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गर्भावस्था के बाद की थायराइड प्रॉब्लम बच्चे को जन्म देने के बाद माओं में होना काफी आम है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि पोस्टपार्टम थायराइड कंडीशन के विकसित होने का खतरा बीस प्रतिशत तक हो सकता है, साथ ही यह रेट उन महिलाओं में बढ़ता हुआ नजर आ रहा है जिन्हें पहले से ही पहले से ही कोई समस्या है जैसे डायबिटीज। यहाँ तक कि, जिन महिलाओं ने पहले इस कंडीशन का अनुभव किया है, उनमें फिर से इसके विकसित होने कि संभावना चालीस प्रतिशत तक बढ़ सकती है। यह लेख आपको पोस्टपार्टम थायराइड प्रॉब्लम होने का कारण, कॉम्प्लिकेशन और इसके ट्रीटमेंट मेथड के बारे में बताया गया है।
थायराइड एक छोटी तितली के आकार की एंडोक्राइन ग्लैंड होती है जो गले के आगे वाले भाग में स्थित होती है। एंडोक्राइन ग्लैंड वो होते हैं, जो शरीर के लिए जरूरी हार्मोन का उत्पादन करते हैं, इस मामले में, थायराइड हार्मोन, टी 3 और टी 4 अहम होते हैं। ये हार्मोन मेटाबोलिज्म के लिए आवश्यक हैं जो एनर्जी सेलुलर का उत्पादन करते हैं। वे शरीर के तापमान को रेगुलेट करने के साथ साथ ऑर्गन फंक्शनिंग के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
गर्भावस्था के बाद थायराइड की प्रॉब्लम को अक्सर नजरंदाज कर दिया जाता है या उतना सीरियस नहीं लिया जाता है। इसके कारण, मांओं को सही तरीके से निदान करने और ट्रीटमेंट लेने में काफी समय लग जाता है। थायराइड डिजीज के तीन मुख्य प्रकार हैं:
हाइपोथायरायडिज्म थायराइड ग्लैंड के लो लेवल पर फंक्शनिंग के कारण, यह कम थायराइड हार्मोन का उत्पादन करता है। इसके लक्षणों में आपको थकान, वजन बढ़ना, कब्ज और शरीर में दर्द आदि देखने को मिल सकते हैं। सिंथेटिक हार्मोन, लेवोथायरोक्सिन को देकर हाइपोथायरायडिज्म को कंट्रोल किया जा सकता है, जो थायराइड हार्मोन की कमी के कारण बनाते हैं। लेवोथायरोक्सिन का कोई साइड इफेक्ट नहीं है और यह आगे के लिए भी कॉम्प्लिकेशन पैदा नहीं करते हैं। पोस्टपार्टम हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित लगभग आधी महिलाओं में हाशिमोटो’स थायरॉयडिटिस नामक और भी सीरियस केस विकसित हो सकता है, जिसका इलाज मेडिसिन डोज बढ़ाकर किया जाता है।
हाइपरथायरायडिज्म तब होता है जब थायराइड ग्लैंड हार्मोन को ओवर प्रोड्यूस करने लगते हैं। यह एक प्रतिशत से कम गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है। एक ऑटोइम्यून बीमारी जिसे ग्रेव्स डिजीज के रूप में जाना जाता है, अक्सर हाइपरथायरायडिज्म का कारण होती है। गर्भावस्था के दौरान, यह कंडीशन प्रीटर्म लेबर, हाई ब्लड प्रेशर, प्लेसेंटल एब्स्ट्रेक्शन, गर्भाशय का फटना, प्री-एक्लेमप्सिया का कारण बन सकती है। हाइपरथायरायडिज्म के उपचार में एंटी थायराइड दवाएं शामिल है, जैसे कि प्रोपीलियोट्राईसिल और मेथिमाजोल। इन दवाओं से जुड़े साइड इफेक्ट बहुत ही रेयर हैं, लेकिन ये कभी-कभी बर्थ डिफेक्ट का कारण बन सकते हैं। इससे बचने के लिए, आपका डॉक्टर एक मामूली सर्जरी कराने की सलाह दे सकता है, जिसे थायराइडेक्टॉमी के रूप में जाना जाता है। इस मामले में, सर्जिकल प्रोसेस में थायराइड ग्लैंड पार्ट को निकाल दिया जाता है ताकि हाइपरथायरायडिज्म के लक्षणों से बचा जा सके।
पोस्टपार्टम थायरॉयडिटिस एक रेयर डिजीज है जिसमें जन्म देने के बाद पहले कुछ महीनों के अंदर ठीक तरह फंक्शनल थायराइड ग्लैंड को सूजन से गुजरना पड़ता है। इसे कम होने में कुछ सप्ताह से लेकर कई महीने या साल भी लग सकते हैं। यह कंडीशन निदान करने के लिए मुश्किल भी है, क्योंकि इसके संकेत और लक्षण अक्सर पोस्टपार्टम डिप्रेशन और स्ट्रेस के साथ कंफ्यूज हो सकते हैं, जो ज्यादातर बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं में होता है। जबकि ज्यादातर माओं में एक वर्ष के अंदर ही थायराइड ग्लैंड वापस नॉर्मल हो गया, वहीं कुछ महिलाओं में इसके कॉम्प्लिकेशन जीवन भर के लिए बने रह सकते हैं।
