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सोरायसिस त्वचा की एक बीमारी है, जिसमें त्वचा लाल हो जाती है और उसमें चकत्ते और पपड़ी बन जाती है। कई महिलाएं जो इस बीमारी से जूझ रही हैं, इस बात को लेकर परेशान रहती हैं, कि क्या सोरायसिस उनकी प्रेगनेंसी पर किसी भी तरह से प्रभाव डाल सकता है। चूंकि फिजिशियन, गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह का इलाज न कराने की सलाह देते हैं, तो ऐसे में यह समझना मुश्किल हो जाता है, कि क्या करें और क्या ना करें। सोरायसिस, और प्रेगनेंसी के साथ इसके संबंध, को समझने के लिए आगे पढ़ें।
सोरायसिस त्वचा की एक असामान्य स्थिति है, जिसमें त्वचा पर असामान्य चकत्ते बन जाते हैं। ऐसे चकत्ते लाल और पपड़ीदार होते हैं, जिनमें खुजली भी हो सकती है। यह बीमारी एक ऑटोइम्यून बीमारी है, यह एक ऐसी स्थिति है, जो कि एंटीजन के द्वारा एक्टिवेट होने पर शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम के असामान्य बर्ताव के कारण पैदा होती है।
सोरायसिस से संबंधित चकत्ते, छोटे क्षेत्रों से लेकर पूरे शरीर को ढकने वाले चकत्तों तक, कैसे भी हो सकते हैं और यह बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है। इस दुर्लभ बीमारी से प्रभावित होने वाले कुछ हिस्सों में त्वचा, सिर की त्वचा, कोहनी और घुटने शामिल हैं। आमतौर पर, सोरायसिस को एक लंबी बीमारी माना जाता है और यह संक्रामक नहीं होती है। वैसे तो कहते हैं, कि इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके कुछ इलाज मिले हैं, जो कि असामान्य पपड़ी बनने को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकते हैं।
सोरायसिस के लक्षण, इस समस्या की गंभीरता पर आधारित होते हैं और अलग-अलग होते हैं। लेकिन, कुछ आम लक्षण जो कि देखे जा सकते हैं, वे नीचे दिए गए हैं:
जब महिला गर्भवती होती है, तो उसका सोरायसिस ठीक होने लगता है। इसकी 40 से 60% संभावना होती है, कि महिला, अपनी गर्भावस्था के दौरान, अगर पूरी तरह नहीं भी, तो आंशिक रूप से सोरायसिस से ठीक हो जाती है। यहाँ एक तथ्य पर ध्यान देने की जरूरत है, कि प्रेगनेंसी की पहली और दूसरी तिमाही के अंत में सोरायसिस में सबसे अधिक इंप्रूवमेंट देखी जाती है।
इसके साथ ही इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए, कि कुछ दुर्लभ मामलों में, गर्भावस्था बड़े पैमाने पर इस तकलीफ को बढ़ा सकती है, जिससे सोरायसिस गंभीर हो सकता है और गर्भावस्था में समस्याएं आ सकती हैं।
इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए, कि सोरायसिस किसी भी तरह से, महिला के बच्चे जनने की क्षमता को प्रभावित नहीं कर सकता है। अब तक सोरायसिस के कारण मिसकैरेज का कोई भी मामला दर्ज नहीं हुआ है। साथ ही माँ की इस दुर्लभ स्थिति से ग्रस्त होने के कारण, उससे पैदा होने वाले बच्चे में, किसी भी तरह की जन्मजात परेशानी नहीं देखी गई है। हालांकि, एक अध्ययन में यह पता चला है, कि गंभीर सोरायसिस से ग्रस्त महिलाओं ने, सामान्य या सौम्य सोरायसिस के मामलों की तुलना में, कम वजन वाले बच्चों को जन्म दिया है।
प्रेगनेंसी के मामले में सोरायसिस को झेलना मुश्किल हो सकता है। खासकर जब आपको आपके गायनेकोलॉजिस्ट से मिलने जाना हो और अपने शरीर को खुला छोड़ना हो, तो यह बहुत ही शर्मिंदगी भरा हो सकता है। आमतौर पर, गर्भावस्था के दौरान, सोरायसिस की दवाओं को जारी न रखने की सलाह दी जाती है। लेकिन, अगर आप इस दुर्लभ समस्या को ठीक करने की इच्छा रखती हैं, तो आप इन बातों पर विचार कर सकती हैं।
हालांकि, अगर आप गर्भवती हैं और सोरायसिस से जूझ रही हैं, तो आपको आपके डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह दी जाती है। फिर भी, अपने लाल, परतदार चकत्तों को आराम देने के लिए, आप इन सिंपल होम रेमेडीज को भी आजमा सकती हैं:
जेनेटिक्स या अनुवांशिकता के इतिहास को देखते हुए, यह कहा जा सकता है, कि बच्चे को सोरायसिस हो सकता है। पर यह मामले-मामले पर निर्भर करता है। कुछ परिस्थितियों में बच्चे को सोरायसिस हो सकता है और कुछ मामलों में बच्चा इससे बिल्कुल सुरक्षित रह सकता है। लेकिन, अगर महिला अपनी गर्भावस्था के दौरान सोरायसिस के लिए दवा ले रही है, तो बच्चे को भी सोरायसिस होने की संभावना बढ़ जाती है। इसी कारण से अधिकतर फिजिशियन, गर्भावस्था के दौरान दवाओं पर निर्भर न रहने की सलाह देते हैं।
कुछ मामलों में, ब्रेस्टफीडिंग के कारण बच्चों पर सोरायसिस का प्रभाव देखा गया है, क्योंकि, इस बीमारी के कारण कभी-कभी निपल्स की सतह पर अल्सर बन जाते हैं, जिनमें से खून बहता रहता है।
साथ ही, इस तथ्य का भी ध्यान रखना चाहिए, कि डिलीवरी के तुरंत बाद अगर बच्चे को सोरायसिस न भी हो, तो भी, बाद में उसे इस बीमारी के होने का खतरा रहता ही है।
इन सभी तथ्यों और जानकारियों को देखते हुए, यह बात बिल्कुल साफ हो चुकी है, कि सोरायसिस एक ऐसी बीमारी है, जो कि गर्भवती महिला के लिए स्थिति को बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है। यह व्यक्ति-व्यक्ति और मामले-मामले पर निर्भर करता है और एक महिला को गर्भावस्था के दौरान, किसी भी तरह की दवा लेने से पहले, अपने गायनेकोलॉजिस्ट और त्वचा रोग विशेषज्ञ की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
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