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यह प्रसिद्द कहानी लंका के राजा रावण की है, जो राक्षस वंश का था लेकिन उसके विद्वान होने के चर्चे हर तरफ थे। वह राक्षस कुल से संबंध रखता था लेकिन भगवान शिव का सच्चा भक्त था। उसकी अटूट भक्ति और भगवान के प्रति लगन देखते हुए शिव जी ने उसे मनचाहा वरदान दिया और तभी से लोग उसे ‘दशानन’ नाम से जानने लगे। रामायण से जुड़े इस पात्र की कहानियां बच्चों के साथ बड़े भी बहुत दिलचस्पी के साथ पढ़ते हैं। यह कहानी हमारे इतिहास से जुड़ी हुई है और यदि आप ऐसी और कहानियों का आनंद लेना चाहते हैं तो हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें ताकि आपको ऐसी और कहानियां पढ़ने को मिले।
इस कहानी में दो ही पात्र है और दोनों मुख्य है जो नीचे बताया गया है:
रावण राक्षस कुल से संबंधित था और उसके द्वारा किए गए पापों के कारण हर साल दशहरा में रावण दहन किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह एक विद्वान और श्रेष्ठ पंडित होने के अलावा शिव जी का बहुत बड़ा भक्त भी था।
रावण भगवान शिव का भक्त था, इसलिए वह कठिन तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करना चाहता था। लेकिन उसकी तपस्या से प्रभु प्रसन्न नहीं हुए। तो उसी समय उसने अपना सिर धड़ से अलग कर के उनके चरणों पर भेंट कर दिया। लेकिन उसका सिर वापस जुड़ गया। रावण ने ऐसा लगातार 10 बार किया और अपना सिर काट कर भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया लेकिन वो जितनी भी बार ऐसा करता हर बार उसका सिर फिर जुड़ जाता था।
रावण का अपने प्रति यह समर्पण देखकर भगवान शिव उससे काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे एक वरदान के साथ वह 10 सिर भी साथ दे दिए। तभी से रावण ‘दशानन’ के नाम से भी जाने जाना लगा।
रावण के दस सिर हैं इससे जुड़ी बहुत सारी कथाएं सुनने को मिलती है जिनमें से कुछ कथाएं बहुत प्रसिद्ध भी हैं। मान्यता यह भी है कि दरअसल रावण के दस सिर थे ही नहीं, बल्कि दस होने का भ्रम पैदा करता था, क्योंकि उसके पास कई दिव्य शक्तियां थी जो उसे शक्तिशाली बनाती थी। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि रावण 6 शास्त्र और 4 वेदों का परम ज्ञानी था, इस वजह से उसे ‘दसकंठी रावण’ भी कहा जाता था और यही वजह है कि लोग उसे दशानन कहा जाता है।
रामायण की इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि यदि हम अपने किसी कार्य को करने का संकल्प लेते हैं, उसे दृढ़ता पूर्वक करते हैं और तत्पर रहते हैं, तो मनचाहा फल प्राप्त कर सकते हैं।
यह कहानी पौराणिक कहानियों में से एक है और रामायण की कहानी क्र अंतर्गत आती है। ऐसी कहानियां बच्चों को आसान शब्दों में इतिहास से जोड़ता है और अधिक सुनने के लिए प्रेरित भी करता है।
रावण के दस सिरों की कहानी की नैतिक कहानी यह है कि कैसे उसने अपने लक्ष्य को हासिल करने और अपने भगवान को प्रसन्न करने के लिए पूरी दृढ़ता के साथ तपस्या की और तब तक हार नहीं मानी जब तक कि शिव जी ने उससे प्रसन्न होकर उसे वरदान नहीं दिया। इसलिए किसी काम को पूरी लगन से करना चाहिए ताकि अंत में आपका जो उद्देश्य है वह पूरा हो सके।
भगवान अपने भक्तों का हमेशा भला चाहते हैं, यदि आपकी भक्ति में सच्चाई और लगन है और किसी भी कार्य को पूर्ण करने की चाह मन में है तो भगवान भी आपका साथ जरूर देते हैं।
ऐसी कहानियां छोटे बड़े सभी बच्चे बहुत शौक के पढ़ते और सुनते हैं, क्योंकि उनके अंदर भी अपने इतिहास को जानने की उत्सुकता होती है। यदि बच्चों को कहानियों के माध्यम से उनके इतिहास से जोड़ा जाए तो वो इसे सुनने और जानकारी प्राप्त करने में अधिक रूचि दिखाते हैं। उम्मीद है यह कहानी आपको पसंद आई होगी।
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