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यदि आप गर्भधारण की योजना बना रही हैं तो भारतीय मैटरनिटी लीव के नियमों में हुए कई नए बदलावों के साथ आपको अनेक बातें जानने की आवश्यकता है। इस लेख में गर्भावस्था के दौरान व प्रसव के लिए आप मैटरनिटी लीव का आवेदन कैसे कर सकती हैं और इससे संबंधित कुछ सामान्य सवालों के बारे में चर्चा की गई है, आइए जानते हैं।
शिशु जन्म के बाद कामकाजी महिलाओं को कंपनी की ओर से कुछ समय के लिए पेड अवकाश दिया जाता है। यह अवकाश प्रसव व नवजात शिशु की देखभाल के लिए दिया जाता है जिसका पूरा भुगतान कंपनी करती है। इसमें गर्भावस्था के अंतिम हफ्तों को भी शामिल किया जाता है। मैटरनिटी लीव में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को पूरा मुआवजा दिया जाता है, इसे प्रसवपूर्व अवकाश, प्रसूति अवकाश और गर्भावस्था के दौरान अवकाश भी कहा जाता है।
सभी भारतीय कंपनियों में मैटरनिटी लीव की पॉलिसी मैटरनिटी लीव एक्ट २०१७ के अनुसार ही बनाई जाती है।
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट २०१७ (मातृत्व लाभ अधिनियम २०१७) के अनुसार, मैटरनिटी लीव की अवधि, जो पहले १२ सप्ताह हुआ करती थी, उससे बढ़ाकर २६ सप्ताह तक कर दिया गया है। इसमें शिशु के जन्म से पूर्व १२ सप्ताह का अवकाश लिया जा सकता है।
जिन महिलाओं के २ या २ से अधिक बच्चे हैं उनके लिए मैटरनिटी लीव की अवधि कम है – इस स्थिति में महिला को १२ सप्ताह तक मैटरनिटी लीव दी जाएगी जिसमें बच्चे के जन्म से पूर्व अवकाश अधिकतम 6 सप्ताह हो सकता है ।
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट २०१७ के लिए योग्य होने हेतु, एक महिला को पिछले १२ महीनों में कम से कम ८० दिनों तक किसी कंपनी या संस्था में कार्यरत होना चाहिए।
गर्भपात जैसी स्थितियों में महिलाओं को इस घटना की नियत तारीख से लगभग ६ सप्ताह के लिए अवकाश दिया जाएगा।
एक गर्भवती महिला कर्मचारी प्रसव की नियत तारीख से ८ सप्ताह पहले से मातृत्व अवकाश ले सकती है।
ज्यादातर कंपनियों में छुट्टियों के आवेदन की अपनी एक प्रक्रिया होती है, जिसमें साधारण छुट्टियां और मैटरनिटी लीव भी शामिल है। आमतौर पर, प्रसव की नियत तिथि से कुछ सप्ताह पहले मैटरनिटी लीव के लिए आवेदन किया जाता है। मैटरनिटी लीव एक्ट ८ सप्ताह की अनुमति देता है।
मैटरनिटी लीव माँ और शिशु की परिस्थितियों के आधार पर बढ़ाई जा सकती है। कानून के अनुसार, आपको जो २६ सप्ताह का समय दिया जाता है वह पेड लीव है। २६ सप्ताह के बाद की सभी छुट्टियों (नियोक्ता द्वारा स्वीकृत) को आमतौर पर अनपेड अवकाश माना जाता है।
मैटरनिटी लीव के दौरान एक महिला कर्मचारी को मिलने वाला वेतन उसके कर श्रेणी (टैक्स स्लैब) के अनुसार, इनकम टैक्स के लिए माना जाएगा।
यदि स्वास्थ्य कारणों से मैटरनिटी लीव बढ़ाना आवश्यक है, तो कंपनी आपसे प्रमाण-पत्र या अन्य समान दस्तावेज के साथ इस आवश्यकता के प्रमाण की मांग भी कर सकती है। संस्थान अन्य कारणों की जांच के अनुसार आपको छुट्टी बढ़ाने की अनुमति दे सकती है। हालांकि, मैटरनिटी लीव एक्ट के अनुसार केवल निर्धारित २६ सप्ताह के लिए पूर्ण वेतन दिया जाएगा ।
मैटरनिटी लीव एक्ट के नवीनतम संशोधन में एक प्रावधान ऐसा भी है जिसमें महिला कर्मचारी घर से काम कर सकती है, लेकिन यह उसके काम की प्रकृति पर निर्भर करता है। मैटरनिटी लीव एक्ट के अनुसार महिला कर्मचारी को अपने शिशु की देखभाल के लिए डे केयर की सुविधा भी दी जा सकती है।
इसका जवाब है – नहीं। गर्भावस्था किसी को काम से निकालने का कारण नहीं हो सकती है।
कामकाजी महिलाओं के प्रति कानूनी नियमों और सामान्य कार्यस्थल के दृष्टिकोण में कई बदलाव हुए हैं और कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था व कार्यस्थल से संबंधित उनके अधिकारों को समझने की सलाह दी जाती है। मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट के तहत, गर्भावस्था के कारण नियोक्ता द्वारा महिला कर्मचारी के अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) या नौकरी को समाप्त करना अवैध है।
मैटरनिटी लीव के दौरान महिला कर्मचारी भुगतान की हकदार होती है। मातृत्व मुआवजे की गणना अवकाश शुरू होने से ठीक पहले तीन महीने की औसत दैनिक आय पर की जाती है।
मैटरनिटी लीव नवजात शिशुओं (३ महीने से कम) को गोद लेने वाली मांओं के लिए उपलब्ध है और इसकी अवधि गोद लेने की तारीख से १२ हफ्तों की होती है। बड़े बच्चों को गोद लेने पर कोई प्रावधान नहीं है।
