गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय (यूटरस) – कार्य, पोजीशन और साइज

महिलाओं के शरीर में यूरिनरी ब्लैडर और रेक्टम के बीचों बीच पेल्विस में एक रिप्रोडक्टिव ऑर्गन (प्रजनन अंग) होता है जिसे गर्भाशय कहते हैं। इस अंग का शेप नाशपाती के जैसा होता है जिसकी लंबाई 8 सेंटीमीटर, चौड़ाई 5 सेंटीमीटर तक होती है और यह लगभग 4 सेंटीमीटर तक मोटा होता है। गर्भाशय का वजन लगभग 80 से 120 मिलीलीटर तक होता है। रीप्रोडक्टिव सिस्टम (प्रजनन प्रणाली) के अंगों के साथ गर्भाशय रिप्रोडक्शन (प्रजनन), पीरियड्स, जायगोट के इम्प्लांटेशन, गर्भावधि, लेबर और बच्चे की डिलीवरी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह महिलाओं के शरीर में हॉर्मोनल बदलावों के अंतर्गत प्रजनन के अलग-अलग चरणों को पूरा करने में मदद करता है। 

गर्भाशय (यूटरस) क्या होता है और यह कैसे काम करता है?

आमतौर पर गर्भाशय के 3 हिस्से होते हैं; फंडस, बॉडी और सर्विक्स। इसे अच्छी तरह से समझने के लिए आप उदाहरण के रूप में नाशपाती को एक टेबल पर उल्टा करके रखकर देखें। नाशपाती का ऊपरी गोल व मोटा भाग फंडस की तरह होता है, निचला पतले ट्यूब जैसा भाग सर्विक्स और इन दोनों के बीच का भाग गर्भाशय की बॉडी जैसा होता है। गर्भाशय के दोनों तरफ बाजुओं जैसे 2 एक्सटेंशन्स होते हैं जो फंडस और बॉडी से जुड़े रहते हैं। इन एक्सटेंशन्स को फैलोपियन ट्यूब कहा जाता है। 

इसमें ओवरी भी एक प्रकार का विशेष स्ट्रक्चर होता है जो ओवम या अंडे को उत्पन्न करती है। आपके शरीर में ओवरी जन्म से पहले ही ओवा उत्पन्न करने लगती है पर यह प्यूबर्टी या पीरियड्स के बाद से तैयार होना शुरू होते हैं और रिलीज होते हैं। हर महीने ओवरी से एक डिंब रिलीज होता है और वह फैलोपियन ट्यूब के माध्यम से युटरीन कैविटी या गर्भ में जाता है। उसके बाद यदि एक महिला असुरक्षित सेक्स करती है तो यह अंडा पुरुष के स्पर्म (शुक्राणु) से जुड़ जाता है। 

अंडा स्पर्म से कहाँ पर मिलता है? सेक्स के दौरान महिला की वजाइना में बहुत सारा स्पर्म आता है जो सर्विक्स के माध्यम से शरीर के अंदर जाकर फैलोपियन ट्यूब में अंडे से मिलते हैं और वहाँ पर कोई एक स्पर्म अंडे के अंदर जाकर फर्टिलाइज होता है। इसके परिणामस्वरूप जायगोट का निर्माण होता है और यह जायगोट आगे चलकर भ्रूण व फिर बच्चे के रूप में विकसित होता है। 

यूटरस कैसे काम करता है?

गर्भाशय कैसे काम करता है, यह जानना बहुत इंट्रेस्टिंग है। गर्भाशय अंदर से पूरा खाली होता है जिसकी दीवारें 3 परतों से बनी होती हैं। इसकी बाहरी सबसे पहली लेयर सबसे पतली होती है और अंदर की दोनों लेयर को ढककर रखती है। बीच लेयर मांसपेशियों से बनी होती है जो बीच का मुख्य भाग होता है और यह थोड़ा मोटा भी होता है। यह लेयर गर्भाशय की दीवार को ताकत प्रदान करती है। गर्भाशय के बीच की लेयर बढ़ते बच्चे को संभालने के लिए विस्तृत होती है और लेबर के दौरान बच्चे को बाहर निकालने के लिए सिकुड़ने लगती है। 

