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गर्भावस्था के दौरान पेल्विक गर्डल में दर्द (पीजीपी) होना एक आम समस्या है। यदि आप गर्भवती हैं तो इसके बारे में आपको पता होना चाहिए। पीजीपी पहली तिमाही में भी शुरू हो सकता है और डिलीवरी के कुछ दिन पहले भी शुरू हो सकता है।
गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में पेल्विक गर्डल का दर्द इस वजह से हो सकता है क्योंकि गर्भ में पल में रहे बच्चे का सिर पेल्विक की ओर घूमने लगता है जिसे एंगेजिंग कहते हैं। पीजीपी गर्भावस्था में शुरू होता है पर यह दर्द आपको बच्चे के जन्म के बाद भी हो सकता है और ऐसा भी हो सकता है कि यह दर्द आपको बिलकुल भी न हो। हालांकि यदि ऐसा होता है तो इसके कारण, लक्षण और उपचार जानने के बाद आपको थोड़ी मदद मिल सकती है। गर्भावस्था के दौरान पेल्विक गर्डल में दर्द के बारे में जानने के लिए यह आर्टिकल पूरा पढ़ें।
पेल्विस शरीर का वो भाग है जहाँ पर हिप्स की हड्डियां होती है। हिप्स की हड्डियों को प्युबिस सिंफिसिस सामने से जोड़ता है जो बहुत कठोर जॉइंट है। पीछे से यह सेक्रम हड्डी से जुड़ी होती है। मजबूत लिगामेंट्स का नेटवर्क इन हड्डियों को जगह पर रखता है।
पेल्विक गर्डल के लिए ‘अम्ब्रेला’ टर्म दिया गया है जो पेल्विस के जॉइंट्स में दर्द की व्याख्या करता है और इसमें शामिल हैं;
डिलीवरी के दौरान बच्चा बर्थ कैनाल से बाहर निकलता है जो पेल्विस में स्थित है। जब आप गर्भवती होती हैं तो शरीर में रिलैक्सिन नामक हॉर्मोन उत्पन्न होता है और यह पेल्विस की लिगामेंट्स को मुलायम बना देता है। इसकी वजह से लिगामेंट्स स्ट्रेच होने लगते हैं ताकि बच्चा ठीक से बाहर आ सके। यही कारण है कि गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद पेल्विक जॉइंट्स ज्यादा हिलते हैं। गर्भावस्था के दौरान शरीर में रिलैक्सिन बढ़ता है और पहली तिमाही में इसकी मात्रा बढ़ती रहती है। गर्भावस्था के शुरूआती चरण में यह धीरे-धीरे बढ़ता है और अंतिम सप्ताहों में इसकी मात्रा बहुत ज्यादा हो जाती है।
कभी-कभी हॉर्मोन्स की वजह से हड्डियों के जोड़ और लिगामेंट्स रिलैक्स हो जाते हैं जिसकी वजह से पेल्विस की हड्डियों के बीच में 9 मिमी का गैप आ जाता है और इसे डायस्टैसिस सिंफिसिस प्युबिस (डीएसपी) कहते हैं। हालांकि जरूरी नहीं है कि गर्भावस्था में डीएसपी की वजह से पीजीपी होता है। इस दौरान आपकी पेल्विक की गर्डल की मांसपेशियां फ्लेक्सिबल होती हैं। जिसके परिणामस्वरूप शरीर और इसके पोस्चर में भी सुधार होता है क्योंकि गर्भ में बच्चे का विकास ठीक से हो रहा है।
गर्भावस्था के दौरान पेल्विक गर्डल में दर्द होने के कई निम्नलिखित कारण हैं, आइए जानें;
अक्सर जब आप चलती हैं, बैठती हैं या लेटती हैं तो आपका पेल्विस लॉक्ड पोजीशन में या स्थिर होता है। गर्भावस्था के दौरान कभी-कभी आपको अनलॉक या कम स्थिर पेल्विस के साथ भी एक्टिविटीज करनी पड़ सकती हैं जिसकी वजह से दर्द होता है।
इसके परिणामस्वरूप जॉइंट्स में सूजन हो जाती है और पीजीपी होने का यह एक मुख्य कारण है।
आधी से भी ज्यादा गर्भवती महिलाओं को पेल्विक गर्डल में या पीठ में दर्द होता है।
