गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान रोना – यह बच्चे को कैसे प्रभावित करता है

गर्भावस्था के दौरान आपकी आहार संबंधी आदतों, स्वास्थ्य, आपके लाइफस्टाइल व गतिविधियों से गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास और वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है। इस समय आपने बहुत से लोगों को यह सलाह देते देखा होगा कि गर्भवती महिला को हर समय खुश रहना चाहिए और उसके लिए निराश होना हानिकारक हो सकता है इसका एक कारण है। मनोविज्ञान के अनुसार गर्भवती महिलाओं के हावभाव और विचारों से उनके गर्भ में पल रहे लगभग 6 महीने या उससे अधिक आयु के बच्चे पर भी असर पड़ता है। गर्भावस्था के दौरान एक महिला जिस प्रकार से भी महसूस करती है वह जन्म के बाद उसके बच्चे के व्यवहार और विचारों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

गर्भावस्था के दिनों में आपके के विचारों का असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर कितना पड़ सकता है यह कहना थोड़ा मुश्किल हो सकता है किंतु यह एक पर्याप्त कारण है यह सुनिश्चित करने का कि इस अवधि में आप बिलकुल भी न रोएं। यह भी माना जाता है कि अन्य की तुलना में गर्भवती महिलाएं कभीकभी बहुत ज्यादा रोती हैं। गर्भावस्था की पहली और तीसरी तिमाही में कई महिलाएं अधिक रोने का अनुभव करती हैं।

गर्भावस्था के दौरान रोने के कारण

इस समय यदि आपको अचानक से बहुत ज्यादा रोना आ जाता है तो यह न सोचें कि आपके साथ कुछ गलत हो रहा है। आप अकेली नहीं हैं, कई महिलाओं को ऐसा अनुभव होता है। प्रेग्नेंसी में महिलाओं को रोना क्यों आता है इसके पीछे कई कारण हैं। इसमें कुछ शारीरिक और कुछ मानसिक कारण भी हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं;

1. हॉर्मोन में उतारचढ़ाव

गर्भवती महिलाओं के शरीर में तीन प्रकार के हॉर्मोन उत्पन्न होते हैं, एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्ट्रोन और ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) और इन हॉर्मोन के स्तर में बदलाव से गर्भवती महिलाओं के मनोभावों में काफी प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप अक्सर महिलाएं बिना किसी कारण के रोने लगती हैं। महिलाओं के शरीर में प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन की वृद्धि गर्भावस्था के आखिरी दो महीनों में अधिक प्रभावित करती है।

2. तनाव

आपने अपनी गर्भावस्था की योजना कितनी अच्छी तरह से या समय के अनुसार बनाई है इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है आपको तनाव कभी भी और कैसे भी हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान आपका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, गर्भ में पल रहे बच्चे का स्वास्थ्य, डॉक्टर के पास जाना व जांच करवाना, जॉब से संबंधित उतारचढ़ाव, पारिवारिक संबंध, बड़े बच्चों की चिंताएं और इत्यादि ऐसे कई कारण हैं जिनसे आपको तनाव हो सकता है।

3. स्ट्रेच मार्क्स

इस समय कई गर्भवती महिलाओं को थोड़ेबहुत स्ट्रेच मार्क्स होते ही हैं। ये मार्क्स अक्सर समय के साथ कम हो जाते हैं किंतु एक गर्भवती महिला जब इन्हें पहली बार देखती है तो उसे रोना भी आ सकता है क्योंकि अब उसका शरीर बदल रहा है।

4. असुविधाएं

शारीरिक असुविधाएं हर गर्भावस्था का एक मुख्य भाग है। गर्भावस्था के दौरान कुछ दर्द व तकलीफों के कारण स्वस्थ और फिट रहना मुश्किल हो सकता है। बिना करवट बदले अच्छी तरह से न सो पाने और अधिक वजन व बड़े पेट के साथ असंतुलित होकर चलने से भी आपको रोना आ सकता।

