प्रसवपूर्व देखभाल

प्रेगनेंसी के दौरान बाएं करवट लेकर क्यों सोना चाहिए?

‘अच्छी नींद लो’ मां बनने वाली एक महिला से अक्सर ही यह कहा जाता है। यह एक छोटी सी सलाह होती है, जो मां बनने वाली स्त्री को अक्सर दी जाती है, ताकि उसके पेट में पल रहा बच्चा ठीक से बढ़ सके। वहीं एक गर्भवती महिला ही यह जानती है, कि उसके लिए अच्छी नींद लेना कितना मुश्किल होता है। कभी बच्चा पैर मारता है, तो कभी पेट पर पड़ने वाला दर्द भरा दबाव उसे सोने नहीं देता है। अगर वह किसी तरह मैनेज करके सोना चाहती है, तो उसे समझ नहीं आता, कि सोए कैसे। अधिकतर मामलों में महिलाएं पीठ के बल या पेट के बल सोना पसंद करती हैं, पर प्रेगनेंसी के दौरान इसकी बिल्कुल मनाही होती है। जब आप के पेट में एक बच्चा पल रहा होता है, तो आपको अधिक सावधानी बरतनी पड़ती है। फिर चाहे वह एक छोटी सी ही बात क्यों ना हो, जैसे कि – आपको बाईं करवट से सोना चाहिए या दाईं करवट से। 

प्रेगनेंसी में सही स्लीपिंग पोजीशन होना क्यों जरूरी है?

हमारे शरीर में लिवर दाहिनी तरफ होता है, इसलिए अगर आप बिस्तर पर अपने दाईं करवट से सोएंगी, तो इससे लीवर पर दबाव पड़ता है और लिवर चोक हो सकता है और उसके प्राकृतिक कामकाज में खराबी आ सकती है। चूंकि, हम सभी यही चाहते हैं, कि हमारा शरीर अच्छी तरह से काम करें और यह प्रेगनेंसी के दौरान और भी जरूरी हो जाता है, तो आप नहीं चाहेंगी, कि आपके बच्चे और उसके पोषण के बीच में कोई रुकावट आए। इसलिए आपके शरीर के अंगों की अच्छी तरीके से काम करने के लिए उन्हें थोड़ा स्पेस देना जरूरी है। बाईं करवट से सोने से आपके लिवर को अच्छी तरह काम करने के लिए उचित जगह मिल जाती है और वह ठीक से काम करता है। 

प्रीनेटल स्टेज में कई स्टेप्स होते हैं, जहां गर्भस्थ शिशु हर बीतते दिन के साथ आकार में बड़ा होता है। जैसे-जैसे दिन बीतते जाते हैं, बढ़ता हुआ बच्चा शरीर के अंगों और ब्लड वेसल्स पर दबाव डालने लगता है और जब बच्चा घूमने लगता है, तब उसे और जगह चाहिए होती है। छोटे से पेट में बच्चे को आराम से रहने के लिए जगह नहीं मिलती है और वह ब्लैडर पर लात मारने लगता है और मां की आंतों में सर से दबाव डालता है। कई लोगों को सुनने में यह बहुत रोचक लगता है, खासकर उन्हें, जिन्हें इसका अनुभव नहीं है। पर वास्तव में यह बहुत दर्दनाक होता है और जब बात सोने की आती है, तब यह और भी तकलीफदेह बन जाता है। 

नीचे स्थित वेना कावा या आईवीसी उन कई शारीरिक अंगों में से एक है, जो रोज के इन बदलावों से प्रभावित होता है। एक महिला के शरीर में आईवीसी रीढ़ के दाहिने भाग से होते हुए नीचे की ओर जाता है, ताकि शरीर के निचले हिस्से से खून वापस ला सके। दाहिनी करवट से सोने से इन ब्लड वेसल्स के काम में रूकावट आ सकती है। 

