शिशु

शिशु का 34वेंं सप्ताह में समयपूर्व जन्म

आमतौर पर, गर्भधारण के 38 सप्ताह के बाद बच्चे पैदा होते हैं।लेकिन, कुछ मामलों में, बच्चों का जन्म समय से पहले, 34वें सप्ताह में भी हो जाता है। प्रीमी या प्रीमैच्योर कहे जाने वाले इन शिशुओं को, अस्पताल और घर दोनों जगह पर विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। इससे पहले कि हम इस विषय में और जानकारी लें, आइए जानें कि 34वें सप्ताह में होने वाले प्रसव के क्या कारण होते हैं।

34वेंं सप्ताह में शिशु के जन्म के कारण

समय से पहले होने वाले प्रसव के कारण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं:

  • जनन मार्ग का संक्रमण और बैक्टीरियल स्राव जो एम्नियोटिक थैली के आसपास की झिल्ली को कमजोर करते हैं, जिससे यह जल्दी फट जाती है
  • प्लेसेंटा प्रिविया, प्लेसेंटा एब्डॉमिनल या प्लेसेंटा एक्रिटा जैसी प्लेसेंटा यानि गर्भनाल से जुड़ी समस्याएं
  • अत्यधिक एम्नियोटिक द्रव की उपस्थिति
  • गर्भाशय या गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) की संरचना में असामान्यताएं जैसे सर्विक्स की अक्षमता
  • ओवरी सिस्ट, अपेंडिक्स या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए गर्भावस्था के दौरान पेट की सर्जरी

34वें सप्ताह में जन्मे शिशुओं में जटिलताएं

यहाँ कुछ ऐसी जटिलताओं के बारे में बताया गया है जो 34वें सप्ताह में पैदा हुए बच्चों में हो सकती हैं:

1. पीलिया

प्रीमैच्योर बच्चों को पीलिया होने का खतरा होता है, क्योंकि उनमें पूरी तरह कार्यात्मक मेटाबोलिज्म प्रणाली की कमी होती है। रक्त का एक उत्पाद – बिलीरुबिन, शरीर में जमा हो जाता है, जिससे त्वचा और आँखों में पीलापन आ जाता है।

2. खून की कमी

एनीमिया लाल रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण होता है। ये कोशिकाएं शरीर के विभिन्न हिस्सों में ऑक्सीजन पहुँचाती हैं। समय से पहले जन्मे बच्चे में, पूरी तरह से विकसित होने के लिए पर्याप्त रक्त नहीं होता है और इसलिए बच्चे का शरीर कमजोर हो जाता है।

3. रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (आर.डी.एस.)

समय से पहले जन्मे शिशुओं में श्वसन प्रणाली ठीक से विकसित नहीं होती है, जिससे उन्हें सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। ये बच्चे पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति भी संवेदनशील होते हैं और कोई भी परिवर्तन उन्हें सांस लेने में बहुत ज्यादा परेशानी पैदा कर देता है। 

4. एपनिया

एपनिया एक ऐसा विकार होता है जिसमें शिशु का शरीर सांस लेने का कोई प्रयास नहीं करता है;  यह उनकी अविकसित श्वसन प्रणाली के कारण होने की संभावना होती है। शिशुओं को तब तक सांस लेने में तकलीफ बनी रहती है, जब तक उसका शरीर ठीक से परिपक्व नहीं हो जाता है और इसका इलाज दवा और अच्छे तरह देखभाल करके किया जाता है।

5. संक्रमण

कमजोर इम्युनिटी के कारण शिशु अनेक तरह के संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं।

6. पेटेंट डक्टस आर्टेरियस

यह वो धमनी होती है जो माँ से बच्चे को जोड़ती है। ऐसा हो सकता है कि यह जन्म के बाद ठीक से बंद नहीं हुई हो और इस कारण यह गंभीर जटिलताओं को जन्म दे सकती है।

7. ब्रोन्कोपल्मोनरी डिसप्लेसिया (बी.पी.डी.)

यदि आपके शिशु में स्वास्थ्य संबंधी परेशानी गंभीर रूप से विकसित होने लगे, तो उसे सांस लेने के लिए वेंटिलेटर की आवश्यकता हो सकती है।

8. ब्लड प्रेशर कम होना

समय पूर्व जन्मे शिशुओं में ब्लड पूल और रक्त वाहिकाओं का निर्माण अच्छी तरह से नहीं हुआ होता है। इसलिए ब्लड प्रेशर को संतुलित रख पाना मुश्किल हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप जन्म के तुरंत बाद रक्तचाप कम हो जाता है।

