प्रीमैच्योर बेबी की नींद

प्रीमैच्योर बेबी की नींद

यदि बच्चे का जन्म समय से पहले हो गया है तो जाहिर है आपको उसके स्वास्थ्य की चिंता होगी। आप शुरुआती चरण में बच्चे की ज्यादा देखभाल के बारे में डॉक्टर से पूछेंगी। आप यह भी नोटिस करेंगी कि आपका प्रीमैच्योर बच्चा ज्यादा सोता है और इससे आपको चिंता भी हो सकती हैं पर फिक्र न करें। प्रीमैच्योर बच्चों की नींद से संबंधित आदतों के बारे में जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें। 

कुछ प्रीमैच्योर बच्चों को सोने में कठिनाई क्यों होती है? 

प्रीमैच्योर बच्चों की नींद का पैटर्न फुल टर्म बच्चों से अलग होता है। इसका यह अर्थ है कि यद्यपि प्रीटर्म बच्चा ज्यादा सोता है पर उसकी नींद के पैटर्न का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। उनकी नींद का चक्र छोटा होता है और वे नींद के चरण में कम ध्यान केंद्रित कर पाते हैं व जल्दी जाग भी जाते हैं। इसके अलावा प्रीमैच्योर बच्चे नियोनेटल यूनिट में रहने के दौरान अस्पताल के समय से भी परेशान हो सकते हैं। अस्पताल का वातावरण, ब्राइट रोशनी, आवाज और रूटीन प्रोसीजर या देखभाल के कारण बच्चा तनावयुक्त रह सकता है और इससे नींद के पैटर्न में बाधा आ सकती है। 

प्रीमैच्योर बच्चे की सोने की गाइड 

प्रीमैच्योर बच्चे की नींद को अच्छी बनाने के लिए आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, आइए जानें;

1. उसे ज्यादा नींद की जरूरत होती है 

प्रीमैच्योर बच्चा दिन भर में बहुत ज्यादा यानी 22 घंटे तक सोता है क्योंकि शरीर के विकास के लिए उसे ज्यादा नींद की जरूरत होती है। यद्यपि बच्चा बीच-बीच में दूध पी सकता है पर वह ज्यादा से ज्यादा समय नींद में ही बिताएगा। 

2. वह रात में ज्यादा दूध पीता है 

फुल टर्म बच्चों के विपरीत प्रीमैच्योर बच्चे रात में दूध पीने के लिए बार-बार जागते हैं क्योंकि यह बढ़ते शरीर को पोषित करता है। यह सलाह दी जाती है कि पहले कुछ महीनों में प्रीमैच्योर बच्चे को हर 3 घंटे में दूध पिलाना चाहिए या उसे हाइड्रेटेड रखना चाहिए। सेशन के बीच-बीच में गैप या थोड़ा-थोड़ा दूध पिलाने से बच्चा दूध पलट सकता है। 

वह रात में ज्यादा दूध पीता है 

3. बच्चे को पेट के बल लिटाने के बजाय पीठ के बल लिटाएं 

फुल टर्म बच्चों के जैसे ही प्रीमैच्योर बच्चों को भी सुविधाजनक पोजीशन के लिए पीठ के बल सुलाना चाहिए। उनका मैट्रेस दृढ़ और बहुत ज्यादा सॉफ्ट नहीं होना चाहिए और उनके पलंग से तकिया, ब्लैंकेट, टॉयज और कम्फर्टर हटाने की सलाह दी जाती है। सडन इन्फेंट डेथ (एसआईडीएस) यानी अचानक से बच्चे की मृत्यु की संभावनाओं को कम करने के लिए यह बहुत जरूरी है।  

4. उसे एक ही कमरे में पर अलग कॉट पर सुलाएं 

प्रीटर्म बच्चे को सुलाने के लिए आपका अपना कमरा ही सबसे सही जगह है जहाँ पर आप उसे बार-बार देख सकती हैं। ऐसे में आपके लिए बच्चे को दूध पिलाना भी आसान हो जाएगा और यदि बच्चे में किसी भी समस्या के लक्षण दिखाई देते हैं तो आपको तुरंत पता चल जाएगा। 

5. बच्चे को रात भर ज्यादा से ज्यादा सोने के लिए प्रेरित करें 

जैसे-जैसे प्रीमैच्योर बच्चा बड़ा होगा उसकी नींद का रूटीन रात को शिफ्ट होता जाएगा। आप उसके साथ दिन में खेलें पर लाइट ऑन रखें ताकि वह रात में अच्छी तरह से सो सके। यदि बच्चा रात में दूध पीने के लिए जागता है तो आप उसे एक शांत जगह पर ली जाकर दूध पिलाएं और रोशनी को डिम रखें व दूध पीने के बाद उसे सुला दें। 

