गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान सर्वाइकल कैंसर होना

सर्वाइकल कैंसर भी एक प्रकार का कैंसर है जिसका समय से पहले पता लगाना और ट्रीटमेंट करना बहुत जरूरी है। कई देशों में गर्भावस्था के लिए कंसल्टेशन देने से पहले सर्वाइकल कैंसर का डायग्नोसिस किया जाता है ताकि गर्भावस्था के दौरान यह समस्या होने का खतरा न हो। यद्यपि सर्वाइकल कैंसर से बच्चे को कोई भी हानि नहीं होती है या यह गर्भावस्था के किसी भी चरण को प्रभावित नहीं करता है पर बाद के दिनों में इसका इलाज करवाना बहुत जरूरी है क्योंकि अंतिम दिनों में गर्भवती महिला को इससे नुकसान हो सकता है। 

सर्वाइकल कैंसर क्या है?

सर्वाइकल कैंसर दरअसल गर्भाशय का कैंसर होता है। यह समस्या तब शुरू होती है जब सर्विक्स में सेल्स अत्यधिक बढ़ जाते हैं। यह सेल्स तेजी से बढ़ते हैं और कैंसर के शुरूआती चरण तक पहुँच जाते हैं। कुछ मामलों में यह सेल्स एक साल के भीतर ही बहुत तेजी से बढ़ते हैं पर अन्य सामान्य मामलों में रिपोर्ट के अनुसार इन सेल्स को शुरूआती चरण से गंभीर रूप लेने में कुछ साल लगते हैं। 

गर्भावस्था के दौरान सर्वाइकल कैंसर होना कितना आम है?

गर्भावस्था के दौरान सर्वाइकल कैंसर होना बहुत आम नहीं है और डायग्नोस्टिक टेस्ट के माध्यम से लगभग 3% गर्भवती महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर होता है। भारत में साल 2018 में 96000 से भी ज्यादा महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित हुई थीं। 

सर्वाइकल कैंसर के स्टेज

कैंसर की स्टेज का डायग्नोसिस सर्विक्स में ट्यूमर के सेल्स की मैच्योरिटी और इसके फैलाव पर निर्भर करता है। सर्वाइकल कैंसर के कितने स्टेज होते हैं, आइए जानें;

स्टेज 1 – यह सबसे पहला चरण है जिसमें सर्विक्स में कैंसर पाया जाता है। इसे दो उप-चरणों में बांटा गया है:

स्टेज 1 ए –  इस स्टेज में कैंसर कम होता है और इसका टेस्ट माइक्रोस्कोप के नीचे रखकर किया जाता है। 

स्टेज 1 बी – इस चरण में कैंसर सर्वाइकल टिश्यू में होता है लेकिन आगे किसी अन्य आंतरिक अंगों में नहीं फैलता है।

स्टेज 2 – इस स्टेज में कैंसर सर्विक्स के बाहर हेल्दी टिश्यू के चारों तरफ फैलना शुरू कर देता है। इस स्टेज को भी दो भागों में बांटा गया है:

स्टेज 2 ए – इस स्टेज में कैंसर वजाइना के ऊपर फैलता है। 

स्टेज 2 बी – इस चरण में कैंसर सर्विक्स के आसपास के टिश्यू प्रभावित होते हैं। 

स्टेज 3 – इस स्टेज में सर्वाइकल कैंसर सर्विक्स से पेल्विक क्षेत्र के आसपास बढ़ता है। इसके दो भाग हैं;

स्टेज 3 ए – इस स्टेज में कैंसर वजायना के निचले हिस्से में फैलता है।

स्टेज 3 बी – इसमें कैंसर पेल्विक की दीवार में बढ़ता है और किडनी के ट्यूब्स को ब्लॉक कर देता है जिससे किडनी सूख जाती हैं। 

स्टेज 4– यह सर्वाइकल कैंसर की एडवांस स्टेज है जिसमें कैंसर गर्भ के बाहर आंतरिक अंगों तक फैल जाता है। इस चरण को दो भागों में किया गया है:

स्टेज 4 ए – इसमें कैंसर पास के आंतरिक अंगों में फैलता है, जैसे ब्लैडर और रेक्टम।

स्टेज 4 बी – इस स्टेज में कैंसर उन अंगों में फैलता है जो गर्भ से दूर होते हैं, जैसे कि लंग्स।

गर्भावस्था के दौरान सर्वाइकल कैंसर होने के कारण

एक स्वस्थ शरीर में सेल्स अलग होते हैं और नष्ट हो जाते हैं पर जब सेल्स नष्ट होना बंद हो जाते हैं और तेजी से बढ़ते हैं जिस वजह से अब्नॉर्मल तरीके से उनकी वृद्धि होती है। सर्विक्स में लंप्स बनते हैं और अपने आप ही ट्यूमर सेल्स में बदल जाते हैं। ये सेल्स आगे चलकर कैंसर सेल्स का रूप ले लेते हैं जिससे एक महिला को सर्वाइकल कैंसर होता है। 

यहाँ पर सर्वाइकल कैंसर होने के विभिन्न कारण बताए गए हैं, आइए जानें;

  • अलग-अलग लोगों के साथ संबंध बनाने से
  • कम आयु में सेक्शुअली एक्टिव होने से
  • इम्यून सिस्टम कमजोर होने से
  • एचआईवी या एड्स होने से
  • गलत आदतें होने से, जैसे अल्कोहल पीने से/ड्रग्स लेने से और ज्यादा समय तक स्ट्रेस में रहने से
  • कई बार गर्भवती होने से
  • सेक्सुअली ट्रांसमिटेड रोग (एसटीडी) होने से, जैसे क्लैमाइडिया, गोनोरिया और सिफिलिस
  • कम आयु में गर्भवती होने से (अक्सर 17 साल की आयु से पहले)
  • धूम्रपान या स्मोकिंग करने से
  • जन्म नियंत्रण दवाइयां लेने से
  • एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमावायरस) इन्फेक्शन होने से

एचपीवी इन्फेक्शन 100 प्रकार के होते हैं और इनमें से 13 सर्वाइकल कैंसर को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। 

सर्वाइकल कैंसर होने के लक्षण

सर्वाइकल कैंसर होने के लक्षण निम्नलिखित हैं, आइए जानें; 

  • सेक्स के दौरान दर्द होना।
  • पेट व पेल्विस में दर्द होना।
  • डाउचिंग, सेक्स या पीरियड्स के दौरान वजायना से अब्नॉर्मल ब्लीडिंग होना।
  • वजायना से अब्नॉर्मल डिस्चार्ज होना।

सर्वाइकल कैंसर का डायग्नोसिस

गर्भावस्था के दौरान सर्वाइकल कैंसर का डायग्नोसिस पैप स्मीयर टेस्ट से किया जाता है। इसमें डॉक्टर एक विशेष इंस्ट्रूमेंट का उपयोग करते हैं जिसे कॉल्पोस्कोपी कहा जाता है जिससे सर्विक्स के टेस्ट किए हुए सेल्स साफ किए जाते हैं। 21 साल से कम आयु की महिलाओं का डायग्नोसिस प्री-कैंसर सेल्स की जांच करने के लिए किया जाता है। 

टिश्यू के सैंपल्स लेने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित चीजों का उपयोग कर सकते हैं, आइए जानें;

  • पंच बायोप्सी – इसमें सर्वाइकल टिश्यू को निकालने के लिए एक नुकीले टूल का उपयोग किया जाता है।
  • एंडोसर्वाइकल क्यूरेटेज – इसमें सर्विक्स से टिश्यू का सैंपल निकालने के लिए एक पतले ब्रश या क्यूरेट (चम्मच जैसा टूल) का उपयोग किया जाता है।
  • इलेक्ट्रिक वायर लूप – इसमें टिश्यू के सैंपल लेने के लिए सर्विक्स में कम वोल्टेज की एक इलेक्ट्रिक वायर डाली जाती है। इस तरीके में मरीज को लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है।
  • कोन बायोप्सी – यह टिश्यू के सैंपल निकालने का एक ऐसा तरीका है जिसे सर्विक्स की गहरी लेयर्स में किया जाता है और फिर टिश्यू लैब में टेस्टिंग के लिए भेजे जाते हैं। यह टेस्ट अस्पताल में मरीज को एनेस्थीसिया देकर किया जाता है।