गर्भाशय की अंतिम व सबसे अंदर की पतली लेयर को एंडोमेट्रियम कहा जाता है। यह लेयर सबसे ज्यादा विशेष है और हॉर्मोनल बदलावों पर प्रतिक्रिया देने के लिए सबसे ज्यादा एक्टिव रहती है। गर्भाशय के दीवार की तीसरी लेयर हर महीने बनती है और गर्भाधान व गर्भावस्था के लिए खुद को तैयार करती है जिसमें बच्चे के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक फर्टिलाइज्ड अंडा जाकर इम्प्लांट यानी प्रत्यारोपित होता है। प्यूबर्टी के कई महीनों बाद यदि इस लेयर में अनफर्टिलाइज्ड अंडा जाता है तो ऐसी स्थिति में अंदर की यह लेयर खून के साथ निकल जाती है और इसी को पीरियड्स कहा जाता है। इसकी पूरी प्रक्रिया को मासिक धर्म चक्र कहा जाता है।  

एक फर्टिलाइज्ड अंडा अंदर जाकर एंडोमेट्रियम में प्रत्यारोपित हो जाता है। अब यह प्लेसेंटा और भ्रूण का निर्माण करने के लिए विकसित होता है। प्लेसेंटा भ्रूण को न्यूट्रिशन प्रदान करने के लिए अम्ब्लिकल कॉर्ड के द्वारा गर्भाशय के ब्लड वेसल्स से जुड़ जाती है। इसी के साथ एक महिला के शरीर में हॉर्मोनल बदलाव होता है जिसकी वजह से अन्य अंडे रिलीज (जिसे ओव्यूलेशन कहते हैं) होना बंद हो जाते हैं और साथ ही पीरियड्स भी अस्थायी रूप से नहीं आता है जिससे गर्भावस्था निश्चित होती है। 

गर्भाशय में ब्लड वेसल्स और बहुत सारी नर्व्स का नेटवर्क होता है। पीरियड्स और लेबर के दौरान मांसपेशियों की लेयर में संकुचन होने पर इन नर्व्स की वजह से दर्द होता है। 

प्रेगनेंसी के दौरान यूटरस क्या करता है

गर्भावस्था एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें अच्छी देखभाल की जरूरत होती है। इस दौरान शरीर में बहुत सारे हॉर्मोन्स व केमिकल मीडिएटर रिलीज होते हैं जिन्हें गर्भधारण करने और गर्भावस्था को बनाए रखने के लिए बेहतर सिंक्रनाइज होने की जरूरत होती है। इसके लिए यूटरस के निम्नलिखित कुछ कारक शामिल हैं, आइए जानें;

  • यूटरस स्थान देता है और सपोर्ट करता है: गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय बच्चे को सहज रूप से बढ़ने के लिए जगह देता है और सुविधाजनक वातावरण प्रदान करता है जिसे एमनियोटिक सैक (पानी की थैली) कहते हैं।
  • यूटरस बच्चे को माँ से जोड़ता है: गर्भाशय प्लेसेंटा और अम्ब्लिकल कॉर्ड के माध्यम से बच्चे व माँ को सिर्फ आवश्यक न्यूट्रिशन प्रदान करने के लिए ही नहीं जोड़ता है बल्कि यह भ्रूण के खून से अपशिष्ट पदार्थ निकाल कर इसे तब तक साफ करने में मदद करता है जब तक भ्रूण के आंतरिक अंग न बन जाएं।
  • यूटरस मस्तिष्क तक संकेत पहुँचाता है: गर्भाशय के संकेत की मदद से मस्तिष्क पूरी गर्भावस्था में हॉर्मोन्स रिलीज करता है जिससे गर्भाशय आराम की स्थिति में रहता है। समय पूरा होने के बाद एक बार फिर गर्भाशय की मदद से मस्तिष्क को संकेत मिलते हैं कि बच्चा जन्म लेने के लिए तैयार है और तब हॉर्मोन्स में बदलाव आता है और लेबर के लिए गर्भाशय में संकुचन होना शुरू हो जाता है।
  • लेबर: लेबर पूरी तरह से एक महिला के गर्भाशय की मांसपेशियों के प्रभावी कॉन्ट्रैक्शन और रिट्रैक्शन पर निर्भर करता है। इस दौरान संकुचन के बढ़ने से बच्चा धीरे-धीरे बाहर की ओर आता है।
  • हेमोस्टेसिस: जन्म के बाद गर्भाशय सिकुड़ कर बॉल की तरह कड़क हो जाता है। इसका आकार बदलने से ब्लीडिंग कम हो जाती है और यह दोबारा से पहले जैसी स्थिति में आ जाता है।

