बच्चे जब जन्म लेते हैं तो उनका इम्यून सिस्टम पूरा-पूरा विकसित नहीं होता है। प्लेसेंटा के माध्यम से गर्भ में ही बच्चे को माँ से कुछ एंटीबॉडीज मिलते हैं जो रोगों से लड़ने में मदद करते हैं। यह एंटीबॉडीज बच्चे को 3 से 6 महीने तक इम्युनिटी प्रदान करते हैं। माँ के दूध में भी बहुत सारे एंटीबॉडीज होते हैं जो बच्चे को हर रोग से बचाते हैं। हालांकि बच्चों को कई गंभीर इन्फेक्शन हो जाते हैं जिनसे नेचुरल एंटीबॉडीज सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाते हैं। इसलिए बच्चों को ऐसे रोगों से बचाने के लिए इम्युनाइज करना जरूरी है।
बच्चों के लिए इम्यूनाइजेशन बहुत जरूरी है और यही एक तरीका है जिससे बच्चों को गंभीर इन्फेक्शन से सुरक्षा मिल सकती है। पूरी दुनिया में लगभग 1.5 मिलियन बच्चों की मृत्यु वैक्सीन से ठीक होने वाली बीमारियों से हो जाती है। यदि फिर भी आपको वैक्सीन की महत्ता पर कोई सवाल है तो आगे पढ़ें। यहाँ पर वैक्सीन से संबंधित सभी सवालों के जवाब दिए गए हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं।
इम्यूनाइजेशन से संबंधित सभी अलग-अलग जानकारियों और इसके फायदे व नुकसान के कारण हाल ही में बने माता पिता को यह निर्णय लेने में दिक्कत हो सकती है कि उन्हें बच्चे को वैक्सीन लगवानी चाहिए या नहीं। हाल ही में बने पेरेंट्स के पास वैक्सीन से संबंधित बहुत सारे सवाल होते हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
वैक्सीन बहुत जरूरी है क्योंकि यही एक तरीका है जिससे न्यूबॉर्न बेबीज को अलग-अलग व गंभीर इन्फेक्शन से सुरक्षित रखा जा सकता है। वैक्सीन से बच्चों को कई रोग नहीं होते हैं, जैसे डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, मीजल्स, मंप्स, रूबेला, पोलियो, चिकनपॉक्स, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी और हेमोफाइल्स इन्फ्लुएंजा टाइप बी (एचआईबी)। यह बच्चों को रोटावायरस से भी बचाता है जो गंभीर रूप से गैस व डायरिया के लिए जाना जाता है व न्यूमोकोकल रोग से होता है।
यदि आप अपने बच्चे को वैक्सीन नहीं लगवाते हैं तो उसे बहुत सारे इन्फेक्शन्स होने का डर रहता है। यदि कम्युनिटी के 90% लोग वैक्सीनेटेड हैं तो बच्चा रोग से सुरक्षित रहता है जिसे ‘हर्ड इम्युनिटी’ कहते हैं। यदि कुछ पेरेंट्स अपने बच्चे को वैक्सीन नहीं लगवाते हैं तो इससे बीमारी होने का डर अभी भी रहता है। देश का वैक्सीनेशन प्रोग्राम तभी सफल होगा जब समाज के सभी लोग इसमें भाग लेते हैं। इसी तरह से किसी भी रोग को खत्म किया जा सकता है।
वैक्सीन में बीमारी फैलाने वाले वायरस और बैक्टीरिया के जैसे ही एजेंट्स होते हैं। ये भी डेड माइक्रोब्स, माइक्रोब्स के टॉक्सिन्स या माइक्रोब्स के ऊपरी प्रोटीन से बन सकते हैं। वैक्सीन में मौजूद एजेंट बच्चे के इम्यून सिस्टम को उत्तेजित करता है जिससे किसी भी जोखिम के बढ़ने का पता चलता है। वैक्सीन वायरस और बैक्टीरिया के विपरीत काम करती है। वैक्सीन में मौजूद माइक्रोऑर्गेनिज्म या माइक्रोबियल एजेंट जब शरीर में जाता है तो इम्यून सिस्टम एंटीबॉडीज उत्पन्न करता है जो माइक्रोब्स से लड़ने और इसे खत्म करने में मदद करते हैं। यह एंटीबॉडीज बीमारी के बाद भी लंबे समय तक शरीर में ही रहते हैं। यदि उसी माइक्रोब्स से दोबारा इन्फेक्शन होता है तो एंटीबाडीज आपके बीमार होने से पहले ही उस माइक्रोब को खत्म कर देते हैं।
वैक्सीन को भविष्य में एक समान इन्फेक्शन से होने वाले प्रभावों से बचाने के लिए डिजाइन किया गया है। हालांकि कुछ का इम्यून सिस्टम अच्छा रिस्पॉन्स नहीं देता है। जिसका यह मतलब है कि वह बच्चा इम्यूनाइजेशन के बाद भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। हालांकि ज्यादातर वैक्सीन अत्यधिक प्रभावी होती हैं। उदाहरण के लिए, एमएमआर वैक्सीन लेने से 99.7 बच्चे मीजल्स से इम्यून हो जाते हैं। 3 डोज के बाद पोलियो की वैक्सीन 99% तक प्रभावी हो जाती है और वेरीसेला वैक्सीन से 100% तक चिकन पॉक्स ठीक हो सकता है।
