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एक महिला के जीवन में प्रेगनेंसी का समय बहुत ही नाजुक होता है और अगर आप प्रेग्नेंट हैं, तो आपको खुश और स्वस्थ रहने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। प्रेगनेंसी के दौरान कोई भी समस्या आपके बच्चे के स्वास्थ्य पर नुकसान पहुंचा सकती है और आप यह बिल्कुल नहीं चाहेंगी। इस लेख में हम एक समस्या या यूं कहें कि एक बीमारी के बारे में बात करेंगे, जिसका नाम है ट्यूबरक्लोसिस। प्रेगनेंसी के दौरान यह कैसे होता है और यह प्रेग्नेंट महिला के स्वास्थ्य और उसके बच्चे पर किस तरह से असर डाल सकता है, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
पलमोनरी ट्यूबरक्लोसिस, जिसे आम भाषा में टी.बी. या तपेदिक के नाम से जाना जाता है, माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाला एक इंफेक्शन है, जो आमतौर पर आपके फेफड़ों पर असर डालता है। कभी-कभी यह किडनी, स्पाइन, गर्भाशय, हड्डियों, दिमाग और नर्वस सिस्टम जैसे शरीर के कुछ दूसरे हिस्सों पर भी प्रभाव डाल सकता है।
ट्यूबरक्लोसिस (टी.बी.) मुख्य रूप से बैक्टीरिया के कारण होता है, जो कि इंसानों द्वारा हवा में छोड़ा जाता है। इंसानी शरीर टी.बी. बैक्टेरियम का एकमात्र ठिकाना है। इसका मतलब यह है, कि बैक्टीरियम इंसानी शरीर के बाहर जीवित नहीं रह सकता। बैक्टीरियम से इनफेक्टेड व्यक्ति जब-जब छींकता है, खाँसता है या थूकता है, तो हवा के माध्यम से माइक्रोस्कोपिक ड्रॉपलेट्स के साथ बैक्टीरिया भी बाहर निकल जाता है।
जब एक महिला का शरीर ट्यूबरक्लोसिस से संक्रमित होता है, तो यह 3 तरह से रिएक्ट कर सकता है:
कभी-कभी इम्यून सिस्टम बैक्टीरिया को पूरी तरह से खत्म नहीं कर पाता है, पर बैक्टीरिया के इर्द-गिर्द डिफेंसिव वॉल (सुरक्षात्मक परत) बनाकर शरीर को सुरक्षित रखने में कामयाब हो जाता है। ऐसे में बैक्टीरिया शरीर में रहता तो है, पर कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। फिर भी, यह बैक्टीरिया आपके इम्यून सिस्टम के कमजोर पड़ने पर अपना काम शुरू कर देते हैं और टी.बी. के लक्षण दिखने लगते हैं। इसे लेटेन्ट टी.बी. के नाम से जाना जाता है ।
जब आपके शरीर का इम्यून सिस्टम बैक्टीरिया से लड़ने में असमर्थ होता है, तो इसके कई लक्षण दिखने लगते हैं, जिनकी पहचान ट्यूबरक्लोसिस के रूप में की जाती है।
टी.बी. के ज्यादातर लक्षण नीचे दिए गए हैं:
प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले हॉर्मोनल बदलाव और इम्यून सिस्टम में होने वाले बदलाव, प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले टी.बी. के लक्षणों को दबा सकते हैं, जिससे टी.बी. को पहचानना मुश्किल हो सकता है और ऐसा भी हो सकता है, कि डिलीवरी होने तक इसका पता ना चल सके।
जो लोग एक्टिव टी.बी. से ग्रसित हैं, केवल उनके द्वारा ही यह बीमारी फैलने की संभावना है।
सामान्य सर्दी के वायरस की तरह ही, एक्टिव टी.बी. से ग्रसित व्यक्ति जब खांसता है या छींकता है, तब कफ, बलगम आदि के माइक्रो ड्रॉपलेट्स के साथ बैक्टीरिया शरीर से बाहर आ जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति इन ड्रॉपलेट्स को सांस के द्वारा अंदर ले लेता है, तो एक्टिव टी.बी. होने की संभावना बन जाती है।