5. कपड़े फिट न होने से

गर्भावस्था के दौरान शॉपिंग करना कभी-कभी बुरा भी लग सकता हो क्योंकि इस समय आप अपने सामान्य कपड़ों से अधिक बड़े कपड़े खरीदती हैं । यदि आप किसी आवश्यक मीटिंग या समाजिक इवेंट के लिए कुछ अच्छा पहनना चाहती हैं तो प्रेगनेंसी में बढ़ते वजन के कारण ऐसे कपड़े न पहन पाने के कारण आपको रोना आ सकता है।

6. कोई भावनात्मक फिल्म या सीरियल देखते समय

इस दौरान कोई भी भावनात्मक फिल्म या शो देखते समय भी आपको जल्दी ही रोना आ सकता है। इस समय यदि आप बच्चों पर बनी फिल्म, माता-पिता व बच्चे के रिश्ते पर बनी फिल्म और यहाँ तक कि यदि किसी फिल्म में किसी जानवर के बच्चे पर संकट का दृश्य भी देखती हैं तो भी आपको रोना आ सकता है।

7. आपकी गर्भावस्था पर कमेंट किए जाने पर

गर्भावस्था के दौरान आपके शारीरिक बदलावों और बढ़ते वजन पर लोगों के कमेंट आपको चिंता में डाल सकते हैं जिस पर भी आपको रोना आ सकता है। इस समय पर किसी से यह सुनना कि बच्चे के बाद आपके जीवन में, आपके शरीर में और पति के साथ आपके रिश्ते में बदलाव आ सकता है काफी चिंताजनक भी हो सकता है।

8. गर्भावस्था के पड़ाव

गर्भावस्था के कुछ पल आपके लिए बहुमूल्य हो सकते हैं, जैसे जब आप पहली बार अपने बच्चे की दिल की धड़कन सुनती हैं, जब आप अल्ट्रासाउंड में पहली बार अपने बच्चे को देखती हैं या जब आप पहली बार अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की गतिविधियों को महसूस करती हैं इत्यादि। तो इन पलों में भी आप खुद को भावुक और आँसुओं में डूबा हुआ देखकर आश्चर्य चकित न हों।

9. अपनी नियत तारीख के आगे निकल जाने पर

यदि लेबर पेन का कोई संकेत नहीं मिलता है और आपकी नियत तारीख निकल जाती है तो भी आप निराश और अधीर हो सकती हैं। इस दौरान यह भी संभव है कि आपको गर्भावस्था से काफी असुविधाएं हों और इसका कोई अंत न दिखने पर आपको अधिक चिंता हो सकती है और रोना भी आ सकता है।

10. लेबर पेन के दौरान

आपने अपनी गर्भावस्था में चाहे कितनी भी किताबें पढ़ी हों या कितने भी नियमों का पालन किया हो लेकिन लेबर का समय दर्दनाक हो सकता है। अब आपका लेबर यदि सामान्य होता है या फिर सीसेक्शन के साथ भी होता है, इसमें अत्यधिक दर्द होगा।

गर्भावस्था के दौरान रोना बच्चे को कैसे प्रभावित कर सकता है

दूसरी तिमाही में रोने से या गर्भावस्था के दौरान किसी भी समय रोने से आपके बच्चे पर प्रभाव पड़ता है और यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप किस प्रकार की माँ हैं। यहाँ कुछ कारण दिए गए हैं कि प्रेगनेंसी के दौरान रोना बच्चे को कैसे प्रभावित कर सकता है:

1. यदि आप तनावग्रस्त रहती हैं

गर्भावस्था के दौरान आपको अक्सर चिंताएं हो सकती हैं। कभीकभी चिंता करने से गर्भ में पल रहे बच्चे को कोई भी नुकसान नहीं होगा। यद्यपि यदि आपको लंबे समय से एंग्जायटी या चिंता करने की समस्या है तो इसके परिणामस्वरूप आपके शरीर से कोर्टिसोल उत्पन्न हो सकता है और यह एक चिंता का हॉर्मोन होता है। यह हॉर्मोन प्लेसेंटा के माध्यम से आपके बच्चे में भी जा सकता है। यदि यह हॉर्मोन लगातार गर्भ में पल रहे बच्चे पर जाता है तो जन्म के बाद आपके बच्चे को एंक्शियस रहने या पेट दर्द की समस्याएं होने की संभावना हो सकती हैं।

