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यह आश्चर्य की बात है कि नाभि, मानव शरीर का एक छोटा और महत्वपूर्णहीन लगने वाला हिस्सा, माँ के शरीर के अंदर बढ़ते बच्चे को पोषण प्रदान करने का मार्ग होता है। माता–पिता के लिए यह जान लेना बहुत ज़रूरी है कि नवजात शिशु के गर्भनाल का महत्व क्या है और उसकी देखभाल कैसे की जाए। यह आपको सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि गर्भनाल, शिशु के लिए किसी प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारी ना पैदा करे और प्राकृतिक तरीके से अलग हो जाए। इस लेख को पढ़ कर आप गर्भनाल से जुड़ी सभी जानकारी, उसकी देखभाल और किसी भी प्रकार के संक्रमण को पहचानने के तरीकों को जान पाएंगे।
नवजात शिशु का गर्भनाल एक ओर से उसकी नाभि से और दूसरी ओर से गर्भाशय की भीतरी दीवार पर अपरा (प्लेसेंटा) से जुड़ा होता है। प्लेसेंटा के द्वारा ही बच्चे को ज़रुरी ऑक्सीजन व पोषक तत्व मिलते हैं और गर्भनाल का कार्य होता है इन पोषक तत्वों को उस तक ले जाना और अनावश्यक तत्वों को बाहर निकालना।
ज्यादातर महिलाओं में, गर्भावस्था के सातवें सप्ताह के आसपास गर्भनाल का निर्माण होता है और यह भ्रूण के विकास के दौरान सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। गर्भनाल में मुख्य रूप से निम्नलिखित चीज़ों से बनी होती है:
नाल को एक चिपचिपा द्रव सुरक्षित रखता है जिसे व्हार्टन जेली कहा जाता है। अतिरिक्त सुरक्षा के लिए इस पर एक और पतली परत होती है जिसे एम्निओन कहा जाता है। जब बच्चा अपनी माँ के गर्भ से बाहर आता है, तो इस गर्भनाल को एक दर्द रहित प्रक्रिया के माध्यम से अलग किया जाता है, जहाँ एक छोर को बच्चे के शरीर से काफी करीब क्लॅम्प किया जाता है। इसके बाद एक छोटा ठूंठ यानी स्टंप रह जाता है जो 7 से 21 दिनों तक बच्चे की नाभी से जुड़ा रहता है।
याद रखें, जन्म के समय गर्भनाल का रंग पीला–हरा होता है और यह प्राकृतिक रूप से सूखने की प्रक्रिया से पहले काला हो जाएगा। शुरू में इसके विचित्र आकार से आपको अजीब लग सकता है लेकिन ध्यान रखें कि यह अपने आप ही बच्चे के शरीर से अलग हो जाएगा ।
गर्भनाल ठूंठ नवजात शिशु के गर्भ के नौ महीने के प्रवास का अंतिम अनुस्मारक है और जब तक वह अपने आप अलग नहीं हो जाता तब तक इसकी देखभाल करना ज़रुरी है। हालांकि, ज़्यादा चिंतित ना हों क्योंकि इसकी देखभाल करना काफ़ी आसान है। उपचार प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए ठूंठ को हर समय साफ और सूखा रखना आवश्यक होता है। ध्यान रखें कि ठूंठ को अक्सर छूने और बार–बार इसकी जाँच करने से कुछ हासिल नहीं होगा। हालांकि, यदि आपका नवजात बच्चा सामान्य से ज़्यादा रो रहा है, या आपको लगे की वह दर्द में है या कुछ ज़्यादा चिड़चिड़ा हो रहा है, तो एहतियात के तौर पर उसे डॉक्टर को दिखाना पड़ सकता है।
पहली बार बने माता–पिता, यहाँ है गर्भनाल की देखभाल से जुड़ी कुछ घरेलू सलाह, जो आपको बेवजह आपके स्त्री रोग विशेषज्ञ या बाल रोग विशेषज्ञ के पास ना जाने में मददगार होंगी।