प्रेगनेंसी के दौरान, अगर आपका इम्यून सिस्टम कमजोर है या आप एक संक्रमित व्यक्ति के साथ ज्यादा समय बिताती हैं, तो आपको पलमोनरी टी.बी. के होने की बहुत ज्यादा संभावना है। हालांकि, प्रेगनेंसी के दौरान हाथ मिलाना, बस में सफर करना, खाना शेयर करना, बात करना आदि जैसे छोटे एक्स्पोज़र से टी.बी. इंफेक्शन होने का खतरा नहीं होता है। बल्कि, इन सब से किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को टी.बी. नहीं हो सकता है। यह एक गलत धारणा है, कि छूने या खाना शेयर करने या बात करने आदि से टी.बी. हो सकता है।
आपको टी.बी. होने का खतरा बहुत ज्यादा है अगर:
प्रेगनेंसी के दौरान ट्यूबरक्लोसिस को डिस्क्राइब करने का बेहतरीन तरीका यह है, कि यह एक दोधारी तलवार है। जहां इसका एक सिरा आपके बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है, वहीं दूसरा सिरा बीमारी को बढ़ा सकता है।
आबादी का एक बड़ा हिस्सा टी.बी. से ग्रसित है। इससे मां की मृत्यु हो सकती हैं, जोकि 15 से 45 की उम्र के बीच की प्रेग्नेंट महिलाओं में मृत्यु दर का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। ट्यूबरक्लोसिस के कई प्रभाव होते हैं, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
प्रेगनेंसी के दौरान टी.बी. की गंभीर स्थितियाँ बच्चे के ऊपर भी कई तरह से बुरा प्रभाव डालता है, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
अगर आपको 3 सप्ताह से ज्यादा समय से बलगम पैदा होने वाली खांसी हो रही है, तो बलगम की जांच करके पता लगाया जा सकता है, कि उसमें कोई बीमारी पैदा करने वाला बैक्टीरिया है या नहीं। इस जांच के द्वारा टी.बी. के लगभग हर प्रकार का पता लगाया जा सकता है। डॉक्टर को इसकी जांच करने के लिए आपके बलगम के 2 नमूने चाहिए होंगे, इसलिए आपको दोबारा भी बुलाया जा सकता है।
इसके बाद आमतौर पर छाती का एक्सरे, ब्लड टेस्ट और त्वचा की जांच की जाती है। अपने डॉक्टर के बताए अनुसार सभी टेस्ट अच्छे से करवाएं, क्योंकि, टी.बी. के कारण आपके बच्चे को होने वाला नुकसान किसी भी तरह के टेस्ट से कहीं ज्यादा नुकसानदायक और परेशानी भरा है। इन सभी विधियों के द्वारा यह पता लगाया जा सकता है, कि आपको एक्टिव टी.बी. है या नहीं।
मैनटॉक्स टेस्ट नामक स्किन टेस्ट में आपकी त्वचा की ऊपरी सतह में ट्यूबरकुलीन की थोड़ी मात्रा डाली जाती है। 48 से 72 घंटों के अंदर अगर इस क्षेत्र में सूजन आ जाती है, तो इसका मतलब है, कि आपको लेटेंट टी.बी. है। प्रेगनेंसी के दौरान यह ट्यूबरक्लोसिस टेस्ट लेटेंट टी.बी. की जांच करने के लिए की जाती है।
प्रेगनेंसी के दौरान खुद को और अपने बच्चे को किसी नुकसान से बचाने के लिए, ट्यूबरक्लोसिस के नियंत्रण पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। किसी भी अन्य बैक्टीरियल इनफेक्शन की तरह ही, टी.