2. यदि आपको अक्सर डिप्रेशन होता है

गर्भावस्था के दौरान कई महिलाएं डिप्रेशन से ग्रसित होती हैं। वास्तव में यह बताया जाता है कि लगभग 10% गर्भवती महिलाएं डिप्रेशन का शिकार होती हैं। डिप्रेशन आपके गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बिलकुल भी सही नहीं है क्योंकि जन्म के बाद आपके बच्चे पर इसका उल्टा असर पड़ सकता है। यह देखा गया है कि जो गर्भवती महिलाएं मेडिकली डिप्रेस्ड रहती हैं, उनके बच्चे भी अपनी युवास्था में भावनात्मक स्थितियों के कारण डिप्रेशन का अनुभव कर सकते हैं।

3. यदि आप अपनी गर्भावस्था से खुश नहीं हैं

यदि आप अपनी गर्भावस्था से खुश नहीं हैं और इस दौरान आप अपनी शारीरिक व मानसिक समस्याओं का दोषी अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को मानती हैं तो यह व्यवहार या यह मनोभाव आपकी समस्याओं को और अधिक बढ़ा सकता है। ज्यादातर पाया गया है कि यदि गर्भवती महिलाएं अपने गर्भ में पल रहे बच्चे से अधिक जुड़ाव महसूस नहीं करती हैं तो उनके बच्चों में बचपन से ही भावनात्मक/मानसिक समस्याएं होती हैं।

4. यदि गर्भावस्था के दौरान कभीकभी आपको तकलीफ होती है

गर्भवती होने पर कभीकभी तनाव, परेशानी या तकलीफ स्वाभाविक है। इन नौ महीनों के दौरान मानसिक और शारीरिक रूप से होने वाले इतने बदलावों के बाद भी यदि आपको लगता है कि आपको कोई तकलीफ नहीं होगी तो यह सोचना सही नहीं है। हालांकि कभीकभी होने वाली इन परेशनियों व उनसे जुड़ी चिंता के कारण आपके गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास या वृद्धि पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।

आप क्या कर सकती हैं

गर्भावस्था के दौरान चिंता करना स्वाभाविक है किंतु इस दौरान इसके कारणों का सामना करके आगे बढ़ना आवश्यक है। कुछ शोधों के अनुसार यदि आपके मस्तिष्क में सामान्य चिंताएं हैं जिन पर ज्यादा ध्यान न दिया जाए तो इससे शारीरिक तनाव भी कम हो सकता है। इसके कारण इंफ्लेमेटरी प्रतिक्रिया हो सकती है शरीर में इंफ्लेमेशन या सूजन के कारण गर्भावस्था के दौरान आपके बच्चे के स्वास्थ्य व विकास पर बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान आप अपने शरीर का पूरा खयाल रखें और अपनी दिनचर्या में होने वाली सभी चिंताओं को कम करने का प्रयास करें।

गर्भावस्था के दौरान आप अपने साथी, अपनी सहेली या परिवार के किसी सदस्य से इस बारे में बात कर सकती हैं कि आप कैसा महसूस करती हैं। आप उन्हें यह भी बता सकती हैं कि कितनी जल्दीजल्दी आपको चिंताएं व डिप्रेशन जैसी समस्याएं होती हैं। यदि इस समय आप अत्यधिक डिप्रेशन व चिंताओं का अनुभव करती हैं तो आपको मेडिकल मदद की आवश्यकता हो सकती है। इसके लिए डॉक्टर से सहायता लेना ही बेहतर तरीका है। गर्भवती महिलाओं के लिए डॉक्टर कुछ एंटीडिप्रेसेंट लेने की सलाह भी देते हैं। इस समय आप अपने लाइफस्टाइल में भी कुछ बदलाव ला सकती हैं, जैसे आप अपने अच्छे व स्वास्थ्यवर्धक शौक पूरे कर सकती हैं, आप किसी योग्य प्रोफेशनल की मदद से योग या मेडिटेशन का अभ्यास भी कर सकती हैं। गर्भावस्था में अच्छा व पौष्टिक आहार लेने और नकारात्मक विचारों से दूर रहने से आपको अधिक मदद मिल सकती है।

