गर्भावस्था एक ऐसा दौर है, जिसमें आगे क्या होने वाला है, इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इसमें ऐसे कई बदलाव आते हैं, जो कि आपकी रोज की जिंदगी पर प्रभाव डालते हैं। कई महिलाओं का उनकी प्रेगनेंसी के बारे में चिंतित होना एक आम बात है। प्रेगनेंसी एक महिला के शरीर में कई शारीरिक बदलावों के साथ-साथ अनगिनत मानसिक और भावनात्मक बदलाव भी साथ लेकर आती है। यहाँ पर गर्भावस्था से संबंधित डर के कुछ सबसे आम कारण और उनसे निजात पाने के टिप्स दिए गए हैं।
माँ बनने वाली स्त्री के लिए, होने वाले बच्चे का स्वास्थ्य, चिंता का सबसे आम कारण है। विभिन्न पहलुओं से यह ट्रिगर होता रहता है, जो कि इसे एक वास्तविक डर बना देते हैं। इन ट्रिगर्स में निम्नलिखित बिंदु शामिल है:
डर से निजात पाने का पहला कदम है, कि उसके कारण का पता लगाया जाए।
हर चार प्रेगनेंसी में से एक प्रेगनेंसी का गर्भपात होना, गर्भवती स्त्री के डर का सबसे बड़ा कारण है। असल में उनकी पहली तिमाही में यह डर के सबसे आम कारणों में से एक है, जब मतली और मॉर्निंग सिकनेस के साथ-साथ सबसे अधिक शारीरिक बदलाव शरीर में देखे जाते हैं। इस डर से छुटकारा पाने का सबसे बेहतरीन तरीका यह है, कि आप अपने डॉक्टर और अन्य एक्सपर्ट से इस बारे में बात करें और अपनी चिंता को खुल कर बताएं। आप थोड़ी रिसर्च भी कर सकती हैं, पर याद रखें, कि इसके लिए केवल विश्वसनीय स्रोतों का सहारा लें, फिर चाहे वह क्लासेज हों या वेबसाइट।
इस डर की शुरुआत आमतौर पर मॉर्निंग सिकनेस से होती है। इस डर के पीछे का कारण होता है, कि एक गर्भवती स्त्री खाने को शरीर के अंदर नहीं रख पाती है। जिससे पेट में पल रहे बच्चे को बढ़ने के लिए उचित पोषण नहीं मिल पाता है। अगर आपके मॉर्निंग सिकनेस में कमी नहीं आ रही है, तो आपको अपने डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। हालांकि, बेफिक्र रहें, क्योंकि बच्चा अपने लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति आपके शरीर में मौजूद पोषक तत्वों से भली-भांति कर ही लेता है और आपको भले ही भूख महसूस हो रही हो, पर बच्चा बिल्कुल तृप्त रहता है।
समय से पूर्व लेबर और प्रीमैच्योर डिलीवरी होने के कारण बच्चे के स्वास्थ्य में कॉम्प्लीकेशन्स होने का डर भी चिंता का एक आम कारण है। हालांकि, वास्तविकता यह है, कि केवल 100 में से एक बच्चा ही प्रीमैच्योर होता है। जब आप अपने नियमित चेकअप के लिए जाती हैं, तब डॉक्टर किसी प्रकार की अनियमितताओं की जांच करते हैं और कोई समस्या दिखने पर उसका समाधान ढूंढते हैं। 26वें हफ्ते के बाद जन्म लेने वाले अधिकतर प्रीमैच्योर बच्चे जीवित रहते हैं और 30वें हफ्ते के बाद जन्म लेने वाले बच्चों में कोई गंभीर कॉम्प्लीकेशन दिखाई नहीं देते हैं।
इस डर का संबंध बच्चे से ज्यादा माँ से होता है। आमतौर पर यह डर अन्य दोस्तों से या इंटरनेट पर पाई जाने वाली डरावनी कहानियां सुनने से पैदा होता है। अगर आप इस दर्द के बारे में बहुत चिंतित हैं, तो आप अपने डॉक्टर से इसके अलग-अलग विकल्पों के बारे में बात कर सकती हैं। ऐसे कई तरीके हैं, जिनमें डॉक्टर अपनी टीम के साथ लेबर के दौरान आप के दर्द को कम कर सकते हैं और आप अपनी डिलीवरी के लिए इन सभी विकल्पों के बारे में सोच विचार कर अपने पसंदीदा तरीके को चुन सकती हैं।