एचपीवी डीएनए इन्फेक्शन टेस्ट नामक एक प्रकार का डायग्नोसिस भी है जिसमें सेल्स की अब्नॉर्मलिटीज स्कैन होती हैं और अन्य प्रकार के एचपीवी इन्फेक्शन से मैच की जाती हैं। एचपीवी इन्फेक्शन को सर्वाइकल कैंसर का कारण भी जाना जाता है और सर्विक्स सेल्स में एचपीवी अब्नॉर्मलिटीज का टेस्ट दूसरे प्रकार का डायग्नोसिस होता है। 

यदि आपके लैब टेस्ट या अस्पताल में डायग्नोसिस में डॉक्टर को सर्वाइकल कैंसर का पता चलता है तो वे अन्य डायग्नोसिस करने की सलाह देते हैं ताकि इसकी स्टेज और गंभीरता का पता किया जा सके। इसके सामान्य टेस्ट कुछ इस प्रकार हैं; 

  • इमेजिंग टेस्ट – इस टेस्ट में डॉक्टर एक्स-रे, सी टी स्कैन, मैग्नेटिक रेसिस्टेन्स इमेजिंग (एमआरआई) और पॉजिट्रॉन एमीशन टोमोग्राफी (पीइटी) से पता किया जाता है कि सर्विक्स में कैंसर कहाँ तक फैला है।
  • विजुअल टेस्ट – इस टेस्ट में सर्वाइकल कैंसर की गंभीरता व समस्या जानने के लिए ब्लैडर और रेक्टम को स्कैन करने के लिए विशेष स्कोप्स का उपयोग किया जाता है।

सर्वाइकल डिस्प्लेसिया क्या है?

जब सर्विक्स की ऊपरी परत में सेल्स अब्नॉर्मल तरीके से बढ़ते हैं तो इस समस्या को सर्वाइकल डिस्प्लेसिया कहते हैं। डिस्प्लेसिया कैंसर होने से पहले का चरण है जिसमें सेक्स से होने वाला ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) इन्फेक्शन गंभीर रूप से होता है। यह किसी भी आयु में होने के लिए जाना जाता है और ज्यादातर 30 या उससे कम आयु की महिलाओं में होता है। सर्वाइकल डिस्प्लेसिया में कोई भी लक्षण नहीं होते हैं और गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से पैप टेस्ट करवाने से इसका पता लगाया जा सकता है। 

यदि सर्वाइकल डिस्प्लेसिया की जांच व इसका उपचार नहीं करवाया गया तो इससे बाद में सर्वाइकल कैंसर हो सकता है। 

डायग्नोसिस करने के बाद क्या होता है?

डायग्नोसिस के बाद ट्रीटमेंट सर्वाइकल डिस्प्लेसिया की गंभीरता पर निर्भर करता है। माइल्ड समस्याओं के लिए डॉक्टर पैप ट्रीटमेंट से मॉनिटर करना जारी रखते हैं और गंभीर मामलों में क्रायोसर्जरी, इलेक्ट्रो-कॉटेराइजेशन और लेजर सर्जरी जैसे ट्रीटमेंट का उपयोग किया जाता है। 

पैप टेस्ट या एचपीवी डीएनए टेस्ट साथ ट्रीटमेंट करवाने के बाद 6 से 12 महीनों के बीच लगातार डॉक्टर से जांच करवाना जरूरी है। 

क्या कीमोथेरेपी से गर्भ में बच्चे पर प्रभाव पड़ता है?

