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विटामिन सूक्ष्म पोषक तत्व हैं जो मानव शरीर की स्वस्थ कार्यशीलता के लिए आवश्यक हैं। विटामिन डी एक अनूठा विटामिन है जो एक प्राकृतिक स्रोत – सूर्य के प्रकाश के माध्यम से उपलब्ध होता है। जब लाभदायक यू.वी. किरणें (यू.वी.बी.) सूर्य की रोशनी के माध्यम से हमारी त्वचा पर पड़ती हैं, तो त्वचा में विटामिन डी का उत्पादन होता है और फिर इसे रक्त में अवशोषित किया जाता है।
जैसा कि नाम से ही पता चलता है, शरीर में विटामिन डी के निम्न स्तर को विटामिन डी की कमी कहा जाता है। फिर विटामिन डी की अपर्याप्तता क्या है? खैर, यह सीरम 25-हाइड्रॉक्सी-विटामिन डी (कैल्सीडिओल) के रूप में मापा गया विटामिन डी का रक्त स्तर है जो इसे निर्धारित करता है। 25 नैनोमोल प्रति लीटर से कम के स्तर का अर्थ विटामिन डी का अभाव होता है और 25-50 नैनोमोल प्रति लीटर के बीच का स्तर अपर्याप्तता होती है। जब स्तर 50 नैनोमोल प्रति लीटर से अधिक हो, तो ऐसा देखा गया है कि हड्डियों, मांसपेशियों, इम्युनिटी और इन्सुलिन स्राव में लाभ होता है।
पोषण एक जटिल प्रक्रिया है और अधिक से अधिक लाभ पाने के लिए एक इसके सही संतुलन की आवश्यकता होती है। किसी तत्व की थोड़ी कमी को पूरा करने के लिए शरीर सक्षम होता है, कई बार अपर्याप्तता के स्तर को भी, लेकिन एक सीमा तक, विशेषत: बढ़ते बच्चों में। यह विटामिन डी ही है जो आपके बच्चे को बिना किसी कठिनाई के और पूर्ण शक्ति और ऊर्जा के साथ खेलने में सक्षम बनाएगा। हड्डियों को मजबूती, टूट-फूट और वजन सहने के लिए कैल्शियम और फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है। यह विटामिन डी है जो यह सुनिश्चित करता है कि हड्डियां किसी चीज से वंचित न हों। विटामिन डी आंतों की परत में भोजन से कैल्शियम को अवशोषित कराता है, इसे रक्त में संसाधित करता है और हड्डियों में जमा करता है। शरीर में हर कोशिका की कार्यप्रणाली के लिए कैल्शियम अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु अणुओं को प्राप्त करने के लिए कोशिकाओं के द्वार खोलने और प्रत्येक मांसपेशी फाइबर संकुचन को शुरू करने और मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होता है। इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि विटामिन डी शिशुओं के लिए महत्वपूर्ण क्यों है और इसकी कमी उन्हें किस तरह से प्रभावित करेगी।
विटामिन डी की खुराक विटामिन डी 2 (एरगोकैल्सिफेरॉल) और डी 3 (कॉलेकैल्सिफेरॉल) दोनों के रूप में पाई जाती है। यद्यपि परंपरागत रूप से डी 2 और डी 3 दोनों को समान रूप से प्रभावी माना गया है, अध्ययनों से पता चला है कि डी 2 की तुलना में डी 3 कम से कम 3 गुना अधिक शक्तिशाली हो सकता है। इसलिए वे परिपूरक (सप्लीमेंट्स) जिनमें डी 3 होता है, वे पूरक आहार के बेहतर विकल्प हैं। वास्तव में, अब ज्यादातर देशों में, यह विटामिन डी का एकमात्र प्रकार है जो व्यावसायिक रूप से उपलब्ध है।
जांच:
कम विटामिन डी के कारण एक या अधिक जोखिम के स्तर पर होने वाले बच्चे, जिनमें लक्षण दिखाई देते हों या न देते हों, उनके लिए निम्नलिखित जांच लाभदायक हैं:
जिन बच्चों में विटामिन डी की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं, उनके लिए निम्न परीक्षण किए जाने चाहिए
शिशुओं की उम्र और विटामिन डी की कमी का स्तर कम, मध्यम या गंभीर होने के आधार पर 1-6 माह की अवधि के लिए खुराक का निर्धारण किया जा सकता है। इसमें प्रतिदिन थोड़ी खुराक अथवा प्रति सप्ताह या प्रतिमाह ज्यादा खुराक लिया जाना हो सकता है ।
मानक खुराक है:
– 1 वर्ष की आयु तक: प्रति दिन 1000-5000 आई.यू.