गर्भावस्था के दौरान यूटरस में क्या बदलाव आते हैं

प्रकृति गर्भावस्था को स्वस्थ रखने के लिए बहुत खूबसूरती से माँ के शरीर की पूरी देखभाल करती है। इस दौरान बदलाव सिर्फ प्रजनन अंगों के आकार (ऐनाटॉमिकल बदलाव) और फंक्शन (सायक्लॉजिकल बदलाव) में ही नहीं होते हैं बल्कि यह बदलाव पूरे शरीर की अन्य प्रणालियों में भी होते हैं। एक माँ के शरीर में यह बदलाव बच्चे के विकास और वृद्धि होने की वजह से होते हैं। 

1. पोजीशन में बदलाव

गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में बहुत सारे बदलाव होते हैं जिससे महिला के शरीर में प्रभाव पड़ता है और अन्य अंग प्रणालियों  बदलाव आते हैं। गर्भावस्था को बनाए रखने के लिए शरीर में बहुत सारे बदलाव जरूरी होते हैं और अन्य बदलाव थोड़े बहुत साइड-इफेक्ट्स होते हैं। इन बदलावों की वजह से गर्भवती महिला को कई सुविधाएं होती हैं। 

सामान्य रूप से गर्भावस्था के 8वें सप्ताह में महिलाओं का गर्भाशय आगे की ओर झुकी हुई पोजीशन में आ जाता है। गर्भाशय अक्सर ब्लैडर के ऊपर बढ़ता है जिससे ब्लैडर पर दबाव पड़ता है और यह भरा-भरा लगता है। ब्लैडर पर दबाव के कारण गर्भावस्था की शुरूआत में महिलाओं को बार-बार पेशाब लगती है। कुछ समय के बाद गर्भाशय सीधा हो जाता है और समय पूर्ण होने तक पेट की मांसपेशियों की मदद से यह रीढ़ के विपरीत सीधा ही रहता है। 

2. गर्भावस्था के दौरान यूटरस का साइज

महिला के गर्भाशय का सामान्य आकार 7x5x3 सेंटीमीटर होता है और गर्भावस्था के दौरान यह धीरे-धीरे बढ़ कर 35x25x22 सेंटीमीटर तक बड़ा हो जाता है। गर्भावस्था में महिलाओं का गर्भाशय लगभग 5 से 6 गुना बढ़ जाता है। 

  • पहली तिमाही में यूटरस का साइज: गर्भावस्था की पहली तिमाही में महिला के गर्भाशय का आकार लगभग एक ग्रेपफ्रूट (चकोतरा) जितना होता है। गर्भाशय आंतरिक रूप से बढ़ते हुए महिला के पेल्विस की ओर बढ़ना शुरू करता है। ऐसा लगभग गर्भावस्था के 12वें सप्ताह में होता है।
  • दूसरी तिमाही में यूटरस का साइज: गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में गर्भाशय एक पपीते के जितना बड़ा हो जाता है और इस दौरान यह पेल्विस तक ही सीमित नहीं रहता है बल्कि महिला के ब्रेस्ट व तोंद के बीच तक बढ़ता है।
  • तीसरी तिमाही में यूटरस का साइज: गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में महिला का गर्भाशय लगभग एक खरबूज जितना बड़ा हो जाता है। इस दौरान यह महिला के रिब केज से लेकर प्यूबिक एरिया तक बढ़ता है।
  • प्रेगनेंसी के बाद यूटरस का साइज: गर्भावस्था के बाद एक महिला का गर्भाशय पहले की तरह ही पेल्विस के अंदर अपने वास्तविक आकार में आ जाता है। इस प्रक्रिया को इन्वोलुशन कहते हैं और इसे पूरा होने में लगभग 6 सप्ताह लगते हैं।

