गर्भावस्था

गर्भावस्था के विभिन्न चरण – गर्भधारण से प्रसव तक

आपके आखिरी मासिक धर्म के पहले दिन से गिनने पर गर्भावस्था की अवधि लगभग 40 सप्ताह रहती है। ज्यादातर महिलाओं को अपने गर्भधारण की जानकारी तब होती है जब उन्हें अगले महीने में मासिक धर्म नहीं होता है, अर्थात दूसरे महीने में। हॉर्मोनल व शारीरिक बदलावों के अनुसार गर्भावस्था के चरणों को सप्ताह दर सप्ताह तीन हिस्सों (तिमाही) में विभाजित किया जाता है। गर्भावस्था के दौरान सप्ताह दर सप्ताह आपके शरीर में क्या और कौन से बदलाव होते हैं यह जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।

गर्भावस्था के चरण क्या हैं

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को विभिन्न चरण पूरे करने होते हैं, आइए जानते हैं;

गर्भधारण

गर्भावस्था का सबसे पहला चरण शुक्राणु द्वारा डिंब निषेचन से शुरू होता है। इस प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझने के लिए इसे निम्नलिखित चरणों में बांटा जा सकता है:

  1. हर महीने कई सारे डिंब (जिसे डिंबाणु/अंडाणु भी कहा जाता है) डिंबोत्सर्जन (ओव्यूलेशन) के लिए तैयार होते हैं जो अंडाशय (ओवरी) से एक डिंब के मुक्त होने की प्रक्रिया है। हर डिंब, द्रव से भरे पुटक (सिस्ट) के अंदर विकसित होता है जिसे कूप या फॉलिकल भी कहा जाता है और इन सभी में से कोई एक फॉलिकल परिपक्व होता है, बाकी सभी फॉलिकल नष्ट हो जाते हैं।
  2. डिंबोत्सर्जन के दौरान फॉलिकल फट जाता है और अंडाशय से डिंब मुक्त कर देता है। फटा हुआ फॉलिकल कॉरपस ल्यूटियम के रूप में विकसित होता है जो हार्मोन प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन को उत्पन्न करता है। प्रोजेस्टेरोन गर्भाशय के एंडोमेट्रियल अस्तर को एक संभावित गर्भावस्था के लिए विकसित करने का संकेत देता है।
  3. यदि अंडाशय से मुक्त डिंब – शुक्राणु से मिलता है और निषेचित हो जाता है तो गर्भाशय में भ्रूण का निर्माण पूरा होता है, जिसमें उसका लिंग भी शामिल है। निषेचन के 24 घंटों के भीतर यह निषेचित डिंब कई कोशिकाओं में तेजी से विभाजित हो जाता है और डिंबवाही नलिका (फैलोपियन ट्यूब) के माध्यम से लगभग 3 दिनों तक धीरे-धीरे गर्भाशय में पहुँचता है। इसे ब्लास्टोसाइट कहा जाता है।
  4. अगले चरण में यह गर्भाशय की दीवार से जुड़ जाता है जिस प्रक्रिया को आरोपण (इम्प्लांटेशन) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में ब्लास्टोसाइट का सुरक्षा कवच टूट जाता है और इसका गर्भाशय की दीवार से सीधा संपर्क होता है। हार्मोन के आदान-प्रदान से इसे खुद को जोड़ने में मदद मिलती है।इस दौरान कुछ महिलाओं में आरोपण के समय एक या दो दिनों तक स्पॉटिंग या हल्का रक्तस्राव होता है और यह गर्भावस्था के लक्षणों की शुरुआत में होता है। अगर यह सफलतापूर्वक होता है तो गर्भाशय की दीवार अधिक मोटी हो जाती है और गर्भाशय ग्रीवा एक म्यूकस प्लग द्वारा बंद हो जाती है जिससे गर्भावस्था के शुरूआती चरण की पुष्टि होती है। यदि ब्लास्टोसाइट प्रत्यारोपण करने में विफल रहता है, तो यह सरलता से शरीर के बाहर निकल जाता है।
  5. लगभग तीन हफ्तों में ब्लास्टोसाइट एक छोटी गेंद के रूप में विकसित होता है और अब इसकी पहली कोशिका बनने के साथ इसे ‘भ्रूण’ कहा जाता है। इस अवधि में यदि आपको अगला मासिक धर्म नहीं होता है तो यह आपकी गर्भावस्था का संकेत है लेकिन इसकी पुष्टि मूत्र परीक्षण के द्वारा करना जरूरी है। यह परीक्षण गर्भावस्था हार्मोन, ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एच.सी.जी.) की जांच के लिए किया जाता है।

