गर्भावस्था

गर्भावस्था की पहली तिमाही में 16 आवश्यक ब्लड टेस्ट

गर्भावस्था की पुष्टि करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले महिलाओं को ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। इसके बाद फिर अन्य जांचों के लिए भी ब्लड टेस्ट किया जाता है। आसान शब्दों में कहा जाए तो गर्भावस्था की शुरूआत में ही ब्लड टेस्ट करवाना आपके लिए बहुत जरूरी है। 

पहली तिमाही में किए जाने वाले कॉमन ब्लड टेस्ट

गर्भावस्था की जांच के लिए पहली विजिट में ही डॉक्टर आपको कुछ ब्लड टेस्ट करवाने के लिए कहते हैं। यह टेस्ट वैकल्पिक हैं पर फिर भी आपके पूर्ण स्वास्थ्य को जानने के लिए ऐसा किया जाता है। इन ब्लड टेस्ट में आपकी अन्य समस्याओं का भी पता चल जाता है जिनकी वजह से शायद आपकी गर्भावस्था में समस्याएं हो सकती थी। जो कि टेस्ट से पहले ही पता चल जाता है।   

1. ब्लड ग्रुप

डॉक्टर के लिए बहुत जरूरी है कि वे आपके ब्लड ग्रुप की जांच करे क्योंकि गर्भावस्था के दौरान आपको कभी भी खून की जरूरत हो सकती है। 

2. रीसस फैक्टर (आरएच फैक्टर)

डॉक्टर के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि आप आरएचडी नेगेटिव हैं या पॉजिटिव। यदि आप आरएचडी पॉजिटिव हैं तो आपके ब्लड सेल्स के ऊपर डी एंटीजन नामक प्रोटीन मौजूद होगा और यदि आप आरएच नेगेटिव हैं तो वह प्रोटीन नहीं होगा। इस मामले में डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान आपको आरएच इम्यून ग्लोब्युलिन का पहला इंजेक्शन दे सकते हैं और दूसरा इंजेक्शन बच्चे के जन्म के बाद दे सकते हैं। यदि माँ आरएच नेगेटिव है और गर्भ में पल रहा बच्चा आरएच पॉजिटिव है (पिता के आरएच पॉजिटिव होने के कारण) तो यह इंजेक्शन देना बहुत जरूरी है। क्योंकि यदि आपके बच्चे का खून आपके खून में मिल गया तो आपके शरीर में एंटीबॉडीज उत्पन्न होंगे जो आपके बच्चे के रेड ब्लड सेल्स के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इससे बचने के लिए डॉक्टर गर्भावस्था के 28वें सप्ताह में आपको इम्यून ग्लोब्युलिन का इंजेक्शन लेने की सलाह दे सकते हैं।

3. आयरन लेवल

हीमोग्लोबिन को चेक करने के लिए भी ब्लड टेस्ट किया जाता है जिसमें आपके शरीर में आयरन की कमी का पता लगता है। गर्भावस्था के दौरान बच्चे में पर्याप्त हीमोग्लोबिन के लिए आयरन की जरूरत होती है जो उसके शरीर के हर एक अंग तक ऑक्सीजन पहुँचाने का काम करता है। इसलिए यदि आपके ब्लड टेस्ट में पता चलता है कि आपमें आयरन की कमी है तो डॉक्टर कमी को पूरा करने के लिए आपको आयरन के सप्लीमेंट्स लेने की सलाह दे सकते हैं। 

4. ब्लड शुगर

यदि आप ओवरवेट हैं या आपको पहले कभी डायबिटीज हुई है तो डॉक्टर ब्लड टेस्ट के माध्यम से आपके ब्लड शुगर की जांच कर सकते हैं। ब्लड टेस्ट से आप में जेस्टेशनल डायबिटीज का भी पता चलता है।

5. हेपेटाइटिस बी

ब्लड टेस्ट से डॉक्टर यह जान पाते हैं कि आप में हेपेटाइटिस बी है या नहीं। वैसे यह थोड़ा कठिन है क्योंकि यदि बच्चे को आपसे हेपेटाइटिस बी हो जाता है तो इससे उसका लिवर गंभीर रूप से डैमेज हो सकता है। बच्चे को हेपेटाइटिस बी की समस्या से बचाने के लिए जन्म के तुरंत बाद डॉक्टर उसे हेपेटाइटिस बी का इंजेक्शन दे सकते हैं। 

6. एचआईवी/एड्स

हर गर्भवती महिला के लिए जरूरी है कि वह एचआईवी और एड्स की जांच भी करवाए। यदि महिला में एचआईवी या एड्स के वायरस पाए जाते हैं तो सबसे पहले यह जांचा जाता है कि इसके वायरस बच्चे में न हों। 

