तेनालीराम की कहानी: सुनहरा पौधा | Tenali Rama Stories: The Golden Plant Story In Hindi

तेनालीराम की कहानियां सालों से बच्चों के बीच काफी प्रसिद्ध हैं। विजयनगर के महाराज कृष्णदेव राय और तेनालीराम की कहानियां बच्चों को बहुत शिक्षा भी देती हैं। इस कहानी में भी यह बताया गया है कि कैसे तेनालीराम की बुद्धिमानी और चतुरता ने एक निर्दोष माली की जान जाने से बचा ली। कहानी में क्या हुआ और कैसे तेनालीराम ने कहानी को अलग मोड़ दिया, इन सब के लिए आपको पूरी कहानी अच्छे से पढ़नी पड़ेगी।

कहानी के पात्र (Characters Of Story)

  • महाराज कृष्णदेव राय
  • तेनालीराम
  • माली
  • माली की पत्नी

तेनालीराम की कहानी – सुनहरा पौधा (Tenali Rama Stories – The Golden Plant Story In Hindi)

तेनालीराम हमेशा से अपनी होशियारी और हाजिर जवाबी की वजह से विजय नगर के महाराज कृष्णदेव राय को आश्चर्य में डाल देते थे। इस बार भी उन्होंने महाराज को अपने फैसले पर फिर से सोचने के लिए विवश कर दिया।

एक बार राजा कृष्णदेव राय काम की वजह से कश्मीर गए थे। वहां पर उन्होंने एक सुनहरे रंग का फूल देखा। महाराज को वह सुनहरा फूल इतना पसंद आया कि वह कश्मीर से लौटते वक्त उसका एक पौधा अपने राज्य विजयनगर ले आए।

राजा, महल जैसे ही पहुंचे उन्होंने अपने माली को बुलाया। माली के आते ही महाराज उससे बोले –

“देखो! इस पौधे को तुम बगीचे में ऐसी जगह लगाना जहां से मैं अपने कमरे से इसे रोज देख सकूं। इस पौधे में सुनहरे रंग के फूल खिलेंगे, जो मुझे बहुत पसंद हैं। तुम इस पौधे का अच्छे से ध्यान रखना। अगर इसे कुछ भी हुआ, तो तुम्हें मृत्यु दंड मिलेगा।”

माली ने राजा के आदेश को सुनते हुए हां में सिर हिलाया और उनसे पौधा लेकर ऐसी जगह पर लगाया, जहां से महाराज उसे अपने कमरे से देख सकें। माली दिन-रात उस पौधे का बहुत ध्यान भी रखता था। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, उसमें सुनहरे फूल खिलने लगे। राजा अब रोज सुबह सबसे पहले सुनहरे फूल का दीदार करते और उसके बाद राज दरबार जाते थे। कभी राजा को महल से किसी से काम से बाहर जाना पड़ता था, तो बिना फूल को देखे दुखी हो जाते थे।

एक दिन जब राजा अपनी खिड़की पर फूल को देखने आए, तो उन्हें सामने वो पौधा नहीं दिखा। उन्होंने माली को बुलाया और उससे पूछा –

“वो पौधा कहां गया? मुझे उसके सुनहरे फूल क्यों नहीं दिखाई दे रहे हैं?”

जवाब में माली बोला –

“महाराजा! कल शाम उस पौधे को मेरी बकरी खा गई।”

माली की बातों को सुनते ही महाराज को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने तुरंत माली को दो दिन बाद मृत्यु दंड देने का फैसला किया। उसके बाद सैनिकों ने माली को जेल में डाल दिया।

माली की बीवी को जब इस बात की खबर लगी, तो महल जाकर राजा के सामने माली की जान बख्शने के लिए फरियाद करने लगी। लेकिन महाराज को इतना गुस्सा था कि उन्होंने उसकी एक भी नहीं सुनी। फिर वह रोते हुए दरबार से जाने लगी। तभी उसे एक व्यक्ति ने तेनालीराम से मिलने की नसीहत दी।

दुखी माली की पत्नी तेनालीराम के पास पहुंची और उसे अपने पति के मृत्यु दंड और सुनहरे फूल वाली सारी कहानी बताई। तेनालीराम ने उसकी सभी बातों को सुनकर उसे समझाया और घर भेज दिया।

अगली सुबह माली की पत्नी बहुत गुस्से में थी और वह उस बकरी को बीच चौराहे पर डंडे से पीटने लगी, जिसने सुनहरे पौधे को खा लिया था। मार खाते-खाते बकरी अधमरी हो गई थी। विजयनगर राज्य में किसी भी जानवर के साथ ऐसा करना सख्त मना था। माली की पत्नी की ऐसी क्रूरता पर वहां पर मौजूद लोगों ने कोतवाली पर शिकायत दर्ज कर दी।

