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गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को विभिन्न प्रकार की क्रेविंग होती हैं इसलिए उनके खाने में अलग-अलग प्रकार के खाद्य पदार्थ होने चाहिए। इसके अलावा कुछ विटामिन्स और मिनरल्स गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास के लिए जरूरी हैं और वो भी महिला के आहार में होने चाहिए। बहुत सारे मिनरल्स में से एक फॉस्फोरस भी है जो बच्चे की हड्डियों के विकास के लिए जरूरी होता है और माँ की हड्डियों को भी मजबूत करता है।
फॉस्फोरस वह दूसरा मिनरल है जो हमारे शरीर में सबसे ज्यादा पाया जाता है और वास्तव में यह 85% तक हड्डियों में होता है। फॉस्फोरस की मदद से शरीर के कई फंक्शन सही से होते हैं, जैसे सेल ठीक होते हैं, टिश्यू ठीक होते हैं, नर्व्स का फंक्शन होता है, ब्लड क्लॉटिंग में मदद मिलती है, मसल्स के मूवमेंट में मदद मिलती है और साथ ही किडनी का फंक्शन भी सही होता है। इसके अलावा फॉस्फोरस से दाँतों व हड्डियों का सही विकास होता है। फॉस्फोरस सेल मेम्ब्रेन और नुक्लेइक एसिड में आवश्यक स्ट्रक्चरल भूमिका निभाता है।
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपनी डायट में आवश्यक मिनरल्स लेना जरूरी है। फॉस्फोरस गर्भवती महिला के शरीर के विकास और हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के लिए फॉस्फोरस के कुछ फंक्शन्स यहाँ बताए गए हैं, आइए जानें;
बच्चे के दाँत व हड्डियों के सही विकास के लिए फॉस्फोरस का सेवन करना जरूरी है। विटामिन ‘डी’ व कैल्शियम के साथ फॉस्फोरस भी बच्चे के दाँतों और हड्डियों को स्वस्थ बनाता है। ये तीनों न्यूट्रिशन को एक समान रखने का बेहतर तरीका भी है। इसमें से किसी की भी कमी होने से बढ़ते बच्चे के विकास में उल्टा प्रभाव भी पड़ सकता है।
गर्भावस्था के दौरान मतली व उल्टी के लिए फॉस्फोरस का सेवन करना जरूरी है। यह मिनरल दिल की धड़कन और ब्लड क्लॉटिंग को नियंत्रित करता है। जेस्टेशन के दौरान फॉस्फोरस एक महिला के शरीर के लिए जरूरी होता है। डायट में इसकी कमी होने से आपको इरिटेशन हो सकती है, जोड़ों और हड्डियों में दर्द व भूख में कमी भी होती है। इसकी बहुत ज्यादा कमी होने से डिप्रेशन होता है।
फॉस्फोरस को मेटाबॉलिज्म नॉर्मल करने के लिए जाना जाता है और यह खाने को एनर्जी में बदलता है। गर्भावस्था के दौरान यह महिला के शरीर में तेजी से बदलावों को नियंत्रित करने में मदद करता है। आप अपनी डायट में पर्याप्त मात्रा में फॉस्फोरस लें इससे आपका मेटाबॉलिज्म नियंत्रित होगा और भोजन का उपयोग ठीक तरीके से होगा।
फॉस्फोरस और कैल्शियम बच्चे के नर्वस सिस्टम का सही विकास करते हैं। यह बच्चे के दिमाग और सेरेब्रल एक्टिविटी में भी सुधार करता है। फिर भी आप उचित मात्रा में फॉस्फोरस लें और इसका अधिक सेवन न करें।
फॉस्फोरस एक आवश्यक मिनरल होता है जो जेस्टेशन के दौरान आपके बच्चे के आंतरिक अंगों को बनने में मदद करता है। यह बच्चे के शरीर में न्यूट्रिशन को एनर्जी में बदलता है और साथ ही गैस्ट्रिक फ्लो को बढ़ा कर पाचन तंत्र के विकास में मदद करता है। फॉस्फोरस जन्म के बाद बच्चे को कोई भी काम करने के लिए तैयार करता है।
फॉस्फोरस को बच्चे में हेरेडिटरी विशेषताएं पहुँचाने से संबंधित जाना जाता है। यह बच्चे के लिए डीएनए और आरएनए के स्ट्रक्चर को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्भावस्था की पहली तिमाही में फॉस्फोरस की मदद से बच्चे के चेहरे के फीचर्स बनते हैं और यह उसकी पर्सनालिटी, विशेषताएं, टैलेंट और पसंद या नापसंद पर भी प्रभाव डालता है। फॉस्फोरस के सपोर्ट से बच्चे के बढ़ने के साथ ही वह आवाजों पर प्रतिक्रियाएं देता है और साथ ही इससे आपके मूड पर प्रभाव पड़ता है।
