गर्भावस्था

गर्भावस्था को प्रभावित करनेवाले 21 इन्फेक्शन

गर्भावस्था हर महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत चरण है। इस समय वह अपनी हेल्थ, न्यूट्रिशन, लाइफस्टाइल और अपने आसपास का पूरा ध्यान रखती है और साथ ही घर के सभी लोग उसे पैंपर करते हैं। हालांकि गर्भावस्था के साथ कई सारी परेशानियां भी आती हैं और इस चरण में बीमार पड़ने से आपको काफी ज्यादा तकलीफ हो सकती है। इस समय महिला के शरीर में इन्फेक्शन भी बहुत जल्दी होते हैं। इसलिए इनसे बचने के लिए सावधानियां बरतना बहुत जरूरी है। इस आर्टिकल में आप यह समझ सकती हैं कि एक गर्भवती महिला को कौन सा इन्फेक्शन हुआ है और इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है। 

गर्भवती महिलाओं को जल्दी इन्फेक्शन क्यों होता है

हमारा शरीर वायरस और बैक्टीरिया को प्राकृतिक रूप से दूर करने में सक्षम है। इन्फेक्शन की संभावनाओं को कम करने के लिए शरीर में एंटीबाडीज खुद ही उत्पन्न होते हैं पर कभी-कभी शरीर में पर्याप्त रूप से एंटीबाडीज उत्पन्न नहीं हो पाते जिसकी वजह से इन्फेक्शन हो सकता है। 

गर्भावस्था के दौरान यदि महिला की इम्युनिटी कमजोर है तो इससे उसे बहुत जल्दी इन्फेक्शन होता है। गर्भावस्था में इम्यून सिस्टम ही बच्चे व माँ को सुरक्षित रखने में मदद करता है। यह बैलेंस बनाने में मदद करता है इसलिए इस मेकैनिज्म के कुछ भाग बढ़ते हैं और कुछ भाग नष्ट हो जाते हैं। 

गर्भवती महिला में शारीरिक और हॉर्मोनल बदलाव होने की वजह से भी उसे इन्फेक्शन हो सकता है। गर्भधारण, लेबर और डिलीवरी के दौरान महिला का शरीर कई इन्फेक्शन्स के संपर्क में आ सकता है जिससे उसकी समस्याएं अधिक बढ़ सकती हैं। 

इसलिए खुद को व बच्चे को हेल्दी रखने और इन्फेक्शन होने की संभावनाओं को कम करने के लिए गर्भावस्था के दौरान हेल्दी लाइफस्टाइल बनाए रखना बहुत जरूरी है। 

गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करनेवाले इन्फेक्शन की लिस्ट

गर्भावस्था के दौरान इन्फेक्शन होने से कॉम्प्लीकेशंस बढ़ जाती हैं क्योंकि यह माँ के साथ-साथ कुछ मामलों में गर्भ में पल रहे बच्चे को भी प्रभावित करता है। 

इन इन्फेक्शन्स के बारे में जानना और समय से इसका इलाज करवाने से जीवन का बचाव किया जा सकता है। गर्भावस्था के दौरान आपको या बच्चे को निम्नलिखित इन्फेक्शन हो सकते हैं जिनका समय पर उपचार करना जरूरी है। वे कौन से इन्फेक्शन हैं, आइए जानें;

1. हेपेटाइटिस बी

हेपेटाइटिस बी वायरस से लिवर पर प्रभाव पड़ता है जिसकी वजह से शरीर में टॉक्सिन्स उत्पन्न हो जाते हैं। गर्भवती महिला की पहली विजिट में ही डॉक्टर उसमें हेपेटाइटिस की जांच करते हैं। आपको इसके लक्षण नहीं भी दिखाई दे सकते हैं पर डिलीवरी के दौरान यह वायरस बच्चे को भी हो सकता है। यह वायरस इन्फेक्टेड व्यक्ति के साथ बिना प्रोटेक्शन के सेक्स करने से होता है या इन्फेक्टेड खून के सीधे संपर्क में आने से भी हो जाता है। जन्म के दौरान या बाद में बचाव के लिए हेपेटाइटिस बी का टेस्ट करवाना महत्वपूर्ण है ताकि बच्चे को यह वायरस न हो। 