3. गर्भाशय का माप

गर्भावस्था के 12वें सप्ताह तक गर्भाशय को नहीं मापा जा सकता है क्योंकि इस समय तक यह पेल्विक कैविटी के अंदर सीमित रहता है। 12 सप्ताह के बाद जब गर्भाशय के फंडस को पकड़ा जा सकता है यह पेट का एक अंग बन जाता है। इससे डॉक्टर को भ्रूण का विकास और एमनियोटिक द्रव का वॉल्युम चेक करने में मदद मिलती है। गर्भावस्था के 34वें सप्ताह तक प्यूबिक बोन की दूरी फंडस तक लगभग सेंटीमीटर में जुड़ी होती है। इस समय जांच के लिए एक गर्भवती महिला अपने पैरों को घुटनों तक मोड़कर और पेट को आरामदायक स्थिति में रखकर लेटती है। 

महिला की जांच करते समय डॉक्टर हाथ से फंडस को छूकर महसूस करने का प्रयास करते हैं। गर्भस्वस्था 12-14 सप्ताह में फंडस लगभग प्यूबिक बोन के ऊपर महसूस होना चाहिए। 2022वें सप्ताह में यह महिला की तोंदी (नेवल) में महसूस होगा और लगभग 34-36 सप्ताह में यह पेट के ऊपरी भाग या एपीगैस्ट्रिक क्षेत्र तक पहुँच जाना चाहिए। यदि उचित समय तक एक गर्भवती महिला का गर्भाशय उतना बड़ा नहीं होता है जितना होना चाहिए तो इसका यह मतलब है कि या तो गर्भाशय छोटा है या फिर एमनियोटिक द्रव की मात्रा कम है। 

 गर्भावस्था के दौरान आप अपने गर्भाशय के आकार का पता अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रा सोनोग्राफी से भी लगा सकती हैं। 

4. गर्भावस्था के दौरान यूटरस के अंदर के बदलाव

गर्भाशय बच्चे के विकास और गर्भाशय में मौजूद टिश्यू व ब्लड वेसल के बढ़ने से बड़ा होता है। इसी के अनुसार गर्भाशय का आकार निम्नलिखित माप से बदलता है, आइए जानें; 

– वजन: गर्भाशय के वजन में 20 फोल्ड बढ़ते हैं (50 → 1000 ग्राम)

– भार: 1000 फोल्ड बढ़ते हैं (4 → 4000 मिलीलीटर)

– जगह: गर्भाशय जो अक्सर पेल्विक का अंग होता है, वह गर्भावस्था के 12 सप्ताह से पेट का अंग बन जाता है। 

– ब्लड फ्लो: 10 फोल्ड बढ़ते हैं (50 → 500 मिलीलीटर/मिनट)

– आकार: गर्भावस्था के दूसरे महीने में गर्भाशय का आकार लंबे से ओवेल हो जाता है और 12वें सप्ताह में इसका आकार गोल हो जाता है। बाद में इसका आकार वापस ओवेल हो जाता है और समय पूरा होने तक यह फिर से लंबा हो जाता है। 

गर्भावस्था के दौरान यूटरस में समस्याएं

महिलाओं को गर्भाशय में बहुत सारी समस्याएं हो सकती हैं जिससे उनकी गर्भावस्था में भी प्रभाव पड़ता है, जिसमें एक तरफ यह सामान्य होती हैं और दूसरी तरफ यह समस्याएं गर्भाशय के फंक्शन को प्रभावित करती हैं। इन में से कुछ समस्याएं जन्मजात दोष हैं और कुछ समस्याएं गर्भाशय से संबंधित हो सकती हैं। 

गर्भावस्था के दौरान यूटरस में अब्नॉर्मलिटी

गर्भाशय के कुछ सामान्य विकारों में निम्नलिखित शामिल हैं, आइए जानें;