फॉस्फोरस और गर्भावस्था एक दूसरे से जुड़े हुए हैं क्योंकि यह शरीर में कई फंक्शन्स को सपोर्ट करता है। 19 साल या उससे अधिक आयु की गर्भवती महिलाओं को लगभग रोजाना 700 एमजी फॉस्फोरस लेना चाहिए। 18 साल से कम आयु की महिलाओं को लगभग रोजाना 1250 मिलीग्राम फॉस्फोरस लेने की जरूरत है। एक व्यस्क को हमेशा पर्याप्त मात्रा में फॉस्फोरस लेना चाहिए और गर्भवती और ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं में इसकी आवश्यकता बदली नहीं जाती है। यदि कैल्शियम की मात्रा अधिक है तो आपके शरीर में कैल्शियम बढ़ रहा है तो आपके शरीर में फॉस्फोरस कम अब्सॉर्ब होता है और यदि कैल्शियम कम हो रहा है तो आपके शरीर में फॉस्फोरस अधिक अब्सॉर्ब होगा। दोनों को अब्सॉर्ब करने के लिए विटामिन डी लेना बहुत जरूरी है।
फॉस्फोरस की कमी को हाइपोफॉस्फेटेमिया भी कहते हैं। हाइपोफॉस्फेटेमिया तब होता है जब खून में फॉस्फोरस की कमी हो जाती है। इसकी वजह से एनर्जी भी कम हो जाती है। इससे आपको थकान हो सकती है, मसल्स कमजोर होती हैं और आपको एक्सरसाइज करने में भी कठिनाई होती है। फॉस्फोरस की कमी से कैल्शियम और विटामिन ‘डी’ का लेवल भी कम होता है जिसकी वजह से कमजोरी आती है और लंबे समय के लिए हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इससे मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है। फॉस्फोरस का स्तर शरीर को दृढता से नियंत्रित करता है। इसका स्तर कम होने से अन्य समस्याएं जैसे डायबिटीज भी हो सकती है। कुछ दवाओं से भी शरीर में फॉस्फोरस अब्सॉर्प्शन होता है, जैसे इन्सुलिन, एंटासिड, एंटीकॉनवुलसेंट्स, कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स और एसीई इन्हिबिटर्स।
लीन मीट, दूध, दही, ब्रेड, बीन्स, बाजरा, दाल और अंडे की जर्दी में फॉस्फोरस भरपूर होता है। यहाँ पर फॉस्फोरस के कई सोर्स बताए गए हैं, आइए जानें;
यदि गर्भावस्था के दौरान आप हेल्दी और बैलेंस्ड डायट लेती हैं तो आपको फॉस्फोरस के सप्लीमेंट्स लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यदि गर्भावस्था के दौरान आप दवाएं लेती हैं तो यह फॉस्फोरस को अब्सॉर्ब करने में इन्हीबिटर का काम करता है इसलिए डॉक्टर आपको डायट में बदलाव करने के लिए भी कह सकते हैं। कई मामलों में डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को सप्लीमेंट्स प्रिस्क्राइब करते हैं पर अक्सर फॉस्फोरस लेने से ही इसकी आवश्यकता पूरी हो जाती है। इसलिए जब तक डॉक्टर न कहें तब तक आपको गर्भावस्था में फॉस्फोरस नहीं लेना चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक मात्रा में फॉस्फोरस लेने से माँ और बच्चे को हानि हो सकती है और यह गंभीर रूप से टॉक्सिक भी हो सकता है। यदि आप अधिक मात्रा में आवश्यक मिनरल्स लेती हैं तो इससे आपको डायरिया भी हो सकता है। यह शरीर में अन्य मिनरल्स के अब्सॉर्प्शन को भी रोकता है। बहुत ज्यादा फॉस्फोरस का सेवन करने से मिनरल मसल्स में विभाजित हो जाता है और इसकी वजह से शरीर में टिश्यू कठोर हो जाते हैं। कई लोगों को फूड पॉइजनिंग की भी शिकायत होती है। इसलिए जरूरी है कि आप सही मात्रा में विटामिन डी, कैल्शियम और फॉस्फोरस लें। यह आपको डेयरी प्रोडक्ट्स में अधिक मिल सकता है।
फॉस्फोरस एक ऐसा मिनरल है जो पौधों और जानवरों में भी होता है। एनिमल सोर्स से शरीर में फोस्फरस ज्यादा सही से अब्सॉर्ब होता है, जैसे; डेयरी, मीट एयर अंडे। यदि गर्भावस्था के दौरान आपको बहुत ज्यादा थकान होती है तो आप फॉस्फेट लेवल का टेस्ट जरूर करवाएं और फॉस्फोरस के सप्लीमेंट्स लेने से पहले डॉक्टर से चर्चा जरूर करें। इसलिए हेल्दी खाएं, फिट रहें और गर्भ में पल रहे बच्चे को भी सुरक्षित रखें।
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