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शेर और बिल्ली की कहानी एक ऐसी कहानी है, जिसमें यह बताने का प्रयास किया गया है कि हमें चाहे जितना ज्ञान क्यों न हो लेकिन कभी भी अपना पूरा ज्ञान किसी को नहीं सिखाना चाहिए। हम नहीं जानते कि कौन हमारे ज्ञान का फायदा उठाकर हम पर ही प्रहार कर दे। आंखें बंद करके किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए और हर समय चौकन्ना रहन चाहिए। ऐसी कहानियां बच्चों के आकर्षण का केंद्र बनती हैं और वे इन्हें दिलचसपी के साथ पढ़ते हैं। इससे मिलती-जुलती कहानियों के लिए हमसे जुड़े रहें।
सालों पहले एक नील नाम का जंगल हुआ करता था, जहां एक बेहद होशियार बिल्ली रहती थी। बिल्ली इतनी ज्ञानी थी कि हर कोई उससे शिक्षा लेने आया करता था। जंगल के सभी जानवर उसे बिल्ली मौसी बुलाते थे। जंगल के कई जानवर उससे ज्ञान प्राप्त करने जाते थे।
एक दिन बिल्ली के पास शेर पहुंचा और उसने कहा –
“मुझे भी आपसे ज्ञान हासिल करना है। मैं आपका शिष्य बनकर शिक्षा प्राप्त करना चाहता हूं, ताकि जिंदगी में आगे कोई तकलीफ न हो।”
कुछ समय तक सोचने के बाद बिल्ली मौसी ने शेर को सिखाने के लिए हामी भर दी और कहा –
“ठीक है, कल से आ जाना।”
अगले दिन से शेर रोज बिल्ली मौसी के पास ज्ञान हासिल करने के लिए जाया करता था। एक महीना बीतने के बाद शेर ने जब शिक्षा हासिल कर ली तो बिल्ली ने उससे कहा –
“अब तुम्हें सारा ज्ञान मिल चुका है। तुम्हें कल से पढ़ने के लिए आने की जरूरत नहीं है। मेरे द्वारा हासिल की गई शिक्षा से तुम आसानी से अपना जीवन व्यतीत कर सकते हो।”
शेर ने बिल्ली से पूछा –
“आप सच कह रही हैं? मुझे सच में सारा ज्ञान हासिल हो गया है, क्या?”
बिल्ली ने कहा –
“हाँ, मुझे जो कुछ भी आता था मैंने तुम्हें सब कुछ सिखा दिया है।”
यह बात सुनकर शेर जोर से दहाड़ने लगा और उसने बिल्ली से कहा –
“चलो फिर क्यों न तुम्हारी शिक्षा का उपयोग तुम पर ही किया जाए। इससे मुझे यकीन हो जाएगा आखिर मुझे कितना ज्ञान हासिल हुआ है।”
बिल्ली डर गई और कहने लगी –
“मूर्ख, मैंने तुम्हें ज्ञान दिया और मैं तुम्हारी गुरु हूँ। तुम इस तरह से मेरे ऊपर आक्रमण नहीं कर सकते हो।”
शेर ने बिल्ली की एक बात भी नहीं मानी और उसपर प्रहार करने लगा। अपनी जान बचाने के लिए बिल्ली वहां से भागी और एक पेड़ पर चढ़ गई। बिल्ली जब पेड़ पर चढ़ी तो शेर देखकर कहने लगा –
“तुमने मुझे पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया, मतलब तुमने मुझे पूरी शिक्षा नहीं दी।”
पेड़ पर चढ़कर बिल्ली ने सुकून भरी सांस ली और शेर को जवाब दिया –
“मुझे तुम्हारे ऊपर पहले दिन से विश्वास नहीं था। मुझे ज्ञान था कि तुम भले मुझसे सीखने आए हो लेकिन एक दिन मेरी जान के लिए आफत बन जाओगे। इसी वजह से मैंने तुम्हें पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया। यदि मैंने तुम्हें ये ज्ञान भी दे दिया होता, तो आज मेरी जान चली जाती।”
बिल्ली ने शेर से गुस्से में कहा –
“अब तुम मेरी नजरों से दूर चले जाओ और आज के बाद कभी भी मेरे सामने नहीं आना। तुम शिष्य कहलाने के लायक नहीं हो क्योंकि तुम अपने गुरु की इज्जत करना नहीं जानते हो।”
बिल्ली की ये बातें सुनकर शेर को बहुत गुस्सा आया, लेकिन वो कुछ कर नहीं सकता था बिल्ली उससे दूर पेड़ पर चढ़ी थी। गुस्से का घूंट पीकर शेर वहां से दहाड़ते हुए निकल गया।
शेर और बिल्ली की कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी पर भी आँखें बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए। जीवन में हर किसी से सावधान रहने पर ही आप खुद को सुरक्षित और मुसीबतों से दूर रख सकते हैं।
शेर और बिल्ली की यह कहानी नैतिक कहानियों में से एक है जिसमें यह यह बताया गया है कि किसी पर पूर्ण रूप से विश्वास करना आपको नुकसान पहुंचा सकता है।
शेर और बिल्ली की कहानी का नैतिक यह है कि कभी भी आपको अपने ज्ञान को पूरी तरह से किसी को नहीं देना चाहिए क्योंकि आप नहीं जानते कौन उसका फायदा उठाकर आपका ही नुकसान कर दे।
हमें जीवन में कभी भी किसी पर आंख बंद करके भरोसा नहीं चाहिए क्योंकि हम नहीं जानते कौन हमारे सामने अच्छा बनकर रहता है और पीठ पीछे वार कर दे। व्यक्ति को अपने से ज्यादा किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि हम किसी के चेहरे से उसके इरादे नहीं समझ सकते हैं।
शेर और बिल्ली की कहानी का मकसद यह है कि हमें कभी भी किसी पर खुद से अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि समय आने पर हमारा कितना भी करीबी क्यों न हो वो धोखा दे सकता है। आपके पास चाहे जितना ज्ञान हो, दूसरों को उतना ज्ञान बाटें जितनी उनको जरूरत है, नहीं तो वे आपका भी फायदा उठा सकते हैं। शेर और बिल्ली के मामले में यही हुआ लेकिन बिल्ली की समझदारी की वजह से आज वो जिंदा है। इसलिए हमेशा चीजों को देख समझ कर ही करें और आंख बंद करके किसी पर भरोसा नहीं करें।
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