शिशु अगर काफी देर तक रोए तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें ‘कोलिक’ या ‘उदरशूल’ है, जिसे आम भाषा में ‘पेट दर्द’ भी कहते है। आमतौर पर, अगर कोई बच्चा सप्ताह में तीन दिन लगातार, तीन से अधिक घंटे तक रोता हैं, तो उसके कोलिक से पीड़ित होने की संभावना होती है। पेट दर्द या कोलिक से पीड़ित शिशु रोते हुए अपनी पीठ को तानते हैं व अपने घुटनों को पीछे की ओर मोड़ते हैं। उनके पेट की मांसपेशियां ज्यादातर पर तनावग्रस्त रहती हैं, और बच्चा अत्यधिक हवा पास कर सकता है।
कोलिक की समस्या आमतौर पर 2-3 सप्ताह के बच्चे को होता है और तब तक रहता है जब तक बच्चा 4-6 महीने का नहीं हो जाता। वैसे कोलिक के सटीक कारणों का पता नहीं लगा है, लेकिन यह गैस या अपच के कारण हो सकता है। यह माँ के दूध के प्रति असहिष्णुता के कारण भी हो सकता है।
नीचे कुछ घरेलू उपचार दिए गए हैं जिनका उपयोग आप कर सकते हैं :
अपने बच्चे को गुनगुने पानी से स्नान कराना उनके पेट दर्द या कोलिक के लिए एक प्राकृतिक उपचार है, जिसे काफी सालों से अपनाया जाता रहा है। गर्म पानी दर्द से राहत दिलाता है और आप उसके पेट पर धीरे से मालिश भी कर सकते हैं।
एक गर्म सेक गैस से राहत देता है। एक तौलिए को गर्म पानी में डुबोकर निचोड़ें। अपने बच्चे के पेट पर कपड़ा रखें या धीरे से उसके पेट को रगड़ें।
मालिश आपके बच्चे के लिए अत्यंत सुखदायक होती है और उसके पाचन को भी ठीक रखने में सहायता करती हैं। जैतून के तेल या नारियल के तेल को अपने हथेलियों के बीच रगड़े गोल-गोल दिशा में बच्चे के पूरे शरीर की मालिश करें।
यह एक सरल व बहुत ही प्रभावी व्यायाम है। बच्चे को उसकी पीठ के बल लिटाएं। उसके घुटनों को एक साथ पकड़ें और धीरे से उसके पैरों को उसके पेट की ओर धकेलें। कुछ सेकंड के लिए इसी स्थिति में रहें। लेकिन ध्यान रहें अगर शिशु इस अभ्यास का विरोध करता है तो रुक जाएं।
आपके बच्चे के लिए दूध पीने के बाद डकार लेना बहुत जरूरी है। यह उसके पेट मे गैस बनने से रोकता है। बच्चे को दूध पिलाने के बाद, उसे अपने कंधे पर लिटाएं। उसकी गर्दन को सावधानी से सहारा देते हुए धीरे-धीरे उसकी पीठ पर हाथ फेरें जब तक कि आपको डकार की आवाज न सुनाई दे। हर बार खाना दूध पिलाने के बाद ऐसा करें।
हींग में उदर-वायु से राहत देने वाले गुण होते हैं, जो पाचन को ठीक करता है और गैस से राहत देता है। यह शिशुओं में होने वाले पेट दर्द का एक भारतीय घरेलू उपचार हैं। एक चुटकी हींग में एक चम्मच पानी मिलाएं और फिर इसे गर्म करें। अब इस गर्म मिश्रण को बच्चे की नाभि के आसपास रगड़ें। जिन शिशुओं ने ठोस आहार शुरू कर दिया हैं, उनके पानी या भोजन में थोड़ी सी हींग मिलाएं।
यह सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा प्रत्येक स्तन से बारी-बारी दूध पीने के बजाय एक स्तन से लंबे समय तक पूरा दूध पियें। शिशु के द्वारा कुछ देर दूध पीने के बाद जो दूध आता है वह ज्यादा पौष्टिक होता है, शुरुआती दूध के मुकाबले। बाद के दूध में ज्यादा वसा भी होता है जो पाचन को बढ़ावा देता है और पेट को शांत करता है। बहुत ज्यादा शुरुआती दूध से पाचन में दिक्कत हो सकती है।
बच्चे को अपनी बाहों में लेकर झुलाएं या घुमाएं, शारीरिक संपर्क बच्चे को संतुष्टि देती है। यह एक परेशान बच्चे को व उसके किसी भी विकार को शांत सकती है।
तुलसी के पत्तों में एंटीस्पास्मोडिक (अंग-ग्रह नाशक) और शामक गुण होते हैं। इसलिए तुलसी जठरांत्र संबंधी समस्याओं से उबरने में मदद करती है। तुलसी के कुछ पत्ते को पानी में उबालकर ठंडा करें और फिर चम्मच से बच्चे को पीने के लिए दें। वैकल्पिक रूप में, पत्तियों का पेस्ट बनाएं और नाभि के चारों ओर लगाएं, इसे सूखने तक रखें और फिर गीले कपड़े से पोछकर हटा दें।
सौंफ में गैस और कई अन्य गैस्ट्रोनॉमिक समस्याओं से निपटने के अद्भुत गुण होते हैं। एक छोटा चम्मच सौंफ को एक कप पानी में उबालें और फिर ठंडा करने के लिए रख दें। जब सौंफ नीचे बैठ जाएं और ठंडा भी हो जाएं तब अपने बच्चे को दें।
