शिशु

न्यूबॉर्न बेबी का टीकाकरण: शुरुआती 24 घंटों में दी जाने वाली वैक्सीन

वैक्सीनेशन बच्चों, खासकर न्यूबॉर्न बच्चों को बीमारियों से बचाने का एक साधारण, किंतु एक बेहद जरूरी हिस्सा है। बच्चे के विकास के दौरान, उसके शरीर में मौजूद किसी बीमारी से परिवार के बड़े बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए भी यह जरूरी है। नवजात बच्चे में बीमारी पैदा करने वाले या पथोजेनिक ऑर्गेनिज्म से लड़ने के लिए, इम्यून सिस्टम को स्टिमुलेट करने में मदद करने वाले तीव्र ऑर्गेनिज्म उपलब्ध कराना ही वैक्सीनेशन कहलाता है। चूंकि न्यूबॉर्न बच्चे की इम्युनिटी कमजोर होती है, समय-समय पर वैक्सीन देकर उसे बीमारियों से सुरक्षित रखा जा सकता है, जिससे उसका स्वस्थ और उचित विकास सुनिश्चित हो सकता है। इस लेख में हम नवजात शिशुओं के लिए जरूरी वैक्सीनेशन के बारे में बात करेंगे। अधिक जानकारी के लिए आगे पढ़ें। 

आपके न्यूबॉर्न बेबी के लिए वैक्सीन

बच्चे के जन्म के बाद उसे निम्नलिखित वैक्सीन देना जरूरी है। इनमें से कुछ, जन्म के बाद शुरुआती कुछ घंटों में दी जाती हैं और वहीं कुछ आने वाले दिनों, सप्ताहों और महीनों में दी जाती हैं। ये जरूरी वैक्सीन नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल (एनआईएस) के अंतर्गत सूचीबद्ध हैं। ये नवजात शिशुओं को खतरनाक बीमारियों से सुरक्षित रखने में मदद करती हैं। 

1. बीसीजी वैक्सीन

बच्चे के जन्म के पहले सप्ताह में बेसिलस कैलमेट-गुएरिन या बीसीजी वैक्सीन की एक खुराक देने की जरूरत होती है। यह वैक्सीन ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ने के लिए बच्चे के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाती है और इस बीमारी से सुरक्षित रखती है। 

2. ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी)

ओपीवी मुंह में दी जाती है और आमतौर पर बीसीजी वैक्सीनेशन के साथ ही दी जाती है। ये दो वैक्सीन जन्म के बाद पहले या दूसरे दिन दी जा सकती हैं। ये आपके बच्चे को पोलियोमाइलाइटिस से सुरक्षित रखती हैं। ओपीवी जन्म के समय और 6 और 9 महीने की उम्र में दी जाती है। 4 साल की उम्र में एक बूस्टर शॉट भी दिया जाता है। भारत ने पोलियोमाइलाइटिस को सफलतापूर्वक खत्म किया है और इसे जड़ से उखाड़ने के लिए 5 साल तक की उम्र के सभी बच्चों के लिए पोलियो वैक्सीनेशन को अनिवार्य किया गया है। 

3. आईपीवी (इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन)

जितनी जल्दी हो सके, ओरल पोलियो वैक्सीन के स्थान पर आईपीवी दिया जाना चाहिए। अगर आईपीवी संभव न हो, तो बच्चे को बाइवेलेंट ओपीवी की तीन खुराक दी जा सकती हैं। ऐसे मामलों में 6 और 14 सप्ताह पर सरकारी जगहों पर फ्रेक्शनल आईपीवी की कम से कम दो खुराक लेने की सलाह दी जाती है। 

4. हेपेटाइटिस बी वैक्सीन (हेप-बी)

बच्चों में हेपेटाइटिस बी के इंफेक्शन से सुरक्षा के लिए हेपेटाइटिस बी वैक्सीन दी जाती है। पहली या जीरो डोज आमतौर पर जन्म के बाद बीसीजी और ओपीवी के साथ ही दी जाती है। दूसरी खुराक जन्म के एक महीने के बाद दी जाती है। यदि मां को हेपेटाइटिस बी हो, तो बच्चे को भी हेपेटाइटिस बी इम्यून ग्लोब्युलिन (एचबीआईजी) की एक शॉट की जरूरत पड़ सकती है। यह वैक्सीन इम्यूनिटी देती है और लिवर की बीमारियों और अन्य गंभीर बीमारियों से सुरक्षित रखती है। 