नाम सर्वे के अनुसार महिलाओं में यह होने की आवृत्ति समस्या
युनिकौरनुएट गर्भाशय 5% इस समस्या में गर्भाशय आधे आकार का होता है जिसमें गर्भावस्था पूरी होने में कठिनाई होती है।
युटरीन डिडेलफिस 11% गर्भाशय के ठीक से विकसित न होना जिसमें मुलेरियन डक्ट्स एक में नहीं मिल पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप क्रेविसिस दोगुने हो जाते हैं जिससे गर्भावस्था में कठिनाई होती है।
बायकौरनुएट गर्भाशय 39% यह एक सबसे आम सामान्यता है जिसमें गर्भाशय दो होते हैं और एक वजाइना या सर्विक्स होता है।
सेपरेट गर्भाशय 34% इसमें अधूरा या अपूर्ण लोंगीटुडनल युटरीन कैविटी सेप्टम होता है
सही गर्भाशय 7% सामान्य रूप से विकसित गर्भाशय की तुलना में हल्का सा झुका हुआ गर्भाशय
हाइपोप्लास्टिक 4% इस समस्या में छोटा और अनुचित तरीके से गर्भाशय विकसित होता है या किसी-किसी मामले में गर्भाशय विकसित ही नहीं होता है।

गर्भाशय में कुछ अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे;

गर्भाशय में कुछ अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं, आइए जानें;

1. सर्वाइकल अक्षमता: इस समस्या में सर्वाइकल ओपनिंग (गर्भाशय ग्रीवा का ऊपरी भाग) बंद नहीं रहता है जिसके परिणामस्वरूप गर्भावस्था के शुरूआती समय में मिसकैरेज या नियत तारीख के आसपास प्रीमैच्योर डेलिवरी होती है। इसमें आपको समय से पहले संकुचन या वजायना में ब्लीडिंग हो सकती है। इस समस्या को सर्वाइकल एन सरक्लेज से ठीक किया जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है यह गोल टांके होते हैं और इसे अवधि पूर्ण होने तक सर्विक्स को बंद करने के लिए लगाया जाता है।

2. युटरीन सिनैकी – ऐशरमैन विकार: डी एंड सी प्रोसीजर (डायलेशन और क्यूरेटेज) के दौरान एंडोमेट्रियम बहुत ज्यादा नष्ट हो जाती है। इससे अंतर्गर्भाशयी चिपक जाता है और यह महिलाओं में इंफर्टिलिटी का कारण बनता है।

3. गर्भाशय लेयोमायोमा (युटरीन फाइब्रॉएड): कई महिलाओं के गर्भाशय में नॉन-कैंसरस वृद्धि होती है जिसकी वजह से अत्यंत गंभीर मामलों में गर्भाशय का आकार बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।

4. गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय की एब्नॉर्मल पोजीशन: यह 4 प्रकार का हो सकता है, जानें यहाँ;

  • एंटीफ्लेक्शन: सामान्य रूप से गर्भाशय थोड़ा सा एंटी-फ्लेक्सेड होता है। इसके अलावा फ्री-फ्लोटिंग अंगों के कारण गर्भाशय पेट में आगे की ओर झुक जाता है। गर्भावस्था की शुरूआत में गर्भाशय कुछ हद तक ज्यादा आगे की ओर मुड़ जाता है। हालांकि कुछ महिलाओं का गर्भाशय अस्वाभाविक रूप से एंटी-फ्लेक्सेड होता है जिससे कभी-कभी ब्लैडर पर ब्लैडर के विपरीत दबाव पड़ता है। यह लेबर के उचित संकुचन को रोक देता है जिससे डिलीवरी में देरी या समस्याएं हो सकती हैं।
  • रेट्रोफ्लेक्शन: इस समस्या में गर्भाशय पीछे रीढ़ की ओर मुड़ जाता है और यह रेक्टम के विपरीत दबाव डालता है। इसके लक्षण हैं, पेट में असुविधा होना, पेल्विक में दबाव पड़ना और सेक्स के दौरान दर्द होना। यदि यह समस्या बहुत ज्यादा गंभीर होती है तो इससे लेबर में भी कठिनाई हो सकती है।
  • सैक्युलेशन: इसमें गर्भवती महिला का गर्भाशय श्रोणि में आता है। यह तब होता है जब भ्रूण को जगह देने के लिए गर्भाशय का निचला हिस्सा बढ़ने लगता है।
  • युटरीन टॉरसन: गर्भावस्था के दौरान, गर्भाशय अपने एक्सिस में ही रहता है (यह ज्यादातर क्लॉकवाइज बढ़ता है और बहुत कम मामलों में यह एंटीक्लॉकवाइज भी बढ़ता है)। इसका रोटेशन बहुत कम डिग्री में होता है। लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में यह 45 डिग्री से अधिक तेजी से भी बढ़ सकता है। इससे महिला के गर्भाशय में मरोड़ आ सकती है। इन मामलों में महिलाओं के गर्भाशय में 720-डिग्री तक रोटेशन होता है। इस समस्या के लक्षण हैं, जैसे लेबर ब्लॉक, आंतों या मूत्र से संबंधित समस्याएं, पेट में दर्द और वजायनल ब्लीडिंग भी हो सकती है। इसमें माँ और बच्चे, दोनों को कॉम्प्लीकेशंस हो सकती हैं।

