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मांएं अपने बच्चों को दर्द और तकलीफ से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं। बच्चों को – मीजल्स, मम्प्स और रूबेला – इन तीन खतरनाक बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए एमएमआर वैक्सीन लगाना जरूरी है, जिसे मीजल्स, मम्प्स और रूबेला वैक्सीन के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा एमएमआर वैक्सीन का एक और विकल्प भी होता है, जिसमें चिकन पॉक्स के लिए भी एक अतिरिक्त वैक्सीन शामिल होती है। अपने बेबी को इन गंभीर बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए यह वैक्सीन लगाना सबसे आसान और सबसे प्रभावी तरीका है।
अगर आप एमएमआर वैक्सीन के बारे में सब कुछ जानना चाहती हैं, तो आपको यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए!
एमएमआर या मीजल्स, मम्प्स और रूबेला वैक्सीन, आपके बच्चे को इन 3 बीमारियों से बचाने का सबसे प्रभावी और सुरक्षित तरीका है। मीजल्स, मम्प्स और रूबेला बहुत ही संक्रामक बीमारियां हैं, जिनके कारण गंभीर कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं। रैश, तेज बुखार, खांसी, सिरदर्द, थकावट और अन्य संबंधित लक्षणों के अलावा, इसके कारण आंख, कान या पेट के गंभीर इंफेक्शन भी हो सकते हैं।
ये तीन बीमारियां दिमाग को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं और छोटे बच्चों में मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं। अगर एक गर्भवती महिला इन बीमारियों से ग्रस्त हो जाती है, तो उसका गर्भपात भी हो सकता है। इन कारणों से डॉक्टर पेरेंट्स को एमएमआर वैक्सीन इम्यूनाइजेशन शेड्यूल का सख्ती से पालन करने की सलाह देते हैं, ताकि उनके बच्चों को ऐसी बीमारियों से सुरक्षित रखा जा सके।
मीजल्स एक वायरल इंफेक्शन है, जो कि खांसी, बुखार, कंजंक्टिवाइटिस, बहती हुई नाक और चेहरे और शरीर पर रैश के साथ शुरू होता है। अगर मीजल्स फेफड़ों को भी प्रभावित कर ले, तो इसके कारण निमोनिया भी हो सकता है।
बड़े बच्चों में इसके कारण मस्तिष्क में सूजन भी हो सकती है, जिसे इंसेफेलाइटिस के नाम से जाना जाता है, और इससे दिमाग को नुकसान हो सकता है और दौरे भी आ सकते हैं।
मम्प्स वायरस के कारण होने वाली एक बीमारी है और इसके कारण कानों के ठीक नीचे के ग्लैंड्स में सूजन हो जाती है। मम्प्स, मेनिंजाइटिस के होने का एक आम कारण है और इसके कारण बहरापन भी देखा जा सकता है।
पुरुषों में मम्प्स के कारण टेस्टिकल्स का इंफेक्शन भी हो सकता है और इसके कारण इनफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है।
रूबेला, जिसे जर्मन मीजल्स के नाम से भी जानते हैं, चेहरे पर हल्के रैश, कानों के पीछे के ग्लैंड्स में सूजन, हल्का बुखार और जोड़ों में सूजन पैदा कर सकता है।
ज्यादातर बच्चे रूबेला से जल्दी ठीक हो जाते हैं। लेकिन, अगर एक गर्भवती महिला रूबेला से ग्रस्त हो जाए, तो इसके कारण नवजात शिशु में बहरापन, अंधापन, मानसिक बीमारियां या फिर हृदय संबंधी दोष भी देखे जा सकते हैं।
पेरेंट्स होने के नाते, आपको यह पता होना चाहिए, कि यह वैक्सीन आपके बच्चे के लिए कितनी फायदेमंद और जरूरी है।
एमएमआर वैक्सीन के प्रमुख फायदे इस प्रकार हैं:
विश्वव्यापी रिपोर्ट्स के अनुसार, पूरे विश्व में लगभग 2,00,000 बच्चे हर साल मीजल्स से प्रभावित होते हैं और इनमें से 80 बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इसलिए इन जानलेवा बीमारियों के लिए बच्चे को वैक्सीन लगाना जरूरी हो जाता है।
आपको एमएमआर वैक्सीन इम्यूनाइजेशन के जिस शेड्यूल को अपनाने की जरूरत है, वह नीचे दिया गया है और इसे फॉलो करना बहुत आसान है।
एमएमआर वैक्सीन को नीचे दी गई स्टेज में रेकमेंड किया जाता है:
हेल्थ केयर ऑर्गेनाइजेशंस के अनुसार, बच्चों के लिए एमएमआर वैक्सीन की तीन खुराक रेकमेंड की जाती हैं। पहली खुराक 9 महीने की उम्र में, दूसरी खुराक 15 महीने की उम्र में और तीसरी खुराक 4 से 6 वर्ष की उम्र में दी जानी चाहिए। साथ ही, पहली खुराक के कम से कम 28 दिनों के बाद दूसरी खुराक दी जा सकती है।
अन्य बच्चों की अन्य वैक्सीन की तुलना में यह वैक्सीन काफी देर से दी जाती है, क्योंकि इन बीमारियों के एंटीबॉडीज मां से बच्चे तक पहुंच जाते हैं। ये एंटीबॉडीज लगभग 9 महीने की उम्र तक बच्चे को सुरक्षा देते हैं। इसके बाद इसका प्रभाव कम हो जाता है।
हाई स्कूल के बच्चों को इम्यूनिटी के लिए एमएमआर वैक्सीन की दो खुराकों की जरूरत होती है, जिनमें दो खुराकों के बीच कम से कम 28 दिनों का अंतराल होना चाहिए।
जिन वयस्कों को एमएमआर वैक्सीन कभी नहीं दी गई है, वे भी इसकी एक खुराक ले सकते हैं।
बच्चे पैदा करने की उम्र में महिलाओं के लिए एमएमआर वैक्सीन इम्यूनाइजेशन शेड्यूल दो खुराकों का होता है, जिनमें दो खुराकों के बीच कम से कम 28 दिनों का अंतराल होना चाहिए। अगर महिला ने यह वैक्सीन नहीं ली है और वह प्रेग्नेंट हो जाती है, तो डिलीवरी होने तक उसे इसकी खुराक लेने के लिए इंतजार करना चाहिए। प्रेगनेंसी के दौरान इस दवा की खुराक नहीं लेने की सलाह दी जाती है।
इसके अलावा एमएमआर वैक्सीन स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित है, क्योंकि यह वैक्सीनेशन ब्रेस्टफीडिंग को बाधित नहीं करता है और इसलिए बच्चे को इससे कोई नुकसान नहीं होता है।
आमतौर पर 18 वर्ष या इससे अधिक उम्र का व्यक्ति जिसका जन्म 1965 के बाद हुआ हो, उसे एमएमआर वैक्सीन की कम से कम एक खुराक जरूर लेनी चाहिए। इसका केवल एक अपवाद यह है, कि व्यक्ति इन तीनों बीमारियों से ग्रस्त होने का रिकॉर्ड दिखाए।
लगभग हर मामले में एमएमआर के फायदे इसके खतरों पर भारी पड़ते हैं। लेकिन चूंकि एक सिंगल इंजेक्शन में तीन अलग बीमारियों के वैक्सीन होते हैं, ऐसे में, हल्के साइड इफेक्ट का अनुभव होना संभव है। एमएमआर वैक्सीन के कुछ आम साइड इफेक्ट इस प्रकार हैं:
एमएमआर वैक्सीन से ऑटिज्म होने का कोई वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध नहीं है। ऑटिज्म और एमएमआर वैक्सीन के बीच संभव संबंध के सवाल पर यूएसए में विशेषज्ञों की स्वतंत्र टीम के द्वारा गहराई से जांच और रिसर्च की गई है।
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन ने भी यह कंफर्म किया है, कि एमएमआर वैक्सीनेशन के कारण ऑटिज्म नहीं होता है। इन निष्कर्षों के अनुसार, एमएमआर वैक्सीन और ऑटिज्म के बीच कोई संबंध नहीं है।
एंड्रयू वैकफील्ड और उनकी टीम द्वारा यूनाइटेड किंगडम में 1998 में की गई एक स्टडी (‘द लांसेट’ में एक प्रकाशित लेख) यह दावा करता है, कि एमएमआर वैक्सीन के कारण इन्फ्लेमेटरी बॉवेल मूवमेंट, ब्रेन डैमेज हो सकता है और नुकसानदायक प्रोटीन खून में जा सकते हैं। हालांकि यह अध्ययन एमएमआर वैक्सीन और ऑटिज्म के बीच के संबंध की पुष्टि नहीं करता है।
अन्य स्टडीज एमएमआर वैक्सीन के कारण ऑटिज्म होने की बात को सपोर्ट करने के लिए कोई सबूत उपलब्ध नहीं करा सकी हैं। जिसके कारण वैकफील्ड पर स्थाई रूप से यूनाइटेड किंगडम में मेडिसिन प्रैक्टिस करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उनके आर्टिकल का 2010 में नवीनीकरण किया गया।
इस प्रकार इस बात की पुष्टि हो जाती है, कि एमएमआर वैक्सीन और ऑटिज्म के बीच कोई संबंध नहीं है।
एमएमआर वैक्सीन बच्चों को बचपन की कुछ जानलेवा बीमारियों से सुरक्षित रखती है। इस वैक्सीन के एक से ज्यादा इस्तेमाल के कारण, यह पेरेंट्स के लिए एक अच्छा चुनाव है। बच्चों को मीजल्स, मम्प्स और रूबेला जैसी बीमारियों से जो सुरक्षा मिलती है, वह इस वैक्सीन को लेने के बाद अनुभव किए जाने वाले किसी भी हल्के साइड इफेक्ट पर भारी पड़ती है।
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