9. नेक्रोटाइजिंग एंट्रोकोलाइटिस

यह एक ऐसी खतरनाक स्थिति होती है जिसमें प्रीमैच्योर शिशु की आंतों की दीवारों पर बैक्टीरिया द्वारा आक्रमण होता है। अविकसित आंतों में होने वाले संक्रमण के परिणामस्वरूप पेट के अंदर मल का रिसाव होने लगता है।

34वें सप्ताह में जन्मे शिशु की देखभाल कैसे करें

34वें सप्ताह में जन्मे बच्चे को विभिन्न चरणों में विशेष देखभाल और ध्यान की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ तरीके दिए गए हैं जिससे आप शिशु के जन्म के बाद उसकी देखभाल कर सकती हैं:

1. एन.आई.सी.यू. में रखना

8वें महीने में पैदा हुए शिशुओं को एन.आई.सी.यू. (निओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) में स्थानांतरित कर दिया जाता है और कुछ हफ्तों तक बारीकी से निगरानी की जाती है। शिशुओं को इनक्यूबेटर में रखा जाता है । उनके पेट में भोजन पहुँचाने और ठीक से सांस लेने के लिए नली लगाई जाती है । एन.आई.सी.यू. के अंदर का वातावरण, तापमान, आर्द्रता और गैस के आंशिक दबावों के सही मिश्रण से सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाता है, जो बच्चे की वृद्धि और स्वास्थ्य में सुधार के लिए आदर्श होता है।

2. दूध पिलाना

प्रीमैच्योर बच्चे को स्तनपान नहीं कराया जा सकता क्योंकि जन्म के समय उसकी दूध पीने की क्षमता कम विकसित होती है। ऐसे में उसे एक ट्यूब के माध्यम से माँ का दूध या फार्मूला दूध दिया जाता है, जो शिशु के मुँह से होते हुए सीधे पेट में जाता है। माँ को दूध निकालने के लिए स्तन पंप का उपयोग करने की आवश्यकता हो सकती है, जिसके बाद यह दूध ट्यूब द्वारा शिशु को दिया जा सकता है । शिशु को एन.आई.सी.यू. से निकालने के बाद डॉक्टर आपको स्तनपान कराने की अनुमति दे सकते हैं।

3. संबंध

माँ और बच्चे के बीच का संबंध बहुत महत्वपूर्ण होता है। हालांकि, यह बच्चे को इनक्यूबेटर में रखने से बाधित होता है। लेकिन, यह केवल कुछ समय की बात है, शिशु के डिस्चार्ज होने से पहले वह आपकी आवाज और स्पर्श को पहचानने में सक्षम हो जाएगा ।

34वें सप्ताह में जन्मे शिशुओं के जीवित बचने की दर क्या है

अच्छी बात यह है कि 34वें सप्ताह में जन्मे शिशु के जीवित रहने की दर 98% तक होती है। जब तक कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या न हो इन शिशुओं को बचाया जा सकता है। 

34वें सप्ताह में जन्मा शिशु एन.आई.सी.यू. में कब तक रहता है

यदि आपका शिशु 34वें सप्ताह में पैदा हुआ है, तो उसे 36 सप्ताह का होने तक एन.आई.सी.यू. में रहने की आवश्यकता हो सकती है। एन.आई.सी.यू. से बाहर निकालने से पहले डॉक्टर शिशु की कुछ विशिष्ट बातों का निर्धारण करते हैं जैसे, उसके शरीर का तापमान ठीक होना चाहिए, वह भोजन कर सके तथा स्वयं सांस लेने में सक्षम हो । 

समर नक़वी

Recent Posts

जादुई हथौड़े की कहानी | Magical Hammer Story In Hindi

ये कहानी एक लोहार और जादुई हथौड़े की है। इसमें ये बताया गया है कि…

1 week ago

श्री कृष्ण और अरिष्टासुर वध की कहानी l The Story Of Shri Krishna And Arishtasura Vadh In Hindi

भगवान कृष्ण ने जन्म के बाद ही अपने अवतार के चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए…

1 week ago

शेर और भालू की कहानी | Lion And Bear Story In Hindi

शेर और भालू की ये एक बहुत ही मजेदार कहानी है। इसमें बताया गया है…

1 week ago

भूखा राजा और गरीब किसान की कहानी | The Hungry King And Poor Farmer Story In Hindi

भूखा राजा और गरीब किसान की इस कहानी में बताया गया कि कैसे एक राजा…

1 week ago

मातृ दिवस पर भाषण (Mother’s Day Speech in Hindi)

मदर्स डे वो दिन है जो हर बच्चे के लिए खास होता है। यह आपको…

1 week ago

मोगली की कहानी | Mowgli Story In Hindi

मोगली की कहानी सालों से बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय रही है। सभी ने इस…

1 week ago