7. सीफिलिस

सीफिलिस मांओं में एक दुर्लभ इन्फेक्शन है जिससे माँ और बच्चे के स्वास्थ्य को खतरा होता है। यदि टेस्ट में यह समस्या पॉजिटिव निकलती है तो इसे ठीक करने के लिए गर्भवती महिला को एंटीबायोटिक्स देने की सलाह दी जा सकती है। 

गर्भवती महिलाओं के लिए अन्य ब्लड टेस्ट

गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर आपको अन्य ब्लड टेस्ट करवाने के लिए भी कह सकते हैं। वे कौन से टेस्ट हैं, आइए जानें;

1. थायरॉइड के लिए स्क्रीनिंग

गर्भावस्था की पहली तिमाही में डॉक्टर आप में थायरॉइड का स्तर भी चेक करते हैं। यदि आपको हाइपोथायरॉइड या हाइपरथायरॉइड है तो पूरी गर्भावस्था में डॉक्टर आपकी जांच सावधानी के साथ करेंगे ताकि आप में थायरॉइड के हॉर्मोन्स नियंत्रित रहें और आपके गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास अच्छी तरह से हो। 

2. रूबेला

गर्भावस्था के दौरान रूबेला होने से बच्चे के दिल, दृष्टी और सुनने की क्षमता में प्रभाव पड़ता है। यद्यपि जर्मन मीजल्स (खसरा) के लिए कई महिलाओं को बचपन में ही वैक्सीन देकर या प्रभाव को कम करके उनकी इम्युनिटी बढ़ाई जाती है पर फिर भी कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्हें यह वैक्सीन कभी नहीं दी जाती है और उनमें गर्भावस्था के दौरान रूबेला होने का खतरा होता है। इन्हें बहुत ज्यादा देखभाल करने की जरूरत है और इन्हें उन लोगों से भी दूर रहना चाहिए जिन्हें मीजल्स हो सकता है। इस दौरान रूबेला से बचने के लिए कोई भी दवाई या इंजेक्शन नहीं है। 

3. कंबाइंड स्क्रीनिंग टेस्ट

यह ब्लड टेस्ट का कॉम्बिनेशन और एक न्युकल ट्रांस्ल्युसेंसी स्कैन है जिसे पहली तिमाही के अंत के दौरान बच्चे में जेनेटिक अब्नोर्मलिटीज के बारे में जानने के लिए किया जाता है, जैसे डाउन सिंड्रोम। अधिक परिणामों के लिए इसे एक नॉर्मल स्कैन के साथ किया जाता है। 

4. साइटोमेगालो वायरस (सीएएमवी)

आपमें सीएनवी इन्फेक्शन को जांचने के लिए भी एक ब्लड टेस्ट किया जाता है। यदि एक गर्भवती महिला को यह इन्फेक्शन होता है तो यह उसके बच्चे तक भी पहुँच सकता है और इससे उसके विकास में गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कम सुनाई देना या मानसिक समस्या। 

5. हेपेटाइटिस सी

हेपेटाइटिस सी ब्लड टेस्ट वैकप्ल्पिक है और डॉक्टर इसे करवाने की सलाह तभी देते हैं जब आपको हेपेटाइटिस सी इन्फेक्शन हो। यह टेस्ट तभी किया जाता है जब आप में हेपेटाइटिस सी के लक्षण दिखाई देते हैं।

6. हर्पीज सिम्पलेक्स वायरस (एचएसवी)

हर्पीज बहुत सामान्य और बहुत दर्दनाक इन्फेक्शन है जो अक्सर मुंह या जेनिटल जगहों पर होता है। यदि इसका इलाज न किया जाए तो यह बच्चे के मस्तिष्क को डैमेज भी कर सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं में इस इन्फेक्शन के लक्षणों को जांचने के लिए भी ब्लड टेस्ट किया जाता है। 

7. सिकल सेल रोग और थैलेसीमिया

सिकल सेल डिजीज या थैलासीमिया एक जेनेटिक ब्लड टेस्ट होता है जो गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में किया जा सकता है। सिकल सेल डिसऑर्डर और थैलासीमिया दो प्रकार के ब्लड सेल डिसऑर्डर होते हैं जिससे आपको एनीमिया हो सकता है और वह बच्चे तक भी पहुँच सकता है। 

8. टोक्सोप्लाज्मोसिस

यदि गर्भावस्था की पहली तिमाही या गर्भधारण करने के कुछ सप्ताह पहले महिला को टोक्सोप्लाजमोसिस इन्फेक्शन होता है तो वह बच्चे तक भी पहुँच सकता है और इसका टेस्ट करना बहुत जरूरी है। इस इन्फेक्शन से ऑर्गन डैमेज, मिसकैरेज या यहाँ तक कि मृत बच्चे का जन्म भी हो सकता है। 

9. विटामिन ‘डी’ के लिए स्क्रीनिंग

विटामिन डी की कमी से बच्चे की हड्डियां कमजोर हो सकती हैं या उसका विकास एब्नॉर्मल भी हो सकता है और इससे महिला में प्रीक्लेम्पसिया जैसी कॉम्प्लीकेशंस भी हो सकती हैं जो अक्सर पहली तिमाही में होता है। 

कौन से ब्लड टेस्ट घर पर कराए जा सकते हैं और कौन से सेंटर पर?