प्रीमैच्योर बच्चों के सोने की 6 स्टेज

शुरुआत में प्रीमैच्योर बच्चे की नींद के निम्नलिखित चरण होते हैं जो आपको जानने चाहिए, वे इस प्रकार हैं;

1. गहरी नींद 

गहरी नींद के दौरान प्रीमैच्योर बच्चे की आंखें पूरी तरह से बंद होंगी और उनमें कहीं से भी कोई मूवमेंट नहीं होगा। बच्चा समान व नियमित सांसें लेगा। यदि आपका बच्चा प्रीमैच्योर है तो आप उसे दूध पीने के लिए गहरी व आरामदायक नींद से न जगाएं। 

2. एक्टिव स्लीप 

यह एक्टिव नींद का चरण है जिसमें हाल ही में जन्मा और प्रीमैच्योर बच्चा ज्यादातर समय नींद में ही बिताता है। यदि आपका शिशु प्रीमैच्योर है तो हल्की नींद के दौरान आप नोटिस करेंगी कि वह हिल रहा है और उसकी सांसें नियमित रूप से नहीं चल रही हैं। नींद की इस स्टेज को आरईएम स्लीप या रैपिड आई मूवमेंट स्टेज कहते हैं जिसमें बच्चे को सपने भी आते हैं। 

एक्टिव स्लीप 

3. आलस वाली नींद (ड्राउजी स्लीप)

इसमें बच्चों को नींद आती है पर वे जागते रहते हैं और हर समय थके हुए लगते हैं व उनकी पलकें भारी लगती हैं। आप अक्सर उन्हें एक्टिव नींद से जागने के बाद या सोने के लिए जाने से पहले की स्थिति में ही देखेंगी। ऐसे बच्चे सोते-सोते भी दूध पीते हैं और कभी-कभी वे नींद में ही अच्छी तरह से दूध पी लेते हैं। 

4. क्वाइट अलर्ट 

यह बहुत ज्यादा रिलैक्स्ड चरण है जहाँ पर प्रीमैच्योर बच्चा पूरी रह से जागा हुआ और हर चीज को ऑब्जर्व करता हुआ दिखाई देगा। यदि वह अपना हाथ मुंह में डालता है या उंगलियां चूसता है तो इसका अर्थ है कि वह भूखा है और यह उसे दूध पिलाने का बिलकुल सही समय है। प्रीमैच्योर बच्चे इस स्टेज में ज्यादा समय नहीं बिताते हैं पर बच्चे के बड़े होने के बाद आप इसे ज्यादा एन्जॉय करेंगी। 

5. एक्टिव अलर्ट 

यदि बच्चा बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा और बेचैन है तो यह एक्टिव अलर्ट की स्टेज हो सकती है। इसमें बच्चा पूरी एक्टिविटी के दौरान आसानी से गुस्सा हो जाता है। इस स्टेज में प्रीमैच्योर बच्चे को दूध पिलाना काफी कठिन है पर यदि आप उसे शांत कर सकती हैं तो वह क्वाइट अलर्ट नींद की स्टेज में जा सकता है। 

6. रोना

बच्चे कई कारणों से रोते हैं। वे भूखे हो सकते हैं, डायपर बदलने की जरूरत हो सकती है या बाहर जाने पर असुविधाजनक महसूस कर सकते हैं। कुछ बच्चे अपने आप शांत हो जाते हैं पर यदि आपका बेबी खुद से शांत नहीं होता है तो आप उसे स्वैडल करके, गोद में झुलाकर, या उसका डायपर बदलकर शांत करने का प्रयास कर सकती हैं। 

प्रीमैच्योर बच्चों के लिए सोने का पैटर्न 

फूल टर्म बच्चों की तुलना में प्रीमैच्योर बच्चों की नींद का पैटर्न बनाने में ज्यादा समय लगता है। 4 महीने की उम्र में एक फुल टर्म बच्चा रात में 6 से 8 घंटे सोता है और प्रीमैच्योर बच्चा 6 से 8 महीने की उम्र में रात को 6 से 8 घंटे सोता है। प्रीमैच्योर बच्चे की नींद का रूटीन बनाते समय आप निम्नलिखित बातों पर ध्यान जरूर दें;

1. रूटीन बनाएं 

प्रीमैच्योर बच्चे के सोने का रूटीन बनाने के लिए पहले आपको उसकी नींद का पैटर्न देखना होगा। आप उसके साथ खेलें, उसे दिन के दौरान व्यस्त रखें। रात होते ही बच्चे को नींद आने लगेगी। उसे बिस्तर पर लिटाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसके आस-पास शांति व हल्की रोशनी होनी चाहिए। बच्चे को सोने से एक घंटे पहले दूध पिलाएं। 