5. डिप्थीरिया, टिटनेस और परट्यूसिस (डीटीपी) वैक्सीन

डीटीपी वैक्सीन बच्चों को तीन खुराकों में दी जाती है; 6 सप्ताह, 10 सप्ताह और 14 सप्ताह में। साथ ही पहली बूस्टर खुराक 1.5 से 2 वर्ष की उम्र के बीच दी जानी चाहिए और दूसरी बूस्टर खुराक 4 से 5 वर्ष की उम्र के बीच दी जानी चाहिए। डीटीपी वैक्सीन नवजात शिशु को डिप्थीरिया, टिटनेस और परट्यूसिस या काली खांसी से लड़ने के लिए इम्यूनिटी देती है। डीटीपी वैक्सीनेशन के शॉट्स सही समय पर देकर बच्चे को इन 3 बीमारियों से सुरक्षित रखा जा सकता है। 

6. हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप-बी (एचआईबी) वैक्सीन

हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (एचआईबी) पैदा करने वाले बैक्टीरिया के प्रति इम्यूनिटी के लिए बच्चों को इस वैक्सीन की जरूरत होती है। यह तीन या चार खुराकों में दी जाती है; 6 सप्ताह, 10 सप्ताह, 14 सप्ताह और 12 से 15 महीने की उम्र के बीच एक बूस्टर डोज। अंतिम खुराक एक बूस्टर शॉट होता है, जो एचआईबी के प्रति बच्चे की इम्युनिटी को बढ़ाता है। 

7. न्यूमोकोकल वैक्सीन

न्यूमोकोकल वैक्सीन में न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी13/ प्रेवनार13) होता है, जो कि 2 साल से कम उम्र के बच्चों को दी जाती है और न्यूमोकोकल पॉलिसैचेराइड वैक्सीन (पीपीएसवी23/न्यूमोवैक्स 23) जो कि 2 साल से अधिक उम्र के बच्चों को दी जाती है। पीसीवी13 बच्चों को बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस और निमोनिया से सुरक्षित रखती है, वहीं पीपीएसवी23 उन्हें अन्य 23 प्रकार की न्यूमोकोकल बीमारियों से बचाती है। 

रोटावायरस, फ्लू, टाइफाइड, वेरिसेला और हेपेटाइटिस ए कुछ अन्य वैकल्पिक वैक्सीन हैं, जो बच्चों को दी जाती हैं। 

जिस प्रकार कुछ ओरल दवाओं के साइड इफेक्ट होते हैं, उसी प्रकार वैक्सीनेशन के भी साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इनके बारे में जानकारी होना जरूरी है, ताकि परिस्थिति को संभालने में और तुरंत मेडिकल मदद पाने में परेशानी न हो। आइए नवजात शिशुओं पर टीकाकरण के कारण होने वाले साइड इफेक्ट्स पर नजर डालते हैं। 

न्यूबॉर्न बेबी में वैक्सीनेशन के साइड इफेक्ट

जन्म के समय या वैक्सीनेशन शेड्यूल के अनुसार दी गई वैक्सीन के बारे में गंभीर साइड इफेक्ट रिपोर्ट नहीं किए गए हैं। लेकिन आपके बच्चे को इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द हो सकता है, वह रो सकता है, चिड़चिड़ा हो सकता है और उसे बुखार आ सकता है। इन लक्षणों से राहत पाने के लिए, उसे एक एंटीपायरेटिक सिरप दिया जा सकता है। 

एक बीसीजी वैक्सीन आमतौर पर इंजेक्शन वाली जगह पर एक निशान छोड़ती है। आमतौर पर बाईं बांह पर होने वाला यह निशान कई वर्षों बाद भी दिख सकता है। ज्यादातर यह एक छोटे एरीथेमेटस स्पॉट (त्वचा की लालिमा) के रूप में शुरू होता है और बच्चे के बड़े होने पर इसका आकार भी बढ़ सकता है। यह जगह कुछ दिनों के लिए मुलायम भी हो सकती है और यहां पर एक छोटी गांठ भी दिख सकती है। पर इसमें किसी तरह के इलाज की जरूरत नहीं होती है। 

