In this Article
वैज्ञानिक प्रगति के कारण बच्चे के जन्म से पहले ही उसकी स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों का पता लगाना आसान हो गया है। गर्भावस्था के दौरान बहुत सारे परीक्षण किए जाते हैं, जो ये पता लगाने मदद करते हैं कि बच्चे को किसी प्रकार कि कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तो नहीं हैं। किसी भी गंभीर चिकित्सीय स्थिति का पहले से पता लगने पर आपके डॉक्टर को बच्चे में पाई जाने वाली किसी भी समस्या का उपचार करने में आसानी हो जाती है और बच्चा किसी खतरे के स्वस्थ पैदा होता है। इन्हीं परीक्षणों में से एक है कॉरियोनिक विलस सैम्पलिंग जिसकी इस लेख में चर्चा की गई है।
कोरियोनिक विलस सैम्पलिंग जाँच एक प्रसव पूर्व जाँच है, जो यह पता लगाने के लिए की जाती है कि बच्चे को कोई विशेष आनुवांशिक विकार जैसे डाउन सिंड्रोम या थैलिसीमिया और सिकल सेल एनीमिया तो नहीं है। कोरियोनिक विली बहुत छोटी और अंगुलियों के आकार की होती है जो गर्भनाल में पाई जाती है, जिसमें शिशु की कोशिकाओं के समान ही आनुवांशिक तत्व होता है। सीवीएस जाँच आपके प्रारम्भिक गर्भावस्था के दौरान की जाती है, यानि 10वें से 13वें सप्ताह के बीच।
सी.वी.एस प्रसवपूर्व जाँच एक नियमित जाँच नहीं है और इसे निम्नलिखित परिस्थितियों में ही किया जाता है:
सीवीएस टेस्ट उन महिलाओं के लिए अनुशंसित नहीं है जिन्हें सक्रिय यौन संचारित संक्रमण है, अथवा जुड़वा बच्चे या गर्भावस्था के दौरान योनि से रक्तस्त्राव की शिकायत है।
आपके डॉक्टर जाँच की पूरी प्रक्रिया को विस्तार से समझाएंगे और इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले आपको सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कहेंगे। अल्ट्रासाउंड की मदद से डॉक्टर शिशु और गर्भनाल की स्थिति का पता लगाते हैं। जाँच से पहले खूब सारा पानी पिएं, क्योंकि अल्ट्रासाउंड के लिए भरे हुए मूत्राशय की आवश्यकता होती है।
गर्भवती महिला की नाल से ‘कॉरियोनिक विल्ली कोशिका’ नामक कोशिकाओं का एक नमूना लेकर सीवीएस गर्भावस्था जाँच की जाती है। कोशिकाओं का नमूना पेट से या गर्भाशय ग्रीवा से लिया जाता है।
पेट की सतह के माध्यम से गर्भाशय में एक लंबी, पतली सुई डाली जाती है और सुई के जरिए ऊतक का नमूना गर्भनाल से निकाला जाता है। सुई एम्नियोटिक सैक में प्रवेश नहीं करती है या बच्चे के पास नहीं जाती है और यह प्रक्रिया गर्भवती महिला को एनेस्थीसिया देकर की जाती है।
योनि के माध्यम से एक पतली नली को गर्भाशय ग्रीवा में डाला जाता है। जब कैथेटर गर्भनाल में पहुँच जाता है, तो हल्के से खिचांव का उपयोग करके ऊतक का नमूना लिया जाता है ।
प्रक्रिया को पूरा करने में लगभग 10 मिनट लगते हैं। एक बार जब जाँच पूरी हो जाती है, तो आपको किसी भी तरह के दुष्प्रभाव जैसे कि भारी रक्तस्राव होने की संभावना जैसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक घंटे तक निगरानी में रखा जाता है। एक बार औपचारिकता पूरी हो जाने के बाद, आप घर जा सकती हैं और आराम कर सकती हैं।
सीवीएस जाँच आमतौर पर पीड़ादायक होने के बजाय असहज होती है। आपको जाँच के दौरान और इसके बाद में भी सनसनी और ऐंठन का अनुभव हो सकता है व गले में खराश महसूस हो सकती है। आमतौर पर, सीवीएस की प्रक्रिया को शुरू करने से पहले गर्भवती महिला को एनेस्थीसिया दिया जाता है।
सीवीएस जाँच गर्भावस्था के 10वें से 13वें सप्ताह के मध्य की जाती है। कुछ परिस्थितियों में, यह जाँच गर्भावस्था के बाद के चरण में भी की जा सकती है। हालांकि, इस जाँच को 10वें सप्ताह से पहले नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इससे आपको कई जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे जन्म दोष या गर्भपात आदि, जो इस अवधि के दौरान होने की अधिक संभावना होती है।
सीवीएस जाँच के पश्चात गर्भनाल से लिए गए नमूने से दो प्रकार की टेस्ट की जाती हैं। पहला परिणाम कुछ दिनों के भीतर प्राप्त होता है, जिससे यह पता चलता है कि शिशु को क्रोमोसोमल संबंधी कोई बड़ी समस्या है या नहीं। दूसरा परिणाम आने में लगभग दो से तीन सप्ताह का समय लग सकता है, जिसमें गर्भावस्था से जुड़ी दुर्लभ परिस्थितियों को रेखांकित किया जाता है। यदि किसी विशिष्ट विकार की पहचान करने के लिए जाँच की गई है, तो परिणाम आने में एक महीना लग सकता है।
