गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान एंटी-डी इंजेक्शन लगवाना

गर्भावस्था एक सुंदर समय होता है पर कभी-कभी समय पर इसकी जांच, स्कैन और वैक्सीनेशन आपको बहुत ज्यादा थका सकती हैं। हालांकि यह स्कैन और वैक्सीन्स आपकी स्वस्थ गर्भावस्था के लिए बहुत जरूरी हैं क्योंकि इससे आपके गर्भ में पल रहे बच्चे का सही विकास होता है। गर्भावस्था के दौरान सभी महिलाओं को एंटी डी इंजेक्शन जरूर लगवाना चाहिए। आइए जानते हैं गर्भवती महिलाओं के लिए यह जरूरी क्यों है।  

एंटी-डी इंजेक्शन क्या है?

यदि गर्भवती महिला का ब्लड ग्रुप ‘रेसस नेगेटिव’ या ‘रेसस फैक्टर’ है तब उस महिला को एंटी-डी या आरएचओ वैक्सीन लगवाने की सलाह दी जाती है। रेसस फैक्टर होने की संभावनाएं तब होती हैं जब माता-पिता के ब्लड ग्रुप में बहुत ज्यादा अंतर हो। यदि माँ का रेसस फैक्टर नेगेटिव है, पिता का रेसस फैक्टर पॉजिटिव है और बच्चा भी पॉजिटिव है तो पहली गर्भावस्था में कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है पर दूसरी गर्भावस्था प्रभावित होती है। चूंकि जन्म से पहले बच्चे का ब्लड ग्रुप पता नहीं लगाया जा सकता है इसलिए गर्भवती महिलाओं को एंटी-डी लगाई जाती है। यदि महिलाएं आरएच-नेगेटिव और उनके पति आरएच पॉजिटिव हैं तो सभी को एंटी-डी इंजेक्शन लगाया जाता है। यदि बच्चे का ब्लड भी आरएच पॉजिटिव होता है तो डॉक्टर महिला को दोबारा से यह इंजेक्शन लगाते हैं। गर्भावस्था के दौरान एंटी-डी इंजेक्शन लगवाने से बच्चे को कोई भी खतरा नहीं होता है बल्कि यह इंजेक्शन खून के मिल जाने के कारण माँ और बच्चे को होनेवाली कॉम्प्लीकेशंस से सुरक्षित रखता है। यह इंजेक्शन सिर्फ बच्चे को ही सुरक्षित नहीं रखता है बल्कि भविष्य की गर्भावस्था को भी सुरक्षा प्रदान करता है। 

गर्भावस्था के दौरान एंटी-डी इंजेक्शन की जरूरत क्यों होती है?

एक गर्भवती महिला को एंटी-डी इंजेक्शन लगवाने की जरूरत तब पड़ती है जब माँ से बच्चे का ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता है। यदि आप आरएच नेगेटिव हैं तो बच्चा आरएच पॉजिटिव हो सकता है (यदि पिता भी आरएच पॉजिटिव है तो), ऐसे में महिला को वैक्सीन लगाई जा सकती है। यह इंजेक्शन बहुत जरूरी है क्योंकि ऐसे कई सारे मामले हैं जिसमें माँ और बच्चे का खून एक में मिल जाता है। यह बच्चे के जन्म के समय में होने की संभावना होती है या यह तब हो सकता है जब गर्भावस्था के दौरान खून बहना शुरू हो जाता है। यदि माँ और बच्चे का आरएच समान है तो यह कॉम्प्लीकेशंस नहीं होती हैं। 

हालांकि, जब एक माँ का खून उसके बच्चे से अलग होता है तो उसके शरीर के लिए बच्चे का खून एक बाहरी पदार्थ होता है इसलिए माँ का इम्यून सिस्टम गंभीर रूप से एंटीबॉडीज बनाना शुरू कर देता है। जब यह एंटीबॉडीज बन जाते हैं तो इन्हें शरीर से नहीं हटाया जा सकता है। यदि बच्चे का खून माँ के शरीर में चला भी जाता है तो यह एंटीबॉडीज उस खून को नष्ट कर देते हैं और इसके परिणामस्वरूप बच्चे को गंभीर रूप से कॉम्प्लीकेशंस होती हैं। इससे बच्चे को जौंडिस व एनीमिया हो सकता है या उसके नर्वस सिस्टम में अटैक आ सकता है। इस प्रक्रिया को सेंसिटाइजेशन कहते हैं और जब भी आपके शरीर में बाहरी पदार्थ होंगे तो यही होगा। एंटीबॉडीज आपकी गर्भावस्था को प्रभावित कर सकते हैं पर पहली गर्भावस्था पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है। यदि इन एंटीबॉडीज के लिए आपने कोई भी वैक्सीन नहीं ली तो इससे आपकी अगली गर्भावस्था में गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। 

एंटी-डी इंजेक्शन बच्चे के खून को न्युट्रिलाइज कर देता है जिसकी वजह से यदि बच्चे का खून माँ के शरीर में जाता भी है तो इससे खून में एंटी-बॉडीज नहीं बनते हैं। 

एंटी-डी इंजेक्शन लगवाने की सलाह कब दी जाती है?

गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर आपको निम्नलिखित समस्याओं में एंटी-डी इंजेक्शन लगवाने की सलाह दे सकते हैं, आइए जानें; 

  • यदि बच्चा आर-एच पॉजिटिव है तो आर-एच नेगेटिव वाली मांओं को एंटी-डी इंजेक्शन लगवाने की सलाह दी जाती है।
  • यदि गर्भवती महिला अपना अबॉर्शन करवाना चाहती है या गर्भावस्था को खत्म करना चाहती है।
  • यदि गर्भवती महिला का मिसकैरेज हो जाता है।
  • यदि महिला ने कोई इलाज करवाया है, जैसे एम्नियोसेंटेसिस, भ्रूण के खून की सैंपलिंग या कोरियोनिक विलस।

एंटी-डी इंजेक्शन लेने से गर्भवती महिला के शरीर में 0.1% से 1.5% तक एंटीबॉडी बनने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। ऐसी मामले में महिला को कॉम्प्लिकेशन या मेडिकल ट्रीटमेंट के लगभग 72 घंटे के बाद यह वैक्सीन दी जाती है। यह वैक्सीन बच्चे के खून में जानेवाले सेल्स को न्यूट्रलाइज कर देती है। 

एंटी-डी इंजेक्शन के दो डोज लगाए जाते हैं और इसे लगाने के 2 तरीके भी होते हैं। एक डोज ट्रीटमेंट के मामले में इसे महिला को गर्भावस्था के 28वें या 30वें सप्ताह में लगाया जाता है। और दो डोज के मामले में एक एंटी-डी इंजेक्शन महिला को गर्भावस्था के 28वें सप्ताह में और दूसरा 34वें सप्ताह में लगाया जाता है। डॉक्टर यह इंजेक्शन आपकी जांघों या बट्स में लगा सकते हैं। यदि आपको ब्लीडिंग होती है तो डॉक्टर आपको यह इंजेक्शन त्वचा के अंदर लगा सकते हैं। 

एंटी-डी इंजेक्शन के साइड-इफेक्ट्स

एंटी-डी इंजेक्शन को मनुष्य के खून में मौजूद प्लाज्मा से बनाया जाता है। यह खून अक्सर डोनर से लिया जाता है और पूरी सावधानियों के साथ इस खून की जांच की जाती है, जैसे एच.आई.वी., हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और इत्यादि। प्लाज्मा को वैक्सीन के रूप में उपयोग करने से शायद ही कोई समस्या होती है। हालांकि कुछ मामलों में गर्भावस्था के दौरान निम्नलिखित साइड इफेक्ट्स देखे जा सकते हैं;  

  • इंजेक्शन लगने वाली जगह पर असुविधा होती है।
  • जहाँ पर इंजेक्शन लगा है वहाँ सूजन भी हो सकती है।
  • इंजेक्शन लगने की जगह पर एलर्जी भी हो सकती है।

एंटी-डी इंजेक्शन लगाने के बाद डॉक्टर आपको आधे घंटे के लिए अस्पताल में रुकने के लिए कह सकते हैं। यह सिर्फ इसलिए कहा जाता है ताकि डॉक्टर चेक कर सकें कि इस इंजेक्शन से आपको कोई एलर्जी, इन्फेक्शन या अन्य समस्या तो नहीं हो रही है। यद्यपि ऊपर दिए हुए साइड-इफेक्ट्स से आपको कोई भी गंभीर समस्या नहीं होगी पर फिर भी यदि आपको ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो आप मदद के लिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। 

एंटी-डी इंजेक्शन आपके या आपके बच्चे के लिए हानिकारक नहीं होता है और यहाँ तक कि यदि आपके पति आर.एच.नेगेटिव हैं फिर भी डॉक्टर आपको एंटी-डी इंजेक्शन लगवाने के लिए कह सकते हैं। डॉक्टर आपके पति का आर.एच. जानने के लिए ब्लड टेस्ट भी कर सकते हैं। यद्यपि आर.एच. नेगेटिव वाले पुरुषों में डी एंटीजेन ट्रेसेस बहुत कम होते हैं पर फिर भी इसकी संभावना है। यह सलाह दी जाती है कि आप एंटी-डी वैक्सीन लें। डॉक्टर आपको किसी भी स्थिति में यह वैक्सीन लेने की सलाह दे सकते हैं। 

यह भी पढ़ें:

प्रेगनेंसी के दौरान एचसीजी इंजेक्शन

 

समर नक़वी

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