कुछ दुर्लभ स्थितियों में बच्चों में एलर्जिक रिएक्शन दिख सकते हैं। ऐसा ही एक एलर्जिक रिएक्शन है एनाफायलैक्सिस, जिसके कारण सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और अगर तुरंत इलाज न किया जाए तो मृत्यु भी हो सकती है। कुछ अन्य दुर्लभ मामलों में बच्चों में बुखार के साथ दौरे आ सकते हैं और शरीर की सामान्य फंक्शनिंग में जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। 

आपके बच्चे में एलर्जिक रिएक्शन है या नहीं यह जानने के लिए इन संकेतों का ध्यान रखें

वैक्सीनेशन के गंभीर रिएक्शन के संकेत

जैसा कि पहले बताया गया है, वैक्सीनेशन के बाद गंभीर लक्षण बहुत दुर्लभ होते हैं। लेकिन अगर आपके बच्चे में निम्नलिखित लक्षण दिखें, तो आपको तुरंत पीडियाट्रिशियन से संपर्क करना चाहिए: 

  • तेज बुखार (102 फारेनहाइट या अधिक)
  • तेज या छोटी सांसे (सांस लेने में तकलीफ)
  • घंटों लगातार रोना
  • बेहोश होना या दौरे पड़ना
  • फीडिंग न लेना
  • अत्यधिक सोना
  • शरीर के किसी हिस्से में रैश दिखना
  • चेहरे और आंखों की सूजन

अगर आपके बच्चे में कोई एलर्जिक रिएक्शन नहीं दिखते हैं, बल्कि वैक्सीनेशन के बाद बच्चों में दिखने वाले आम संकेत नजर आते हैं, तो आप कुछ दवाओं के साथ उसके दर्द/तकलीफ को कम कर सकती हैं। वैक्सीनेशन के बाद आप अपने बच्चे को कैसे राहत दिला सकती हैं, यह जानने के लिए आगे पढ़ें। 

वैक्सीनेशन के बाद न्यूबॉर्न बेबी को आराम कैसे दिलाएं?

इंजेक्टबल वैक्सीन बच्चों के लिए दर्द भरे होते हैं और इससे अक्सर वे चिड़चिड़े और बेचैन हो जाते हैं। जिसके कारण वे बहुत अधिक रोते हैं। अपने बच्चे को आराम दिलाने के लिए ब्रेस्टफीडिंग सबसे अच्छा तरीका है। मां के शरीर की गर्माहट रोते हुए बच्चे को शांत कर देती है और उसे बहुत राहत दिलाती है। 

फॉर्मूला दूध पीने वाले बच्चों को भी शांत होने के लिए अपनी मां के करीबी स्पर्श की जरूरत होती है। यह इन्फ्लेमेशन जैसे ही ठीक हो जाता है, बच्चा रोना बंद कर देता है और अक्सर सो जाता है। आमतौर पर बर्फ रगड़ने, हल्दी लगाने जैसे घरेलू उपचार और एंटीसेप्टिक या एनाल्जेसिक के इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ती है। 

आप अपने बच्चे को दूध पिलाने या झूला-झुलाने के दौरान उससे हल्के-हल्के बात करके, उसे रंग-बिरंगे खिलौने दिखा कर या लोरी सुना कर उसका ध्यान भटकाने की भी कोशिश कर सकती हैं। 

हर बच्चे को समय-समय पर वैक्सीन दिलवानी होती है। जब आपके बेबी को जन्म के बाद शुरुआती 24 से 48 घंटों में जरूरी वैक्सीन लग जाती हैं, तब आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए, कि उसे बाकी की वैक्सीन भी लगवाएं। आपके बच्चे को अगली वैक्सीन कब देनी चाहिए, यह जानने के लिए नीचे एक गाइड दी गई है। 

आपके बेबी को अगली वैक्सीन कब दी जाएगी?

नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल के अनुसार, बच्चों को महीनों की तय उम्र में, कई खुराकों में वैक्सीन दी जाती हैं। जन्म के पहले सप्ताह के अंदर दी गई वैक्सीन के बाद आपके बच्चे को शेड्यूल के अनुसार अगली वैक्सीन दी जाएंगी। अगर आप यह सोच रही हैं, कि बच्चे को कब और कौन सी वैक्सीन देनी है, तो इसका समाधान हम लेकर आए हैं। आप हमारे वैक्सीनेशन ट्रैकर का इस्तेमाल कर सकती हैं और आगे आने वाली वैक्सीन खुराक को ट्रैक कर सकती हैं। 

यहां पर वैक्सीनेशन की एक छोटी सूची दी गई है, जिसमें इसके लिए उचित उम्र बताई गई है: 

