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रामायण की अनेक कथाओं में से एक सीता जी के जन्म से जुड़ी हुई भी है। जब मिथिला के राजा जनक के राज्य में कई वर्षों तक वर्षा नहीं हुई तो ऋषि-मुनियों ने उपाय के रूप में राजा को स्वयं खेत में हल चलाने के लिए कहा। राजा जनक ने उनकी बात मानी और अपनी पत्नी सुनयना के साथ खेत में हल चलाने लगे तभी वह मिट्टी के नीचे किसी चीज से टकराया। जब वहां खुदाई की गई तो पृथ्वी के अंदर से एक कलश में एक सुंदर सी कन्या निकली। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने उस बच्ची को अपनी पुत्री बनाकर उसका पालन-पोषण करने का निर्णय लिया। जनक पुत्री होने के कारण सीता जी का एक नाम ‘जानकी’ भी है। इस कथा से माता सीता की वास्तविक माँ कौन है इस संबंध में अलग-अलग भाषाओं में लिखे गए रामायण में यह उल्लेख मिलता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी उनकी माँ है। अद्भुत रामायण नामक ग्रंथ में में सीता जी को मंदोदरी की बेटी बताया गया है। अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में लिखा गया काव्य है जिसमें 27 सर्ग हैं। कहते हैं कि एक बार भारद्वाज मुनि ने ऋषि वाल्मीकि से रामायण के गुप्त और रहस्यमय तथ्यों के बारे में पूछा था। जिसके परिणामस्वरूप, वाल्मीकि जी ने अद्भुत रामायण की रचना की। मान्यता यह भी है कि वाल्मीकि रामायण इस ग्रन्थ का प्रेरणास्रोत है। कुछ लोगों का कहना यह भी है कि इस ग्रंथ के प्रणेता वाल्मीकि थे लेकिन इसकी भाषा और लेखन शैली से यह कई कवियों द्वारा लिखा गया समझा जाता है। इस कहानी का मूल क्या है यह जानने के लिए आगे पढ़ते हैं।
रामायण की इस कहानी में 4 मुख्य पात्र हैं।
दण्डकारण्य नामक वन में गृत्समद नामक एक ब्राह्मण रहता था। गृत्समद के 100 पुत्र थे लेकिन कोई पुत्री नहीं थी। वह और उसकी पत्नी माँ लक्ष्मी को अपनी पुत्री रूप में पाना चाहते थे। इसके लिए गृत्समद मंत्रोच्चार करके प्रतिदिन एक कलश में कुश यानी घास के अग्र भाग से दूध की कुछ बूंदें डालता था।
एक दिन त्रिलोक जीतने के लिए युद्ध पर निकला रावण उस वन में पहुंचा। वहां अग्नि के समान तेजस्वी ऋषि-मुनियों को देखकर उसने मन में सोचा कि इन्हें बिना जीते मैं त्रिलोक कैसे विजय कर सकता हूँ और इन महात्माओं का वध करने से मेरा कल्याण भी नहीं होगा। इसलिए रावण ने वहां ब्राह्मणों और ऋषियों को तीर की नोक से घायल किया और उनके शरीर से रक्त की बूंदें लेकर उसी कलश में भर ली जो गृत्समद का था। इसके बाद रावण उस कलश को लंका ले आया और अपनी पत्नी मंदोदरी से उसे सम्भाल कर रखने के लिए दे दिया।
मंदोदरी के पूछने पर कि कलश में क्या है? रावण ने कहा –
“हे सुंदरी! इस कलश में भरे रक्त को विष से भी तीक्ष्ण समझना। मुनियों का यह शोणित किसी को देना भी नहीं चाहिए और भक्षण भी नहीं करना चाहिए।”
फिर कुछ दिनों के बाद रावण देव, दानव, यक्ष और गंधर्वों की कन्याओं का हरण करके मंदर और सह्य नामक पर्वतों पर विहार करने के लिए चला गया। उसके इस कृत्य से मंदोदरी बहुत दुखी हुई और अपनी उपेक्षा से खिन्न होकर उसने मृत्यु को वरण करने का निर्णय लिया। मंदोदरी ने इसके लिए कलश में रखे रक्त को पी लिया। लेकिन चूंकि कलश में मंत्रों से प्रभावित तरल था तो उसका प्रभाव यह हुआ कि मंदोदरी के पेट में अग्नि के समान तेजस्वी गर्भ आ गया। पति की अनुपस्थिति में गर्भधारण होने से मंदोदरी विचलित हो गई। किसी को बिना बताए वह तीर्थ यात्रा के नाम पर कुरुक्षेत्र चली गई। वहां पर उसने गर्भपात करके भ्रूण को एक कलश में रखकर भूमि में गाड़ दिया। इसके बाद मंदोदरी सरस्वती नदी में स्नान करके लंका वापस चली गई। अद्भुत रामायण की कथा के अनुसार कालांतर में कलश में रखा यही भ्रूण माता सीता के रूप में जनक को प्राप्त हुआ।
