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गर्भावस्था के 23वें और 27वें सप्ताह के बीच शिशु विभिन्न प्रकार की ध्वनियों और आवाजों को सुनना शुरू कर देता है। सबसे स्पष्ट और महत्वपूर्ण ध्वनि, जो वह सुन सकता है वह होती है उसके माँ के हृदय की धड़कन। हालांकि समय बीतने के साथ शिशु गर्भ से बाहर की आवाजों पर भी प्रतिक्रिया देना आरंभ कर देता है। ऐसे समय पर आप अपने बच्चे को कहानियां या संगीत सुनाना शुरू कर सकती हैं और क्या पता वह किस आवाज पर प्रतिक्रया दे। बच्चे के लिए एक अच्छी किताब पढ़ना उसके लिए फायदेमंद हो सकता है। यह शिशु में भावनाओं को उद्दीप्त करता है और उसे विभिन्न उत्तेजनाओं पर प्रतिक्रिया करने में मदद करता है। यह बच्चे को गर्भ से बाहर आने के बाद जीवन के लिए भी तैयार करता है।
जब आप अपने बच्चे को कहानियां पढ़कर सुनाती हैं तो यह प्रक्रिया उसकी कुछ भावनाओं को जागृत करती है। पढ़ते समय तुकबंदी वाली पंक्तियां और लोरीयां प्रारंभिक अवस्था से ही बच्चे में आवाज के मॉड्यूलेशन यानी उतार–चढ़ाव के समझ को विकसित करती हैं। यह भी देखा गया है कि गर्भस्थ शिशुओं को कुछ पढ़कर सुनाने से उन्हें आगे जीवन में अपनी शब्दावली में नए शब्द शामिल करने और आसानी से उनका अर्थ समझने में मदद मिलती है। जब कोई बच्चा गर्भ में आवाज सुनता है, तो वह सतर्क हो जाता है और उस पर प्रतिक्रिया देता है। यदि आप अपने बच्चे को प्रतिदिन कुछ पढ़कर सुनाती हैं, तो बाहर की दुनिया में आने के बाद वह आपकी आवाज को पहचान लेगा और यह आप दोनों के बीच संबंध को विकसित करेगा।
पढ़ना एक ऐसी गतिविधि है जिसकी शुरुआत के लिए सही समय की आवश्यकता नहीं होती है । हालांकि, यदि आप विशेष रूप से अपने बच्चे को पढ़ने के लिए संगीत और किताबें चुन रही हैं, तो उनके साथ भी शुरुआत करने का सही समय जानना आवश्यक है।
शिशु के शुरुआती महीने आमतौर पर गर्भ में समायोजित होने और आसपास के माहौल का पता लगाने से घिरे होते हैं। समय के साथ, जैसे ही बच्चा गर्भाशय के भीतर रहने में अनुकूलित हो जाता है और इसके साथ सहज हो जाता है, वह माँ के दिल की धड़कन के साथ–साथ बाहरी आवाजों पर ध्यान देने लगता है। इससे उसे आपके द्वारा गाए गए गाने और आपके द्वारा बोले गए शब्दों को सुनने में आसानी होती है।
इसलिए, जब आप दूसरी तिमाही को पूरा करने की दिशा में बढ़ते हुए अपनी गर्भावस्था के 23 सप्ताह पूरे करने के निकट आएंगी, तो आपकी नन्ही सी जान आपकी आवाज और किसी भी अन्य क्रिया पर आसानी से प्रतिक्रिया करना शुरू कर देगी। यह वो चरण है, जहाँ शिशु का संज्ञानात्मक विकास भी तेजी से हो रहा है। अतः इस समय उसके लिए सही और उपयोगी संगीत व कहानियां सुनाने से उसका विकास अद्भुत तरीके से हो सकता है।
गर्भ में बच्चे को क्या सुनाना चाहिए ये पता लगाने के दौरान, यह जानना आवश्यक है कि आपकी गतिविधियां किस तरह से शिशु को फायदा पहुँचाएंगी। वह सब कुछ जो आप करती हैं, खाने से लेकर बोलने और व्यायाम करने तक, किसी न किसी तरह से बच्चे को प्रभावित करता है। गर्भ में रहने के दौरान श्रवण अनुभूति इतनी दृढ़ होती है कि अधिकांश बच्चे किसी और भाषा के बजाय पूरी तरह से समझे बिना भी अपनी मातृभाषा के लिए एक आत्मीयता विकसित कर लेते हैं।
गर्भावस्था न केवल माँ के लिए बल्कि बच्चे के लिए भी एक तनावपूर्ण समय होता है। शिशु भावनाओं के उतार–चढ़ाव से गुजरता है और कई बार व्याकुल या व्यग्र महसूस कर सकता है। पढ़ने की गतिविधि में लिप्त होने से आप शांत अनुभव कर सकती हैं और आपकी सुखदायक आवाज आपके बेचैन बच्चे की हृदय गति को भी नियंत्रित कर सकती है और उसे आपके गर्भ में आराम करने में मदद कर सकती है।