इसके लक्षणों में पेट दर्द, उल्टी, जॉन्डिस, जोड़ों में दर्द और भूख में कमी शामिल है। 

यदि आपको यह इन्फेक्शन होने का खतरा है तो डॉक्टर हेपेटाइटिस बी इम्यूनाइजेशन करने की सलाह नहीं देते हैं। इसके अलावा बच्चे का इम्यूनाइजेशन जन्म के 12 महीनों के बाद होता है। जिन बच्चों में यह इन्फेक्शन होने का अधिक खतरा है उन्हें जन्म होने पर हेपेटाइटिस बी इम्यूनोग्लोबिन (एचबीआईजी) के डोज दिए जाते हैं। यदि डिलीवरी के दौरान माँ पॉजिटिव है तो डॉक्टर बच्चे को जन्म के 24 घंटे बाद, दो महीने की आयु में और 6-18 महीने की आयु में कभी भी वैक्सीन दे सकते हैं। 

2. हेपेटाइटिस सी

हेपेटाइटिस सी से भी लिवर पर प्रभाव पड़ता है। यद्यपि यदि आपको यह इन्फेक्शन हुआ है तो आपमें इसके लक्षण दिखाई नहीं देंगे पर इसमें आपको मतली हो सकती है जो गर्भावस्था के दौरान होना बहुत कॉमन है और इसकी वजह से इन्फेक्शन को डायग्नोज करना कठिन है। यह वायरस अक्सर खून चढ़ाने से, सीधे खून के संपर्क में आने से, मेडिकल या डेंटल ट्रीटमेंट होने की जगहों से हो सकता है जहाँ पर अन्य इन्फेक्टेड लोग आ सकते हैं। यह इन्फेक्शन जन्म के दौरान माँ से बच्चे में भी हो सकता है। 

3. यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (यूटीआई)

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन या यूटीआई इन्फेक्शन यूरिनरी ट्रैक्ट में बैक्टीरिया की वजह से होता है जो मूत्रमार्ग में जाकर त्वचा, रेक्टम या वजायना में आते हैं। यह इन्फेक्शन ब्लैडर (सिस्टाइटिस), किडनी (पाइलोनेफ्रैटिस) को प्रभावित कर सकता है या ऐसे बैक्टीरिया से भी हो सकता है जिसके लक्षण दिखाई न दें। पाइलोनेफ्रैटिस और बिना लक्षणों के बैक्टीरिया से समय से पहले लेबर और जन्म के दौरान बच्चे का वजन कम हो सकता है।

यूटीआई में महिलाओं को पेशाब करते समय दर्द व जलन होती है या यूरिन क्लॉउडी होती है या इसमें दुर्गंध भी आ सकती है और इसके अलावा यूरिन में खून भी आ सकता है, ब्लैडर में यूरिन न होने पर भी बार-बार पेशाब लग सकती है और पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है। 

इस इन्फेक्शन से बचने के लिए आप बहुत सारा पानी पिएं, पेशाब को देर तक न रोकें, हाइजीन सही बनाए रखें और पेशाब करने के बाद आगे से पीछे की ओर साफ करें। इसका ट्रीटमेंट करने के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक्स की कम खुराक प्रिस्क्राइब करते हैं। 

4. वजायनल इन्फेक्शन या योनि में इन्फेक्शन

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने के वजह से उन्हें वजायनल यीस्ट इन्फेक्शन होता है और प्रोजेस्टेरोन बढ़ने की वजह से कैंडाइडिल इन्फेक्शन हो सकता है। इसकी वजह से वजायना में जलन होती है और साथ ही सफेद व पीले रंग का गाढ़ा डिस्चार्ज भी होता है। इसे ठीक करने के लिए डॉक्टर अक्सर ऑइंटमेंट प्रिस्क्राइब करते हैं। 

5. सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन या यौन संचारित रोग

गर्भवती महिलाओं को बहुत जल्दी सेक्शुअली ट्रांसमिटेड रोग होता है जिसके कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। एसटीडी का सबसे सामान्य प्रकार क्लैमाइडिया है। जिन गर्भवती महिलाओं को एसटीडी होता है जन्म के दौरान उनके बच्चे का वजन कम रहता है। इसकी वजह से गर्भवती महिलाओं में प्रीमैच्योर डिलीवरी, जेस्टेशनल ब्लीडिंग या मिसकैरेज का भी खतरा होता है। जन्म के दौरान महिला का इन्फेक्शन बच्चे को भी हो सकता है जिसे एंटीबायोटिक्स की मदद से ठीक किया जा सकता है। 

6. चिकन पॉक्स या छोटी माता

यदि आपको पहले भी चिकन पॉक्स हुआ है या आप इम्युनाइज्ड हुई हैं तो पूरी संभावना है कि आपको दोबारा से चिकन पॉक्स नहीं होगा। सुरक्षा के लिए आपकी खून की जांच से जाना जाएगा कि क्या आप इम्यून हैं या नहीं। 

हालांकि यदि पहली या दूसरी तिमाही में आपको चिकन पॉक्स होता है तो बच्चे को इसके कारण वेरीसेला सिंड्रोम होने का खतरा होता है जिसकी वजह से मानसिक व शारीरिक अक्षमता हो सकती है। बच्चे में कोई भी विकार जांचने के लिए डॉक्टर अल्ट्रासाउंड करते हैं। यदि आपको यह इन्फेक्शन तीसरी तिमाही में हुआ है तो यह आपके लिए अच्छा है क्योंकि इस समय आपके बच्चे में प्लेसेंटा से एंटीबॉडीज पहुँच चुके होते हैं और उनमें इन्फेक्शन होने का खतरा कम होता है। 

चिकन पॉक्स में माइल्ड फ्लू होने के साथ-साथ शरीर में लाल रंग के छाले होते हैं। यदि आपको ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो सही इलाज के लिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

7. जर्मन मीजल्स या रूबेला

गर्भावस्था के शुरूआती चार महीनों में रूबेला होने से बच्चे को गंभीर रूप से क्षति हो सकती है जिसमें बच्चे के मस्तिष्क और दिल के विकार, सुनने में अक्षमता और मोतियाबिंद भी शामिल है। इसकी वजह से मिसकैरेज भी हो सकता है। 

रूबेला के लक्षणों में माइल्ड फ्लू, बुखार, लाल-पिंक रंग के रैशेज, लिम्फ नोड में सूजन, पीड़ा व आँखों में लालपन और जोड़ों में दर्द भी शामिल है। यदि आपको रूबेला हो जाता है तो आप जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी डॉक्टर से संपर्क करें। यद्यपि गर्भावस्था के चौथे महीने में इसकी स्क्रीनिंग करने से वायरस का पता लगाया जा सकता है पर फिर भी गर्भधारण के पहले ही सभी जांच हो जानी चाहिए और साथ ही रोगों को ठीक करने के लिए वैक्सीनेशन ली जानी चाहिए।

8. ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस

बच्चों में ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस इन्फेक्शन होने से भी उनके जीवन को खतरा होता है और माँ पर इसके उल्टे प्रभाव पड़ते हैं। गर्भावस्था के दौरान जीबीएस होने से ब्लैडर में इन्फेक्शन होता है, मृत बच्चे का जन्म होता है या एंडोमेट्राइटिस (यह एक दर्दनाक समस्या है जिसमें टिश्यू गर्भाशय के अंदर उत्पन्न होता है और बाहर की ओर बढ़ता है) भी हो सकता है। कई बार यह इन्फेक्शन होने से इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं और इसलिए गर्भावस्था के 35-37वें सप्ताह में स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना बहुत जरूरी है। इस इन्फेक्शन की वजह से एमनियोटिक थैली फट सकती है और बच्चे में प्रभाव पड़ता है, डिलीवरी के दौरान महिला को बुखार आ सकता है या प्रीमैच्योर डिलीवरी भी हो सकती है। इसे ठीक करने के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक्स प्रिस्क्राइब करते हैं। 

9. बैक्टीरियल वजाइनोसिस

बैक्टीरियल वजाइनोसिस वजायना यानी योनि में बैक्टीरिया के असंतुलन से होता है। जब वजायना में लैक्टोबैसिली, एक आवश्यक बैक्टीरिया कम हो जाता है तो यह इन्फेक्शन होता है और जन्म के दौरान बच्चे का वजन कम रहता है, प्रीमैच्योर बच्चे का जन्म होता है या दूसरी तिमाही में मिसकैरेज भी हो सकता है। 