एब्नॉर्मल यूटरस गर्भावस्था को कैसे प्रभावित कर सकता है?

यदि गर्भाशय की समस्याएं हल्की नहीं है तो इससे गर्भावस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। गर्भाशय एब्नॉर्मल होने से निम्नलिखित कॉम्प्लीकेशंस हो सकती हैं, आइए जानें; 

  • इंफर्टिलिटी (बांझपन) हो सकती है।
  • पहली और दूसरी तिमाही में मिसकैरेज हो सकता है।
  • मैलप्रेजेंटेशन (जब बच्चे की पोजीशन नॉर्मल न हो) हो सकता है।
  • गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास रुक सकता है या मृत बच्चा पैदा हो सकता है।
  • खराब और प्रीमैच्योर मेम्ब्रेन होने के कारण समय से पहले जन्म हो सकता है।
  • एक्टोपिक गर्भावस्था की संभावना होना, यह एक ऐसी समस्या है जिसमें अंडा अपने आप गर्भाशय से बाहर, आमतौर पर फैलोपियन ट्यूब में ही प्रत्यारोपित हो जाता है।
  • गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में गर्भाशय में दर्द हो सकता है।
  • रीनल समस्याएं: युरिकॉरनूएट गर्भाशय के साथ लगभग 40% महिलाओं में रीनल (किडनी से संबंधित) समस्याएं होती हैं और इसकी जांच करना भी जरूरी है।

गर्भावस्था के दौरान यूटरस को स्वस्थ रखने के टिप्स

हेल्दी गर्भाशय होने का मतलब है स्वस्थ गर्भावस्था। यहाँ कुछ टिप्स दिए हैं जिनकी मदद से आप अपने गर्भाशय को स्वस्थ रख सकती हैं, आइए जानें; 

1. काम

गर्भावस्था में यदि कोई भी कॉम्प्लिकेशन नहीं है तो कई महिलाएं डिलीवरी तक ऑफिस में काम करना जारी रख सकती हैं (अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और अमेरिकन कॉलेज ऑफ ओब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स, 2012)। आपको इस दौरान कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे तनाव हो सकता है। इस दौरान आप भी काम न करें और न ही खेलें ताकि आपको थकान हो। यदि आपकी गर्भावस्था में कॉम्प्लीकेशंस हैं या आपकी पिछली गर्भावस्था में कॉम्प्लिकेशन थी तो आपको पर्याप्त आराम करने की जरूरत है। 

2. एक्सरसाइज

सामान्य तौर यदि गर्भवती महिलाएं बहुत ज्यादा एक्सरसाइज करती हैं तो उन्हें चोट लग सकती है या थकान भी हो सकती है। जब तक डॉक्टर न कहें तब तक इस दौरान आपको नियमित रूप से एक दिन में लगभग 30 मिनट तक ही कम और हल्की एक्टिविटीज करनी चाहिए। 

3. सी फूड (समुद्री भोजन) का सेवन

लगभग सभी मछली और शेलफिश में पारा होता है। इसलिए गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वे कुछ विशेष प्रकार की मछली का सेवन न करें जिसमें मिथाइल पारा होता है। इन मछलियों में शार्क, स्वोर्डफिश, किंग मैकेरल और टाइल मछली शामिल हैं। गर्भवती महिलाओं को एक सप्ताह में 12 औंस या दो कैन ट्यूना से ज्यादा नहीं खाना चाहिए और अल्बाकोर या “व्हाइट” ट्यूना के 6 औंस से अधिक न खाएं।