बच्चों को कोलिक गैस व एसिड रिफ्लक्स के कारण भी हो सकता है। प्रोबायोटिक्स में कोलिक को ठीक करने के लिए प्रभावी पाया गया है। अपने बच्चे को प्रोबायोटिक्स देने से पहले चिकित्सक की सलाह जरूर लें।
पुदीना में शांत करने वाले और एंटीस्पास्मोडिक गुण होते हैं। एक बूंद पूदीने के तेल को एक चम्मच बच्चों को मालिश वाले तेल में मिलाएं और अपने हथेलियों के बीच रगड़कर गर्म करके बच्चे के पेट पर धीरे-धीरे मालिश करें।
एक माँ का आहार, उसके दूध को प्रभावित करता है। इसलिए, आप जो भी खाती हैं उस पर ध्यान दें। यदि आपका बच्चा उदरशूल से पीड़ित है तो आप डेयरी उत्पादों को खाने से बचें तथा ग्लूटेनयुक्त खाद्य, खट्टे फल, कैफीन और मसालेदार खाद्य पदार्थ अपने आहार में शामिल न करें।
अपने बच्चे को जोर-जोर से गाना गाकर या बात करके उसे शांत न कराएं । ऐसा वातावरण बनाएं जो शांत व खुशनुमा हो।
वैसे, दूध की बोतल भी बच्चे में कोलिक का कारण हो सकता है। दूध पिलाने की बोतल को बदलने से आपके बच्चे को भोजन करते समय निगलने वाली हवा की मात्रा बदल जाती है। यह, बदले में, पाचन को प्रभावित करता है।
कोलिक के इलाज के लिए 100% प्राकृतिक ग्राईपवाटर बहुत प्रभावी है। यह पानी आमतौर पर कैमोमाइल, सौंफ, अदरक और नींबू बाम का मिश्रण होता हैं। ग्राईपवाटर खरीदते समय सुनिश्चित करें कि वह पूरी तरह से प्राकृतिक हो और इसमें कोई संरक्षक मौजूद नहीं हो। अपने चिकित्सक ने की सलाह के अनुसार ग्राईपवाटर चुनें।
यदि आपका शिशु फॉर्मूला दूध पी रहा है, तो वह फॉर्मूला में मौजूद किसी तत्व के वजह से रिएक्ट कर सकता है। इसलिए फॉर्मूला बदलने से मदद मिल सकती हैं। इसके अलावा, घर के बने फॉर्मूला दूध आजमाएं जो जैव-पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और पचाने में भी आसान होते हैं।
एप्पल साइडर विनेगर सीने में जलन को कम करने में मदद करता है और यीस्ट संक्रमण से भी लड़ता है, इसलिए एप्पल साइडर के इस्तेमाल से आपके बच्चे की पेट दर्द की समस्या का समाधान हो सकता है। एक कप गुनगुने पानी में एक चम्मच एप्पल साइडर सिरका मिलाएं व बच्चे को कुछ चम्मच पिलाएं।
पुदीना आंतों की ऐंठन से राहत देता है। एक कप गर्म पानी में, एक चम्मच पुदीना मिलाएं। इसे 10 मिनट तक रखें, फिर छान दें। अपने बच्चे को इस चाय के कुछ चम्मच पिलाएं।
कोलिक होना एक ऐसी स्थिति है जिसका कोई विशिष्ट कारण या उपचार नहीं होता है। आपके सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद भी आपका शिशु चिड़चिड़ा हो सकता है। कोशिश करें कि आप निराश न हो। शिशु के उदरशूल को ठीक करने के लिए घर के बड़ों या किसी अनुभवी की मदद लें।
अपने बच्चे को अपनी गोद में उसके पेट के बल सुलाएं। ऐसे में बस पीठ को रगड़ने से भी गैस पास करने में मदद मिलती है। याद रखें अपने बच्चे का टमी टाइम तब ही करवाएं जब वो जगा हुआ हो, नींद में न हो।
यदि आप स्तनपान के तुरंत बाद अपने बच्चे को सुलाती हैं, तो दूध वापस भोजन-नली में आ सकता है और सीने से जलन पैदा कर सकता है। एसिड रिफ्लक्स के लक्षणों से बचने के लिए अपने बच्चे को स्तनपान के बाद कुछ देर सीधा रखें।
एंटीगैस की बूंदें बच्चे के पेट के गैस को बुलबुले में तोड़ती है और कोलिक से राहत दिलाती है। कोई भी दवा अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही दें।
बच्चों में कोलिक या उदरशूल एक आम समस्या है और इसके माता-पिता को ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए । हालंकि, बच्चे को लगातार रोते हुए देखना काफी पीड़ादायक है, लेकिन यह शुरुआती छह महीनों में ही रहता है फिर ठीक हो जाता है। यदि आपको लगता है कि स्थिति नियंत्रण से बाहर है, तो हमेशा अपने डॉक्टर की सलाह लें।
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