पहली तिमाही

गर्भधारण होना, गर्भावस्था की पहली तिमाही के चरण का हिस्सा है। गर्भावस्था की पहली तिमाही, पहले सप्ताह से 12वें सप्ताह तक चलती है और इसमें कई बदलाव आते हैं।

शारीरिक बदलाव 

गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान गर्भवती महिला के शरीर में मौजूद हॉर्मोन, उसके हर अंग व प्रणाली को प्रभावित करते हैं। इन परिवर्तनों के लक्षण महिलाओं के लिए अनेक समस्याओं का कारण बनते हैं, जैसे मासिक धर्म का न होना जो गर्भावस्था का एक निश्चित संकेत है और अन्य लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं;

  • गर्भवती महिला के स्तनों में सूजन और संवेदनशीलता के साथ उभरे हुए निप्पल
  • अत्यधिक थकान होना
  • मॉर्निंग सिकनेस और पेट खराब होने के साथ उल्टी या उबकाई आना
  • भोजन बेस्वाद लगना और अन्य प्रकार का भोजन करने की तीव्र इच्छा होना
  • मनोदशा में अत्यधिक बदलाव होना
  • बार-बार पेशाब आना
  • कब्ज होना
  • सिरदर्द होना
  • सीने में जलन होना
  • वजन बढ़ना या वजन कम होना

शारीरिक परिवर्तनों के कारण इन लक्षणों से निजात पाने के लिए आपको अपनी दिनचर्या में बदलाव करने पड़ सकते हैं, जैसे  रात में जल्दी सो जाना या थोड़े-थोड़े समय में खाना खाते रहना। लक्षण आमतौर पर कुछ समय के बाद कम हो जाते हैं या कुछ महिलाओं को ये लक्षण बिलकुल भी महसूस नहीं होते हैं।

भ्रूण में परिवर्तन

पहला महीना:

  • पहले सप्ताह में, ब्लास्टोसाइट गर्भाशय की दीवार में प्रत्यारोपित होता है और तेजी से बढ़ने लगता है। गर्भ में पल रहे भ्रूण को पोषण देने के लिए गर्भनाल (प्लेसेंटा) का निर्माण होने लगता है।
  • भ्रूण के हृदय की धड़कन लगभग 21वें दिन में सुनाई देने लगती है और उसकी मांसपेशियां, नसें व रीढ़ की हड्डी चौथे सप्ताह से विकसित होने लगते हैं।

दूसरा महीना:

  • इस दौरान भ्रूण लगभग 1 इंच लंबा होता है।
  • हृदय के साथ-साथ संचार प्रणाली (सर्कुलेटरी सिस्टम) का निर्मण भी होने लगता है ।
  • भ्रूण का पेट, यकृत (लिवर) और अग्नाशय (पैंक्रियास) भी विकसित होने लगते हैं।
  • इस दौरान अंगों के बनने की शुरुआत को भी देखा जा सकता है।
  • महीने के अंत तक चेहरे की आकृतियां बननी शुरू हो जाती हैं।

तीसरा महीना:

  • हड्डियां, मांसपेशियां, पैर, हाथ, उंगलियां और दाँत बनने की जगह (जबड़े) का विकास होना शुरू हो जाता है। 8 सप्ताह के बाद इसे पूर्ण विकसित भ्रूण कहा जाता है।
  • भ्रूण की त्वचा पारदर्शी होती है और पलकें बंद होती हैं।
  • मांसपेशियों और नसों का विकास शुरू हो चुका होता है।
  • तीसरे महीने के अंत तक, भ्रूण 10 से.मी. लंबा और वजन में लगभग 28 ग्राम का होता है।