बड़े अस्पताल में लैब्स होती हैं और ब्लड टेस्ट उन्हीं वेल-इक्विप्ड लैब्स में किया जाता है। आजकल कई सारी लैब्स घर से ही ब्लड सैम्पल्स लेती है ताकि यदि कोई महिला बीमार है तो उसे अपने बेड से न उठना पड़े। 

कई महिलाएं इस बारे में चिंतित होती हैं कि घर से ब्लड सैंपल लेना और टेस्ट के लिए लैब ले जाना सुरक्षित है या नहीं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से टेस्ट के रिजल्ट गलत भी हो सकते हैं पर इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। 

इसलिए, यदि आपने कोई अच्छी लैब से टेस्ट करवाया है तो घर या सेंटर में कलेक्ट किए हुए सैंपल से फर्क नहीं पड़ता और वह सभी सुरक्षित है। 

क्या आप अन्य टेस्ट करवाने के बारे में भी सोच सकती हैं?

कुछ मामलों में डॉक्टर ब्लड टेस्ट को पहली तिमाही की स्क्रीनिंग ब्लड टेस्ट रूटीन में करवाने के लिए नहीं कहते हैं। निम्नलिखित मामलों में आप अन्य ब्लड टेस्ट करवा सकती हैं, जैसे;

  • यदि आपके घर में पेट(जानवर) पला हुआ है और आप सोचती हैं कि आपको इसे टोक्सोप्लास्मोसिस इन्फेक्शन हो सकता है जो बिल्लियों की पॉटी, मिटटी या आधे पके हुए मीट से फैलता है तो आप डॉक्टर से इसकी जांच करने के लिए भी कह सकती हैं। टोक्सोमोप्लास्मोसिस की वजह से आपके गर्भ में पल रहे बच्चे में खराबी हो सकती है या मिसकैरेज भी हो सकता है। इसलिए आपको पूरी देखभाल करनी चाहिए।
  • यदि आप ग्रुप बी स्ट्रेप के इन्फेक्शन से चिंतित हैं तो आप गर्भावस्था के अंतिम दिनों में लगभग 37वें सप्ताह में डॉक्टर से इसका टेस्ट करने के लिए भी कह सकती हैं। यह इन्फेक्शन माँ से बच्चे में जा सकता है जिसकी वजह से जन्म के बाद ही बच्चा बीमार हो सकता है।
  • यदि आप सोचती हैं कि आपको हेपटाइटिस सी का खतरा है तो आपको तुरंत ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए। यदि आपने पहले कभी ड्रग्स लिया है या टैटू और पियर्सिंग करवाई है तो आपको हेपेटाइटिस सी होने की संभावना बहुत ज्यादा है

क्या ब्लड सेल डिसऑर्डर्स की भी टेस्ट करवाने की जरुरत है?

हाँ, जैसा कि पहले भी कहा गया है कि ब्लड सेल्स के डिसऑर्डर, जैसे सिकल सेल डिसऑर्डर और थैलेसीमिया के लिए भी टेस्ट किया जाता है। इन विकारों के कारण आपको एनीमिया हो सकता है या यह समस्या आपके बच्चे को भी हो सकती है। अक्सर वे महिलाएं जो ऐसी जगहों पर रहती हैं जहाँ यह समस्या आसानी से हो सकती है, उन्हें सामान्य तौर पर ब्लड सेल डिसऑर्डर का टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। यदि आपको पहले भी एनीमिया हो चुका है तो आप इसके बारे में डॉक्टर से पहले ही बता दें और ब्लड सेल्स डिसऑर्डर का टेस्ट करवाएं। 

गर्भावस्था के दौरान महिला के ब्लड टेस्ट का एक रूटीन चेक अप होता है जिसमें डॉक्टर को उसकी शारीरिक समस्याओं के बारे में पता लगता है। यदि शुरूआत में ही ज्यादातर समस्याओं का पता लग जाए तो इससे शुरूआत में ही बच्चे और माँ का सही इलाज हो सकता है।

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सुरक्षा कटियार

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