4. यात्रा

अमेरिकन कॉलेज ऑफ ओब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट (2010) ने गर्भावस्था के दौरान गाड़ियों में सफर करने वाली महिलाओं के लिए रेस्ट्रेन्ट का उपयोग करने के कुछ निर्देश दिए हैं, आइए जानें; 

  • गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कार में सफर करते समय 3 पॉइंट रिस्ट्रेन्ट (सीट-बेल्ट) को ठीक से पहनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • गर्भावस्था के दौरान महिलाएं रिस्ट्रेन्ट बेल्ट का ऊपरी भाग अपने पेट के नीचे और जांघों के ऊपर रखें।
  • गर्भवती महिलाएं बेल्ट को सुविधाजनक रूप से लगाएं।
  • कंधे की बेल्ट भी ब्रेस्ट के बीच दृढ़ रहनी चाहिए। जानकारियों के अनुसार यदि कार में गर्भवती महिला है तो एयरबैग न निकालें।
  • यदि आपकी गर्भावस्था में कोई भी कॉम्प्लिकेशन नहीं है तो आप 36वें सप्ताह तक भी हवाई जहाज में सफर कर सकती हैं। विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के दौरान कुछ महत्वपूर्ण जोखिम हो सकते हैं। इस समय कुछ इन्फेक्शन की वजह से विकास से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए यात्रा करने से पहले आप इनके बारे में जान लें।

5. फिजिकल कॉन्टैक्ट

गर्भावस्था के दौरान सेक्स करना हानिकारक नहीं है पर यदि महिला में गर्भपात, प्लेसेंटा प्रिविया या प्रीटर्म लेबर का खतरा हो तो इससे बचना चाहिए। गर्भावस्था में विशेष रूप से अंतिम दिनों में संभोग करना हानिकारक नहीं है। हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था में फेटल एयर एम्बोलिज्म के बारे में बताया गया है जिसके परिणामस्वरूप ओरल सेक्स के दौरान वजाइना में हवा जा सकती है और इससे महिला को समस्याएं भी हो सकती हैं। 

6. वैक्सीनेशन

यद्यपि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को किसी भी प्रकार की समस्या न हो इसलिए उन्हें दवाएं लेने की सलाह नहीं दी जाती है पर इस दौरान दो प्रकार की दवाएं लेने के लिए कहा जा सकता है: टिटैनस हर माँ के लिए (2 इंजेक्शंस) और इन्फ्लुएंजा फ्लू की समस्या होने पर। 

7. कैफीन

यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है कि कैफीन का सेवन करने से प्री-मैच्योर डिलीवरी या बच्चे में विकास से संबंधित समस्याएं होती हैं या नहीं। अमेरिकन डाइटिंग एसोसिएशन (2008) के अनुसार गर्भावस्था के दौरान बहुत कम कैफीन का उपयोग करना चाहिए। इस समय आप रोजाना 300 एमजी से कम या कम से कम 3 कप (150 मिली) कॉफी ले सकती हैं। 

8. पीठ में दर्द

अपनी पीठ का दर्द कम करने के लिए आप बैठते समय नीचे की ओर पूरा झुकने के बजाय तकिए की मदद से हल्का झुकें और ऊंची हील के जूते पहनने से बचें। 

अब आप जानती हैं कि गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है और इसकी देखभाल करना भी उतनी ही जरूरी है। यदि आप गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ सहज हैं फिर भी यह अल्लाह दी जाती है कि आप खुद पर कोई ऐसा तनाव न डालें जिससे कॉम्प्लीकेशंस हो सकती हैं। 

यह भी पढ़ें:

बायकॉर्नुएट (हार्ट शेप) गर्भाशय
प्रेगनेंसी के दौरान गर्भाशय अब्नॉर्मल होना
गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय की रसौली (यूटराइन फाइब्रॉएड)

सुरक्षा कटियार

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