सेक्स करने के बाद वजायना से ग्रे या सफेद डिस्चार्ज के साथ दुर्गंध आना या पेशाब करते समय जलन होना इन्फेक्शन का संकेत है। 

इसे सुरक्षित एंटीबायोटिक्स के उपयोग से ठीक किया जा सकता है और इसमें किसी भी प्रोडक्ट का उपयोग करने से बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ सकता है, जैसे जेनिटल्स के लिए हाइजीन स्प्रे का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

10. वायरल इन्फेक्शन

गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चे को कुछ प्रकार के वायरल इन्फेक्शन प्रभावित कर सकते हैं, जैसे टॉक्सोप्लाज्मोसिस, रूबेला, सीएमवी, हर्पीस, फिफ्थ डिजीज, वैरिसेला-जोस्टर वायरस (वीजेडवी), मीजल्स वायरस, एन्टेरोवायरस, एडेनोवायरस, एचआईवी, जीका वायरस। यह वायरस प्लेसेंटा से, खून से, ब्रेस्टफीडिंग से या वजायनल फ्लूइड से बच्चे में भी जा सकते हैं। इससे बच्चे में जन्मजात दोष, बच्चे का मृत जन्म या यहाँ तक कि माँ की मृत्यु भी हो सकती है। 

इनमें से कुछ इन्फेक्शन के बारे में इस आर्टिकल में बताया गया है। 

11. फिफ्थ डिजीज (पर्वोवायरस)

फिफ्थ डिजीज पर्वोवायरस बी19वी की वजह से होता है। यह इन्फेक्शन अक्सर छोटे बच्चों में होता है जिसकी वजह से उनके गाल में थप्पड़ के निशान जैसे लाल रंग के रैशेज होते हैं। इसके अन्य लक्षण हैं, जैसे नाक बहना, फ्लू और दर्द। एक नॉर्मल महिला को इससे कोई भी खतरा नहीं है पर यदि किसी भी महिला का आरबीसी अनियमित है तो उसके लिए इस इन्फेक्शन से खतरा होता है क्योंकि यह आरबीसी के उत्पादन को रोक देता है। 

यह इन्फेक्शन सलाइवा या बलगम और नाक से डिस्चार्ज होने से फैलता है। गर्भावस्था के दौरान इसकी वजह से मृत बच्चे का जन्म होता है, मिसकैरेज हो सकता है, बच्चे में दिल से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं और गर्भ में बच्चे को एनीमिया हो सकता है। यदि यह इन्फेक्शन दूसरी तिमाही में होता है तो इस समस्या को हाइड्रॉप्स कहते हैं जिससे टिश्यू में फ्लूइड की मात्रा बढ़ती है। 

यदि गर्भावस्था में यह इन्फेक्शन होता है तो डॉक्टर अल्ट्रासाउंड से बच्चे में फ्लूइड की मात्रा चेक करते हैं। 

12. चिकनगुनिया

चिकनगुनिया मच्छरों से फैलता है और यह जन्म के दौरान बच्चे को भी हो सकता है। बड़ों को चिकनगुनिया होने पर जोड़ों में सूजन, सिर में दर्द या मांसपेशियों में दर्द होता है। इससे बच्चे को दूध पिलाने में कठिनाई होती है, त्वचा में समस्याएं होती हैं और बच्चे को बुखार भी आ सकता है। यद्यपि इस बीमारी की कोई भी दवाई नहीं है इसलिए ढेर सारा पानी पीने और आराम करने से इसके लक्षण कम हो सकते हैं। 