प्रेगनेंसी के साथ केवल डर नहीं आता, बल्कि इन सभी चिंताओं के साथ तनाव भी आता है। परिवार के नए सदस्य को हर सुविधा देने के लिए फाइनेंशियल रूप से सक्षम होने से लेकर गर्भावस्था के दौरान खाना तक, ऐसी कई बातें हैं, जिनके बारे में चिंता होती रहती है। वहीं कुछ माओं को यह चिंता सताती है, कि उनका यह तनाव उनके बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है। तो यह बिल्कुल प्राकृतिक है और आपको यह पता होना चाहिए, कि तनाव को कम करना भी बहुत आसान है। आप एक मेडिटेशन क्लास को ज्वाइन कर सकती हैं या अपने डॉक्टर की सलाह और एक एक्सपर्ट योगा प्रैक्टिशनर के साथ प्रीनेटल योगा ट्राई कर सकती हैं। इन तरीकों से जल्द ही आपको अपना तनाव कम होता हुआ दिखेगा।
अधिकतर माओं को डिलीवरी के बाद अपने होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य की चिंता सताती है, कि कहीं वे किसी खराबी या किसी जन्मजात बीमारी के साथ पैदा न हो जाएं, जो कि उनके जीवन पर प्रभाव डाले। आपको यह बात याद रखनी चाहिए, कि इनमें से अधिकतर समस्याएं नियमित चेकअप के दौरान पता चल जाती हैं। इसलिए ऐसी किसी भी परिस्थिति की संभावना की स्थिति में आप को पहले से ही पता होगा। आधुनिक चिकित्सा आज के समय में इतना आगे बढ़ चुकी है, कि संभवतः हर समस्या का समाधान डॉक्टर्स निकाल सकते हैं।
माँ बनने वाली स्त्रियां अक्सर इस बात की चिंता करती हैं, कि सोते हुए अगर वह अपने पेट को दबा लें या गिर जाएं या ऐसी किसी अन्य स्थिति में उनके बच्चे को नुकसान पहुँच सकता है। लेकिन इस बारे में आपको बेफिक्र रहना चाहिए, क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चा पेट के अंदर एमनियोटिक फ्लुइड नाम के एक पदार्थ से घिरा होता है। यह न केवल उसे सभी न्यूट्रिएंट्स प्रदान करता है, बल्कि उसे किसी तरह की आकस्मिक चोट से भी बचाता है। इसलिए सामान्य रूप से गिरने या चोट लगने की स्थिति में बच्चे को कोई नुकसान नहीं होगा और वह बिल्कुल स्वस्थ रहेगा।
आज के दिन और समय में अपने बच्चे के लिए एक अच्छी माँ न बन पाना सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। महिलाओं को यह चिंता सताती है, कि वे नैपी बदलने या दूध पिलाने जैसे काम करना कैसे सीख पाएंगी या अगर बच्चा बीमार हो जाए, तो वे क्या करेंगी। हालांकि, इस तरह की चिंताएं और डर बिल्कुल वास्तविक और सामान्य हैं, पर आपको यह पता होना चाहिए, कि एक पेरेंट के तौर पर इस सफर में आप अकेली नहीं होंगी। अगर आपका पार्टनर आपके साथ नहीं भी है, तो भी आप मदद के लिए अपने परिवार और दोस्तों पर भरोसा कर सकती हैं और जरूरत पड़ने पर उनसे उचित सलाह भी ले सकती हैं। इसके अलावा आपके बच्चे के स्वास्थ्य संबंधी सवालों के लिए आपके पास आपका डॉक्टर भी होगा। प्रेग्नेंसी के समय आपके पास जो समय है, उसे मातृत्व के ऊपर अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ने में बिताएं। इससे आपको पता चलेगा, कि अच्छी माँ बनने के सफर में आप क्या उम्मीद कर सकती हैं और साथ ही इस सफर में आने वाले डर को दूर करने में भी मदद मिलेगी।
जहाँ गर्भावस्था का यह सफर रोमाँचक और मजेदार हो सकता है, वहीं यह कई प्रकार के डर और चिंताएं भी लेकर आता है। इन डर और चिंताओं से छुटकारा पाने का और अपने आप को तनाव मुक्त रखने का सबसे बेहतरीन उपाय यह है, कि अपने आसपास ऐसा सपोर्ट सिस्टम रखें, जो आपके और आपके बच्चे का भला सोचे। शुरुआती प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले डर से निजात पाने का सबसे बेहतरीन तरीका है, कि अपने डॉक्टर से खुलकर बात कीजिए। आपका डॉक्टर आपको इस तरह के डर से निपटने के लिए तैयार कर सकता है। प्रेगनेंसी के बारे में अधिक डरावनी कहानियां ना सुने या ना पढें, खासकर जो इंटरनेट पर फैली होती है उनसे दूर रहें। हमेशा अपने आसपास सकारात्मक माहौल बनाएँ रखना ना भूलें और आपकी प्रेगनेंसी निश्चित रूप से एक सुखद अनुभूति बन जाएगी।
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