यद्यपि गर्भावस्था के दौरान पेल्विक गर्डल में दर्द होना सामान्य है पर इसे हल्के में बिलकुल भी नहीं लेना चाहिए। यह जरूरी है कि आप इस दर्द को नजरअंदाज न करें और डॉक्टर को जरूर दिखाएं। यदि आप इसका इलाज नहीं करवाती हैं तो यह समस्या अधिक बढ़ सकती है।
हर महिला में इसके दर्द की जगह और इसकी तीव्रता अक्सर अलग-अलग होती है। इसमें आपको सिर्फ एक तरफ दर्द हो सकता है या इसमें दर्द एक तरफ से दूसरी तरफ भी जा सकता है। इसमें आपके हिप्स या पैरों के पीछे भी दर्द हो सकता है। आप पीजीपी और साइटिका में कन्फ्यूज हो सकती हैं क्योंकि इसके कई लक्षण एक जैसे ही होते हैं। पीजीपी और एसपीडी के लक्षण निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
यदि आप सही से देखभाल नहीं करती हैं तो यह दर्द बढ़ सकता है। इसमें कुछ एक्टिविटीज आरामदायक मानी जाती हैं पर इससे बहुत ज्यादा दर्द होता है। पीजीपी की वजह से लेटने या बिस्तर पर करवट लेने पर और यहाँ तक कि कुछ सेक्स पोजीशन में भी आपको काफी दर्द हो सकता है। यदि आप ज्यादा देर तक खड़ी होती हैं या बैठती हैं तो इससे भी आपका दर्द बढ़ता है। रात में इसके लक्षण अत्यधिक प्रभावी होते हैं।
पेल्विक गर्डल में दर्द होने से अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं जो गर्भावस्था के इस सफर को कठिन बना सकती हैं। लगातार दर्द होने की वजह से आप बहुत ज्यादा परेशान भी हो सकती हैं और आपमें भावनात्मक लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जैसे डिप्रेशन, दुःख, अकेलापन, चिड़चिड़ापन, बुरा लगना और गुस्सा।
पीजीपी एक बहुत बड़ा विषय है जिसमें निम्नलिखित विभिन्न प्रकार शामिल हैं, आइए जानें;
यहाँ पर पीजीपी दर्द के अन्य प्रकार भी बताए गए हैं, आइए जानें;
यदि आपकी पेल्विस मजबूत है तो इससे गर्भावस्था ठीक रहती है और डिलीवरी में कम दर्द होता है। गर्भावस्था के दौरान पेल्विक फ्लोर में बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है और बच्चे के जन्म से पहले ही यह कमजोर होते लगती है। इसमें खिंचाव भी होता है। डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को अक्सर पेल्विक फ्लोर से संबंधित एक्सरसाइज करने की सलाह देते हैं ताकि इसमें कमजोरी न आए। मजबूत मांसपेशियां गर्भ में पल रहे बच्चे के वजन को सपोर्ट देती हैं और डिलीवरी के बाद एनस व वजायना के बीच की मांसपेशियों को ठीक रखती हैं।
पेल्विस शरीर का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भाग है जिसमें बच्चे के जन्म के दौरान जोर पड़ता है। शरीर के इस भाग पर बहुत ज्यादा प्रेशर नहीं आना चाहिए और इसकी देखभाल भी होनी चाहिए क्योंकि इसकी वजह से बाद में बहुत सारी कॉम्प्लीकेशंस हो सकती हैं और इससे आपको गंभीर दर्द हो सकता है।
जिन महिलाओं की गर्भवस्था का बाद का चरण है उन्हें पीजीपी होने खतरा अधिक होता है। पीजीपी होने की रिस्क निम्नलिखित मामलों में ज्यादा है, आइए जानें;
यदि आपको पेल्विक क्षेत्र में अत्यधिक दर्द होता है तो डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा यदि आपकी पीठ में भी बहुत ज्यादा दर्द है तो इस बारे में भी आप डॉक्टर से जरूर बात करें। डॉक्टर जांच करने के साथ पूछ सकते हैं कि आपको वास्तव में कहाँ पर दर्द हो रहा है। इस दर्द में कौन सी एक्टिविटीज और मूवमेंट्स शामिल हैं, इस बारे में आपको पता होना चाहिए ताकि डायग्नोसिस के दौरान आप डॉक्टर को सही जानकारी दे सकें।