हर वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स होते हैं। ज्यादातर साइड इफेक्ट्स बहुत माइल्ड होते हैं जैसे इंजेक्शन लगाई गई जगह पर दर्द होना, हल्का बुखार और सिर में दर्द होना। हालांकि गंभीर साइड इफेक्ट्स, जैसे रिएक्शन होना भी संभव है पर यह बहुत कम होता है। यह याद रखना जरूरी है कि बच्चे को वैक्सीन न लगवाने से उसे गंभीर रोग हो सकते हैं।
यदि बच्चे को ऐसा रोग है जो वैक्सीन से ठीक हो सकता है तो उसे इम्युनाइज करने की सलाह दी जाती है। यह बहुत जरूरी है क्योंकि एचआईबी और निमोकोकल रोग होने के बाद दो साल के बच्चे में पर्याप्त नेचुरल इम्युनिटी नहीं होती है।
यदि बच्चे को जुकाम या हल्का बुखार है तो आप उसे वैक्सीन दे सकती हैं। यदि बच्चे को तेज बुखार है तो उसे वैक्सीन नहीं लगानी चाहिए। जिन बच्चों का मेडिकल ट्रीटमेंट चल रहा होता है और जिन बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर है तो उसे वैक्सीन नहीं लगानी चाहिए।
डॉक्टर पता करते हैं कि कहीं बच्चे को वैक्सीन देने के बाद भी एलर्जी तो नहीं है। उदाहरण के लिए, इन्फ्लुएंजा वैक्सीन में एग प्रोटीन होता है। यदि बच्चे को एग प्रोटीन से एलर्जी है तो भी बच्चे को वैक्सीन से कोई भी जोखिम नहीं है।
नेचुरल इम्युनिटी वैक्सीन की इम्युनिटी से ज्यादा बेहतर है। हालांकि नेचुरल तरीके से रोग होने से कई कॉम्प्लीकेशंस बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि माइक्रोब्स के डोज और रोग का समय नेचुरल इम्यूनाइजेशन से बड़ा है।
इसका कोई भी प्रमाण नहीं है कि वैक्सीन के इंजेक्शन से बच्चे को हानि हो सकती है। पर बच्चे का इम्यून सिस्टम कई सारी वैक्सीन को आसानी से रिस्पॉन्ड करने में सक्षम होना चाहिए। इसलिए दिनभर में एक से ज्यादा वैक्सीन लगाने से बच्चे को हानि नहीं होती है।
कई रिसर्च में यह पता लगा है कि वैक्सीनेशन से ऑटिज्म नहीं होता है। उदाहरण के लिए एमएमआर दिए गए बच्चों की तुलना उन बच्चों से की गई जिन्हें वैक्सीन नहीं लगाया गया था। रिसर्चर्स के अनुसार दोनों बच्चों में ऑटिज्म होने का खतरा एक समान है। इसका यह मतलब है कि एमएमआर वैक्सीन से ऑटिज्म नहीं होता है। ऐसी ही एक और स्टडी की गई थी जिसमें इन्फ्लुएंजा की वैक्सीन के साथ हजारों बच्चों की तुलना उन बच्चों से की गई थी जिन्हें वैक्सीनेटेड नहीं किया गया था। इस रिसर्च में भी यही पाया गया कि दोनों ग्रुप में ऑटिज्म होने का खतरा एक जैसा है। इससे यह स्पष्ट है कि वैक्सीन की वजह से ऑटिज्म नहीं होता है।
बच्चों का इम्यून सिस्टम एक से ज्यादा वैक्सीन को रिस्पॉन्ड करने में सक्षम है। इसलिए बच्चे को एक दिन में एक से ज्यादा वैक्सीन दी जा सकती हैं। इसके अलावा न्यू बॉर्न बच्चे इम्यून सिस्टम से संबंधित चैलेंजेस का सामना करते हैं। जन्म के बाद से ही उन्हें हजारों बैक्टीरिया व वायरस से लड़ना पड़ता है। बच्चों के शरीर में मिलियन इम्यून सेल्स होते हैं। इसलिए बच्चों में कई सारी वैक्सीन संभालने की क्षमता है।
हर वैक्सीन को एप्रूव करने के लिए मैन्युफैक्चरर को इसकी शुद्धता, क्षमता और सुरक्षा प्रमाणित करनी पड़ती है। एप्रूव होने के बाद भी सेफ्टी के लिए वैक्सीन को बार-बार टेस्ट भी किया जाता है और इसके हानिकारक रिएक्शंस को लगातार मॉनिटर भी किया जाता है।
इन्फुएन्जा वायरस के प्रकार लगातार बदलते रहते हैं। चिकनपॉक्स के विपरीत जो कभी नहीं बदलता इन्फ्लुएंजा वायरस बदलता रहता है। इसलिए सभी इन्फ्लुएंजा वायरस के प्रभाव से सुरक्षा के लिए हर साल फ्लू का इंजेक्शन लगवाना बहुत जरूरी है। यही कारण है कि हर साल एक नया फ्लू उत्पन्न होता है।
रिसर्च के अनुसार किसी भी वैक्सीन के कारण टाइप 1 डायबिटीज नहीं होती है। बहुत सारे हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन में यह स्टडी हुई है और बचपन में लगाई हुई वैक्सीन और बाद में हुई टाइप 1 डायबिटीज में कोई भी संबंध नहीं है।
वैक्सीन से कई गंभीर इन्फेक्शन ठीक हो जाते हैं। वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं। यदि सभी लोग अपने बच्चे को वैक्सीन लगवाते हैं तो कुछ बीमारियों को खत्म करना संभव है। जैसे स्मॉल पॉक्स सालों तक लगातार इम्यूनाइजेशन से खत्म हो चुका है। इसलिए बच्चों को वैक्सीन लगाना बहुत जरूरी है ताकि उन्हें कोई भी गंभीर बीमारी न हो।
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