीन भाई धृतराष्ट्र को गद्दी पर बिठाया गया। धृतराष्ट्र की सहायता के लिए पितामह भीष्म और पांडु-धृतराष्ट्र के सौतेले भाई विदुर राजपाट का काम देखते थे। यह तय था कि पांडवों के बड़े होने पर उनमे सबसे बड़े युधिष्ठिर को राजा बनाया जाएगा। लेकिन दुर्योधन इस तथ्य से कभी सहमत नहीं था और उसे अपने पिता के बाद राजा बनना था। इसके लिए पांडवों को मारने की प्रवृत्ति से उसने अपने मामा शकुनि की सलाह पर कई योजनाएं और साजिशें रचीं। हालांकि पांडव हमेशा सकुशल रहे। समय के साथ दुर्योधन की घृणा, भय और असुरक्षा बढ़ती गई। उसके बुरे कृत्यों को उसके पिता धृतराष्ट्र की मौन स्वीकृति प्राप्त थी।

कई बार विवाद और अन्य कारणों के चलते अंततः पांडवों ने एक अलग राज्य इंद्रप्रस्थ स्थापित कर लिया। इंद्रप्रस्थ में उनका वैभव, सुख, आनंद और प्रजा के बीच लोकप्रियता देखकर दुर्योधन ईर्ष्या से भर उठा और उनसे बदला लेने के बारे में सोचने लगा। युधिष्ठिर को द्युत (जुआ) खेलने की लत थी। शकुनि ने पांडवों की इस कमजोरी का फायदा उठाने का निर्णय लिया और एक षड्यंत्र रचा। दुर्योधन ने पांडवों को हस्तिनापुर में द्युत क्रीड़ा के लिए आमंत्रित किया।

शकुनि द्युत में माहिर था और उसके पास विशिष्ट पासे थे जो उसकी इच्छा के अनुसार चलते थे। द्युत में दुर्योधन के साथ शकुनि के अलावा, उसका छोटा भाई दुःशासन और मित्र कर्ण भी थे। द्युत शुरू होने पर पहले तो पांडव जीतते रहे लेकिन अचानक शकुनि के पासों का रुख बदल गया। पांडव एक एक करके द्युत में हर दांव हारने लगे। विदुर ने धृतराष्ट्र से अनुरोध किया कि वह अब द्युत समाप्त करने का आदेश दे लेकिन अपने पुत्र मोह में अंधे धृतराष्ट्र ने उसे अनसुना कर दिया। युधिष्ठिर धीरे-धीरे धन, आभूषण, सेना, राजपाट, अपने भाई और यहाँ तक कि स्वयं को और अंततः अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाया और उसे भी हार गया। दुर्योधन, जो अपने प्रतिद्वंदियों पर विजय के नशे में चूर हो चुका था। उसने सेवक को बुलाकर महल में ठहरी द्रौपदी को हस्तिनापुर के दरबार में लाने का आदेश दिया। जब सेवक द्रौपदी के पास दुर्योधन का आदेश लेकर पहुंचा तो अपने पति की हरकत से स्तब्ध द्रौपदी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया उसे ऐसे पति द्वारा हारा नहीं जा सकता जो पहले ही स्वयं को हार चुका है। अब दुर्योधन क्रोध से भर उठा और उसने दु:शासन से द्रौपदी को जबरन दरबार में लाने के लिए कहा।

दुःशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए दरबार में ले आया। दुर्योधन ने भरे दरबार में द्रौपदी से कहा कि वह अब उसकी सेविका है और उसे अपमानित करते हुए अपनी गोद में बैठने के लिए आमंत्रित किया। कर्ण भी पांच पतियों की पत्नी होने के कारण द्रौपदी के प्रति अपमानास्पद शब्द बोलने लगा। भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव अपनी पत्नी के अपमान से तिलमिला उठे लेकिन अपने बड़े भाई के दबाव में चुप बैठे रहे। दरबार में उपस्थित बाकी लोग भी अपने सम्राट की आज्ञा के अधीन होकर मूक बने यह तमाशा देखते रहे। दरबार में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और कई अन्य विद्वान और योद्धा थे लेकिन कोई भी द्रौपदी की ओर से बोल नहीं सका।