लगभग पाँच से सात प्रतिशत नई माओं में पोस्टपार्टम थायरॉयडिटिस होता है। चूंकि इम्यून सिस्टम इस कंडीशन के दौरान थायराइड पर हमला करते हैं, इसलिए यह पहले हाइपरथायरायडिज्म का कारण बनता है, जिसके बाद हाइपोथायरायडिज्म होता है। इससे ब्लड फ्लो में थायराइड हार्मोन की वृद्धि होती है, जिससे थायरोटोक्सीकोसिस होता है। इसके लक्षणों में स्ट्रेस, चिड़चिड़ा व्यवहार, गर्मी न सहन कर पाना, भूख में वृद्धि, नींद न आना, एंग्जायटी, दिल की धड़कन बढ़ना, शरीर कांपना आदि शामिल हैं। इस समय में हाइपरथायरायडिज्म समाप्त हो जाता है, जो थायराइड हार्मोन लेवल में कमी के कारण होता है। इसके बाद, हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। इसमें थकान, शुष्क त्वचा, मूड प्रॉब्लम, कम भूख लगना, ठंड को सहन न कर पाना आदि लक्षण शामिल हैं। पोस्टपार्टम थायरॉयडिटिस में बालों का झड़ना एक और कॉमन लक्षण है जो कई महिलाओं को इफेक्ट करता है।
चूंकि ये लक्षण पोस्टपार्टम डिप्रेशन के साथ मेल खाते हैं, जिन्हें बेबी ब्लूज भी कहा जाता है, यह कंडीशन अक्सर कन्फ्यूजन का शिकार हो जाती है। हाइपरथायरायडिज्म के पहले चरण के दौरान आमतौर ट्रीटमेंट की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इसके लक्षण सहनीय और टेम्परेरी होते हैं। यदि यह लक्षण असहनीय हो जाते हैं, तो आपका डॉक्टर आपको बीटा ब्लॉकर ड्रग्स देगा, जो एंग्जायटी को शांत करता है और हार्ट रेट को कम करता है। हाइपोथायरायडिज्म को लेवोथायरोक्सिन के साथ हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी की आवश्यकता होती है, जैसा कि पहले भी बताया गया है।
कोई थायराइड मेडिकेशन, चाहे सिंथेटिक हार्मोन हों या एंटी थायराइड ड्रग हो, मिल्क सप्लाई को इफेक्ट नहीं करती है। हालांकि, दवा न लेना निश्चित रूप से इस पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म दोनों मिल्क रिलीज को प्रभावित कर सकते हैं। इन दोनों कंडीशन में, लैक्टेशन के फीडबैक अवरोधक के रूप में एफआईएल जैसे कुछ हार्मोनों का प्रवाह होता है।
जिसकी वजह से लैक्टेशन में कमी आती है, इस प्रकार आपकी मिल्क सप्लाई भी पूरी तरह से कम हो जाती है या रुक जाती है। आप अपने ब्रेस्ट का धीरे धीरे नीचे से ऊपर की ओर मसाज करके इस सिंपल ट्रीटमेंट तकनीक को अपना सकती हैं, जिससे आपके ब्रेस्ट में मिल्क प्रोडक्शन होना शुरू हो जाता है।
हाइपोथायरायडिज्म मेडिसिन, लेवोथायरोक्सिन, लेना पूरी तरह से सुरक्षित है, क्योंकि यह ब्रेस्टमिल्क में न के बराबर पाया जाता है। हालांकि, हाइपरथायराइड ड्रग जैसे प्रोपीलियोथोरसिल और कार्बिमाजोल के बाद बच्चे के थायराइड फंक्शन की निगरानी की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह नवजात शिशुओं में नियोनेटल हाइपोथायरायडिज्म का कारण बन सकता है। अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराते समय रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट कराने की सलाह आपको नहीं दी जाती है।
ज्यादातर मामलों में, कॉन्जेनिटल हाइपोथायरायडिज्म एक अविकसित थायराइड के कारण होता है। यह कंडीशन बहुत ही रेयर है, और एक प्रतिशत से भी कम शिशुओं में होती है। जिसमें से कुछ कारण इस प्रकार शामिल हैं:
जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म के लक्षणों में सुजा हुआ चेहरा, जीभ में सूजन, सुस्त होना, कब्ज, बाल और त्वचा का शुष्क होना, पीलिया, थकान, खाना न खाना आदि शामिल हैं।
नवजात शिशुओं में यह बीमारी बहुत कॉमन नहीं है। यह मैटरनल ग्रेव्स डिजीज के कारण हो सकता है, जिसमें थायराइड को बढ़ाने वाले एंटीबॉडी प्लेसेंटा में प्रवेश करते हैं और बच्चे के थायराइड ग्लैंड के विकास को प्रभावित करते हैं। अन्य मामलों में, यह कंडीशन टेम्परेरी हो सकती है और ट्रांसिएंट जेस्टेशनल हाइपरथायरायडिज्म के रूप में जानी जाती है। लगभग पाँच प्रतिशत शिशुओं में यह कंडीशन पाई जाती है।
हालांकि ज्यादातर माएं प्रेगनेंसी के बाद होने वाली थायरॉइड कंडीशन से रिकवर हो जाती हैं, लगभग तीस प्रतिशत महिलाएं परमानेंट रूप से थायराइड की प्रॉब्लम का अनुभव करती हैं। इसका मतलब है कि लंबे समय तक आपको इसके लिए मेडिकेशन पर रहना पड़ सकता है। यदि आप पोस्टपार्टम थायराइडिटिस से रिकवर हो चुकी हैं, तो यह सलाह दी जाती है कि आप हर दो साल में कम से कम एक बार टेस्टिंग कराएं। इस समय के दौरान एक सपोर्ट सिस्टम होना महत्वपूर्ण है, खासकर जब से पोस्टपार्टम थायराइड डिजीज के साथ आपको और भी कई प्रॉब्लम का सामना करना पड़ रहा हो। ध्यान रहे कि आपके घर परिवार के लोगों और आपके साथ को इस कंडीशन के बारे में पता होना चाहिए, ताकि आपको ज्यादा बेहतर रूप से मदद मिल सके।
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