गर्भावस्था की पहली तिमाही में कीमोथेरेपी करवाना गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए हानिकारक होती है क्योंकि इस चरण में बच्चे के अंग विकसित होते हैं। दूसरी तिमाही में कीमोथेरेपी से बच्चे पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि इस समय प्लेसेंटा बच्चे को कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट्स से सुरक्षित रखता है और कुछ प्रकार के ड्रग्स को खून में जाने से रोकता है। 

गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में कीमोथेरेपी करवाने से इसके साइड-इफेक्ट्स का प्रभाव गर्भवती महिला पर पड़ते हैं जिनसे बच्चे को भी हानि होती है। 

सर्वाइकल कैंसर से होने वाले खतरे

कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट के दौरान आपको कुछ खतरे भी हो सकते हैं, आइए जानें; 

  • गर्भ में बच्चे की मृत्यु
  • बच्चे में जन्म से संबंधित विकार
  • डिलीवरी के दौरान ब्लड सेल्स कम हो जाना
  • सर्वाइकल इन्फेक्शन का खतरा होना

सर्वाइकल कैंसर के ट्रीटमेंट

सर्वाइकल कैंसर के लिए कीमोथेरेपी के अलावा अन्य ऑप्शन भी हैं, आइए जानें;

  • कीमोथेरेपी के साथ रेडिएशन थेरेपी ट्रीटमेंट भी होता है।
  • हर्ब्स और कुछ विटामिन का उपयोग करें।
  • डायट में बदलाव करें।
  • एक्यूपंक्चर और मालिश करने जैसे उपचारों का उपयोग करें।
  • क्लीनिकल ट्रायल्स करें।

क्लीनिकल ट्रायल्स में अक्सर अन्टेस्टेड प्रोसीजर होते हैं जिसका उपयोग कैंसर के ट्रीटमेंट के लिए अन्य ऑप्शन की रिसर्च में किया जाता है। यद्यपि यह उपयोगी है पर इससे खतरे भी हो सकते हैं। 

आप सर्वाइकल कैंसर के लिए कोई भी ट्रीटमेंट चुनने से पहले इसके बारे में डॉक्टर या मेडिकल स्पेशलिस्ट से बात करें क्योंकि इनमें से कुछ कॉम्प्लिमेंट्री हैं और मेडिकली स्वीकृति नहीं हैं। 

गर्भावस्था के विभिन्न चरणों के आधार पर सर्वाइकल कैंसर के ट्रीटमेंट

सर्वाइकल कैंसर का ट्रीटमेंट ट्यूमर की जगह, गंभीरता, आपकी सेहत और गर्भावस्था की तिमाही पर निर्भर करता है। गर्भावस्था के हर चरण में महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर के अलग-अलग ट्रीटमेंट के बारे में यहाँ बताया गया है, आइए जानें;

  1. गर्भावस्था के शुरूआती चरण में सर्वाइकल कैंसर का ट्रीटमेंट

गर्भावस्था के शुरूआती चरण में सर्वाइकल कैंसर के ट्रीटमेंट के लिए रूटीन पैप टेस्ट के बाद बायोप्सी का उपयोग किया जाता है। इस चरण के दौरान सर्विक्स में ट्यूमर को हटाने और हेल्दी टिश्यू के लिए सर्जरी की जाती है। इसमें कोई खतरा नहीं है और इससे माँ व बच्चे को भी कोई हानि नहीं होती है। 

  1. दूसरी और तीसरी तिमाही में सर्वाइकल कैंसर का ट्रीटमेंट

इस चरण में आवश्यक टीटमेंट के लिए कीमोथेरेपी के साथ रेडिएशन थेरेपी भी होती है। ट्रीटमेंट के ये तरीके अक्सर सुरक्षित होते हैं और गर्भावस्था की दूसरी व तीसरी तिमाही में इससे बच्चे को कोई भी हानि नहीं होती है। 

  1. गर्भवती महिला में छोटे ट्यूमर का ट्रीटमेंट

गर्भवती महिला में छोटे ट्यूमर के लिए दो प्रकार के ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं, जैसे कोन बायोप्सी और ट्रैकेलेक्टॉमी। चूंकि ट्रैकेलेक्टॉमी से बच्चे को खतरे हो सकते हैं और ऑपरेशन के दौरान बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है इसलिए गर्भावस्था में यह ट्रीटमेंट कराने की सलाह नहीं दी जाती है। इस दौरान महिलाओं को कोन बायोप्सी कराने के लिए ही कहा जाता है। इस तरीके में सर्विक्स से टिश्यू के कोने के भाग को टेस्ट व डायग्नोसिस के लिए निकाला जाता है। 