दूसरी तिमाही

दूसरी तिमाही के दौरान महिलाओं को मॉर्निंग सिकनेस जैसी समस्या नहीं होती है और काफी अच्छा लगने लगता है इसलिए ज्यादातर महिलाओं के लिए यह अवधि सबसे सरल होती है। हालांकि, आपके शरीर में परिवर्तन जारी रहता है और 13वें सप्ताह से 27वें सप्ताह तक पेट की वृद्धि होती है।

शारीरिक परिवर्तन 

जैसे ही आपका शरीर आपके बच्चे के लिए जगह बनाने की तैयारी करता है, आप इस तरह के लक्षणों का अनुभव कर सकती हैं:

  • शरीर के विभिन्न अंगों में दर्द हो सकता है, जैसे पीठ, पेट, जांघ।
  • निप्पल के आसपास की त्वचा का काली पड़ सकती है।
  • आपके स्तनों, पेट, कूल्हों और जांघों की त्वचा पर खिंचाव के निशान हो सकते हैं।
  • त्वचा पर एक रेखा दिखाई देती है जो नाभि से जघन तक बनी होती है।
  • हाथ सुन्न पड़ते हैं या झनझनाहट होती है, इसे कार्पल टनल सिंड्रोम कहा जाता है।
  • माथे, गाल, ऊपरी होंठ और नाक पर गहरे रंग के धब्बे आ जाते हैं। इन्हें कभी-कभी मेलाज्मा (प्रेगनेंसी मास्क) भी कहा जाता है, यह चेहरे के दोनों तरफ होते हैं।
  • चेहरे, उंगलियों और एड़ियों में सूजन आती है।
  • हथेली, पेट और पैरों में खुजली होती है।

भ्रूण में परिवर्तन

चौथा महीना:

  • भ्रूण का मुँह बनना शुरू हो जाता है।
  • उंगलियों के नाखून, भौंहें और पलकें बनने लगती हैं।
  • त्वचा झुर्रीदार दिखाई देती है और उंगलियों के निशान स्पष्ट होते हैं।
  • किडनी काम करना शुरू कर देती है और मूत्र उत्पन्न होने लगता है।
  • अल्ट्रासाउंड स्कैन द्वारा शिशु के लिंग की पहचान की जा सकती है।
  • बच्चा मल त्याग करना शुरू कर देता है और आंतों में मेकोनियम बनाना शुरू हो जाता है।

पांचवां महीना:

  • इस दौरान भ्रूण की लंबाई लगभग 15 सेंटीमीटर होती है और इसका वजन 250 ग्राम के करीब होता है।
  • गर्भ में पल रहा शिशु अक्सर हलचल करना शुरू कर देता है।
  • भ्रूण की त्वचा पर महीन बाल दिखाई देने लगते हैं जिसे ‘लानूगो’ कहा जाता है और साथ में एक प्रकार की वैक्स (मोम) की ऊपरी परत होती है जिसे वर्निक्स कहा जाता है एवं यह शिशु की नाजुक त्वचा को सुरक्षित रखती है।

छठा महीना:

  • शिशु किसी भी प्रकार की ध्वनि पर प्रतिक्रिया कर सकता है जो धड़कन में वृद्धि से पता चल सकती है । गर्भ में पल रहे शिशु को हिचकी आने पर गर्भवती महिला को झटके भी महसूस हो सकते हैं।
  • शिशु की अस्थि मज्जा अब तक लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण शुरू कर देती है।
  • आँखें खुलने लगती हैं और बाल बढ़ने लगते हैं।
  • जननांगों का विकास तेजी से होता है।
  • छठे महीने के अंत तक, बच्चे की लंबाई 30 सेंटीमीटर और वजन 900 ग्राम होता है।

तीसरी तिमाही

गर्भावस्था के दौरान दूसरी तिमाही की कुछ समस्याएं, तीसरी तिमाही तक जारी रह सकती हैं। इसके अलावा गर्भाशय में वृद्धि के कारण अंगों पर दबाव पड़ना शुरू हो जाता है। इस दौरान आपको सांस लेने में थोड़ी परेशानी हो सकती है और आपको बार-बार पेशाब जाने की आवश्यकता पड़ सकती है।