13. साइटोमेगालोवायरस

साइटोमेगालोवायरस (सीएमवी) एक डबल स्ट्रेन्डेड हर्पीस वायरस है और यह शारीरिक फ्लूइड के संपर्क में आने से फैलता है। बच्चे को जन्म से ही सीएमवी हो सकता है और इसके संकेत हैं, जैसे सिर छोटा होना, नर्वस सिस्टम में अब्नॉर्मलिटी होना और बढ़ा हुआ स्प्लीन, लीवर व जॉन्डिस होना। इसकी वजह से बच्चे मृत पैदा होते हैं और कुछ बच्चों को गंभीर रूप से सुनने, देखने और न्यूरल समस्याएं होती हैं। इस इन्फेक्शन से बचने के लिए आप हाईजीन बनाए रखें और यदि गर्भावस्था में आपको यह इन्फेक्शन होता है तो आप बच्चे का स्वास्थ्य जानने के लिए अल्ट्रासाउंड करवा सकती हैं। 

14. डेंगू बुखार

डेंगू का बुखार भी मच्छरों के काटने से होता है यदि माँ से बच्चे को डेंगू हो जाता है तो इससे प्रीमैच्योर लेबर, जन्म के दौरान बच्चे का कम वजन और मृत बच्चे का जन्म भी हो सकता है। इसके कुछ लक्षण हैं, जैसे तेज बुखार आना, सिर में तेज दर्द होना, जोड़ों में दर्द होना, मांसपेशियों व हड्डियों में दर्द जाना और नाक व मसूड़ों में हल्की ब्लीडिंग होना। गर्भावस्था के दौरान डेंगू से बचने के लिए आपको मच्छरों से दूर रहना चाहिए। 

15. एचआईवी

ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएन्सी वायरस (एचआईवी) से व्यक्ति का इम्यून सिस्टम प्रभावित होता है। गर्भावस्था के दौरान जांच के समय में डॉक्टर इसका भी एक कॉन्फिडेंशियल स्क्रीनिंग टेस्ट करते हैं और गर्भवती महिलाओं की काउंसिलिंग करते हैं। यदि एचआईवी के टेस्ट के दौरान यदि महिला को अक्वायर्ड इम्यूनोडेफिसिएन्सी सिंड्रोम (एड्स) होता है तो बीमारी के इस चरण में खतरे हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान, जन्म के समय और यहाँ तक कि ब्रेस्टफीडिंग करवाते समय यह वायरस माँ से बच्चे तक भी पहुँच सकता है। यदि एक एचआईवी पॉजिटिव महिला बच्चे को जन्म देती है तो जन्म के दौरान ही डॉक्टर स्क्रीनिंग टेस्ट करते हैं। इस समस्या से जीवन को खतरा होता है और यदि गर्भावस्था के दौरान महिला को यह इन्फेक्शन हुआ है तो उसे समय पर इससे बचाव कर लेना चाहिए ताकि वह एक हेल्दी बच्चे को जन्म दे सके। 

16. हर्पीस

यदि आपके पति को घाव या दाद या ओरल हर्पीस है और आप उनके साथ ओरल सेक्स करती हैं या जेनिटल संपर्क भी होता है तो इससे आपको हर्पीस इन्फेक्शन हो सकता है। इससे वजायना या वल्वा में लाल दाद हो सकता है जो एक छाले में बदल जाता है और बाद में फूटने के कारण इसमें दर्द होता है। गर्भावस्था की शुरूआत में हर्पीस को ठीक किया जा सकता है पर गर्भावस्था के अंतिम चरण में बच्चे को इन्फेक्शन होने से बचाने के लिए सी-सेक्शन करना पड़ सकता है। 

17. लिस्टेरियोसिस

यदि खाने में बैक्टीरियम लिस्टिरिया मोनोसाइटोजन्स हैं तो इससे लिस्टेरियोसिस इन्फेक्शन हो सकता है। यद्यपि यह बहुत दुर्लभ रोग है पर इससे महिला की इम्युनिटी कमजोर होती है और इसलिए गर्भावस्था के दौरान उसे जल्दी ही इन्फेक्शन हो जाता है। यह प्लेसेंटा और एम्नियोटिक फ्लूइड को भी संक्रमित कर सकता है जिससे मृत बच्चे का जन्म होता है या प्रीमैच्योर डिलीवरी भी हो सकती है। 