– 1 वर्ष से अधिक: प्रतिदिन 10000 आई.यू. तक
– साप्ताहिक खुराक आमतौर पर 50,000 आई.यू. है
– छ:माही या वार्षिक 6 एल. आई.यू. इंजेक्शन (जिन्हें आमतौर पर बच्चों को नहीं दिया जाता है)।
मध्यम या गंभीर कमी के मामले में शिशुओं में रक्त की जांच 1 महीने और बड़े बच्चों में 3 महीने में की जाती है। हल्की कमी वाले मामलों में दोबारा जांच की आवश्यकता नहीं होती है।
सामान्य स्तर पर आ जाने के बाद उसे बनाए रखने के लिए 400 आई.यू. प्रतिदिन की खुराक कुछ समय तक जारी रहती है।
यदि जोखिम से बचने के लिए साल में लगभग एक या दो बार विटामिन डी के स्तर की जांच करें और दैनिक या वार्षिक मेंटेनेंस खुराक जारी रखें।
बाजार में उपलब्ध विटामिन डी की खुराक के रूप हैं:
कैल्शियम तत्व का सप्लीमेंट:
उपचार की शुरूआत में कैल्शियम की अधिकतम खुराक आवश्यक होती है । बाद में अगले 1 से 2 सप्ताह तक खुराक घटाकर आधी कर दी जाती है। जब सामान्य रक्त स्तर में विटामिन डी की सप्लीमेंट खुराक को 400 आई.यू./दिन तक कम कर दिया जाता है, तो अधिकतर मामलों में कैल्शियम सप्लीमेंट की आवश्यकता नहीं होती है।
विटामिन डी की कमी का सबसे महत्वपूर्ण कारण सूर्य के प्रकाश का सीमित संपर्क या बिल्कुल संपर्क न होना है। हालांकि, भारत जैसे देश में पर्याप्त धूप होने पर भी इसके मामले पाए जाते हैं। ऐसा क्यों हैं? इन कारणों को जानने के लिए, आपको यह समझने की आवश्यकता है कि शरीर में विटामिन डी का उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण और उपयोग कैसे होता है।
सूर्य की किरणों में पाए जाने वाले यू.वी.बी. के संपर्क में आने पर, एपिडर्मिस (त्वचा की ऊपरी परत) प्रोविटामिन डी 3 नामक एक कोलेस्ट्रॉल को विटामिन डी 3 में परिवर्तित कर देता है जो फिर रक्त में प्रवेश करता है और यकृत में ले जाया जाता है। भोजन/सप्लीमेंट्स से मिलने वाला विटामिन डी भी पेट द्वारा अवशोषित होकर यकृत में भेज दिया जाता है। यकृत इसे कैल्सीडिओल के अधिक प्रभावी रूप में परिवर्तित करता है जो अभी भी निष्क्रिय है। इसके बाद इसे किडनी में ले जाया जाता है, जहाँ इसे इसके सक्रिय रूप कैल्सिट्रिओल में बदल कर दिया जाता है। इसलिए अब यह आसानी से समझा जा सकता है कि अच्छी धूप के बावजूद, निम्नलिखित परिस्थितियों में विटामिन डी की कमी हो सकती है।
विटामिन डी का कम संश्लेषण : सांवले रंग की त्वचा, पराबैंगनी किरणों को रोकने वाले उत्पाद जैसे सन स्क्रीन लोशन और कपड़े, पृथ्वी पर अक्षांश की स्थिति (उदाहरण के तौर पर यूनाइटेड किंगडम में सूर्य की रोशनी में यू.वी.बी. बहुत प्रभावी नहीं है), मौसम, वायु प्रदूषण, बच्चों में विकलांगता, जिसके कारण वे ज्यादा समय बाहर नहीं बिताते हैं, घर के अंदर खेलने की जीवनशैली, वातानुकूलित आवास, रंगीन शीशे, प्रकाश-संवेदनशील त्वचा, आदि विटामिन डी के कम संश्लेषण के लिए जिम्मेदार होते हैं।
भोजन में विटामिन का कम सेवन: शुद्ध शाकाहारी आहार, आहार संबंधी आदतें (विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थों का कम सेवन), अपवर्जन आहार (उदाहरण के लिए, दूध से एलर्जी), आदि।
माता में विटामिन डी की कमी: बच्चे की सिर्फ स्तनपान पर निर्भरता जिसमें माता में बच्चे को पोषण देने के लिए उसके शरीर में पर्याप्त विटामिन डी नहीं होता है।