बी. का इलाज भी एंटीबायोटिक के कोर्स से किया जाता है। अगर इसकी पहचान शुरुआती स्टेज में हो जाए और आप बिना किसी बाधा के एंटीबायोटिक्स का कोर्स पूरा कर लेती हैं, तो उसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। यह कोर्स 6 महीने से लेकर 9 महीने का हो सकता है। पर आप बीमारी की गंभीरता के अनुसार इसे बढ़ा भी सकती हैं। दवा शुरू करने के कुछ हफ्तों के बाद आपको बेहतर महसूस हो सकता है, पर इसका यह मतलब नहीं है, कि आप की बीमारी ठीक हो चुकी है। बैक्टीरिया अभी भी जिंदा हो सकता है और वह दोबारा परेशान कर सकता है। कई बार बैक्टीरिया दवा के प्रति रजिस्टेंस पैदा कर सकते हैं, जिससे इस बीमारी को ठीक करना और भी मुश्किल हो जाता है।
आपको और आपके नवजात शिशु को किसी भी नुकसान से बचाने के लिए जितनी जल्दी हो सके इलाज शुरू कर दे। नीचे लिखी बातों का जरूर ध्यान रखें:
बच्चे को दवाओं के कारण होने वाले नुकसान के डर से और प्रेगनेंसी में होने वाली मतली के कारण इलाज को लगातार जारी रखना मुश्किल हो सकता है। हालांकि, टी.बी. की पहली लाइन वाली ज्यादातर दवाएं, प्रेगनेंसी के दौरान लेने के लिए सुरक्षित होती हैं। इनमें आइसोनियाजिड, एथंबूटोल, रिफैंपाइसिन और पिराजीनामइड शामिल हैं।
प्रेगनेंसी के दौरान स्ट्रैप्टोमायसन लेने से बचना चाहिए। यह टी.बी. का इलाज करने में काफी असरदार है, पर इससे आपके बच्चे की सुनने की शक्ति में कमी आ सकती है, जो कि, 6 में से कम से कम 1 बच्चे में आम है।
यदि आप का इलाज आइसोनियाजिड के साथ चल रहा है, तो भी आपको अत्यधिक सावधान रहने की जरूरत है। इस दवा के कारण हेपेटाइटिस हो सकता है, जिससे ट्यूबरक्लोसिस के इलाज में रुकावट आ सकती है। अगर आप हेपेटाइटिस से ग्रसित हैं, तो आपके लिवर फंक्शन को करीब से मॉनिटर किया जाएगा और आपको मेथाडॉन जैसी कुछ दवाएं दी जाएंगी, जिससे आप का लिवर ठीक तरह से काम करे। हालांकि, आइसोनियाजिड को विटामिन ‘बी6’ की एक खुराक के साथ बिना किसी नुकसान के लिया जा सकता है।
मां के द्वारा गर्भनाल के माध्यम से ट्यूबरक्लोसिस का बच्चे तक पहुंचना बहुत ही कम के मामलों में होता है, जहां कि बीमारी का इलाज ना किया गया हो। लेकिन अगर बीमारी की पहचान हो जाती है तो उसे उचित दवाओं द्वारा ठीक किया जा सकता है। पर अगर बच्चे को टी.बी. हो जाए तो उसे बहुत नुकसान हो सकता है। टी.बी. के कारण न केवल गर्भपात और समय पूर्व डिलीवरी हो सकती है, बल्कि, इससे बच्चे में भी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। इन समस्याओं में विकास में रुकावट, बढ़ा हुआ लीवर या स्प्लीन, बुखार, रेस्पिरेट्री समस्याएं आदि शामिल हैं।
प्रेगनेंसी के दौरान होने वाला ट्यूबरक्लोसिस, मां और बच्चे दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है और ऐसे में आपको अपना अच्छी तरह से खयाल रखना बहुत जरूरी है। टी.बी. से ग्रसित लोगों से दूरी बनाकर आप इस समस्या से बचने का हर संभव प्रयास करें। आखिरकार, बचाव हमेशा ही इलाज से बेहतर होता है। फिर भी, अगर आपको यह बीमारी हो ही जाए, तो प्रेगनेंसी के ऊपर ट्यूबरक्लोसिस के खतरे से ना घबराएं, क्योंकि, आप के इलाज के कई तरीके मौजूद हैं, और आप के इलाज को पूरी तरह से कारगर बनाने का सबसे बेहतरीन तरीका यह है, कि आप हमेशा सकारात्मक बनी रहें। तनाव के बढ़ने से न केवल आपके बच्चे पर असर पड़ेगा बल्कि, इलाज में भी रुकावट आएगी।
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