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गर्भ में प्लेसेंटा वह अंग होता है जो बढ़ते फीटस को माँ की यूटराइन वॉल से जोड़ता है। यह बच्चे को ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्रदान करता है और बच्चे के रक्त से वेस्ट प्रोडक्ट निकालता है। बच्चे के जन्म के बाद प्लेसेंटा, जिसे हम गर्भनाल भी कहते हैं, उसे शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। ज्यादातर महिलाओं में, डिलीवरी के दौरान यह प्रक्रिया अपने आप ही हो जाती है, लेकिन कुछ मामलों में, यह स्वाभाविक रूप से नहीं निकलता। जिसकी वजह से इस कंडीशन को रीटेंड प्लेसेंटा के रूप में जाना जाता है।
डिलीवरी की प्रक्रिया बच्चे के जन्म के साथ पूरी नहीं होती है। नाल का अलग होना इस प्रक्रिया का आखिरी चरण है। लेबर प्रक्रिया पूरी होने में 3 चरण होते हैं:
जैसा कि नाम से पता चलता है कि रीटेंड प्लेसेंटा एक ऐसी कंडीशन है जहाँ बच्चे के जन्म के बाद नाल शरीर से प्राकृतिक रूप से बाहर नहीं निकलती। ऐसी कंडीशन में, महिला के गर्भ से पोस्टपार्टम रीटेंड प्लेसेंटा को हटाने के लिए प्रक्रिया में कुछ फेरबदल किए जाते हैं। यदि शरीर ने 30 मिनट के अंदर नाल को बाहर नहीं निकाला, तो इसे रीटेंड प्लेसेंटा माना जाता है क्योंकि शरीर ने प्लेसेंटा को निकालने के बजाय अपने अंदर ही रखा हुआ है।
यदि रीटेंड प्लेसेंटा टिश्यू का इलाज नहीं किया जाता, तो माँ को इन्फेक्शन और खून की कमी जैसी हेल्थ प्रॉब्लम होने का खतरा होता है।
रीटेंड प्लेसेंटा तीन प्रकार के हो सकते हैं:
यह तब होता है जब गर्भाशय, गर्भ में होने वाले कमजोर संकुचन के कारण प्लेसेंटा को पूरी तरह से बाहर निकालने में असमर्थ होता है। इसमें प्लेसेंटा यूटराइन वॉल पर चिपका ही रह जाता है। प्लेसेंटा अडहेरेंस, रीटेंड प्लेसेंटा का सबसे कॉमन टाइप है।
ट्रैप्ड प्लेसेंटा तब होता है जब प्लेसेंटा सेपरेट होने के बावजूद शरीर से बाहर नहीं निकल पाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सर्विक्स बाधा पैदा करने लगता है, जिस वजह से नाल इसके पीछे फंस जाती है।
प्लेसेंटा एक्रीटा वह कंडीशन है, जहाँ प्लेसेंटा यूटराइन वॉल की लाइनिंग के बजाय गर्भ की मांसपेशियों की लेयर से जुड़ जाता है। इसके कारण डिलीवरी कॉम्प्लिकेटेड हो जाती है और बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होने लगती है। ऐसे में अगर ब्लीडिंग किसी हाल में बंद न हो रही हो तो ब्लड ट्रांसफ्यूजन या यहाँ तक कि एक हिस्टेरेक्टॉमी की जरूरत पड़ सकती है।
यहाँ आपको रीटेंड प्लेसेंटा के कुछ कॉमन कारण बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:
नाल को बच्चे के जन्म के बाद 30 मिनट के अंदर पूरी तरह से डिस्चार्ज कर देना चाहिए। अगर बच्चे के जन्म के बाद एक घंटे के अंदर प्लेसेंटा को पूरी तरह से नहीं हटाया गया, तो यह रीटेंड प्लेसेंटा का स्पष्ट संकेत है।
रीटेंड प्लेसेंटा के मामले में एक महिला को नीचे बताए गए लक्षणों का अनुभव हो सकता है:
अगर आपको डिलीवरी के बाद लंबे समय तक इस प्रकार के कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
ऐसे कुछ फैक्टर हैं जिसके कारण महिलाओं को रीटेंड प्लेसेंटा से संबंधित समस्या होने की बढ़ सकती है। वे इस प्रकार हैं:
यह जरूरी नहीं है कि जिन महिलाओं को इसके होने का जोखिम ज्यादा हो, उन्ही को रीटेंड प्लेसेंटा होता है, लेकिन अगर आपको ऊपर बताए गए कोई भी रिस्क फैक्टर दिखें, तो अपने डॉक्टर को इसके बारे में पहले से सूचित करना चाहिए।
डिलीवरी के बाद सावधानीपूर्वक आपके डॉक्टर द्वारा यह जांच की जाती है कि आपको रीटेंड प्लेसेंटा की समस्या तो नहीं है।
कुछ मामलों में, प्लेसेंटा का कुछ हिस्सा गर्भ में रह जाता है। इसके लिए बाहर निकाली जाने वाली नाल की अच्छे से जाँच करने पर डॉक्टर को ऐसे केस की जानकारी मिलती है। अगर डॉक्टर मिसिंग प्लेसेंटा को नोटिस नहीं कर पाते हैं, तो महिला में जल्द ही रीटेंड प्लेसेंटा के लक्षण देखे जा सकते हैं।
डॉक्टर गर्भाशय की जांच करने के लिए एक अल्ट्रासाउंड करेंगे, अगर उन्हें लगता है है कि आपको रीटेंड प्लेसेंटा की समस्या है। प्लेसेंटा के किसी भी हिस्से के गायब होने की स्थिति में कॉम्प्लिकेशन से बचने के लिए इसका तुरंत इलाज कराना चाहिए।
नॉर्मल डिलीवरी के दौरान, गर्भाशय संकुचन के माध्यम से ब्लड वेसल्स को बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होने से रोकता है। प्लेसेंटा टिश्यू के रह जाने से ठीक से संकुचन नहीं होगा जिससे आपको हैवी ब्लीडिंग हो सकती है।
कब्ज होने पर आप स्टूल को जैसे पुश करती हैं उसी तरह से पुश करने या खांसने से प्लेसेंटा को बाहर निकालने में मदद मिल सकती है।
प्लेसेंटा को बाहर करने के लिए और गर्भाशय को बेहतर रूप टोन करने के लिए ब्लैडर को खाली करके गर्भाशय को कॉन्ट्रैक्ट करने के लिए इंजेक्शन दिया जाता है।
अलग-अलग तरीके हैं जिनके द्वारा रीटेंड प्लेसेंटा को निकाला जा सकता है।
ऐसा हो सकता है कि जिस महिला की पहली डिलीवरी सी-सेक्शन द्वारा हुई हो, वो रीटेंड प्लेसेंटा
से पीड़ित हो सकती हैं। प्लेसेंटा एक्रीटा एक ऐसी स्थिति है जहाँ नाल गर्भ से मजबूती के साथ जुड़ी होती है, इसलिए हो सकता है कि पिछली सीजेरियन सेक्शन सर्जरी में रह गए स्कार के कारण, रीटेंड प्लेसेंटा की समस्या पैदा हो जाए।
डिलीवरी की तैयारी करते समय, डॉक्टर इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि बच्चे के जन्म के बाद प्लेसेंटा को बाहर निकाल कर डिलीवरी की प्रक्रिया को पूरा किया जाए, ताकि रीटेंड प्लेसेंटा के कारण समस्या पैदा न हो। नीचे बताए गए स्टेप लेबर के दौरान रीटेंड प्लेसेंटा के जोखिम को कम कर सकते हैं:
यहाँ आपको रीटेंड प्लेसेंटा से बचने के लिए कुछ सावधानियां बताई गई हैं, जो इस प्रकार हैं।
प्लेसेंटा को हटाना लेबर प्रोसेस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और एक सामान्य डिलीवरी के लिए इसका पूरी तरह से निकलना बहुत जरूरी है ताकि आपको आगे किसी समस्या का सामना न करना पड़े। प्लेसेंटा के गर्भ में जाने की संभावना को कम करने के लिए खासतौर पर देखभाल की जरूरत होती है। डॉक्टर को किसी भी जोखिम या पहले हुई किसी भी घटना के बारे में सही तरह से बताया जाना चाहिए, ताकि वह इससे जुड़ी किसी भी रिस्क से आपको बचाने की कोशिश कर सकें।
रीटेंड प्लेसेंटा के मामले में, तुरंत इलाज करना बहुत जरूरी है और फिर इससे रिकवर होने के लिए अपने डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें।
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