शारीरिक परिवर्तन 

  • इस दौरान सांस लेने में तकलीफ और सीने में जलन होती है।
  • संवेदनशील स्तनों से कोलोस्ट्रम नामक पानी जैसे तरल पदार्थ का रिसाव हो सकता है।
  • नाभि बाहर निकलती है।
  • चेहरे, उंगलियों और टखनों में सूजन होती है।
  • नींद कम आती है।
  • कब्ज और बवासीर भी हो सकता है।
  • पेट के निचले हिस्से में शिशु घूमना शुरू कर देता है।
  • पेट में मरोड़ उठ सकता है जो आपको प्रसव के दर्द जैसा लग सकता है ।

भ्रूण में परिवर्तन

सातवां महीना:

  • गर्भ में पल रहा शिशु आँखें खोलता व बंद करता है और बाहरी प्रकाश के लिए प्रतिक्रिया दे सकता है। गर्भस्थ शिशु अब आवाज सुन और पहचान भी सकता है।
  • सांस की प्रक्रिया शुरू हो चुकी होती है, हालांकि फेफड़े अभी भी विकसित हो रहे होते हैं।
  • शिशु का हड्डियों का ढांचा पूरी तरह से विकसित हो चुका होता है और वह अंगों को फैला सकता है।
  • इस दौरान गर्भ में पल रहा शिशु तीव्र गति में लातें चलाना भी शुरू कर देता है।
  • शिशु की लंबाई लगभग 35 सेंटीमीटर हो जाती है और इसका वजन 900 ग्राम से 1.8 किलोग्राम के बीच होता है।

आठवां महीना:

  • तेजी से वजन बढ़ता है।
  • शारीरिक हड्डियां सख्त हो जाती हैं लेकिन सिर नर्म होता है।
  • शिशु गर्भ में कम हलचल करता है।
  • शिशु 40 से 45 सेंटीमीटर लंबा होता है और इसका वजन 2.7 किलोग्राम के करीब होता है।

नौवां महीना:

  • अंग पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं।
  • बच्चा 48 से 53 सेंटीमीटर लंबा होता है और इसका वजन लगभग 4 किलो के करीब होता है।
  • शिशु बाहर निकलने के लिए ऑप्टिमल पोजीशन में जाने लगता है।
  • प्रसव 36 से 40वें सप्ताह के बीच कभी भी हो सकता है।

प्रसव

प्रसव गर्भावस्था का अंतिम चरण है, इस दौरान आप अपने बच्चे के जन्म का अनुमान लगा रही होती हैं। प्रसव भी तीन चरण में होता है:

  • प्रसव की शुरुआत पेट में तेज संकुचन यानि मरोड़ के साथ होती है जो एक निश्चित समय के लिए होती है।ये संकुचन 60-90 सेकंड के लिए होने के बाद और तेज हो जाते हैं और हर दो से तीन मिनट में लगातार होते हैं ।एम्नियोटिक थैली द्रव को फैलाती है और गर्भाशय ग्रीवा पतली होने लगती है।
  • संकुचन तेज हो जाते हैं और गर्भाशय ग्रीवा शिशु का रास्ता बनाने के लिए लगभग 10 से.मी. तक फैल जाती है। पेट में मरोड़ के साथ, आपके जोर लगाने से बच्चा बर्थिंग कैनाल यानि जननमार्ग में आ जाता है और सबसे पहले उसका सिर बाहर निकलता है।
  • इस प्रकार से नवजात शिशु का जन्म होता है और अत्यधिक संकुचन के कारण गर्भनाल भी बाहर आ जाती है। बच्चे के जन्म के बाद गर्भनाल को बाहर निकालने में लगभग 20-30 मिनट लगते हैं।

ऊपर दिए हुए 3 चरण एक सामान्य प्रसव के लिए हैं, सी सेक्शन के मामले में बच्चे को बाहर निकालने के लिए पेट में चीरा लगाया जाता है।

गर्भावस्था जीवन भर का एक अद्भुत अनुभव होता है। इस दौरान आपके शरीर में बदलाव हो रहे होते हैं और आपको एहसास होता है कि शिशु आपके शरीर के अंदर विकसित हो रहा है।

यह भी पढ़ें:

आसान प्रसव के लिए 12 टिप्स
प्रसव की 6 पद्धतियां

जया कुमारी

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