स्वच्छता महत्वपूर्ण है : ठूंठ कभी–कभी अस्वच्छ और चिपचिपा लग सकता है। यदि ऐसा हो तो इसे एक सूती या गीले कपड़े से साफ़ करें और फिर एक नर्म सूखे रुमाल या कपड़े से थपथपाकर पोंछ लें। किसी भी रिश्तेदार या अन्य शुभचिंतक की सलाह मान कर अल्कोहल या साबुन का इस्तेमाल ना करें। इससे आपके नन्हे बालक की मुलायम त्वचा को जलन महसूस हो सकती है। किसी भी हाल में, स्वाभाविक रूप से होने वाली ठूंठ गिरने की इस प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता नहीं है।
इसे सूखा रखें : यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह प्रकिया स्वाभाविक रूप से होती रहे, इस बात का ध्यान रखें कि ठूंठ हमेशा सूखा रहे। इसे हवा के संपर्क में लाना भी ज़रूरी है, इसलिए सुनिश्चित करें कि डायपर इस भाग को ना ढके। डायपर के उस हिस्से को काट दें या ऐसे डायपर पहनाएं जो कमर के नीचे तक ही पहना जा सके। सामान्य डायपर को नाभि वाले भाग से मोड़ देना भी एक अच्छा उपाय है, यह मूत्र के संपर्क से बचने में भी मदद करेगा। गीले डायपर को बदलते रहें क्योंकि यह गीलापन नाभि कि ओर बढ़ सकता है।
स्पंज स्नान : जब तक गर्भनाल ठूंठ आपके बच्चे से जुड़ा हुआ है, तब तक उसे टब में न नहलाएं। बेहतर होगा कि स्पंज स्नान ही चुनें, यह सुनिश्चित करेगा कि नाभि वाला भाग लंबे समय तक पानी में ना रहे। बच्चे के लिए खरीदा गया टब कुछ हफ्ते इस्तेमाल ना हो तो भी चलेगा, यदि कपड़े से थपथपाकर पोंछने से आपको असहजता महसूस हो तो उसे कुछ देर के लिए हवा दें।
बच्चे के कपड़े समझदारी से चुनें : सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा ढीले–ढाले सूती कपड़े पहने ताकि ठूंठ बंधा हुआ ना रहे। जितना कम कपड़े उसकी त्वचा को रगड़ेंगे, उतना ही ज़्यादा हवा का संचार और उतनी ही तेज़ यह प्रक्रिया होगी। भले ही आपकी इच्छा हो कि उसेअच्छे कपड़े पहना कर, अपनी उत्पत्ति को दुनियावालों को दिखाएं, लेकिन यह फैशन परेड कुछ दिन रुक कर करें जब तक गर्भनाल अलग ना हो जाए!
प्राकृतिक तरह से अलग होने दें : पहली बार बने माता–पिता की यह स्वाभाविक आदत होती है कि वे गर्भनाल को बार–बार जाँचते और देखते हैं यदि वह सूख कर अलग हुआ है या नहीं। गर्भनाल जब पूरी तरह सूख जाए, खासकर जब यह आखरी में लगभग निकल ही आया हो, तब आपको इसे खींच कर अलग कर देने की इच्छा हो सकती है। इस इच्छा को दबाए रखें और प्रक्रिया को प्राकृतिक रूप से होने दें, यह खुद ही शरीर से अलग हो जाएगा।
याद रखें, यह एक से चार सप्ताह के बीच कभी भी हो सकता है यदि इसकी सही देखभाल की जाए। चूँकि यह एक सजीव ऊतक है, इसके अलग होने के पहले सूखने की प्रक्रीया को पूरा होने होगा। कई बार, थोड़ी मात्रा में रक्त दिखाई दे सकता है, या त्वचा कच्ची दिखाई दे सकती है, यह सामान्य है और अपने आप ही ठीक हो जाएगा। कुछ ही समय में, गर्भनाल एक नन्ही–सी नाभि में बदल जाएगा, यदि चार सप्ताह बाद भी ठूंठ ठीक हो कर अलग ना हो तो अपने बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
नाभि पर नज़र रखना और यह सुनिश्चित करना बेहद महत्वपूर्ण है कि इसमे कोई संक्रमण ना हो। यदि जन्म के समय बच्चे का वज़न कम था या यदि बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ है, तो इस पर कड़ी नज़र रखने की सलाह दी जाती है। गर्भनाल में संक्रमण होने के आसार कम है, लेकिन आपको इन संकेतों पर ध्यान देना चाहिए:
यदि इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अपने बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें। संक्रमण का इलाज करने के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक दवा की खुराक लिख सकते हैं। यह भी याद रखें कि यदि नाल को खींचा जाए तो लगातार रक्त का बहाव हो सकता है, और इसके लिए तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता होती है।
कई बार, संभव है कि गर्भनाल पर गुलाबी रंग का निशान बन जाए और इसमें से पीले रंग का एक तरल पदार्थ निकलने लगे। नवजात शिशु के इस ऊतक को “गर्भनाल ग्रेन्युलोमा” कहा जाता है जो आम तौर पर एक हफ्ते में खुद ही ठीक हो जाता है। संक्रमित क्षेत्र पर ध्यान दें क्योंकि अन्य संक्रमणों की तरह इसमें उच्च तापमान, पेट में सूजन, किसी हिस्से का लाल हो जाना, जैसे अन्य लक्षण नहीं दिखाई पड़ते है । यदि हालत में सुधार ना हो तो बिना देर किए चिकित्सीय ध्यान दें और अपने बालक को रोग विशेषज्ञ के पास जाएं ।
गर्भनाल ग्रैनुलोमा से पीड़ित शिशुओं का इलाज करने के लिए, डॉक्टर आमतौर पर संक्रमित क्षेत्र पर “कॉटरीकरण प्रक्रिया” का इस्तेमाल करते हैं। कॉटरीकरण एक चिकित्सीय तकनीक है जो संक्रमित क्षेत्र पर सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल कर ऊतक को जलाती है, यह गर्भनाल के शेष भाग को बंद करने या अलग करने में मदद करता है। यह प्रक्रिया काफी आम है और इससे आपके शिशु को बिल्कुल तकलीफ नहीं होगी क्योंकि इस क्षेत्र में कोई तंत्रिकाएं नहीं जुड़ी होती हैं ।
गर्भनाल ग्रेन्युलोमा का उपचार करने के लिए डॉक्टर द्वारा स्वीकृत एक अन्य प्रक्रीया है गर्भनाल के सिरे पर शल्यचिकित्सक टांकें लगाना। इससे रक्त वहाँ पहुँच नहीं पाता है और नाल के सूख कर अलग होने की प्राकृतिक प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। चूँकि यह सारी प्रक्रियाएं पीड़ा–रहित हैं, आप अपने डॉक्टर को यह करने के लिए कह सकते हैं।
जब तक प्राणाधार गर्भनाल आपके बच्चे से जुड़ा हुआ है, तब तक टब में स्नान करवाने से बेहतर होगा कि आप उसे स्पंज स्नान ही दें। टब में स्नान करवाने से नाभि के आस–पास का क्षेत्र गीला रहेगा और इस नमी कि वजह से संक्रमण होने की संभावना बढ़ सकती है। इस क्षेत्र को जितना हो सके उतना सूखा और साफ़ रखें, इस पड़ाव पर स्पंज स्नान देना ठीक रहता है। स्पंज स्नान के बाद गर्भनाल और उसके आस–पास के क्षेत्र को थपथपाकर या हवा देकर सुखाएं। प्रभावित क्षेत्र के आस–पास सावधानी बरतें और इस पर साबुन या अन्य क्रीम ना लगाएं वरना आपके शिशु की नाज़ुक त्वचा को परेशानी हो सकती है। याद रखें कि नाभि क्षेत्र हमेशा सूखा रहे, इससे उसके ठीक होकर अलग होने कि प्रक्रिया प्राकृतिक और तेज़ होगी।
गर्भनाल का अवशेष जिसे हम ठूंठ कहते हैं, आम तौर पर 7 से 21 दिनों (अधिकतम चार सप्ताह) के बीच ठीक होकर खुद ही अलग हो जाता है। एक बार गर्भनाल शरीर से अलग हो जाए, इसके आस–पास आपको एक कच्चा क्षेत्र दिख सकता है जिसमें से कोई रक्त भरा तरल स्राव भी हो सकता है। हालांकि , ज़्यादातर मामलों में, गर्भनाल पूरी तरह से सूख जाने के बाद ही गिरता है।