2. सेल्फ सूदिंग सिखाएं 

बच्चे को नींद के दौरान खुद से कम्फर्टेबल होने की स्किल्स सिखाना बहुत जरूरी है। जैसे ही आपको उसकी नींद का रूटीन समझ आ जाए, आप उसे सोने के लिए खुद से शांत होना सिखाएं। बच्चा जन्म के बाद शुरुआती 3 महीनों तक सेल्फ सूदिंग नहीं कर सकता है। उसे सेल्फ सूदिंग सिखाने का सबसे बेस्ट समय 4 से 7 महीनों के बीच का है। 

3. सोने का वातावरण बनाएं  

वाइट नॉइज, जैसे रेडियो स्टैटिक को कम आवाज में या घड़ी की टिकटिक से नींद के रिदम को सेट करने में मदद मिलती है। हल्की रोशनी से रात का प्रकाश आश्वस्त होता है। बच्चे को पैसिफायर दें या उसे अपनी मुट्ठी चूसने दें ताकि वह शांत रह सके। हालांकि इस बात का ध्यान रखें कि यह आदत नहीं बननी चाहिए। 

प्रीमैच्योर बच्चे रात भर कब सोते हैं 

चूंकि सभी बच्चे अलग होते हैं और उनमें अपना एक नींद का पैटर्न नियमित रूप से विकसित होता है पर यह कहना संभव नहीं है कि प्रीमैच्योर बच्चे रात भर कब सोते हैं। आमतौर पर प्रीमैच्योर बच्चे 6 से 8 महीने की उम्र तक ज्यादा देर तक नहीं सोते हैं। इसके अलावा कुछ बच्चे अन्य से ज्यादा जागते ही हैं। यदि आपको बच्चे की नींद के रूटीन के बारे में कुछ भी जानना है तो पेडिअट्रिशन से चर्चा करें। 

प्रीमैच्योर और फुल टर्म बच्चों के सोने व जागने के व्यवहार में अंतर 

प्रीमैच्योर और फुल टर्म बच्चों में निम्नलिखित अंतर होते हैं, जानने के लिए आगे पढ़ें;

  • एक हेल्दी फुल टर्म बच्चा दिन भर में 18 घंटे सोता है और प्रीमैच्योर बच्चा इससे कम या ज्यादा सो सकता है। 
  • यदि प्रीमैच्योर बच्चा ज्यादा देर तक सोता है तो वह ज्यादा से ज्यादा समय नींद में ही बिताता है जहाँ पर वह बार-बार जागता है व उसकी नींद खराब होती है पर यह फुल टर्म बच्चों के साथ नहीं होता है। 
  • फुल टर्म बच्चा 4 महीने की उम्र में पूरी रात लगातार सोता है पर प्रीमैच्योर बच्चा यही चीज 6 या इससे ज्यादा महीनों के बाद करता है। 
  • नींद और जागने के पैटर्न को फुल टर्म बच्चों में आसानी से पहचाना जाता है। यद्यपि प्रीमैच्योर बच्चों में भी ऐसा होता है पर उनकी नींद बार-बार खराब हो जाती है और फुल टर्म बच्चों की तुलना में कम समय बिताते हैं। प्रीमैच्योर बच्चों का शेड्यूल नहीं बनता है और उनमें हर स्टेट्स का बदलाव बहुत जल्दी-जल्दी होता है या यह एक साथ स्किप हो जाते हैं।
  • प्रीमैच्योर बच्चों का व्यवहार हर दिन अलग हो सकता है। वे एक दिन खाएंगे व सोएंगे और दूसरे ही दिन खाने में चिड़चिड़ाएंगे और नींद के दौरान परेशान होंगे।  

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल 

कुछ प्रीमैच्योर बच्चे बहुत ज्यादा क्यों सोते हैं?

प्रीमैच्योर बच्चे ज्यादा क्यों सोते हैं इसका यह जवाब है कि शरीर की वृद्धि व विकास में उनकी एनर्जी ज्यादा खर्च होती है इसलिए यदि बच्चा जन्म के बाद शुरुआती कुछ दिनों तक दिन भर में 22 घंटे सोता है तो आप निश्चिंत रहें। 

बढ़ती उम्र के साथ ही प्रीमैच्योर बच्चों का ठीक व्यवहार उम्मीदों के अनुसार व एक समान रहता है। उन्हें बस फुल टर्म बच्चों की तुलना में ज्यादा समय की जरूरत पड़ती है। आप बिलकुल चिंता न करें और अपने सवालों के जवाब जानने के लिए डॉक्टर से संपर्क करें। 

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