सारे मामले की जानकारी होने बाद कोतवाल के सिपाहियों को मालूम पड़ गया कि ये सब माली को मिले मृत्यु दंड की वजह से हो रहा है। इस मामले को लेकर सिपाही दरबार में आए।

राजा ने माली की पत्नी से पूछा कि वह जानवर के साथ ऐसा बुरा व्यवहार कैसे कर सकती है। माली की पत्नी ने जवाब में कहा –

“महाराज!, ऐसी बकरी जिसकी वजह से मेरा पूरा जीवन बर्बाद होने वाला है, मैं विधवा हो जाउंगी और मेरे बच्चे अनाथ, उस बकरी से मैं और कैसा व्यवहार करूं।”

कृष्णदेव राय ने कहा –

“तुम क्या कहना चाहती हो, मैं समझा नहीं। इस बेजुबान जानवर ने तुम्हारा घर कैसे उजाड़ा?”

माली की पत्नी बोली –

“हे राजा, ये वही बकरी है जिसने आपके सुनहरे पौधे को खाया था। इसकी वजह से ही आपने मेरे पति को मृत्यु की सजा दी है। गलती तो इस बकरी ने की थी, लेकिन आपने सजा मेरे पति को दी। सजा तो इस बकरी को मिलनी चाहिए, इसलिए इसे डंडे से पीट रही थी।”

अब महाराज को भी लगा कि गलती माली की नहीं थी, बल्कि बकरी उसकी जिम्मेदार थी। कृष्णदेव राय ने माली की बीवी से पूछा कि तुम्हारे पास इतनी बुद्धि कैसे आई कि तुम ये समझा सको कि गलती किसकी है। तब उसने कहा –

“साहब, मैं तो रोने के अलावा कुछ नहीं कर रही थी। ये सब तो मुझे पंडित तेनालीराम से समझाया है।”

एक बार फिर महाराज को तेनालीराम की बुद्धिमत्ता पर गर्व हुआ और वे बोले कि तेनालीराम तुमने एक बार फिर से मुझे एक बहुत बड़ी गलती करने से बचा लिया। इसके बाद महाराज ने माली का मृत्यु दंड का फैसला वापस ले लिया और उसे जेल से रिहा कर दिया। साथ में उन्होंने तेनालीराम को उनकी होशियारी के लिए 50 हजार स्वर्ण मुद्राएं तोहफे के रूप में दीं।

तेनालीराम की कहानी – सुनहरा पौधा से सीख (Moral of Tenali Rama Stories – The Golden Plant Hindi Story)

तेनालीराम की कहानी – सुनहरा पौधा की कहानी से यह सीख मिलती कभी भी समय से पहले हार नहीं माननी चाहिए। यदि आप अच्छे से कोशिश करते हैं, तो बड़ी-से-बड़ी मुसीबत से बचा जा सकता है।

तेनालीराम की कहानी सुनहरा पौधा का कहानी प्रकार (Story Type of Tenali Rama Stories – The Golden Plant Hindi Story)

यह कहानी तेनालीराम की कहानियों के अंतर्गत आती है, जिसमें तेनालीराम की चतुराई माली की जान बचाती है और उनकी समझदारी के राजा समेत सब कायल हो जाते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. सुनहरा पौधा की नैतिक कहानी क्या है?

तेनालीराम और महाराज कृष्णदेव राय की सुनहरे पौधे की कहानी में यह दर्शाया गया है कि यदि आपके सामने मुसीबत आती है, तो हमेशा सूझबूझ से कार्य करें और आसानी से हार नहीं मानें। ऐसा करने से आपको अंत में सफलता जरूर मिलेगी।

2. हमें कोशिश करने से पीछे क्यों नहीं हटना चाहिए ?

हर व्यक्ति की जिंदगी में कभी न कभी कुछ ऐसी विपरीत स्थिति आती है, जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा होता है। ऐसे में जब भी आप मुसीबत भरी स्थिति में फंसें, तो अपनी तरफ से कोशिश करना कभी नहीं छोड़े। आप बिना हार माने जितना कोशिश करेंगे, उतनी जल्दी मुसीबत से बच सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस कहानी से निष्कर्ष निकलता है कि जीवन में हमें कभी भी आसानी से हार नहीं माननी चाहिए और यदि आप किसी कठिन परिस्थिति में फंस गए हैं, तो निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। हो सकता है ऐसा करने से आपकी मुसीबत टल जाए या फिर मुसीबत को हल करने का रास्ता मिल जाए।

समर नक़वी

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