  • 1.5 महीने की उम्र में: हेपेटाइटिस बी की दूसरी खुराक और पोलियो और डीटीपी, एचआईबी, न्यूमोकोकल, रोटावायरस वैक्सीन, आईपीवी की पहली खुराक।
  • 2.5 महीने की उम्र में: डिप्थीरिया, टिटनेस टॉक्साइड और परट्यूसिस वैक्सीनेशन (डीटीपी) और इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन (आईपीवी), एचआईबी, न्यूमोकोकल, रोटावायरस की दूसरी खुराक।
  • 3.5 महीने की उम्र में: डीटीपी और आईपीवी, एचआईबी, न्यूमोकोकल, रोटावायरस की तीसरी खुराक।
  • 6 महीने की उम्र में: ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) की दूसरी खुराक और हेपेटाइटिस बी की तीसरी खुराक।
  • 9 महीने की उम्र में: ओपीवी की तीसरी खुराक और मीजल्स, मम्प्स और रूबेला कॉन्बिनेशन (एमएमआर) वैक्सीन की पहली खुराक।
  • 9 से 12 महीने की उम्र में: टाइफाइड वैक्सीन।
  • 15 महीने की उम्र में: एमएमआर की दूसरी खुराक।
  • 18 महीने की उम्र में: डीटीपी और आईपीवी, एचआईबी और न्यूमोकोकल की पहली बूस्टर खुराक।
  • 24 महीनों की उम्र में: टाइफाइड वैक्सीन की बूस्टर खुराक।
  • 4 से 6 वर्ष की उम्र में: डीटीपी का दूसरा बूस्टर, ओपीवी का पहला बूस्टर और एमएमआर की तीसरी खुराक।

टाइप बी हिमोफिलस इनफ्लुएंजा वैक्सीन, न्यूमोकोकल वैक्सीन, इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन, रोटावायरस और एचपीवी वैकल्पिक वैक्सीन हैं, जो कि अनिवार्य वैक्सीन के शेड्यूल में शामिल नहीं हैं और इन्हें अतिरिक्त सुरक्षा के लिए दिया जाता है। 

अपने नवजात शिशु को टीका लगाना उसकी अच्छी सेहत को सुनिश्चित करने के लिए और उसे कुछ जानलेवा बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए बहुत फायदेमंद है। प्रभावी इम्यूनाइजेशन के लिए इन्हें राष्ट्रीय निर्देशों के आधार पर दिया जाना चाहिए। हमें उम्मीद है, कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी और हम आपको अधिक जानकारी के लिए या गहरी जानकारी के लिए अपने पीडियाट्रिशियन से परामर्श लेने की सलाह देते हैं। 

स्रोत 1: Healthline
स्रोत 2: WebMD

यह भी पढ़ें: 

बच्चों को वैक्सीन लगाने के बाद बुखार आना
बच्चों के टीकाकरण से जुड़े 15 आम सवाल और जवाब
क्या खांसी या जुकाम की स्थिति में शिशुओं को वैक्सीन दी जा सकती है?

पूजा ठाकुर

Recent Posts

भूकंप पर निबंध (Essay On Earthquake In Hindi)

भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है, जिसमें धरती अचानक से हिलने लगती है। यह तब होता…

1 week ago

Raising Left-Handed Child in Right-Handed World – दाएं हाथ वाली दुनिया में बाएं हाथ वाला बच्चा बड़ा करना

जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है, उसके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू उभरने लगते हैं। या…

1 week ago

माता पिता पर कविता l Poems For Parents In Hindi

भगवान के अलावा हमारे जीवन में किसी दूसरे वयक्ति को अगर सबसे ऊंचा दर्जा मिला…

2 weeks ago

पत्नी के लिए प्यार से बुलाने वाले नाम l Nicknames For Wife In Hindi

शादी के बाद प्यार बनाए रखना किसी भी रिश्ते की सबसे खूबसूरत बात होती है।…

2 weeks ago

पति के लिए प्यार से बुलाने वाले नाम l Nicknames For Husband In Hindi

शादी के बाद रिश्तों में प्यार और अपनापन बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। पति-पत्नी…

2 weeks ago

करण नाम का अर्थ, मतलब और राशिफल l Karan Name Meaning In Hindi

ऐसे कई माता-पिता होते हैं जो अपने बच्चे का नाम इतिहास के वीर महापुरुषों के…

2 weeks ago