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गर्भावस्था के दौरान आपको अपना और बच्चे का विकास जानने के लिए कुछ टेस्ट करवाने की जरूरत पड़ती है। इस समय डॉक्टर आपको यूरिन टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। गर्भवती महिलाओं का यह टेस्ट उनके यूरिन में एपिथेलियल सेल्स की जांच के लिए किया जाता है। यह सेल्स त्वचा, वेसल्स, यूरिनरी ट्रैक्ट और ऑर्गन्स में होते हैं। यद्यपि यूरिन में थोड़े बहुत एपिथेलियल सेल्स होने चाहिए परंतु इसकी मात्रा ज्यादा होने से महिलाओं को कई समस्याएं हो सकती हैं और यह चिंता का कारण भी बन सकता है।महिलाओं में एपिथेलियल सेल्स बहुत ज्यादा मात्रा में होने से यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, यीस्ट इन्फेक्शन, किडनी रोग, लिवर का रोग और कुछ प्रकार के कैंसर जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। यदि आप गर्भवती हैं तो एपिथेलियल सेल्स का सामान्य स्तर व इसकी पूरी जानकारी के लिए आगे पढ़ें।
एपिथेलियल सेल्स हमारे शरीर के ऊपरी भाग में होते हैं, जैसे त्वचा, गले के अंदर, आंत, हर एक ऑर्गन और ब्लड वेसल्स। यह सेल्स एक दूसरे से जुड़े होते हैं और शरीर के आंतरिक व बाहरी भाग के बीच एक परत के रूप में काम करते हैं जो शरीर को वायरस से बचाती है। हालांकि कभी-कभी वायरस एपिथेलियल सेल्स के माध्यम से शरीर में चले जाते हैं और बीमारियां पैदा करते हैं। चूंकि एपिथेलियल सेल्स ऑर्गन्स के टिश्यू पर एक के ऊपर एक लेयर बनाते हैं इसलिए यह शरीर में जहाँ भी होते हैं वहाँ पर अलग-अलग रूप में काम करते हैं। एपिथेलियल सेल्स फूड पाइप और आंतों में भी होते हैं जिससे पाचन और खाए हुए भोजन को एब्सॉर्प करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह सेल्स शरीर में एन्जाइम्स, हॉर्मोन्स और म्यूकस को स्रावित करते हैं।
एपिथेलियल सेल्स का शेप, साइज और रूप में अंतर होता है। यह यूरिन में ज्यादातर 3 प्रकार के पाए जा सकते हैं, आइए जानते हैं;
यह सेल्स टिश्यू में बनते हैं जो मूत्रपथ और रीनल पेल्विस के बीच में कहीं भी हो सकते हैं। यह सेल्स किसी भी ऑर्गन में लिक्विड की मात्रा को बदलने में सक्षम होते हैं।
यह एपिथेलियल सेल्स थोड़े लंबे होते हैं और यह महिला की वजायना और मूत्रमार्ग में होते हैं। स्क्वैमस एपिथेलियल सेल्स ज्यादातर गर्भावस्था के दौरान महिला के यूरिन में दिखाई देते हैं।
रीनल ट्यूबूलर एपिथेलियल सेल्स किडनी में होते हैं और यदि यह सेल्स बहुत ज्यादा मात्रा में हैं तो इससे किडनी का रोग भी हो सकता है।
एपिथेलियल सेल्स की मात्रा या स्तर समझने के लिए आपको यूरिन टेस्ट करवाने की जरूरत है। इस टेस्ट में टेक्नीशियन माइक्रोस्कोप की मदद से एचपीएफ (हाई पावर फील्ड) में सेल्स की मात्रा देखते हैं। इसकी मात्रा के अनुसार ही टेस्ट की रिपोर्ट इसका कम, सामान्य और ज्यादा स्तर दिखाती है। चूंकि यह सेल्स शरीर में बनने और ठीक होने की प्रक्रिया की वजह से निकल जाते हैं इसलिए गर्भावस्था में या उससे पहले यूरिन में एपिथेलियल का स्तर एचपीएफ में 1 से 5 हो जाता है।
गर्भवती महिलाओं में कई बदलाव होने के कारण उनके यूरिन में एपिथेलियल सेल्स की मात्रा थोड़ी ज्यादा होती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान एपिथेलियल सेल्स की मात्रा 8 से 10 होना सामान्य है। हालांकि इससे संबंधित अन्य टेस्ट में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, यीस्ट इन्फेक्शन या सूजन की जांच की जाती है जिनकी वजह से अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं। एपिथेलियल सेल्स का स्तर बहुत ज्यादा होना एक चिंता का कारण है, जैसे हाई पावर फील्ड में 15 या इससे ज्यादा रीनल ट्यूब्युलर एपिथेलियल सेल्स होने से किडनी में समस्याएं हो सकती हैं।