यदि आप किसी प्राइवेट डॉक्टर का चुनाव करती हैं तो प्रसव की प्रक्रिया महंगी हो सकती है। सामान्यतः मैटरनिटी कवरेज में प्रसव के समय अस्पताल में भर्ती होने, प्रसव से पहले या बाद के खर्चे और शुरूआती ३० दिनों के लिए नवजात शिशु के खर्चे भी शामिल होते हैं। ज्यादातर पॉलिसी आपके मैटरनिटी बीमा के दावे के लिए २ से ४ साल की प्रतीक्षा अवधि को नियोजित करती हैं और कुछ पॉलिसी में प्रतीक्षा अवधि ६ साल तक की होती है। उच्च प्रीमियम को इस तथ्य से पूरा किया जाता है कि गर्भावस्था आमतौर पर एक नियंत्रित और नियोजित स्थिति होती है – जहाँ सवाल ‘यदि’ का नहीं लेकिन ‘कब’ का है। अधिकतर बीमा प्रदाता जो मैटरनिटी योजनाएं प्रदान करते हैं, उनसे ऑनलाइन एग्रीगेटर्स और व्यक्तिगत यात्राओं जैसे नियमित चैनलों के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है।
अगर आप अपने नियोक्ता को उचित कारण दिए बिना मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद काम पर वापस नहीं जाती हैं, तो आपको मुआवजे का अधिकार नहीं होगा क्योंकि एक्ट के अनुसार केवल २६ सप्ताह की अवधि के लिए भुगतान किया जा सकता है।
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट में यह भी कहा गया है कि प्रसव की नियत तारीख से १० सप्ताह पहले से, किसी भी गर्भवती महिला कर्मचारी को ऐसा कोई कठिन कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए जो माँ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
यदि संबंधित कर्मचारी ५० से अधिक कर्मचारियों वाले एक संस्थान में काम करती है, तो उसे अपनी नौकरी पर लौटने के बाद शिशु-गृह सुविधा मांगने का अधिकार है।
कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी कानूनी संरचना में मैटरनिटी लीव के नियम आवश्यक हैं। मैटरनिटी लीव अधिकारों में वेतन, नियोक्ता से सहानुभूति और गर्भवती महिला कर्मचारी के लिए कुछ विशेषाधिकार शामिल हैं। भारत में, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट १९६१, एक महिला कर्मचारी को उसके बच्चे की देखभाल करने के लिए समय और संसाधन प्रदान करता है। एक्ट में नवीनतम संशोधन, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट २०१७ ने प्रसूति अवकाश को 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह तक कर दिया है, जिसमें से प्रसव की तारीख तक 8 सप्ताह और शिशु के जन्म के बाद 18 सप्ताह शामिल हैं।
संशोधनों ने एक्ट के दायरों का भी विस्तार किया है। गोद लेने और सरोगेट मांओं के लिए मैटरनिटी लीव भी एक्ट के तहत है। ५० या अधिक लोगों वाले संगठन में काम करने वाली महिलाओं के लिए शिशु-गृह सुविधाएं – मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट २०१७ के अनुसार अनिवार्य है।
एक्ट के आदेश में महिला कर्मचारियों को उनके कार्य स्थल पर मैटरनिटी अधिकारों और लाभ की शिक्षा भी शामिल है।
माँ बनना एक बड़ा निर्णय है जो बहुत अधिक जिम्मेदारियों के साथ आता है। यद्यपि एक बच्चे की देखभाल करने का सफर काफी आनंदमयी होता है, फिर भी इस दौरान ऐसे क्षण भी आते हैं जब बच्चे का स्वास्थ्य – माता-पिता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसलिए, मैटरनिटी लीव के कई फायदे होते हैं, जो माँ और बच्चे दोनों को लाभ पहुँचाते हैं।
चूंकि बच्चे के विकास और कल्याण के लिए पहला वर्ष महत्वपूर्ण होता है इसलिए मैटरनिटी लीव मांओं को वित्तीय जिम्मेदारियों का बोझ लिए बिना अपने बच्चे की देखभाल करने की अनुमति देती है। इस प्रकार माँ और बच्चा, दोनों ही अधिक स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं।
जिन महिलाओं को मैटरनिटी लीव प्रदान की जाती है, उनमें प्रसवोत्तर अवसाद या डिप्रेशन की संभावना कम होती है। क्योंकि वे हमेशा अपने बच्चे के साथ रहती हैं और उनमें अपराध बोध, चिंता या उदासी जैसी भावनाएं कम होती हैं।
मैटरनिटी लीव महिलाओं को उनकी छुट्टी की अवधि समाप्त होने के बाद अपनी कंपनी में वापस जाने की अनुमति देती है। इससे नियोक्ता, महिला कर्मचारियों को कंपनी में लंबे समय तक बनाए रखता है।
एक प्रतिस्पर्धी आर्थिक परिदृश्य में जहाँ महिलाओं को अक्सर अनुचित कार्य प्रथाओं को झेलना पड़ा है, यह आवश्यक है कि एक युवा माँ को अपने अधिकार पता हों ताकि वह अपने व्यावसायिक जिम्मेदारियों के साथ अपने बच्चे की परवरिश भी कर सके। कानूनी रूप से मैटरनिटी लीव की अवधि के मामले में कई देशों की तुलना में भारत का स्थान काफी ऊपर है।
हालांकि वास्तव में, विशेष रूप से निजी और असंगठित विभागों में यह रिकॉर्ड निंदनीय है। इसलिए आपके (या आपके प्रियजनों के) मातृत्व अवकाश अधिकारों को जानना एक सही दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
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