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लिवर शरीर का एक जरूरी अंग है, जो कि पसलियों के अंदर एब्डोमिनल कैविटी के दाहिने हिस्से में होता है। इसके फंक्शन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे खून से टॉक्सिन को बाहर निकालना, प्रोटीन को सिंथेसाइज करना और बाइल का उत्पादन करना, जो कि छोटी आंत में फैट को ब्रेकडाउन करने के लिए जरूरी है। हेपेटाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो कि लिवर की सामान्य फंक्शनिंग को प्रभावित करती है। यहां लिवर में इन्फ्लेमेशन विभिन्न कारणों से हो सकता है, जिसमें वायरल इंफेक्शन भी शामिल है। हेपेटाइटिस पांच विभिन्न प्रकार के होते हैं और ये सभी अलग-अलग प्रकार के वायरस से होते हैं। हेपेटाइटिस का इलाज इसके प्रकार पर निर्भर करता है। साथ ही, हेपेटाइटिस कितना पुराना है या कितना गंभीर है, इस पर भी विचार किया जाता है।
जब शिशुओं में लिवर में इन्फ्लेमेशन हो जाती है, तब उसे नियोनेटल हेपेटाइटिस कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की लिवर की बीमारियां होती हैं, जो कि जन्म के बाद, एक से दो महीने के बीच के शिशुओं को प्रभावित करती हैं। बच्चों में नियोनेटल हेपेटाइटिस के कई कारण हो सकते हैं, जिनके बारे में नीचे बताया गया है।
जन्म के दौरान, हेपेटाइटिस बी और सी, माँ से बच्चे तक पहुंच जाते हैं। लगभग 80% मामलों में नियोनेटल हेपेटाइटिस के कारण का पता लगाना मुश्किल होता है। लेकिन इसके पीछे निम्नलिखित में से एक या एक से अधिक कारण हो सकते हैं:
हेपेटाइटिस बिना किसी लक्षण के भी मौजूद रह सकता है। लेकिन जब लक्षण दिखते हैं, तब इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है, जो कि नीचे दिए गए हैं:
नियोनेटल हेपेटाइटिस के गंभीर मामलों में कुछ अन्य लक्षण भी दिख सकते हैं, जैसे – आसानी से कटना-छिलना, ब्लीडिंग जल्दी बंद न होना, सेप्सिस, पेट में तरल पदार्थ इकट्ठा होना।
कुछ हेपेटाइटिस संक्रामक होते हैं, वहीं कुछ नहीं होते हैं। अगर यह बीमारी हेपेटाइटिस ए वायरस के कारण हुई है, तो यह संक्रामक हो सकती है, क्योंकि यह वायरस संक्रमित भोजन और पानी से फैल सकता है। लेकिन, वायरस बी और सी से होने वाला हेपेटाइटिस आमतौर पर, खून और शरीर के अन्य तरल पदार्थों के द्वारा फैलता है। हेपेटाइटिस वायरस का यह प्रकार आमतौर पर जन्म के दौरान मां के शरीर से बच्चे तक पहुंचता है, इसलिए नियोनेटल हेपेटाइटिस को संक्रामक नहीं माना जाता है।
नियोनेटल हेपेटाइटिस में पहचान के किसी निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले, एक्सक्लूजन की विधि अपनाई जाती है। इस प्रकार शिशु को प्रभावित करने वाली लिवर की बीमारी के अन्य सभी कारणों का पहले पता लगाना जरूरी होता है। नीचे कुछ एग्जामिनेशन और टेस्ट दिए गए हैं, जिनकी मदद से डॉक्टर इस बीमारी की पहचान करते हैं:
लिवर एंजाइम टेस्ट और प्रोथ्रॉम्बिन टाइम ब्लड टेस्ट जैसे विभिन्न प्रकार के ब्लड टेस्ट किए जाते हैं और हेपेटाइटिस के विभिन्न रूपों की पहचान की जाती है।
आपके बच्चे की शारीरिक जांच के माध्यम से डॉक्टर लिवर या स्प्लीन में सूजन को पहचान सकते हैं।
लिवर बायोप्सी, अल्ट्रासाउंड और हेपटोबिलियरी इमीनोडायसेटिक एसिड (एचआईडीए) नामक न्यूक्लियर मेडिसिन टेस्ट स्कैन, कुछ अन्य टेस्ट हैं, जिनके इस्तेमाल से नियोनेटल हेपेटाइटिस की जांच की जाती है।
अगर नियोनेटल हेपेटाइटिस की जांच ना हो, तो इससे कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं, जैसे:
इसमें दिमाग के विकास में खराबी और सेरेब्रल पाल्सी जैसी दिक्कतें आती हैं और यह साइटोमेगालोवायरस के कारण होता है।
जो बच्चे जन्म के समय हेपेटाइटिस से संक्रमित हो जाते हैं, उनमें से लगभग 20% बच्चों में क्रॉनिक लिवर डिजीज और सिरोसिस होने का खतरा होता है।
अगर विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’ के अब्जॉर्प्शन में रुकावट पैदा होती है, तो इससे स्वास्थ्य की कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं, जैसे हड्डियों के विकास में कमी या रिकेट्स, कमजोर दृष्टि और खराब विकास, त्वचा में बदलाव के साथ-साथ घाव भरने में दिक्कतें।
यह बाइल में लीवर की टॉक्सिन से छुटकारा पाने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है, जिससे त्वचा में लगातार इरिटेशन की समस्या हो सकती है।
इससे आंतों के विटामिन अब्जॉर्ब करने की क्षमता कम हो सकती है।
नियोनेटल हेपेटाइटिस का कोई विशेष इलाज नहीं होता है और बच्चे की स्थिति को सुधारने के लिए आमतौर पर विटामिन सप्लीमेंट दिए जाते हैं। पेरासिटामोल या एसिटामिनोफेन की मदद से, बुखार को सामान्य रूप से नियंत्रित किया जाता है। जिन बच्चों को जॉन्डिस होता है, उनके लीवर से बाइल के फ्लो में रुकावट पैदा होती है और फैट सॉल्युबल विटामिन के सप्लीमेंटेशन से पर्याप्त विकास में मदद मिल सकती है। इन्फेंट फॉर्मूला जिसमें आसानी से डाइजेस्ट होने वाले फैट मौजूद होते हैं, वे न्यूबॉर्न हेपेटाइटिस के लिए प्रिस्क्राइब किए जा सकते हैं। इडियोपेथिक नियोनेटल हेपेटाइटिस समेत हेपेटाइटिस के ज्यादातर प्रकार, लगभग 6 महीने में ठीक हो जाते हैं। लेकिन, अगर यह संक्रमण हेपेटाइटिस बी या सी वायरस के कारण हुआ है, तो ऐसे में सिरोसिस का खतरा हो सकता है, जिसमें लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है।
हेपेटाइटिस के इलाज में छिपे हुए कारणों की पहचान करना बहुत जरूरी है। कई मामलों में अच्छी देखभाल और पोषण के साथ-साथ, विस्तृत फॉलो-अप केयर से स्थिति में पूरी तरह से सुधार देखा जाता है। एक बार हेपेटाइटिस ठीक हो जाए, तो ज्यादातर शिशु अपने सामान्य खानपान को दोबारा शुरू कर सकते हैं। हालांकि बाइल के बहाव को बढ़ावा देने वाली दवाएं कुछ समय के लिए जारी रखने की जरूरत पड़ सकती है।
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