सीवीएस जाँच के दौरान शरीर में प्रवेश करने वाली सुईयां और सक्शन ट्यूब का उपयोग किया जाता है और इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद आपको इसके दुष्प्रभाव दिखाई पड़ सकते हैं। निम्नलिखित कुछ समस्याएं बताई गई हैं, जिन्हें आप सी.वी.एस जाँच के बाद अनुभव कर सकती हैं:
सीवीएस जाँच एक गंभीर प्रक्रिया है जिससे कई जोखिम जुड़े हुए हैं। इस प्रक्रिया से गुजरने से पहले आपको इसके लाभ और जोखिमों के बारे में जानना बहुत महत्वपूर्ण है। जाँच से संबंधित कुछ सामान्य जोखिम निम्नलिखित हैं:
इस जाँच प्रक्रिया के कारण योनि से भारी रक्तस्राव व धब्बे और ऐंठन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो कि मासिक धर्म के दौरान होने वाली ऐंठन के समान होती है।
आपको जाँच के बाद गर्भाशय संक्रमण का अनुभव हो सकता है। हालांकि यह स्थिति आम नहीं है।
सीवीएस जाँच के कारण आपके बच्चे के खून की एक छोटी मात्रा आपके खून के प्रवाह में प्रवेश कर सकती है जिससे आर.एच संवेदीकरण जैसी समस्या पैदा हो सकती हैं, विशेषत: अगर आप आर.एच नेगेटिव हैं।
सीवीएस परीक्षण से दुर्घटनात्मक गर्भपात का खतरा भी हो सकता है। ये प्राकृतिक गर्भपात के कारण नहीं बल्कि सीवीएस के कारण होता है और इस खतरा का सामना हर महिला को अपनी शुरूआती गर्भावस्था के दौरान सीवीएस कराते समय करना पड़ता है।सीवीएस जाँच कराए जाने के बाद लगभग सौ महिलाओं में से एक या दो गर्भपात का शिकार होती हैं।
सी.वी.एस जाँच के कारण आपके बच्चे के पैर के टखने या अंगुलियों में भी विकृतियां पाई जा सकती हैं। हालांकि, यह जोखिम आमतौर पर उन मामलों में दिखाई देते हैं, जहाँ सी.वी.एस जाँच गर्भावस्था के 10वें सप्ताह से पहले की जाती है।
सीवीएस जाँच परिणाम 99% सटीक माने जाते हैं जिसमें त्रुटियों की संभावना काफी कम होती है। सीवीएस का उपयोग विशिष्ट आनुवांशिक विकारों की जाँच के लिए किया जाता है, हालांकि यह सभी जन्मदोषों की जाँच नहीं कर सकता है। सीवीएस गर्भावस्था या तो सामान्य होगी (अर्थात नकारात्मक) या असामान्य (अर्थात सकारात्मक)।
जब जाँच के परिणाम कोई दोष या कमी नहीं दिखाते हैं, तो रिपोर्ट एक सामान्य या नकारात्मक रिपोर्ट कहलाती है। हालांकि अगर रिपोर्ट में कोई दोष सामने नहीं आते हैं, फिर भी यह संभव है कि बच्चा किसी अन्य आनुवांशिक स्थिति के साथ पैदा हो सकता है ।
यदि जाँच के परिणाम ‘सकारात्मक’ आएं, तो इसका अर्थ है कि बच्चा किसी विकार से ग्रसित है। अधिकांश क्रोमोसोमल स्थितियों का कोई इलाज नहीं होता है और इसलिए इस तरह के विकारों के बारे में आपको बताया जाएगा ।
पहले तो आपके साथ असामान्य परिणाम के प्रभावों पर बातचीत की जाएगी और संभावित आपको उपचारात्मक विकल्पों के बारे में बताया जाएगा। क्योंकि अधिकांश आनुवांशिक स्थितियों का इलाज नहीं किया जा सकता है, इसलिए आप निम्नलिखित विकल्प चुन सकती हैं:
एम्नियोसेंटेसिस सीवीएस जाँच का एक विकल्प है जिसमें माँ के एमनियोटिक द्रव का नमूना जाँच के लिए लिया जाता है। एम्नियोसेंटेसिस गर्भावस्था के 15वें और 20वें सप्ताह के बीच किया जाता है। सीवीएस जाँच का लाभ यह है कि ये गर्भावस्था के शुरूआती चरण में किया जाता है जबकि एम्नियोसेंटेसिस उसके बाद के चरण में किया जाता है ।
जाँच कराने का निर्णय लेने से पहले, जाँच से जुड़े जोखिमों और परिणाम के बारे में विचार करना महत्वपूर्ण है। किसी भी दंपति को अपने डॉक्टर से जाँच से जुड़े लाभों को अच्छी तरह समझाना चाहिए और कोई भी शंका होने पर बात करनी चाहिए इसके अलावा संभावित जोखिमों को भी स्पष्ट रूप से समझना चाहिए।
अच्छे से सोच समझ और विचार कर सीवीएस जाँच कराएं, जो आपको आगे के चरण में आवश्यक सावधानियां बरतने में मदद करेगी।
यह भी पढ़ें:
प्रेगनेंसी के दौरान पैरों में सूजन के लिए 19 प्रभावी घरेलू उपचार
गर्भावस्था के दौरान टिनिटस (कान बजना)
हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…
बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…
गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…
गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…
गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…
10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…