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बंदर और टोपीवाला की कहानी बच्चों की सबसे प्रसिद्ध नैतिक कहानियों में से एक है, जिसे माता-पिता और बच्चे दोनों पसंद करते हैं। यह कहानी बताती है कि कैसे सूझबूझ और चतुर सोच हमें जीवन में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने में मदद कर सकती है। यह कहानी इस बारे में है कि जब एक मेहनती टोपीवाला देखता है कि उसकी सारी टोपियां बंदर की टोली ने हड़प ली है तो वह किस तरह अपनी चतुराई से उन्हें वापिस हासिल करता है। यह कहानी एक लोक कथा पर आधारित है और छोटे बच्चों को होशियारी का पाठ पढ़ाती है।
इस मजेदार कहानी में 2 मुख्य पात्र हैं।
“टोपी ले लो टोपी! बीस रुपये की टोपी, दस रुपये की टोपी!”
काफी समय तक वह टोपियों की टोकरी लेकर धूप में इधर-उधर घूमता रहा। फिर दोपहर हो गई और खाना खाने के लिए वह एक पेड़ के नीचे रुका। खाना खाने के बाद टोपीवाला पेड़ के नीचे कुछ देर आराम करने के बारे में विचार करने लगा। उसने टोपियों की टोकरी पास में ही रखी और झपकी लेने के लिए लेट गया।
टोपीवाला जानता नहीं था लेकिन उस पेड़ पर बंदरों की एक टोली रहती थी। जब टोपीवाला सो गया तो धीरे से एक बंदर पेड़ से नीचे उतरा। उसने टोपियां देखकर अपने साथियों को इशारा किया और वे सब भी नीचे उतर आए। सभी बंदरों ने टोकरी से सारी टोपियां निकालकर पहन लीं और वापस पेड़ पर चढ़कर खेलने लगे।
थोड़ी देर बाद जब टोपीवाला उठा तो अपनी टोकरी खाली देखकर चौंक गया। उसने आसपास हर जगह अपनी टोपियां खोजीं। तभी उसने पेड़ पर बैठे बंदरों को टोपियां पहने हुए देखा। अब उसने अपनी टोपियां वापस पाने के लिए बंदरों को इशारा किया तो बंदर वैसा ही इशारा उसे देखकर करने लगे। फिर टोपीवाला हाथ जोड़कर उनसे टोपियां लौटाने का अनुरोध करने लगा तो बंदर भी हाथ जोड़ने लगे। टोपीवाला इस तरह के कई तरीके आजमाकर परेशान हो गया पर बंदर तो ठहरे बंदर, वे टोपियां लौटा ही नहीं रहे थे। अब टोपीवाला गुस्से में आ गया और हाथ उठाकर टोपियां लौटाने के लिए जोर से चिल्लाया। बंदर भी हाथ उठाकर चिल्लाने लगे। उनकी यह हरकत देखकर तब टोपीवाला समझ गया कि बंदरों को नकल करना पसंद है और वे तब से उसकी नकल ही कर रहे हैं। उसे एक तरकीब सूझी और अपनी टोपियां वापस पाने के लिए उसने चतुराई का इस्तेमाल किया। उसने अपने सिर पर पहनी हुई टोपी उतारकर जमीन पर फेंक दी। यह देखते ही बंदरों ने भी वही नकल उतारी और अपने-अपने सिर से टोपी निकालकर उसी तरह जोर से जमीन पर फेंक दीं। टोपीवाला दौड़ा, उसने झटपट सारी टोपियां इकट्ठा करके वापस अपनी टोकरी में रख लीं और खुशी-खुशी वापस घर को चल दिया।
टोपीवाला और बंदर की कहानी से यह सीख मिलती है कि चाहे कोई भी समस्या आए हमेशा अपनी बुद्धि और समझ का इस्तेमाल करना चाहिए। जिस तरह बंदर की नकल उतारने की आदत देखकर टोपीवाला समझ गया कि उसे टोपियां वापस हासिल करने के लिए उसकी इस आदत को ही हथियार बनाना है, उसी तरह मुश्किल समय में हमें परिस्थिति के अनुसार ही सूझबूझ से काम निकालकर उसका हल ढूंढना चाहिए।
टोपी बेचने वाला आदमी और बंदर की कहानी एक प्रसिद्ध लोककथा है। यह कहानी प्राइमरी क्लास की उम्र के बच्चों को सुनाई जाती है ताकि उन्हें सही तरीके से बुद्धि और चतुराई का इस्तेमाल करना आए। यह कहानी प्रेरणादायक कहानियों में आती है।
बंदर और टोपी बेचने वाला की कहानी मूल रूप से एक लोककथा है लेकिन 1940 में डब्ल्यू. आर. स्कॉट द्वारा बच्चों के लिए जो एस्फिर स्लोबोडकिना द्वारा लिखित और चित्रित ‘कैप्स फॉर सेल’ नामक पुस्तक प्रकाशित की गई जिसमें इस कहानी का आधुनिक संस्करण है।
बंदर और टोपीवाला की कहानी में टोपीवाला पेड़ के नीचे आराम करने लगा।
टोपीवाला बंदर की नकल करने की आदत जान गया।
कहानियां बच्चों को जीवन के बारे में तमाम बातें सीखने में मदद करती हैं। नैतिक और प्रेरणादायक कहानियां बच्चों की शब्दावली में सुधार करती हैं और उनके कल्पना कौशल को बढ़ाती हैं। बच्चों को कहानी सुनाना उनमें विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं की समझ विकसित करने और उनका आदर करने का एक उत्कृष्ट तरीका है। कहानियां सकारात्मक दृष्टिकोण भी बढाती हैं क्योंकि बच्चे इन नैतिक पाठों का उपयोग अपने वास्तविक जीवन में कर सकते हैं।
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