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गर्भावस्था के दौरान होने वाले फिजिकल और साइकोलॉजिकल चेंजेस आपको और आपके पास मौजूद लोगों को साफ तौर पर दिखाई देने लगते हैं। हालांकि, आपके शरीर में होने वाले चेंजेस के साथ, आप इमोशनल और साइकोलॉजिकल चेंजेस का भी अनुभव करेंगी। यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये बदलाव आपके शरीर में हार्मोनल चेंजेस के कारण होते हैं और यह पूरी तरह से नेचुरल हैं। ये सभी बदलाव प्रेगनेंसी के बाद नॉर्मल होने लगते हैं। मगर, आपको अपने बच्चे की खातिर अपनी फिजिकल और मेंटल हेल्थ को बनाए रखना बहुत जरूरी है। इस आर्टिकल में आपको उन पर्सनल चेंजेस के बारे में बताया गया है जिन्हें आप अपनी प्रेगनेंसी के दौरान अनुभव कर सकती हैं, इसके साथ आपको इसे हैंडल करने के लिए कुछ टिप्स भी बताई गई हैं, तो आइए जानते हैं कि इन चेजेंस को कैसे मैनेज करें।
प्रेगनेंसी हार्मोन जैसे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जो आपके बच्चे के विकास में मदद करते हैं, आपके न्यूरल पाथ को भी प्रभावित करते हैं। आप थका हुआ, भूलना, सुस्ती, शॉर्ट टेम्पर होना, डिप्रेस जैसे नेगेटिव प्रेगनेंसी मूड और इमोशन को महसूस कर सकती हैं। इन सभी चेंजेस के साथ-साथ फिजिकल चेंजेस को भी हैंडल करना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे में यह बहुत जरूरी कि अगर आप कोई अनचाहे चेंजेस को नोटिस करती हैं तो तुरंत अपने डॉक्टर को बताएं और उनकी सहायता लें।
गर्भावस्था के पहले कुछ महीनों में, आपको थकान, मतली, पीठ के निचले हिस्से में दर्द और कई ऐसी ही प्रॉब्लम का अनुभव करेंगी। प्रोजेस्टेरोन को मूड चेंजेस, सतर्कता, बिना किसी कारण के रोने और मॉर्निंग सिकनेस से भी जोड़ा गया है। पहली बार माँ बनने वाली महिलाओं को थोड़ी बहुत एंग्जायटी का भी अनुभव होता है, क्योंकि आपके मन अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर सवाल चल रहे होते हैं। इस कंडीशन में लगभग हर गर्भवती महिला को एंग्जायटी होती है।
आपका काम और भी ज्यादा बढ़ जाता है अगर आपका एक बड़ा बच्चा भी है और आपको उसकी भी देखभाल करनी होती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने आपको स्ट्रेस दें खासकर इस समय में। रोजाना ठीक से आराम न कर पाने आठ घंटे की नींद न लेने की वजह से आपके मूड चेंजेस की समस्या और भी बढ़ सकती है।
आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आप अकेली नहीं हैं, आपके दोस्त और परिवार वाले आपके साथ हैं। अपनी आवश्यकताओं के बारे में उनसे कहें। घर के कामों के लिए अपने पार्टनर की मदद लें अपने माता-पिता या दोस्तों से कुछ देर बच्चे को संभालने के लिए कहें न कि सारे भार अकेले संभालें। एक बैलेंस डाइट लें और दिन भर में पर्याप्त पानी पिएं।
जब तक आप प्रेगनेंसी में आगे आने वाली कठिनाइयों के बारे में नहीं जानेंगी, तब तक आप उसे डील नहीं कर पाएंगी। इसलिए सिचुएशन को समझें और किसी भी चैलेंज को इस तरह से लें जैसे आपका बच्चा इसे आपसे करने के लिए बोल रहा हो।
आप अपने आप को पॉजिटिव रखने के लिए योगा क्लास ज्वाइन करें, यह प्रेगनेंसी के दौरान आपके स्ट्रेस को दूर करने का बेहतरीन तरीका है। आप ऑनलाइन ट्यूटोरियल से मेडिटेशन तकनीक सीख सकती हैं साथ ही सिंपल ब्रीदिंग एक्सरसाइज भी कर सकती हैं।
पिछली तिमाही की समस्याएं, जैसे थकावट, मूड फ्लक्स, मॉर्निंग सिकनेस आमतौर पर दूसरी तिमाही में दूर हो जाती हैं। उनकी जगह पर अब आपको दूसरी तरह की परेशानी होने लगेगी, जैसे भूलना, ठीक से ऑर्गनाइज न होना। आपके शरीर का लगातार बढ़ता हुआ वजन आपके लिए बॉडी इमेज इशू पैदा करने लगता है। हालांकि ये प्रेगनेंसी इमोशन उतने ज्यादा नहीं होते हैं लेकिन बाद में ये आपको प्रभावित कर सकते हैं।