अकेली द्रौपदी दुर्योधन के घृणास्पद व्यवहार से लड़ रही थी कि तभी वह बोला सेविका के वस्त्र भी उसके अपने नहीं होते और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। और उसने दुःशासन से द्रौपदी के वस्त्र निकाल देने को कहा। दुर्व्यवहार की सीमा लांघते हुए दुःशासन द्रौपदी के वस्त्र खींचने लगा। अपने पतियों को असहाय और चुप पाकर द्रौपदी ने मन ही मन श्रीकृष्ण का ध्यान किया और उनसे मदद करने का आह्वान किया। अपनी मुंहबोली बहन का सम्मान बचाने के लिए कृष्ण अदृश्य रूप में अवतरित हुए। द्रौपदी के वस्त्र अब समाप्त ही नहीं हो रहे थे। दुःशासन द्रौपदी के वस्त्र खींचता रहा, खींचता रहा और अंततः खींचते-खींचते थक कर हार गया। द्रौपदी का चीर हरण करने की दुर्योधन और दु:शासन की योजना असफल हो गई।

अंत में अपनी पत्नी के अपमान से क्रोधित भीम ने युद्ध में दुःशासन के हाथ तोड़ने और उसे मारने की प्रतिज्ञा ली। श्रीकृष्ण की सहायता से संभली द्रौपदी ने भी प्रतिज्ञा ली कि वह तब तक अपने बाल नहीं बांधेगी जब तक उन्हें दुःशासन के रक्त से धो नहीं लेगी। द्रौपदी के वस्त्र हरण ने महाभारत के युद्ध की नींव रख दी थी।

महाभारत की कहानी: द्रौपदी का चीर हरण कहानी से सीख (Moral of Mahabharat – Draupadi Cheer Haran Hindi Story)

महाभारत की कहानी: द्रौपदी का चीर हरण कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी भी परिस्थिति में धर्म के विरुद्ध आचरण और व्यवहार को सहन नहीं करना चाहिए। जीवन या परिस्थिति की चिंता किए बिना धर्म की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। द्रौपदी चीर हरण के समय पांडवों, भीष्म, द्रोणाचार्य, विदुर, कृपाचार्य और हस्तिनापुर दरबार में उपस्थित सभी लोगों की निष्क्रियता को कोई भी उचित नहीं ठहरा सकता। इस अधर्म ने श्रीकृष्ण को महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण और दुर्योधन की नियमों के विरुद्ध हत्या को सही ठहराने का मौका दिया।

महाभारत की कहानी: द्रौपदी का चीर हरण का कहानी प्रकार (Story Type of Mahabharat – Draupadi Cheer Haran Hindi Story)

महाभारत की कहानी: द्रौपदी का चीर हरण कहानी महाभारत की सबसे महत्वपूर्ण कहानी है। धर्म के विरुद्ध आचरण का क्या परिणाम होता है इस बात को समझाने वाली यह कहानी नैतिक कहानियों के अंतर्गत आती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. द्रौपदी को स्वयंवर में किसने जीता था?

द्रौपदी को स्वयंवर में अर्जुन ने जीता था।

2. कर्ण ने द्रौपदी का अपमान क्यों किया?

सूतपुत्र होने के कारण द्रौपदी ने स्वयंवर में कर्ण के साथ विवाह से इनकार कर दिया था, जिस वजह से कर्ण ने इसे अपना अपमान समझा द्युत में इसका बदला लिया।

3. द्रौपदी को पांचाली क्यों कहा जाता है?

द्रौपदी के पिता द्रुपद पांचाल देश के राजा थे और इसी से द्रौपदी का नाम पांचाली पड़ा।

4. किस कारण द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी बनी?

द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने के बाद घर लाने पर पांडवों ने दरवाजे के बाहर से ही अपनी माँ कुंती से कहा कि वे भिक्षा लाए हैं, जिसके उत्तर में कुंती ने बिना देखे ही कह दिया – ‘पांचों भाई बांट लो’। माँ की आज्ञा की अवहेलना न करने के कारण द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी बन गई।

निष्कर्ष (Conclusion)

महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है, जिसकी हर कथा कोई न कोई शिक्षा देती है। महाभारत का प्रत्येक प्रसंग मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का चित्रण है। माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों को शुरू से ही रामायण और महाभारत की कहानियों से परिचित कराएं। ये उनके चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

श्रेयसी चाफेकर

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