यदि गर्भावस्था के दौरान आपके यूरिन में 15-20 या इससे ज्यादा एपिथेलियल सेल्स हैं तो यह एक चिंता का कारण है। पहले यूरिन सैंपल में मौजूद अधिक मात्रा में गंदगी को बाहर निकालना टेक्नीशियन का सबसे पहला काम होता है। इसका यह मतलब है कि आपको यूरिन टेस्ट करवाने के कुछ समय बाद बहुत ज्यादा पानी पीने की जरूरत होगी। यदि टेस्ट में कुछ एपिथेलियल सेल्स होते भी हैं तो वे निम्नलिखित कारणों से हो सकते हैं, आइए जानें;
नियमित रूप से एपिथेलियल सेल्स का कम होना पूरी तरह से सामान्य होता है। आपके एक्सक्रेटरी सिस्टम यानि उत्सर्जन तंत्र के सभी अंगों में एपिथेलियल सेल्स होते हैं जो यह शरीर में ही छिपे रहते हैं और एक शरीर के भाग के रूप में बने रहते हैं और ठीक भी होते हैं। यदि आप इसका टेस्ट करवाने से पहले कम पानी पीती हैं तो इससे यूरिन कंसन्ट्रेटेड हो जाता है जिससे ज्यादा एपिथेलियल सेल्स होने पर भी इसका सैंपल लेना संभव होता है।
यदि आप यूरिन कलेक्ट करने का प्रोसीजर ठीक से फॉलो नहीं करती हैं तो यूरिन का सैंपल आसानी से खराब या कंटैमिनेट हो सकता है। यदि टेस्ट करवाने से पहले आपके अंदरूनी अंग स्वच्छ नहीं हैं तो इससे भी सैंपल कंटैमिनेट हो सकता है क्योंकि एपिथेलियल सेल्स बढ़ सकते हैं जो सैंपल में भी जा सकते हैं। यदि आप अपने अंदरूनी अंगों को साफ करने के लिए क्लीनिंग वाइप्स का उपयोग सही से नहीं करती हैं तो भी सैंपल कंटैमिनेट हो जाता है। यदि आप सैंपल लेने के कप को अंदर से छू लेती हैं या यह पहले से भी कंटैमिनेट हो सकता है। यदि आपको इनमें से कोई भी समस्या लगती है तो आप एक दूसरे कप में दोबारा से सैंपल ले सकती हैं।
यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन अक्सर मूत्रपथ में शुरू होता है जहाँ से बैक्टीरिया ऊपर की तरफ यूरिनरी सिस्टम में जाते हैं, जैसे ब्लैडर और किडनी। जब ब्लैडर की परत में सूजन या जलन होती है तो ब्लैडर में एपिथेलियल सेल्स निकल जाते हैं जो यूरिन में देखे जा सकते हैं। यदि आपको गंभीर रूप से यूटीआई की समस्या है जिसकी वजह से यह किडनी तक पहुँच गया है तो आपके यूरिन सैंपल में रीनल एपिथेलियल सेल्स दिख सकते हैं और फिर डॉक्टर उसी के अनुसार इलाज करते हैं। यह जानना भी जरूरी है कि यदि आपको कोई अन्य गंभीर समस्या होती है जिसका परिमाण यूटीआई जैसा ही है तो डॉक्टर इसकी जांच पूरे ध्यान से करते हैं। यदि अचानक से यूरिन के सैंपल में बहुत ज्यादा एपिथेलियल सेल्स दीखते हैं तो सबसे पहले यूटीआई का इलाज करना जरूरी है।
पैथोलोजिस्ट किडनी में होने वाले हर प्रकार के सेल्स की जांच करते हैं। यदि रीनल ट्यूब में एपिथेलियल सेल्स हैं तो इसका यह मतलब है कि आपको किडनी में गंभीर रूप से इन्फेक्शन हुआ है या किडनी से संबंधित समस्याएं है। रीनल ट्यूब का फंक्शन होता है खून को फिल्टर करके यूरिन का उत्पादन करना। यदि आपकी यूरिन में यह सेल्स बहुत ज्यादा मात्रा में होते हैं तो यह नेफ्रोटिक सिंड्रोम का संकेत भी हो सकता है। यह समस्या किडनी खराब होने से भी होती है।
एपिथेलियल सेल्स का ट्रीटमेंट इसकी अधिक मात्रा और इसके प्रकार पर निर्भर करता है। ज्यादातर यूटीआई बैक्टीरिया की वजह से होता है इसलिए इसे एंटीबायोटिक्स से से ठीक किया जा सकता है। वायरल यूटीआई एंटीवायरल से ठीक किए जाते हैं। किडनी के रोग को ठीक करने के लिए हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई ब्लड शुगर को नियंत्रित करना जरूरी है। इसके ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर आपको निम्नलिखित सलाह दे सकते हैं, आइए जानें;
यूरिन के टेस्ट में एपिथेलियल सेल्स होना कोई भी चिंता की बात नहीं है। आप इसकी अन्य जांच करवाकर कन्फर्म करें और समस्या को ठीक करने के लिए अन्य ट्रीटमेंट करवाएं। यदि आपकी यूरिन में एपिथेलियल सेल्स बहुत ज्यादा मात्रा में हैं तो आप डॉक्टर से सलाह लें। वे आपको सही जानकारी देंगे और इसे ठीक करने के लिए सही उपचार भी करेंगे। सावधानी बरतें और गर्भावस्था को सुरक्षित रखें।
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