प्रेगनेंसी के दौरान, मां बनने वाली महिला का स्वास्थ्य बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। शरीर के अंगों पर दबाव पड़ने से बचना एक ऐसा कदम है, जो कि अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है। जब आप आईवीसी पर दबाव डालती हैं, तो नसों में चोक हो सकता है और रक्त प्रवाह कम हो सकता है। दिल और दिमाग की ओर कम मात्रा में ऑक्सीजनेटेड खून जाने से आपको चक्कर आ सकते हैं। अगर आप पीठ के बल सोती हैं, तो बच्चे का सारा वजन सीधा आईवीसी पर जाता है। आपके बच्चे का न्यूट्रिशनल स्टेट पूरी तरह से आपके ऊपर निर्भर करता है, तो ऐसे में अगर आपको कम ऑक्सीजन मिलेगा तो आपके बच्चे को भी ऑक्सीजन कम ही मिलेगा। 

सही न्यूट्रिशन को बरकरार रखने के लिए आप यह कर सकती हैं, कि अपने अंगों और नसों पर दबाव पड़ने से बचाएं, ताकि वह अच्छी तरह से काम कर सके। सोने के दौरान बाईं करवट से सोएं, ताकि आईवीसी को अच्छी जगह मिल सके। अभी भी इस बात पर रिसर्च चल रही है कि सोने के लिए कौन सा करवट बेहतर है। पर ऐसा माना जाता है, कि आपको बाईं करवट से सोना चाहिए। 

प्रेगनेंसी के दौरान डॉक्टर बाएं करवट से सोने की सलाह क्यों देते हैं?

जब दिल की ओर जाने वाला खून का बहाव कम हो जाता है, तो दिल कम खून पंप करता है और जब यह होता है, तो ब्लड प्रेशर में गिरावट आ सकती है। आईवीसी पर केवल बच्चे का वजन नहीं आता, बल्कि गर्भाशय की मांसपेशियां, एम्नियोटिक फ्लुइड, बढ़ा हुआ रक्त प्रवाह आदि सब अपना प्रभाव डालते हैं। ब्लड प्रेशर में आने वाली इस गिरावट को हाईपोटेंशन कहा जाता है। कई माँएं इससे सुरक्षित होती हैं और उन्हें ज्यादा फर्क महसूस नहीं होता है। पर आपको ऐसी स्थिति से हमेशा बचना चाहिए। 

एक स्वस्थ माँ को ऐसे फर्क का पता नहीं भी चल सकता है और बच्चा भी ऐसी अनियमितताओं से निपट सकता है। लेकिन इसका खतरा क्यों उठाना। अगर मां को सांस लेने में तकलीफ हो या उसे ब्लड प्रेशर की समस्या हो, तो यह और भी जरूरी हो जाता है। ऐसे में छोटी-छोटी अनियमितताएं भी परेशानी का कारण बन सकती है और बच्चे पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। यही कारण है, कि प्रेगनेंसी के दौरान बाईं करवट से सोना जरूरी है।

अगर गर्भवती महिला को अस्थमा या स्लीप एपनिया की तकलीफ है, तो बाईं करवट से सोना और भी ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है। इसका मतलब है, कि बच्चे को सामान्य से कम ऑक्सीजन मिलता है और पीठ के बल सोने से आपके बच्चे को मिलने वाली ऑक्सीजन में और बाधा ही आ सकती है। कई अध्ययन यह दर्शाते हैं, कि जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान पीठ के बल सोती हैं, उनमें स्टिलबर्थ की संभावना बढ़ जाती है। 2017 में ‘पीएलओएस वन जर्नल’ में छपे रिकॉर्ड दिखाते हैं, कि अगर मां पीठ के बल सोती है, तो स्टिलबर्थ की संभावना 3.7 गुना बढ़ जाती है। ‘द बीएमजे’ ने एक अध्ययन के अनुसार, कि दाहिने करवट से सोने वाली गर्भवती महिलाओं में स्टिलबर्थ की संभावना में थोड़ी बढ़त देखी गई है। 