कुपोषण: अग्नाशयी अपर्याप्तता, सीलिएक रोग, पित्त बाधा जो विटामिन के उचित अवशोषण को रोकती है।
दोषपूर्ण संश्लेषण: लिवर संबंधी पुराना रोग, गुर्दे की बीमारी आदि विटामिन डी के उत्पादन और अवशोषण के लिए आवश्यक अंगों के समुचित कार्य को बाधित कर सकते हैं ।
गिरावट में वृद्धि : एंटीकॉनवल्सेंट, एंटी-ट्यूबरकलोसिस, स्टेरॉयड जैसी दवाएं विटामिन डी के उत्पादन या अवशोषण की प्रक्रिया में बाधा बन सकती हैं।
आयु के अनुसार संकेत और लक्षण भिन्न होते हैं:
शिशु में विटामिन डी की कमी:
1. विकास का अवरुद्ध होना और वृद्धि में विलंब: कोई भी स्वास्थ्य समस्या न होने और अच्छे आहार के सेवन के बावजूद, आपका बच्चा ऊंचाई, वजन और अन्य विकासात्मक महत्वपूर्ण पहलुओं में वांछित स्तर तक नहीं पहुँच रहा है।
2. चिड़चिड़ापन, सुस्ती: बच्चा चंचल और सतर्क नहीं रह गया है और बिना किसी ज्ञात कारण के अधिकांश समय असामान्य रूप से रोता है और चिड़चिड़ा रहता है।
3. दौरे: किसी भी शिशु में दौरे आने के कई कारणों में से एक विटामिन डी की कमी होती है और इसके लिए त्वरित चिकित्सीय सलाह की आवश्यकता होती है।
4. अपतानिका: यह हाइपोकैल्केमिया की एक अवस्था है। अर्थात रक्त में कैल्शियम का निम्न स्तर। कैल्शियम की कमी के कई कारण हैं जैसे पोषक आहार की कमी, अवशोषण की कमी, विटामिन डी की कमी, असामान्य पैराथाइरॉइड हार्मोन स्राव, असामान्य गुर्दा क्रियाशीलता आदि। बच्चे को एपेनिक दौरे (अचानक सांस की तकलीफ), सीटी बजना, मांसपेशियों में कमजोरी और दौरे पड़ेंगे।
5. कार्डियोमायोपैथी: क्योंकि विटामिन डी की कमी शरीर की सभी मांसपेशियों को प्रभावित करती है, हृदय की मांसपेशियां भी कमजोर हो जाती हैं।
बच्चों में विटामिन डी की कमी:
1. दर्द एवं पीड़ा: बच्चे हाथों, पैरों व शरीर के अन्य अंगों में लगातार दर्द की शिकायत करेंगे, जो कि उनके शारीरिक विकास स्तर के अनुसार नहीं होगा।
2. मांसपेशियां कमजोर होना: माँसपेशियों में कमजोरी के कारण धीरे-धीरे चलना, सीढ़ियां चढ़ने में कठिनाई आदि समस्याएं पेश आती हैं।
3. रिकेट्स: घुटनों और पैरों का मुड़कर विकृत होना, डगमगाती चाल, घुटने की असामान्य विकृति, कलाई और कॉस्टोकोंड्रल जंक्शन की सूजन, लंबे समय तक हड्डी में दर्द (तीन महीने की अवधि से ज्यादा)।
4. मंद विकास: स्वस्थ आहार, सक्रिय जीवन शैली और किसी भी पुरानी बीमारी के न होने के बावजूद मंद कमजोर विकास विटामिन डी की कमी का संकेत हो सकता है।
5. आसानी से फ्रैक्चर होना: मामूली चोटों की स्थिति में आसानी से फ्रैक्चर होना विटामिन डी की कमी के कारण कैल्शियम के ठीक से अवशोषित न होने का संकेत हो सकता है।
6. बार-बार निचले श्वसन पथ का संक्रमण: विटामिन डी फुफ्फुस के कार्यों और इम्युनिटी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और बार-बार संक्रमण उसकी कमी के कारण हो सकता है।
7. एंटीरियर फोंटानेल का देर से बन्द होना: एंटिरियर फोंटानेल सिर के अग्रिम भाग में एक हीरे के आकार का छेद होता है। यह खोपड़ी की हड्डी के जोड़ के बीच की जगह है जो 18-24 महीने की उम्र तक धीरे-धीरे खत्म जाती है। हड्डियों की अक्रियाशीलता के कारण इसमें देरी होगी।