पीजीपी को अक्सर लोग व यहाँ तक कि डॉक्टर भी साइटिका समझते हैं। आप पूरी जानकारी के लिए इसकी जांच फिजियोथेरेपिस्ट से करवा सकती हैं। हालांकि फिजियोथेरेपिस्ट ऐसा होना चाहिए जिसे गर्भवती महिलाओं की जांच करने का अनुभव हो।
गर्भावस्था के दौरान पेल्विस में दर्द का इलाज करना कठिन नहीं है। आप इस दर्द को कम करने के लिए बहुत सारी चीजें कर सकती हैं। लाइफस्टाइल में थोड़े बहुत बदलाव और नियमित रूप से एक्सरसाइज करने से आपका पीजीपी का दर्द ठीक हो सकता है और गर्भावस्था में सुधार आ सकता है।
गर्भावस्था के दौरान पेल्विक दर्द को ठीक करने के लिए यहाँ कुछ तरीके बताए गए हैं, आइए जानें;
डॉक्टर से पूछें कि चलते समय, खड़े होने पर या अन्य कोई एक्टिविटी करते समय पेल्विस को लॉक कैसे किया जाता है जिसमें आपको दर्द हो सकता है। रोजाना कोई भी एक्टिविटी करते समय खयाल रखने से आपका दर्द कम हो सकता है।
यदि आपको बहुत ज्यादा दर्द होता है तो डॉक्टर पेल्विस में सपोर्ट के लिए बेल्ट दे सकते हैं।
पेल्विक फ्लोर और पेट की कुछ एक्सरसाइज करने से आपको मदद मिल सकती है।
इस दौरान एक्वेंटल क्लास ज्वाइन करने की सलाह दी जाती है जिसमें पानी में एक्सरसाइज करना भी शामिल है। इससे आपको काफी हद तक आराम मिल सकता है। हालांकि इस बात का ध्यान रखें कि आप विशेष गर्भवती महिलाओं के लिए डिजाइन की हुई क्लास में ही जाएं।
एक्यूपंक्चर भी काफी हद तक आराम के लिए ही जाना जाता है। हालांकि इसके लिए जाने से पहले आप यह जरूर पता कर लें कि यहाँ पर गर्भवती महिलाओं में पीजीपी ठीक करने से संबंधित अनुभवी लोग हों। यदि इससे आपको मदद नहीं मिलती है तो डॉक्टर आपको पैरासिटामोल जैसी दर्द निवारक दवाइयां दे सकते हैं।
वैसे तो पीजीपी की वजह से लेबर पर कोई भी असर नहीं पड़ता है। यदि फिर भी आप चाहें तो यहाँ कुछ पोजीशन दी गई हैं जो आप अपना सकती हैं;
आप डॉक्टर की मदद से सभी उचित पोजीशन के बारे में जानें ताकि डिलीवरी में आपको दर्द कम हो और यह आपके लिए आसान हो जाए।
पेल्विक गर्डल में दर्द की वजह से आपके लिए पैरों को दूर-दूर रखना कठिन हो सकता है। यदि आपको यह समस्या होती है तो आपके लिए कौन सी पोजीशन सबसे सही होगी यह जानने के लिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। यदि गंभीर रूप से दर्द होता है तो डिलीवरी में भी आपको मदद की जरूरत हो सकती है। यदि ज्यादातर पोजीशन में आपको तेज दर्द होता है तो डॉक्टर पूरी प्रक्रिया को सुविधाजनक व आसान बनाने के लिए एपिडुरल का उपयोग कर सकते हैं।
यदि आपको गंभीर रूप से दर्द है और हिलने में भी तकलीफ हो रही है तो डॉक्टर सिजेरियन करवाने की सलाह दे सकते हैं। हालांकि यह अंतिम विकल्प है। पीजीपी के लक्षणों में सिजेरियन से भी मदद नहीं मिलती है। वास्तव में सिजेरियन से बच्चे को जन्म देने के बाद पीजीपी की रिकवरी में बहुत ज्यादा कठिनाई होती है।
गर्भावस्था के दौरान या यदि आपको पेल्विक गर्डल में दर्द होता है तो बहुत जरूरी है कि आपके आसपास कोई न कोई रहे। आपको ज्यादा से ज्यादा आराम करने की जरूरत है और आप जितना संभव हो उतना कम काम करें। यदि मदद के लिए आपके आसपास कोई रहता है तो इससे आपकी गर्भावस्था का सफर आसान हो जाएगा।