गर्भावस्था के दौरान अपनी चिंताओं व डिप्रेशन से बचने के निम्नलिखित तरीके हैं, आइए जानते हैं;

  • हर थोड़ीथोड़ी देर में खाएं। प्रयास करें कि आप ज्यादातर अपने भोजन को न मिस करें क्योंकि इससे आपके मूड में उतारचढ़ाव हो सकता है और आप बहुत ज्यादा भूख लगने के कारण काफी मात्रा में भोजन खा सकती हैं। सुनिश्चित करें कि इस दौरान आपके पूरे आहार में से कम से कम 2 भाग में हरी सब्जियां, फल और नट्स शामिल होने चाहिए।

  • आप नियमित रूप से समय पर सोएं। माँ व बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस अवधि में शरीर को पर्याप्त आराम देना आवश्यक है। आप ज्यादा से ज्यादा आराम करने का प्रयास करें जिससे आप न तो थकी और चिड़चिड़ी होंगी और न ही आप उनींदीसा महसूस करेंगी।

  • गर्भावस्था के दौरान आप सबसे पहले अपनी आवश्यकताओं का खयाल रखें। गर्भवती होना और लगातार काम व घर में व्यस्त रहना कठिन होता है पर यह वह समय है जब आप बिना किसी काम की चिंता किए अपना पूरा खयाल रखें डॉक्टर से सलाह के अनुसार आप शरीर की मालिश करवा सकती हैं, कोई फिल्म देखने जा सकती हैं या अपने पसंदीदा सलून में भी जा सकती हैं। इस अवधि में यदि आप वह सब करेंगी जो आपको पसंद है तो आपकी सभी चिंताएं अपने आप ही कम हो सकती हैं।

  • आप कुछ एक्सरसाइज भी कर सकती हैं। यद्यपि इस प्रक्रिया में खुद को अधिक न थकाएं पर आप कुछ सरल व्यायाम करके अपने ब्लड सर्कुलेशन को नियंत्रित कर सकती हैं जिससे आपका मूड भी अच्छा रहेगा। हर दिन एक नियमित समय निर्धारित करें और बाहर टहलने जाएं। आप योगाभ्यास भी कर सकती हैं यह आपको एक शांत वातावरण का अनुभव प्रदान कर सकता है जो हर समस्या से दूर रखेगा। रोजाना 30 मिनट योग करने से आप अपनी सभी चिंताओं से मुक्त हो सकती हैं इसलिए इसे रोजाना करें।

  • गर्भावस्था के दौरान ज्यादातर अपने घर में मौजूद तकनीकों या इलेक्ट्रॉनिक चीजों से दूर रहें। यह थोड़ा कठिन है पर यदि आप अपने फोन को दिन भर में अधिक से अधिक समय के लिए दूर रख सकती हैं तो आप अन्य चीजों से अपना मनोरंजन करने के लिए समय निकाल सकती हैं, जैसे पढ़ना, लिखना पेंटिंग करना या सिर्फ गाने सुनना। यह कार्य आपको उन सभी चीजों से दूर रख सकता है जिससे आपको चिंता या डिप्रेशन जैसी समस्या हो सकती है।

आपके गर्भ में पल रहे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और जन्म के बाद उसके सही विकास के लिए आपको मानसिक रूप से स्वस्थ रहना जरूरी है। इसलिए अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण समय में खुद की भावनाओं को नियंत्रित रखने का प्रयास करें और जांच करती रहें। आप अपने स्वास्थ्य का खयाल रखने के साथसाथ आने वाले बच्चे के लिए चीजों को तैयार करने में खुद को व्यस्त रख सकती हैं। आप चाहें तो मेडिटेशन या एरोमाथेरेपी कैंडल और मेडिटेशन जैसे घरेलू उपचारों का उपयोग कर सकती हैं क्योंकि ये आपकी चिंताओं को कम करने में मदद कर सकते हैं। अपने रोजमर्रा के जीवन में इन सभी प्रभावी तरीकों का उपयोग करके आप गर्भावस्था के दौरान अपनी चिंताओं और डिप्रेशन को कम कर सकती हैं।

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