18. टोक्सोप्लाजमोसिस

यह इन्फेक्शन टॉक्सोप्लाज्मा गोंडी नामक पैरासाइट से होता है और गर्भावस्था बढ़ने के साथ ही बच्चे में माँ से इन्फेक्शन होने का खतरा भी बढ़ता है। हालांकि यदि पहली तिमाही में यह इन्फेक्शन माँ से बच्चे में होता है तो यह अधिक गंभीर हो सकता है। यह इन्फेक्शन आधे पके हुए मीट या खाद्य पदार्थ खाने से, दूषित मिट्टी छूने से या बिल्ली की पॉटी से भी हो सकता है। यह इन्फेक्शन किसी और तरीके से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं होता है पर जन्म के दौरान या अंग ट्रांसप्लांट करते समय या खून देते समय यह इन्फेक्शन माँ से बच्चे को हो जाता है। 

19. ट्राइकोमोनिएसिस

ट्राइकोमोनिएसिस या ट्रिच इन्फेक्शन माइक्रोस्कोपिक पैरासाइट्स से होते हैं जो फ्लूइड के माध्यम से पूरे शरीर में तैरते रहते हैं और इससे प्रीमैच्योर डिलीवरी हो सकती है, समय से पहले मेम्ब्रेन की क्षति हो सकती है। इससे वजायना लाल हो जाता है या इसमें हरे व पीले रंग के डिस्चार्ज के साथ खुजली होती है और दुर्गंध भी आती है। बच्चे को इस इन्फेक्शन से बचाने के लिए डॉक्टर उसे एंटीबायोटिक्स प्रिस्क्राइब करते हैं। 

20. ज़ीका वायरस

ज़ीका वायरस मच्छरों से होता है या फिर सेक्स करने से होता है। गर्भस्थ के दौरान इसकी वजह से बच्चे में माइक्रोसेफैली (अब्नॉर्मल तरीके से छोटा सिर) हो सकता है। बाद के कुछ सालों में इससे देखने की क्षमता, सुनने की क्षमता और बोलने की क्षमता में हानि होती है, बच्चे का विकास धीमा होता है। ज़ीका से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप उस जगह पर बिलकुल भी न रहें जहाँ पर ज़ीका वायरस हो सकता है। 

21. जानवरों से होने वाले इन्फेक्शन

टॉक्सोप्लाज्मोसिस एक ऐसा इन्फेक्शन है जो बिल्ली की पॉटी के संपर्क में आने से होता है। इसी प्रकार से भेड़ों या भेड़ के बच्चों में क्लैमिडिया नाम का ऑर्गेनिज्म होता है जिसकी वजह से गर्भवती महिलाओं का मिसकैरेज भी हो सकता है। भेड़ या भेड़ के बच्चों में भी टॉक्सोप्लाज्मा होता है। इसलिए इस दौरान भेड़ों का दूध निकालने या इन्हें संभालने से बचना चाहिए। पिग्स से हेपेटाइटिस इ होता है और गर्भावस्था के दौरान इससे अत्यधिक खतरे हो सकते हैं।

गर्भवती महिलाओं के लिए इन्फेक्शन से बचाव व उपचार

गर्भावस्था के दौरान बच्चे के स्वास्थ्य के लिए शुरूआत में ही ट्रीटमेंट करवाने और सावधानियां बरतने की जरूरत होती है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को निम्नलिखित बचाव करने चाहिए, आइए जानें;

  • गर्भावस्था में और इससे पहले भी आपको सभी आवश्यक इम्यूनाइजेशन करवानी चाहिए।
  • समय से इलाज के लिए आपको इन्फेक्शन होने की जांच करवानी चाहिए।
  • लगातार साबुन व पानी से हाथ धोएं।
  • इन्फेक्टेड व्यक्तियों के संपर्क से दूर रहें।
  • हमेशा पाश्चुरीकृत दूध पिएं।
  • आप विशेषकर मीट पूरा पका हुआ खाएं।
  • ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं।
  • अपनी हेल्दी व बैलेंस्ड डायट बनाए रखें।

आपको हमेशा इन्फेक्शन होने का पता नहीं चलता है इसलिए जरूरी है कि आप शरीर में होने वाले हर छोटे-बड़े बदलाव पर ध्यान दें ताकि आप गर्भ में पल रहे बच्चे की सुरक्षा कर सकें। हम जानते हैं कि आप अपने आनेवाले मेहमान को अपनी गोद में खिलाने के लिए पूरी तैयार हैं।

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सुरक्षा कटियार

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