8. दाँत निकलने में देरी: अन्य सभी विकास के स्तरों में देरी की तरह दाँत निकलने में भी देरी होती है क्योंकि पर्याप्त कैल्शियम नहीं होता है।
9. हड्डियों की असामान्य प्रोफ़ाइल या एक्स-रे: कलाई या टखने या छाती का एक्स-रे हड्डियों में सूजन और कम कैल्शियम के स्तर के कारण हड्डियों में असामान्य मुड़ाव दिखाएगा।
10. असामान्य रक्त परीक्षण: प्लाज्मा कैल्शियम या फॉस्फेट स्तर में कमी, क्षारीय फॉस्फेट का बढ़ना।
संश्लेषण कम या बंद हो जाने के बाद शरीर में विटामिन डी के भंडार को खत्म होने में काफी समय की आवश्यकता होती है। तो स्वाभाविक रूप से, इसे फिर से भरने के लिए एक लंबा समय लगेगा। इस उपचार का उद्देश्य विटामिन डी के स्तर को बहाल करना और 50 नैनोमोल/लीटर से ज्यादा के स्तर को बनाए रखना है।
विभिन्न विकल्प हैं:
1. सप्लीमेंट्स:
– कम खुराक वाले दैनिक सप्लीमेंट्स
– उच्च खुराक वाली अंतराल पर ली जाने वाली थैरेपी
2. पर्याप्त कैल्शियम का सेवन सुनिश्चित करें
जो बच्चे गाय का दूध पसंद नहीं करते हैं, उनके लिए दही, पनीर और फोर्टिफाइड सोया कैल्शियम के उपयोगी स्रोत हैं। अगर भोजन अपर्याप्त हो तो दवाइयों के रूप में सप्लीमेंट्स लेने पर विचार करें।
3. धूप में रहें
सांवले रंग की त्वचा वाले बच्चे थोड़ी-थोड़ी अवधि के लिए धूप सहन कर सकते हैं और उन्हें सनस्क्रीन की आवश्यकता नहीं होती है। टोपी और धूप के चश्मे का इस्तेमाल किया जा सकता है। घर के बाहर के खेल और गतिविधियों को प्रोत्साहित करें।
अनुपूरक: सप्लीमेंट्स आहार किसे लेना चाहिए?
1. बिना किसी संकेत या लक्षण के सिर्फ स्तनपान करने वाले शिशुओं को ।
2. कम से कम एक या अधिक जोखिम वाले लक्षणों वाली मांओं के स्तनपान करने वाले शिशुओं को।
3. फार्मूला दूध पर आश्रित नवजात शिशुओं को जिन्हें फार्मूला से जरूरी विटामिन डी प्राप्त नहीं हो रहा है। जोखिम वाले बच्चों में विटामिन डी स्तर की जांच करना या दैनिक सप्लीमेंट्स देने की अनुशंसा की जाती है।
बच्चे को विटामिन डी कैसे दें:
विटामिन डी टैबलेट के रूप में और द्रव रूप में उपलब्ध होता है और कैल्शियम के साथ संयोजन में भी मिलता है। आप टेबलेट को पाउडर के रूप में बनाकर या कैप्सूल खोलकर भोजन के साथ मिलाकर दे सकते हैं।
सामान्य तौर पर यदि आवश्यक हो, सप्लीमेंट्स के साथ-साथ पर्याप्त धूप और विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन सप्लीमेंट्स पर निर्भरता के बजाय रोकथाम की रणनीति में मदद करेगा। गोरे रंग की त्वचा वाले बच्चों के लिए लगभग 5-15 मिनट धूप और सांवले रंग की त्वचा वाले बच्चों के लिए 30-45 मिनट धूप सहायक होती है। विशेषतः सुबह की धूप बेहतर है क्योंकि इसमें हानिकारक यू.वी. किरणों का स्तर कम होता है।
– शिशुओं में विटामिन डी के स्तर को निर्धारित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण पहलू माता के शरीर में विटामिन डी की स्थिति है। गर्भवती महिलाओं को अपनी गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान अपने विटामिन डी के स्तर की जांच करनी चाहिए। यदि यह कम पाया जाता है तो 3000-5000 आई.यू. के साथ इलाज किया जाना सबसे अच्छा है जब तक कि यह 20नैनोग्राम/डेसिलिटर से अधिक हो और इसके पश्चात 400 आई.यू./प्रतिदिन।