अपनी माँ के साथ एक बच्चे का बंधन उसी समय से विकसित होने लगता है जब वह गर्भ में होता है। त्वचा के स्पर्श में एक जादू होता है, जो बच्चे के पैदा होने के बाद इस संबंध को और मजबूत बनाता है, लेकिन यह बंधन सही मायने में उन सभी गतिविधियों से बनता है, जो माँ शिशु को अपने अंदर रखते हुए करती है। माँ की आवाज से अवगत होने के कारण बच्चे को उस पर विश्वास विकसित करने में मदद मिलती है। यही वजह है कि ज्यादातर बच्चे माँ की आवाज सुनकर रोना बंद कर देते हैं और यह केवल माँ के लिए सीमित नहीं है। यदि आपका साथी बच्चे को कहानी सुनाए तो बच्चा उस आवाज को भी पहचानना शुरू कर देगा। इसी प्रकार यदि कोई विशेष संगीत नियमित रूप से उसे सुनाया जाए, तो शिशु इसे बहुत अच्छी तरह से पहचान सकता है। जन्म के बाद फिर से उसे यह संगीत सुनाना, इसके साथ उसके जुड़ाव को मजबूत कर सकता है।
जैसे–जैसे आपका बच्चा आपके गर्भ में विकसित होता है, उसका मस्तिष्क विकसित होता रहता है और तंत्रिका तंत्र तेजी से बनता जाता है। माँ की आवाज या कहानियों को सुनने से इस तंत्रिका तंत्र को मजबूत होने में मदद मिलती है और ये उसे याद करने में मदद कर सकते हैं जब वह जन्म के बाद उन्हें फिर से सुनता है। किसी बात को याद रखने के लिए पुनरावृत्ति या दोहराव एक सिद्ध तरीका है और जब गर्भ से ही इस प्रक्रिया का बीज बो दिया जाता है, तो इससे शिशुओं में स्मरण शक्ति और एकाग्रता का गुण विकसित होता है।
यदि आप पढ़ने की शौकीन हैं, तो आपने पहले से ही बहुत कुछ पढ़ रखा होगा। रोमांटिक उपन्यासों से लेकर रहस्यों और विज्ञान–कथाओं तक। लेकिन आप अपने छोटे से बच्चे को ये पढ़कर नहीं सुना सकती हैं, चाहे वह गर्भ में हो या जन्म लेकर बाहर आ चुका हो। यदि आप यह जानना चाहती हैं कि आपके बच्चे को किस तरह की कहानियां सबसे ज्यादा पसंद आएंगी, तो किताबों की किसी भी दुकान में जाकर बच्चों के सेक्शन पर एक नजर डालें।
आपने अंग्रेजी फिल्म ‘बेबीज़ डे आउट’ देखी होगी। उसमें दिखाई गई किताब की तरह, जिसमें एक बच्चा ढेर सारी जगहों पर घूमकर आता है, ऐसी कोई किताब ढूंढें जो अप्रत्यक्ष रूप से आपके नन्हे से शिशु के मन में उत्साह और आनंद की भावना का संचार करे।छोटी–छोटी कविताओं से भरी किताबें, तुकबंदी पर ध्यान केंद्रित करके, ध्वनियों और शब्द संरचनाओं को पहचानने की उसकी प्रवृत्ति को विकसित कर सकती हैं। काल्पनिक कहानियों को पढ़ने के लिए वे किताबें चुनें जो उसकी कल्पना शक्ति को समृद्ध कर सके। डॉ. पई, रस्किन बॉन्ड, आर. के. नारायण इत्यादि लेखकों ने बच्चों के लिए कई किताबें लिखी हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपने बच्चे के बड़े होने का इंतजार करना होगा। गर्भ में ही अपने लाडले को इन पुस्तकों को पढ़कर सुनाएं । शिशु के लिए कहानी पढ़ने का तरीका भी मायने रखता है। इसलिए, तुकबंदी वाली कहानियों का चयन करें और जहाँ भी जरूरत हो अपनी आवाज में उतार–चढ़ाव लाकर उसे कहानी सुनाएं।
एक बार जब आप यह जान लें कि आपके गर्भस्थ शिशु के लिए क्या पढ़ना है, तो वहाँ रुकें नहीं। कहानी पढ़ने की प्रक्रिया को संगीत के साथ या खुद कुछ गुनगुनाते हुए आगे बढ़ाएं । आपका बच्चा जो कुछ भी सुनता है वह उसके फायदे के लिए उपयोग में आने वाला है और उसे एक बेहद प्यारे इंसान में बदलने वाला है।
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