  1. गर्भवती महिला में बड़ा ट्यूमर होने का ट्रीटमेंट

बड़े ट्यूमर के इलाज के लिए डॉक्टर कीमोथेरेपी करवाने की सलाह देते हैं। आपको यह डिलीवरी से पहले या दूसरी व तीसरी तिमाही की शुरुआत में कराने के लिए कहा जा सकता है। 

सावधानियां

गर्भवती महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का ट्रीटमेंट करने के लिए कोई भी एक तरीका नहीं है। ट्रीटमेंट के तरीके कैंसर के स्टेज, इसकी गंभीरता और मरीज के पूरे स्वास्थ्य पर निर्भर करते हैं। सामान्य महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर पर किए गए पिछले क्लीनिकल ट्रायल्स की स्टडीज और डेटा का उपयोग गर्भावस्था के दौरान सर्वाइकल कैंसर के ट्रीटमेंट में देरी या उपचार में सहायता के लिए किया जाता है।

यदि आपको सर्वाइकल कैंसर गंभीर रूप से हुआ है तो डॉक्टर अबॉर्शन करवाने की सलाह भी दे सकते हैं। 

सर्वाइकल कैंसर से बचाव

सर्वाइकल कैंसर को बढ़ने से रोकने के कई तरीके हैं। पता लगने के तुरंत बाद इसे करना ही सबसे सही तरीका है ताकि यह कैंसर बढ़ने न पाए। इससे बचाव के लिए सबसे सामान्य तरीके कुछ इस प्रकार हैं, आइए जानें;

  • यौन संबंधों के दौरान कॉन्डोम का उपयोग करें।
  • कम आयु में शारीरिक संबंध बनाने से बचें या एक से अधिक लोगों के साथ यौन संबंध न बनाएं।
  • स्मोकिंग यानी धूम्रपान न करें और ड्रग्स न लें।
  • जिसे एचपीवी इन्फेक्शन हुआ है उसके संपर्क में आने से बचें।
  • 9 से 12 साल की आयु के बीच एचपीवी वैक्सीन लेना शुरू करें।

यह सलाह दी जाती है कि सर्वाइकल कैंसर के संकेतों का डायग्नोसिस करने के लिए हर महिला को पैप टेस्ट या एचपीवी डीएनए टेस्ट कराना चाहिए। यदि किसी महिला ने 21 साल से अधिक आयु में एक से अधिक व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाए हैं तो उसे सर्वाइकल कैंसर से बचने के लिए नियमित रूप से वैक्सीन लेने के लिए कहा जाता है। 

आप डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लें और सर्वाइकल कैंसर से बचने के लिए नियमित रूप से पैप स्क्रीनिंग टेस्ट करवाएं। हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने, धूम्रपान न करने और 21 साल से कम आयु में सेक्स न करने से सर्वाइकल डिस्प्लेसिया होने की संभावना कम होती है। एचपीवी इन्फेक्शन और सर्वाइकल डिस्प्लेसिया से बचने के लिए नियमित रूप से वैक्सीन लेना बहुत जरूरी है। 

ट्रीटमेंट के दौरान आप डॉक्टर से अपनी पैलिएटिव देखभाल के लिए पूछ सकती हैं जो दर्द कम करने और अन्य लक्षणों में आराम देने में मदद करती है। 

आप सर्वाइकल कैंसर के डायग्नोसिस का टेस्ट करवाने के लिए इस बारे में किसी अन्य डॉक्टर से भी सलाह लें। यदि गर्भावस्था के दौरान आपको सर्वाइकल कैंसर होता है तो आप इसके टेस्ट के बारे में डॉक्टर से पूछें क्योंकि इसके ट्रीटमेंट के तरीके आपके स्वास्थ्य के अनुसार अलग-अलग भी हो सकते हैं। 

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