यदि आपको पीजीपी हुआ है तो यहाँ कुछ चीजें बताई गई हैं जिनकी मदद से आपकी डिलीवरी आसान हो सकती है।
इस दौरान आप ऐसी कोई भी एक्टिविटी करने से बचें जिससे आपका दर्द बढ़ सकता है क्योंकि अक्सर इस दर्द को कम होने में काफी समय लगता है। इस दौरान आप जमीन पर न बैठें और बैठते समय पैरों को क्रॉस करने से भी बचें। घर के कामों को करने के लिए आप अन्य लोगों की मदद ले सकती हैं।
यद्यपि शुरुआत में आपको दर्द महसूस नहीं होगा पर यह दर्द बाद में दिन के दौरान या बिस्तर पर लेटते समय शुरू हो सकता है।
इस समय आपके लिए थोड़ी-थोड़ी देर में आराम करना जरूरी है। आप सही पोजीशन में लेटें और ध्यान रखें कि आपकी पीठ हल्की टिल्ट हो और उसे सपोर्ट मिलता रहे। करवट से लेटने में आपको मदद मिल सकती है।
गर्भावस्था के दौरान पेल्विक दर्द के साथ बिस्तर में मुड़ना या करवट लेना आपके लिए कठिन हो सकता है। आप सीधे बैठकर पीठ के बल लेटने का प्रयास करें। इससे दर्द में काफी हद तक आराम मिलता है। हालांकि बढ़ते हिप्स के साथ यह करना भी कठिन हो जाएगा। हिलने से पहले आप पेट के निचले हिस्से, पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को टाइट करें और पीठ को हल्का सा टिल्ट कर लें।
आप पीठ में हल्का सा आर्क बनाकर और हाथ हिलाते हुए चलें। इससे पेल्विस एक स्थिर पोजीशन में रखने और पेल्विक के जोड़ों को बनाए रखने में मदद मिलती है।
आप खड़े या बैठते समय अपने पोस्चर को सही रखें। झुककर न बैठें या पीठ के बल पैरों को लेवल में रखकर न लेटें। यदि आप पीठ के बल लेटना ही चाहती हैं तो पहले आप एक तौलिए का रोल बनाकर उसे अपनी पीठ को सपोर्ट देने के लिए रख लें। आप चाहें तो करवट से सोते समय अपने पैरों के बीच में साइड पिलो भी रख सकती हैं। वास्तव में यह आपके लिए बहुत ज्यादा सुविधाजनक है और इससे हिप्स को एक साथ होने में मदद मिलती है।
यदि आप मुलायम सतह पर सोती हैं तो इससे एसपीडी के दर्द में अस्थायी रूप से आराम मिलता है। बस आप अपने बिस्तर में चादर के नीचे एक सॉफ्ट मैट्रेस या क्विल्ट बिछा दें।
इसके अलावा आप निम्नलिखित कुछ अन्य चीजों पर भी ध्यान दें, आइए जानें;
यदि पहली गर्भावस्था के दौरान आपको पीजीपी हुआ था तो दूसरी बार भी यह होने की संभावना है। हालांकि इस बार आपको उतनी तकलीफ नहीं होगी जितनी पहली बार में हुई थी क्योंकि आपको पता होगा कि इसके लक्षणों को कम करने के लिए आपको क्या करना चाहिए। पहली गर्भावस्था में पीजीपी से ग्रसित होने पर यह सलाह दी जाती है कि दूसरी बार गर्भवती के लिए महिला को कुछ सालों तक का इंतजार करना चाहिए। ओवरवेट वाली महिलाओं को अपना वजन कम करना चाहिए क्योंकि अत्यधिक वजन होने से पेल्विस पर दबाव पड़ता है। अपनी फ्लेक्सिबिलिटी को बढ़ाने के लिए आप नियमित रूप से एक्सरसाइज करें।
इन सभी तरीकों से पीजीपी को प्रभावी रूप से मैनेज करने में मदद मिलती है और डिलीवरी के दौरान असुविधाएं भी नहीं होती हैं।
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पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज़ (पी.आई.डी.)
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