लेकिन चाहे बाईं करवट हो या दाईं, 10 महीनों के लंबे समय तक किसी एक करवट से सोना बिल्कुल अच्छा नहीं है। इससे मां की शारीरिक संरचना पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है और शरीर के दर्द और तकलीफ में बढ़त होती है।  इसलिए स्वस्थ आकार में रहने का सबसे अच्छा तरीका है, कि बाईं और दाईं करवट बीच-बीच में बदलती रहें। पर करवट बदलते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें, कि कभी भी लेटे-लेटे ही करवट न बदलें, बल्कि पहले उठ कर बैठें और फिर दूसरी करवट से सोएँ। यह थोड़ा झल्लाहट भरा है पर ऐसा करने से आप खुद को और अपने बच्चे को कई परेशानियों से बचा सकती हैं। इसके साथ ही बच्चे को भी आराम चाहिए होता है। अगर आप बाईं करवट से सो रही हैं, तो बच्चा अधिक जगह की इच्छा में दाहिनी तरफ चला जाएगा। पर अगर आप हमेशा ही ऐसा करेंगी, तो ऐसी ही एक स्थिति पैदा हो जाती है, जिसे ‘राइट साइडेड बेबी’ कहते हैं, जिससे बैक लेबर हो सकता है। राइट साइडेड बच्चे सुविधा के लिए पीछे की ओर चले जाते हैं, जिससे ऐसे परेशानी वाली स्थिति पैदा हो सकती है। यह तकलीफ दायक होता है और इसके कारण होने वाला लंबा लेबर असुविधाजनक हो सकता है। 

प्रेगनेंसी के दौरान बाईं करवट से कैसे सोएं?

बाईं करवट से कैसे सोएं, यह बताने का कोई विशेष तरीका नहीं है। सोने के दौरान एक आरामदायक पोस्चर का पता करना ज्यादा जरूरी है। आपको यह देखना पड़ेगा, कि किस पोजीशन में आपको गहरी नींद आती है। बाईं और दाईं करवट बदलते रहने से बच्चे को भी पेट में घूमने का मौका मिलता है। लेकिन बाईं या दाईं करवट सोने के दौरान आपको हमेशा फैल कर सोना चाहिए। इस खास पोस्चर में, आपको थोड़ा आगे की ओर झुकने की जरूरत है और पेट के बजाय अपने ही हिप बोन के सामने के हिस्से पर रेस्ट करने की जरूरत है। इससे पेट को सहारा मिलेगा और बच्चे को भी आरामदायक पोजीशन ढूंढने में मदद मिलेगी। बेहतर सपोर्ट के लिए ऊपर वाले पैर या हिप बोन के नीचे एक टॉवल को रोल करके सोने से मां और बच्चे को अच्छी जगह मिल जाती है। नीचे वाला पैर सीधा होना चाहिए और ऊपर वाला पैर टॉवल के ऊपर मुड़ा हुआ होना चाहिए। इससे हिप एरिया अधिक खुलता है और बच्चे को आराम करने के लिए अधिक जगह मिलती है। हिप बोन का सहारा लेकर अधिक सोने से साइटिका हो सकता है, जिसमें नसों पर अधिक प्रभाव पड़ सकता है। यह लोअर बैक पेन का एक आम प्रकार है, जो गर्भवती महिला को दर्द और तकलीफ देता है। 

जहां तक बात है, कि बाईं करवट से सोना कब से शुरू करना चाहिए, तो इसका कोई निश्चित समय काल नहीं है। बेहतर यही है, कि जैसे ही महिला को अपनी प्रेगनेंसी का पता चलता है, वह पीठ के बल सोना छोड़ दे। 

मां अपने अजन्मे बच्चे की जितनी अधिक देखभाल करती है, बच्चे के स्वस्थ पैदा होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है। गर्भावस्था के दौरान बाएं या दाएं करवट सोने जैसी छोटी-छोटी बातें, बड़े-बड़े काम कर जाती हैं, जो बात सबसे ज्यादा जरूरी है, वह है – गहरी नींद मिलना। 

यह भी पढ़ें: 

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पूजा ठाकुर

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