– स्तनपान कराने वाली माताओं को प्रतिदिन दी जाने वाली विटामिन डी की उच्च खुराक (400-6400 आई.यू.) बच्चे की माता में विटामिन डी विषाक्तता पैदा किए बिना बच्चे को विटामिन डी की कमी से बचाती है।
– जन्म के समय शुरू होने वाले 400-800 आई.यू./प्रतिदिन का सप्लीमेंट आवश्यक है क्योंकि माँ में विटामिन डी की अपर्याप्तता शिशु में स्थानांतरित होने की संभावना है।
– अपरिपक्वता से जुड़ी अन्य समस्याएं जैसे दूध पिलाने की क्षमता, अपरिपक्व जठरान्त्र सम्बन्धी मार्ग जिससे अवशोषण प्रभावित होता है और कुछ मामलों में लिवर और गुर्दे को हानि होती है और इसे तदनुसार नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है।
शिशु के आहार में पर्याप्त विटामिन डी सुनिश्चित करें। सिर्फ स्तनपान करने वाले शिशुओं जिनमें लक्षणों/संकेतों के बिना कम से कम एक जोखिम कारक हो, में बिना जांच किए सप्लीमेंट्स शुरू करना उचित है। अधिकांश शिशु फार्मूला में 400 आई.यू./लीटर होता है। इसलिए, फार्मूला लेने वाले शिशुओं को भी सप्लीमेंट्स की आवश्यकता हो सकती है जब तक कि उन्हें प्रतिदिन कम से कम 1 लीटर फार्मूला नहीं दिया जाता है।
जिन बच्चों में जोखिम हो सकता है जैसे सांवले रंग की त्वचा वाले बच्चे, धूप से दूर रहने वाले बच्चे, वे बच्चे जिन्हें धूप की रोशनी कम या बिल्कुल नहीं मिलती या वे बच्चे जिन्हें कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या होती है जिसके कारण वे ऊपर बताई गई दवाओं का सेवन कर रहे होते हैं उन्हें विटामिन डी की कमी से बचने के लिए 400 आई.यू. प्रतिदिन दिया जाना चाहिए।
हालांकि पौधे विटामिन डी को संश्लेषित करते हैं, लेकिन यह विटामिन मानव शरीर द्वारा उपयोग में नहीं लिया जा सकता है। इसलिए विटामिन डी युक्त भोजन केवल पशुओं से प्राप्त खाद्य पदार्थ होते हैं। पशुओं द्वारा मिलने वाला एकमात्र आहार जो बच्चे लेते हैं, वह दूध है (गाय का दूध: 3-40 आई.यू./लीटर) जो वास्तव में विटामिन डी का एक समृद्ध स्रोत नहीं होता है। यहाँ फोर्टिफिकेशन (भोजन में अतिरिक्त पोषक तत्वों को शामिल करना) की भूमिका आती है।
विटामिन डी से भरपूर फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ
सबसे अच्छा खाद्य पदार्थ जो बड़े बच्चे खा सकते हैं:
1. तैलीय मछली जैसे सैल्मन, मैकेरल, और सार्डिन, कॉड लिवर तेल, यकृत। मछली को तलने से उसके सक्रिय विटामिन डी तत्व में 50% तक की कमी आ जाती है, जबकि मछली को सेंकने से विटामिन डी तत्व प्रभावित नहीं होता है।
2. ऑर्गन मीट
3. अंडे की जर्दी (20-25 आई.यू. प्रति जर्दी)
हाँ। बहुत अधिक विटामिन डी, विषाक्तता का कारण बन सकता है। विटामिन बी और सी पानी में घुलनशील होते हैं जिससे इनकी अतिरिक्त मात्रा शरीर से बाहर निकल जाती है। विटामिन ए, डी, ई और के फैट में घुलनशील होने के कारण शरीर में जमा हो जाते हैं और इनकी अधिक मात्रा समस्या पैदा कर सकती है।
निष्कर्ष: भारत जैसे उष्णकटिबन्धीय देश में भी वयस्कों और बच्चों में विटामिन डी की कमी के प्रमाण मिल रहे हैं। बाल रोग विशेषज्ञ से पर्याप्त परामर्श के बाद बच्चे के आहार में विटामिन डी को शामिल करके उचित देखभाल के साथ समस्या का मुकाबला करना सबसे बेहतर है।
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