गर्भनाल के आसपास कुछ रक्त सामान्य है और ज़्यादातर मामलों में यह चिंताजनक नहीं होना चाहिए। हालांकि अगर लगातार रक्तस्राव हो रहा है, तो इस पर ध्यान दें। रक्त की एक बूँद साफ़ करने पर भी तुरंत रक्त बहने लगे तो सक्रीय रक्तस्राव की पुगर्भनाल के कार्यों और सावधानियों के बारें में जानें जो नवजात शिशुओं में गर्भनाल की देखभाल सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।गर्भनाल के कार्यों और सावधानियों के बारें में जानें जो नवजात शिशुओं में गर्भनाल की देखभाल सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।गर्भनाल के कार्यों और सावधानियों के बारें में जानें जो नवजात शिशुओं में गर्भनाल की देखभाल सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।ष्टि की जा सकती है। यह स्थिति नाल को खींच कर अलग करने की वजह से हो सकती है और यदि ऐसा हो तो तुरंत अपने बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
जैसे ही आपको संक्रमण के लक्षण दिखें, जैसे नाभि के आस–पास सूजन, नाल का लाल हो जाना, नाभि में दर्द, रक्तस्राव या कोई दुर्गन्धित स्राव, तुरंत ही अपने डॉक्टर से संपर्क करें। इसके अलावा, निम्नलिखित स्थितियों पर तत्काल चिकत्सीय ध्यान दें।
ओम्फलाइटिस : जब नाभि क्षेत्र असामान्य रूप से गर्म और लाल हो जाए या कोमल लगने लगे और इसके साथ कोई स्राव हो, तो नवजात ओम्फलाइटिस से पीड़ित हो सकता है। इस जीवाणु संक्रमण को गंभीरता से लेना ज़रूरी है क्योंकि इससे बच्चे की जान को खतरा हो सकता है, बिना किसी देरी के अपने डॉक्टर से चिकित्सीय जाँच करवाएं ।
गर्भनाल हर्निया :
इस स्थिति में, नाभि क्षेत्र में एक ऊतक उभरा हुआ दिखता है, यह मुख्य रूप से बच्चे के रोने से पेट पर पड़े तनाव की वजह से होता है और इससे मांसपेशी क्षेत्र में एक छोटा–सा छेद बन जाता है। डॉक्टर इस स्थिति का इलाज आसानी से कर सकते हैं।
गर्भनाल में संक्रमण या दर्द होने का एक और लक्षण है बच्चे का लगातार रोते रहना। इसके लिए भी डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक है। यदि चार हफ्ते ख़त्म होने के बाद भी ठूंठ खुद से अलग नहीं होता है, तो तुरंत डॉक्टर को सूचित करें क्योंकि इसे कॉटरीकरण या टाँके लगाकर अलग करना पड़ सकता है।
माताओं को आमतौर पर लगता है कि नाभि में उभार अनुचित देखभाल या संक्रमण के कारण हुआ है। इसे ठीक करने के लिए, कई माता–पिता एक सिक्के या एक चपटी चीज़ से नाभि क्षेत्र को बाँध देते हैं। यह मुमकिन नहीं है और इस से नाभि का आकार नहीं बदलता है। इसलिए नाभि को अपने आकार का ही रहने दें और बच्चे की अन्य ज़रूरी बातों पर ध्यान दें।
गर्भनाल, गर्भ में बच्चे के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और बच्चे के जन्म के बाद भी उसकी पर्याप्त देखभाल की ज़रूरत होती है। इसकी देखभाल के लिए उचित तरीके से अवगत होना ज़रूरी है ताकि आगे चल कर कोई समस्या ना हो।
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