गर्भावस्था के 16वें सप्ताह के आसपास, डॉक्टर ब्लड टेस्ट कराने के लिए बोल सकते हैं, ताकि फीटस में बर्थ डिफेक्ट जैसे डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जा सके। आपके बच्चे में इस प्रकार की कोई भी विकलांगता होने की संभावना कम होती है, लेकिन फिर भी आपको इसके लिए खुद तैयार रहना चाहिए।
ये चेंजेस आपके साथी के साथ आपके संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि आप दोनों अपने इमोशनल बांड को बनाए रखने के लिए एक-दूसरे के साथ समय बिताएं। आप अपने बच्चे लिए साथ में गाना गाकर या कुछ पढ़कर उसे सुना सकते हैं।
आपका शरीर पहले जैसा नहीं रहेगा। भले ही ये फिजिकल चेंजेस बच्चे के विकास के लिए आवश्यक हैं, फिर भी आपको बदसूरत और अनहेल्दी सा महसूस हो सकता है। इसके अलावा, आपके शरीर पर एक्स्ट्रा फैट से आप अच्छा फील नहीं करेंगी, जिसकी वजह से आपका कॉन्फिडेंस और सेल्फ रिस्पेक्ट कम होने लगेगी। यदि वजन बढ़ने से आप काफी प्रभावित हो रही हैं, तो डॉक्टर द्वारा बताई गई कुछ सिंपल कार्डियो एक्सरसाइज करने की कोशिश कर सकती हैं। फिट रहने के अलावा, कार्डियो प्रेगनेंसी डायबिटीज होने की संभावना को भी कम कर सकता है।
चीजों को भूल जाना, ऑर्गनाइज न रहना आदि ये सभी परेशानियां अभी भी जारी रह सकती हैं। जैसे-जैसे आप अपनी ड्यू डेट के करीब आती जाएंगी, आपको लेबर और बच्चे की बर्थ को लेकर एंग्जायटी महसूस होने लगेगी। इसके साथ ही आपके शरीर का दर्द भी बढ़ जाएगा, जैसे पीठ, गर्दन, पैर और रिब केज दर्द, जो आपके मूड को और भी खराब कर सकता है। बढ़ती असुविधा के साथ आपका चिड़चिड़ापन और भी ज्यादा बढ़ने लगता है।
ड्यू डेट नजदीक आने के साथ आपका डर और एंग्जायटी और भी ज्यादा बढ़ने लगती है, आप बच्चे की सुरक्षा के बारे में बहुत ज्यादा सोच कर चिंता करने लगती हैं। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह अनुभव हर महिला के लिए अलग होता है। गर्भावस्था के दौरान इमोशनल स्ट्रेस बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। स्टडीज से पता चला है कि जिन महिलाओं में स्ट्रेस हार्मोन, कोर्टिसोल की मात्रा ज्यादा होती है, उनमें मिसकैरेज होने की संभावना अधिक होती है। खुद को तनाव मुक्त और सकारात्मक बनाए रखने के लिए योग, ब्रीदिंग एक्सरसाइज और मेडिटेशन जारी रखें।
तीसरी तिमाही के दौरान डॉक्टर के पास रेगुलर विजिट करना जरूरी है और यह बात सब जानते हैं। इस दौरान आपके हार्मोन पहले से कहीं ज्यादा चेंज हो जाएंगे और इन चेंजेस को आप कैसे मैनेज करें इसके लिए अपने डॉक्टर से बात करें, आपके मन में जो भी सवाल हैं उसे पूछने में ही समझदारी है।
आपको बच्चे के हिसाब से अब अपना घर सेट करना होगा। इसमें एक स्लीपिंग एरिया बनाना, बेबी प्रूफिंग हाउस और बच्चे की बेसिक चीजें जैसे डायपर, मेडिकेटेड पाउडर, दूध की बोतलें खरीदें। इससे आप खुद को बिजी रखते हुए खुद को स्ट्रेस से दूर रख सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान इमोशन बहुत अधिक लग सकते हैं। जो आपके व्यक्तित्व को भी बदल सकते हैं, लेकिन ये चेंजेस हमेशा के लिए नहीं होते हैं। गर्भावस्था के बाद सब खुद ही ठीक होने लगता है, बस आप अपना और बच्चे का खयाल इस लेख में बताए गए तरीके को अपनाते हुए घर में नए मेहमान का स्वागत करें।
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