अद्भुत रामायण में सीता जी के जन्म के पीछे एक कारण भी बताया गया है। जिसके मूल में रावण का सर्वनाश छिपा हुआ है। इस कथा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी है।
देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र ब्रह्मर्षि कुशध्वज की वेदवती नामक एक पुत्री थी। वेदवती बहुत सुंदर, सुशील और धार्मिक थी और भगवान विष्णु की उपासक थी। कुशध्वज चाहते थे कि उनकी बेटी के संरक्षक भगवान विष्णु उसके पति के रूप में हों। कई शक्तिशाली राजा वेदवती से विवाह करना चाहते थे लेकिन उसके पिता ने सबको अस्वीकार कर दिया। इसी से क्रोधित होकर संभू नामक राजा ने एक रात कुशध्वज और उनकी पत्नी की हत्या कर दी।
इसके बाद वेदवती जंगल में कुटिया बनाकर भगवान विष्णु की तपस्या में लीन हो गई। उसकी तपस्या से उसके सुंदर बाल ऋषियों की जटाओं की तरह हो गए और उसका सौंदर्य और भी निखर गया। एक दिन रावण हिमालय का भ्रमण करते हुए वहां से गुजर रहा था। तभी उसने तपस्या में लीन वेदवती को देखा और उस पर मोहित हो गया। रावण ने वेदवती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन वेदवती ने उसे अस्वीकार कर दिया। रावण ने वेदवती को मनाने का बहुत प्रयास किया लेकिन जब वह नहीं मानी तो रावण ने मद में आकर वेदवती के बालों को पकड़ लिया। वेदवती इससे बहुत क्रोधित हुई और उसने रावण को श्राप दिया कि वह पुनर्जन्म जन्म लेगी और उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। इसके बाद वह अपने बालों को काटकर पास के हवन कुंड की ओर दौड़ी और उसमें कूदकर आत्मदाह कर लिया। कथा के अनुसार वेदवती ने ही सीता के रूप में पुनः जन्म लिया और रावण के सर्वनाश का कारण बनी।
रामायण की कहानी: क्या सीता मंदोदरी की बेटी थी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारा आचरण सदैव नैतिक होना चाहिए। रावण के अनैतिक और दुराचारी आचरण से उसकी पत्नी मंदोदरी का दु:खी होना स्वाभाविक था और यही रावण के अंत का कारण बना।
यह कहानी पौराणिक कहानियों में रामायण की कहानी के अंतर्गत आती है और रामायण से जुड़ी जरूरी बात बताती है।
वाल्मीकि रामायण के अलावा कंबन रामायण, जैन रामायण, थाई रामायण और लोक-कथाओं में माता सीता के जन्म और जीवन को लेकर अलग-अलग कथा बताई गई है।
सबसे ज्यादा प्रचलित वाल्मीकि रचित ‘रामायण’ और तुलसीदास रचित ‘रामचरित मानस’ के अतिरिक्त दुनिया में रामकथा के कम से कम 300 संस्करण हैं। ये संस्कृत, पाली, प्राकृत, तिब्बती, तमिल, पुरानी जावानीस, जापानी, तेलुगु, असमिया, मलयालम, बंगाली, कन्नड़, मराठी, हिंदी/अवधी, उड़िया, कश्मीरी, फारसी, मलाया, बर्मी, मारानाओ, थाई और लाओटियन सहित विभिन्न भाषाओं में लिखे गए हैं।
रामायण और महाभारत हमारी सनातन संस्कृति के मूल ग्रंथ हैं। इनकी कथाएं जीवन के आदर्शों और नैतिकताओं से जुड़ी हैं। अद्भुत रामायण में ही उल्लेख है, “रावण कहता है कि जब मैं भूलवश अपनी पुत्री से प्रणय की इच्छा करूँ तब वही मेरी मृत्यु का कारण बने।” हजारों वर्षों के बाद भी ये कथाएं प्रासंगिक हैं। इसलिए हमारे बच्चों को धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं के बारे में जानकारी देना हमारा कर्तव्य है।
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